Tuesday, 27 May 2014

मोदी को भारत की तस्वीर ही नहीं तकदीर भी बदलनी होगी

परिवर्तन की लहर पर सवार नरेन्द्र मोदी ऐसे समय में भारत के प्रधानमंत्री बन रहे हैं जब तमाम देशवासी परेशान हैं, चिंतित हैं। मार्च में जारी एक सर्वे में बताया गया है कि 70 प्रतिशत भारतीय देश की दिशा से असंतुष्ट हैं। वे महंगाई, बेरोजगारी और सरकार के कामकाज को लेकर चिंतित हैं। मोदी और भाजपा को वोट देने वाले करोड़ों मतदाता चाहते हैं कि देश के सामने से अंधकार छटे और उम्मीद की किरण के रूप में आए नरेन्द्र मोदी उनको इन समस्याओं से निजात दिलवा दें। इसके लिए अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करना बहुत जरूरी है। उम्मीद है कि मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत मुद्दों को हल करने का आश्वासन दिया है। कांग्रेस पार्टी की हार के मुख्य कारण रहेöबढ़ती महंगाई, डगमगाती अर्थव्यवस्था और ऊंचे पदों पर बैठे लोगों से संबंधित घोटाले। लेकिन मतदाता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की घिसी-पिटी अभिजात्य राजनीति से ऊब गए थे। इस चुनाव में पहली बार वोट डालने वाले करोड़ों युवाओं के लिए विरासत या किसी सियासी खानदान के प्रति वफादारी से अधिक महत्वपूर्ण परफार्मेंस था। लोगों ने इस चुनाव में वंशवाद को पूरी तरह खारिज कर दिया। जिस प्रकार से मोदी का विरोध हो रहा है उससे इतना तो साफ है कि उन्हें सभी वर्गों का समर्थन अब भी हासिल नहीं है। बेशक मोदी ने अपने भाषणों में कहीं भी हिन्दुत्व को मुद्दा नहीं बनाया पर उनकी छवि के कारण देश के अल्पसंख्यक वर्ग में मोदी की दहशत जरूर पैदा हो गई है। मुसलमानों, गैर-मुसलमानों सहित देश की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों को यह डर है कि मोदी की सरकार हिन्दुत्व को बढ़ाएगी जिससे धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। उनके आलोचक यह भी सोचते हैं कि उनके नेतृत्व की निरंकुश शैली को मधुर भाषा में निर्णायक नेता के रूप में पेश किया जाता है। 16वीं लोकसभा चुनाव में पहली बार मतदान करने वाले 2.31 करोड़ युवा मतदाताओं में से 39 प्रतिशत युवाओं ने मोदी को वोट दिया। उन्होंने यह वोट अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए दिया है। उन्हें उम्मीद है कि मोदी अर्थव्यवस्था को सुधारेंगे ताकि उन्हें बेहतर रोजगार के अवसर मिल सकें। मोदी की सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना है। 2005 से 2007 के बीच भारत की विकास दर 9 प्रतिशत थी। अब यह बमुश्किल 5 प्रतिशत है। भारत में हर वर्ष लाखों नौकरियों की जरूरत है। फुटकर महंगाई की दर 8.6 प्रतिशत है और वित्तीय घाटा आसमान छू रहा है। यूपीए-2 ने ऐसी उल्टी-सीधी स्कीमें चालू कर खजाने को खाली कर दिया है। देश को कांग्रेस की अक्षमता और आर्थिक सुधारों को ठीक से लागू न करने की सजा भुगतनी पड़ी। मोदी का आगे का रास्ता कठिन है और कांटों भरा जरूर है। अर्थव्यवस्था को खुलने में थोड़ा समय तो लगेगा। मोदी की शुरुआत तो अच्छी रही। सार्प देशों के अध्यक्षों को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर अपनी भावी विदेश नीति की दिशा अंकित करने का प्रयास किया है। पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ के समारोह में शामिल होने से एक नई उम्मीद जगी है पर आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार का भविष्य काफी हद तक टिका हुआ है। आज भी भारतीयों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान सबसे बड़ी प्राथमिकताएं हैं।

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