Saturday, 19 October 2013

मदनी की खरी-खरी ः मोदी के नाम पर मुसलमानों को न डराएं

जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिन्द के सैयद महमूद मदनी के ताजा बयान से सियासी बहस छिड़ गई है। बयान ही कुछ ऐसा था। भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी का डर दिखाकर वोट मांगने पर धर्मनिरपेक्ष दलों को आड़े हाथ लेते हुए मौलाना महमूद मदनी ने सीधा आरोप लगाया कि वोट के लिए समाज को मजहब के नाम पर बांटने से बाज आएं। इन दलों को किसी दूसरे दल के सत्ता में आने का डर दिखाकर मतदाताओं को लुभाने की बजाय अपनी उपलब्धियों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। महमूद मदनी ने कहा कि इन कथित धर्मनिरपेक्ष दलों को अपने  एजेंडे और घोषणा पत्रों में यह साफ करना चाहिए कि वह जनता के लिए क्या करना चाहते हैं। इन कथित धर्मनिरपेक्ष दलों को यह बताना चाहिए कि विभिन्न राज्यों में उनकी सरकारों ने क्या किया है। इन्होंने किन-किन वादों को पूरा किया और कौन-से वादे अधूरे रह गए। इन्हें इस आधार पर वोट मांगना चाहिए न कि किसी के सत्ता में आने का हौव्वा खड़ा करके। सभी दलों को नकारात्मक राजनीति नहीं करनी चाहिए बल्कि लोगों को सूचित करना चाहिए कि क्या उन्होंने समान अवसर पैदा किए हैं। मौलाना ने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता की जड़ें बहुत गहरी हैं और मुस्लिमों को मोदी के डर से किसी को वोट देने की जरूरत नहीं है। हालांकि मौलाना ने कांग्रेस का सीधा नाम तो नहीं लिया पर जाहिर है कि उनके निशाने पर कांग्रेस थी। मौलाना की बातों से हम सहमत हैं। उनके कारण कुछ भी रहे हों पर जो उन्होंने कहा वह सही कहा। मजहब के नाम पर देश की सियासत चलाना सरासर गलत है और मौलाना मदनी इस बात को कहने का साहस दिखाने वाले पहले मुस्लिम नेता, धर्मगुरु हैं। इस लिहाज से वह बधाई के पात्र हैं। रही बात नरेन्द्र मोदी की तो मौलाना ने इतनी चतुराई जरूर बरती कि उन्होंने मोदी के समर्थन में सीधा कुछ नहीं कहा लेकिन यह कहना कि मुसलमानों को मोदी कबूल होते हैं या नहीं यह तो समय ही बताएगा अपने आप में विशेष बन जाता है। यह भी सही कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता गहरी जड़े जमा चुकी है और इसके खिलाफ जाने वाला कोई नेता या पार्टी जनता को स्वीकार्य नहीं होगी। लेकिन मुसलमानों को उनकी यह सलाह कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना से वह चिंतित न हों, इतना तो बता ही रही है सियासी हवा किस ओर चल रही है। चुनावी मौसम में मदनी के आरोपों ने कांग्रेस को सकते में डाल दिया है। दरअसल मोदी के भाजपा की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर सामने आने के बाद सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की सियासत हावी हो रही है। कांग्रेस तो सांप्रदायिक भाजपा को सत्ता से दूर रखने के नाम पर धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट होने का आह्वान कर रही है। यही काम तीसरे मोर्चे की हवा माने जाने वाले सपा और वामदल भी कर रहे हैं। मगर मदनी के निशाने पर कांग्रेस के आने से उसके लिए सांप्रदायिकता के लिए भाजपा को कोसना बेहद मुश्किल हो सकता है। यही नहीं अभी तक कांग्रेस गुजरात दंगों की बार-बार याद दिलाकर मोदी को घेर रही है। मदनी के आरोपों के  बाद पार्टी के लिए ऐसा करना भी कठिन हो सकता है। हालांकि इस समय पार्टी मदनी पर पलटवार करने की बजाय मोदी पर ही निशाना साधकर इस विवाद से बचने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी कहते हैं कि मोदी का प्रधानमंत्री बनने का सवाल ही नहीं उठता और जब यह सवाल ही नहीं उठता तो डरने-डराने का सवाल कहां से उठता है।


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