Saturday 24 May 2014

आ बैल मुझे मार ः अरविन्द केजरी बवाल


आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविन्द केजरीवाल ने बुधवार को जिस तरह पटियाला हाउस मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट गोमती मनोचा की अदालत में व्यवहार किया उस पर हमें तो कतई आश्चर्य नहीं है। पहले बता दें कि अदालत में हुआ क्या? केजरीवाल बुधवार को आरोपी के रूप में कोर्ट में पेश हुए। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उन पर मानहानि का केस कर रखा है। गडकरी ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल की भारत के `सर्वश्रेष्ठ भ्रष्ट' लोगों में उनका नाम होने और केजरीवाल के झूठे बयानों से उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है। केजरीवाल के वकीलों ने अपने मुवक्किल द्वारा लगाए गए आरोपों का तो न कोई जवाब दिया और न ही अपनी दलील में कोई सबूत ही दिया। उलटा मजिस्ट्रेट से जमानत बांड पर भिड़ गए। मजिस्ट्रेट गोमती मनोचा की अदालत में केजरीवाल की तरफ से सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण व राहुल मेहरा ने कहा कि यह मामला राजनीतिक है और आम आदमी पार्टी (आप) के सिद्धांत के अनुसार वे जमानत के लिए मुचलका नहीं भरेंगे। लेकिन इस बात का हलफनामा देने के लिए तैयार हैं कि वह अदालत के आदेश का पालन करते हुए हर तारीख पर अदालत में पेश होंगे। इस पर विरोध करते हुए गडकरी की तरफ से सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद व अजय दिगपाल ने कहा कि कानून में हलफनामा देने की कोई प्रक्रिया नहीं है और कानून किसी के लिए अलग नहीं हो सकता। यह बात तब सामने आई जब अदालत ने केजरीवाल से जमानत के लिए दस हजार रुपए का निजी मुचलका जमा करने को कहा। जिस पर केजरीवाल ने मुचलका भरने से इंकार करते हुए कहा कि वह कोई अपराधी नहीं हैं कि मुचलका भरें। अदालत ने कहा कि जब आप एक आदमी की बात करते हैं तो हम यही उम्मीद करते हैं कि आप एक आम आदमी की तरह ही व्यवहार करें, प्रक्रिया सबके लिए समान होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि कानून के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अदालत की प्रक्रिया का पालन नहीं करता तो इस हालात में अदालत आरोपी को हिरासत में भेजने पर विवश होगी। अदालत ने अपने तीन पृष्ठों के फैसले में कहा कि अदालत इस हालत में मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती जब कोई आरोपी द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन नहीं करना चाहता। अदालत का यह विचार भी था कि मुचलका भरने में आरोपी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि पेश मामले में दस हजार रुपए की राशि जमा करने में सक्षम है। इस तरह केजरीवाल ने मजिस्ट्रेट के सामने कोई और विकल्प नहीं छोड़ा और उन्होंने मजबूरन केजरीवाल को तिहाड़ भेज दिया। थूक कर चाटना, पलटी खाना अरविन्द केजरीवाल की खासियत बन चुकी है। यह नया स्टंट या ड्रामा आखिर क्यों हो रहा है? आम आदमी पार्टी (आप) उपराज्यपाल को विधानसभा भंग नहीं करने के लिए अपने पत्र से महज चंद घंटे बाद ही पलटी खा गए। पहले तो केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना उनकी गलती थी। उन्होंने जनता से पूछे बिना यह फैसला लेने पर अफसोस जताया और कहा कि अब अगले चुनाव की तैयारी के दौरान वह सभाओं के जरिए लोगों तक अपनी यह भावना पहुंचाएंगे। लेकिन इससे पहले केजरीवाल ने दोबारा दिल्ली में सरकार बनाने की भरसक कोशिश की। इस संबंध में उन्होंने उपराज्यपाल नजीब जंग को चिट्ठी तक लिख डाली। तुर्रा यह है कि चिट्ठी के बारे में उन्होंने मीडिया को जानकारी तक नहीं दी। जब वह उपराज्यपाल से मिलकर निकले तो मीडिया से बस इतना कहा कि उन्होंने शिष्टाचार मुलाकात की। लेकिन देर रात उपराज्यपाल को भेजी चिट्ठी लीक हो गई। तब जाकर केजरीवाल की पोल खुली कि उन्होंने उपराज्यपाल से कुछ मोहलत  मांगी थी ताकि सरकार बनाने की उनकी कोशिशों पर परवान चढ़ाया जा सके। लेकिन कुछ ही घंटों बाद केजरीवाल को यह अहसास हो गया कि सरकार बनाना मुमकिन नहीं है। यह देखते हुए हारकर केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव की मांग की। कई लोगों के जहन में यह सवाल उठ रहा है कि 40 हजार रुपए महीने के मकान में रहने वाले केजरीवाल ने दस हजार रुपए का मुचलका क्यों नहीं भरा? ठीक 24 घंटे बाद उनके करीबियों में से एक योगेंद्र यादव ने धारा 144 तोड़ने के केस में 5000 रुपए का निजी मुचलका भर दिया। क्यों केजरीवाल ने जेल जाना मंजूर किया? हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई है और दिल्ली की सातों सीटों पर उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। केजरीवाल की लोकप्रियता तेजी से घट रही है। केजरीवाल ने जमानत न लेकर जेल जाना इसलिए चुना क्योंकि पहली बात तो वह पब्लिसिटी के भूखे हैं। नरेंद्र मोदी ने उसी दिन गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था पर केजरीवाल ने ड्रामा करके अपने आपको चैनलों व प्रिंट मीडिया में छाए रहने का यह बहाना ढूंढा। कहा जा रहा है कि वे जेल जाकर जनता की हमदर्दी हासिल करना चाहते हैं, कार्यकर्ताओं में नया शिगूफा छोड़कर जोश भरना चाहते हैं। अरविन्द केजरीवाल सियासी तौर से इतने बुरे शायद ही कभी फंसे हों। सियासी गलियारों में हलचल मचाने वाले केजरीवाल को लगा कि यह स्टंट करने से उन्हें दिल्ली में चुनावी फायदा हो सकता है। केजरीवाल ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि वह यह संदेश फैलाएं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की वजह से ही केजरीवाल को जेल भेजा गया। पार्टी के नेता मान रहे हैं कि अब वे फिर भ्रष्टाचार के मुद्दे को फोकस करने में सफल होंगे। जिस तरीके से आप समर्थकों ने तिहाड़ जेल के बाहर हो-हल्ला किया उससे साफ है कि यह प्री-प्लांड ड्रामा था। केजरीवाल पब्लिसिटी के इतने भूखे हैं कि तिहाड़ जेल में रात बिताने के बाद सुबह उठते ही पहला काम यह किया कि अखबार मांगे। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार खुद के जेल जाने, उसके बाद देर रात तक तिहाड़ जेल के बाहर चले आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन की कवरेज देखने के उत्सुक थे। मजेदार बात यह है कि चार हमलों के बाद चार सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केरीवाल को जेल नम्बर चार में ही रखा गया। उसी जेल में रखा गया जिसमें उनके गुरू अन्ना हजारे को 2011 में रखा गया था। पब्लिसिटी स्टंट भी हो सकता है पर केजरीवाल ने कई बार कहा है कि वह भारत के संविधान, व्यवस्था के खिलाफ हैं और पूरा ढांचा बदलने में विश्वास करते हैं। जब वह 49 दिनों के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने धारा 144 तोड़कर देश की कानून व्यवस्था को चुनौती दी थी। अब भी उसी क्रम में जमानत के लिए मना कर कानून व्यवस्था से सीधी टक्कर ली है। उन्होंने खुद कहा था कि अराजक हूं, आईएमएन एनार्किस्ट। केरीवाल अपने तय एजेंडे पर चल रहे हैं पर उनका दुर्भाग्य यह है कि वह जनता में  बुरी तरह एक्सपोज हो चुके हैं, उनकी विश्वसनीयता व सियासी साख जीरो हो चुकी है। एक बार उन्होंने दिल्ली की जनता को बेवकूफ बना दिया पर बार-बार जनता बेवकूफ बनने को तैयार नहीं। इस ड्रामे से कोई फर्प पड़ने वाला नहीं है। जनता का मोहभंग हो चुका है।
-अनिल नरेन्द्र


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