Friday, 23 May 2014

परिपक्व, जवाबदेही और भावुक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने के रोमांच और इसके ऐतिहासिक महत्व की चर्चा वैसे तो 16 मई के परिणाम आने से ही शुरू हो गई थी पर इस चर्चा ने तब एक गहन अनुभूति और विश्वास की शक्ल अख्तियार कर ली जब नरेंद्र मोदी औपचारिक रूप से भाजपा संसदीय दल और फिर राजग के सर्वसम्मत नेता चुने गए। हालांकि हमने बड़े-बड़े नेताओं के मुंह से यह जुमलेबाजी कई बार सुनी है कि संसद लोकतंत्र का मंदिर है पर मंगलवार को जब देश और दुनिया ने देखा कि भारत का भावी प्रधानमंत्री संसद के भीतर पैर रखने से पहले उसके द्वार पर अपना माथा टेकता है तो इससे भारतीय लोकतंत्र के प्रति भरोसे और प्रतिबद्धता के एक सर्वथा नए युग की शुरुआत हो गई। संसद के केंद्रीय कक्ष में मंगलवार को उमंग थी, चौतरफा लहराती भावनात्मक तरंगों के  बीच संसदीय दल का नेता चुने जाने के बावजूद नरेंद्र मोदी ने शासन और राजनीति के अपने एजेंडे को भावुकता की बयार में बहने नहीं दिया। अपनी भावुकता को काबू में रखते हुए मोदी ने न सिर्प अपने शासन की भावी तस्वीर खींची बल्कि राजनीतिक नैतिकता का नया मानक तय करने और राजनीति की धारा बदलने के अपने इरादे भी साफ जाहिर कर दिए। भाजपा और राजग संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अब नरेंद्र मोदी के लिए प्रधानमंत्री पद की शपथ लेना भर शेष है। राष्ट्रपति से सरकार बनाने का निमंत्रण हासिल करने के साथ ही वह मनोनीत प्रधानमंत्री बन गए हैं। एक तरह से मोदी युग का आरम्भ हो गया है। बेशक भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने के दौरान मोदी जिस तरह से भावुक हो उठे उससे दुनिया ने उनका एक नया रूप देखा। एक मजबूत शासक की छवि वाले नेता का ऐसा रूप देखना दुर्लभ क्षण था। उनकी संवेदनशीलता उनके भाषण में भी झलकी और खासकर तब जब उन्होंने कहा कि सरकार गरीबों, युवाओं और मान-सम्मान के लिए तरसती मां-बहनों को समर्पित है। इस दौरान वह अपने भाषण में अपनी प्राथमिकताओं का उल्लेख करना भी नहीं भूले। फिलहाल मंगलवार को नरेंद्र मोदी ने अपने खास अंदाज में पांच बड़े सवालों पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। सरकार के पांच साल का एजेंडा इसी  परिधि से लागू होगा। अंदाज में संघ की विचारधारा, वाजपेयी का मॉडल और मोदी का अपना अंदाज तीनों शामिल हैं। संसद को नमन ः संसद में बैठे लोगों के प्रति आम लोगों की धारणा ठीक नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में इसे नाकारा लोगों का अड्डा भी कहा गया है। मोदी ने संसद भवन की सीढ़ियों पर माथा टेक कर यह संदेश दिया कि उनकी सरकार के लिए संसद सही अर्थों में लोकतंत्र का मंदिर होगा और सभी सांसदों को उसके प्रति श्रद्धा रखनी होगी। भावुकता ः मोदी भावुक हुए। आडवाणी यह कह चुके थे कि जो व्यक्ति भावुक होता है वह अपनी आलोचना और अत्याधिक खुशी से रो पड़ता है। मोदी की पिछले 12 वर्षों से लगातार तीखी आलोचना होती रही। सभी विपक्षियों ने उन पर निशाना साधा। लोकसभा चुनाव में सफलता के  बाद भी मोदी की आंखों में खुशी के आंसू नहीं आए। ऐसे में मोदी की पत्थर दिल होने की जो छवि बनी हुई है उसे आंसुओं के जरिए उन्होंने धोने की कोशिश की। पूर्वाग्रह मुक्त ः मोदी ने अपने भाषण में पिछली सरकारों की आलोचना नहीं की बल्कि कहा कि पिछली सरकारों ने देश को आगे ले जाने के लिए अपने तरीके से काम किया। वह (मोदी) अपने तरीके से काम करेंगे। इसके जरिए नरेंद्र मोदी ने साफ किया कि उनका फोकस विकास होगा। उनकी सरकार पिछली सरकारों के खिलाफ मुद्दा खोलकर समय जाया करने पर फोकस करने की जगह काम पर ध्यान लगाएगी। फोकस क्षेत्र ः मोदी ने भाषण के दौरान गरीब, युवा और महिलाओं के लिए सरकार को समर्पित भाव से काम करने का ऐलान किया। चुनाव के दौरान यूथ पर मोदी का फोकस रहा था। अर्थात संघ और संगठन के लिहाज से उन्होंने 2019 के लिए वोट बैंक को साधने का टारगेट सेट कर दिया है। इसमें जाति-धर्म से ऊपर गरीब, युवा और महिलाओं को शामिल किया है। भाजपा के अंदर और बाहर मोदी के आलोचक उन पर आरोप लगाते रहे कि वह सभी के साथ काम करने के आदी नहीं हैं। वह डिक्टेटर की तरह काम करते हैं इसलिए उनके पीएम बनने पर भाजपा के अन्य नेता हाशिए पर चले जाएंगे, जैसा गुजरात में हुआ। मोदी ने अपनी इस छवि को यह कहते हुए साफ किया कि एनडीए के सहयोगी उनके लिए उतने ही महत्वपूर्ण अभी भी हैं जितने भाजपा को बहुमत नहीं मिलने पर रहते। इससे लगता है कि एनडीए के सभी 29 दल सरकार चलाने में शामिल होंगे। अंत्योदय विचार के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का स्मरण करते हुए यह भी साफ किया मोदी ने अब उनके लिए अपने विचारों को जमीन पर उतारने का वक्त आ गया है। देश के लिए यह संतोषप्रद है कि उसका भावी प्रधानमंत्री सबकी उम्मीदों पर खरा उतरना चाहता है। इस पूरे उद्बोधन में नरेंद्र मोदी पर लगे सारे आरोपों के विपरीत एक परिपक्व, विनम्र और जवाबदेह अवतार में नजर आए। दरअसल उनका यह आशावाद ही है, जो समकालीन नेताओं से उन्हें अलग कर देता है। बेहद मामूली पृष्ठभूमि से निकलकर वह आज उस मुकाम पर पहुंचे हैं जहां से वह देश को एक नई दिशा दे सकते हैं।

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