पिछले
साल दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज होने वाली आम आदमी पार्टी को लोकसभा चुनाव में
करारी हार का सामना करना पड़ा है। आप के बड़े-बड़े नेता चारों
खाने चित्त हो गए। पार्टी कई अवसरों पर चूक गई। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल
को छोड़ दें तो पार्टी के प्रमुख चेहरे योगेंद्र यादव, कुमार
विश्वास, शाजिया इल्मी, आदर्श शास्त्राr,
गुल पनाग, मेधा पाटेकर, मयंक
गांधी, मीरा सान्याल व अंजलि दमानिया जैसे दिग्गज तीसरे या चौथे
स्थान पर रहे हैं। जिन दागदार उम्मीदवारों के खिलाफ आप ने उम्मीदवार उतारे,
वह कहीं नहीं टिक सके। आईबीएन-7 में वरिष्ठ अधिकारी
की नौकरी छोड़ बड़बोले आशुतोष भी हार गए और अब सड़क पर आ गए। दिल्ली के उम्मीदवारों
को भगवान भरोसे छोड़कर केजरीवाल मोदी को हराने वाराणसी चले गए। याद है केजरीवाल के
बोल, मैं वाराणसी से जीतने नहीं आया हूं मैं तो मोदी को हराने
आया हूं। बनारस की जनता ने ऐसी धूल चटाई कि श्रीमान जी के होश ठिकाने आ गए। केजरीवाल
ने इस चुनाव में एक और कीर्तिमान स्थापित किया है। अभी आंकड़े तो नहीं आए पर हम दावे
से कह सकते हैं कि आप के सबसे ज्यादा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है। जब कुमार विश्वास
जैसा दिग्गज नेता अपनी जमानत नहीं बचा सका तो बाकियों का क्या हाल हुआ होगा,
अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। दिल्ली में आप के सभी उम्मीदवार दूसरे
नम्बर पर रहे। विधानसभा चुनाव के मुकाबले वोट फीसद में बढ़ोत्तरी मानकर आप फौरी तौर
पर इतरा रही है, लेकिन एक भी सीट न जीतने का मलाल पार्टी को बेचैन
किए हुए है। ऐसे में पार्टी के भविष्य को लेकर अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं। पार्टी
के वरिष्ठ नेता अब खुलकर अपनी चूक मानने लगे हैं। दिल्ली सरकार से इस्तीफा देना आप
की सबसे बड़ी भूल रही। जनता को निराशा हाथ लगी। किसी भी नेता की साख व विश्वसनीयता
उसकी सबसे बड़ी पूंजी होती है। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी क्या छोड़ी,
पूरे लोकसभा चुनाव अभियान में वह `भगौड़े'
से पीछा नहीं छुड़ा सके। हार के लिए अंदरखाते लोग केजरीवाल के सिर पर
ही ठीकरा फोड़ने लगे हैं। जिस मोदी लहर को केजरीवाल सार्वजनिक तौर पर नकारते रहे हैं
उनकी पार्टी के नेताओं का कहना है कि मोदी की सुनामी थी जिसको जानबूझ कर नजरअंदाज किया
गया। 443 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर पार्टी ने भारी गलती की।
300 से अधिक उम्मीदवारों की जमानत जब्त होने की खबर है। 100 से अधिक उम्मीदवार तीसरे या चौथे नम्बर पर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के अहंकार
और स्वार्थ ने आप के भविष्य पर ही अब प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। एक नेता का यह कर्तव्य
होता है कि जब वह 443 उम्मीदवार उतार रहा है तो कम से कम यह तो
देखे कि उसकी पार्टी के उम्मीदवारों के पास बुनियादी सुविधाएं तो हों। अधिकतर उम्मीदवारों
के पास चुनाव लड़ने लायक धन भी नहीं था। पार्टी ने अप्रैल माह में ऑनलाइन चंदा एकत्रित
करने के लिए 443 प्रत्याशियों की अलग-अलग
वेबसाइट बनाई थी जिसमें संबंधित प्रत्याशी का फोटो, विवरण और
चंदे का लक्ष्य दिया गया था। पहले सभी उम्मीदवारों के लिए 40-40 लाख रुपए चंदे का लक्ष्य निर्धारित था जिसे बाद में 70 लाख कर दिया। लोकसभा चुनाव के लिए अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास पर भारत
के अलावा विदेश से जमकर धनवर्षा हुई। हालांकि निर्वाचन आयोग ने चुनाव में
70 लाख रुपए ही खर्च करने की सीमा तय की थी फिर भी केजरीवाल को
87 लाख, 8 हजार 163 रुपए
एवं कुमार विश्वास को 34 लाख 93 हजार
344 रुपए चंदे के रूप में मिले। जबकि पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए लगभग
30 करोड़ रुपए चंदे के रूप में प्राप्त हुए। पार्टी सूत्रों के मुताबिक
अभी चुनावी खर्चों का सही-सही मूल्यांकन तो नहीं किया गया है
लेकिन अनुमान है कि 25 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। यहां यह बताना
आवश्यक है कि मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए केजरीवाल ने ट्विट करके चंदे की मांग
की थी। देखते ही देखते केजरीवाल की झोली चंदे के पैसों से भर गई और
87,08,163 लाख रुपए उनके अकाउंट में आ गए। भारत के अलावा अमेरिका,
कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी,
जापान, सिंगापुर में बसे प्रवासी भारतीयों ने भी
चंदा दिया। आम आदमी पार्टी ने भले ही अपने पहले लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीत ली
हों लेकिन पार्टी नेता अब खुलकर केजरीवाल के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। आप की सबसे टॉप
बॉडी पोलिटिकल अफेयर्स कमेटी (पीएसी) में
इल्यास आजमी ने तो यहां तक कह दिया कि एक आदमी के पार्टी का मालिक बनने से यह दुर्गति
हुई है। उन्होंने तीन दिन की नेशनल काउंसिल बुलाने की मांग की है जिसमें पार्टी की
दुर्गति की जिम्मेदारी तय करने की बात कही है। देखना यह है कि आम आदमी पार्टी इस सेटबैक
से कैसे उभरती है?
-अनिल नरेन्द्र