लोकसभा चुनाव की राजधानी बन चुकी काशी में तीन दिन बिताने
के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यहां से मोदी न केवल जीत रहे हैं बल्कि भारी अंतर
से जीतेंगे। मैं और मेरे साथी हम 3 तारीख को काशी पहुंचे और 5 शाम को वहां से दिल्ली लौटे।
चुनाव आयोग और स्थानीय पशासन की सख्ती की वजह से शहर में हमें न तो कोई झंडा नजर आया,
न बैनर और न पोस्टर। हां होर्डिंग्स जरूर लगे नजर आए सभी पमुख उम्मीदवारों
के। नरेंद्र मोदी, आम आदमी पार्टी, सपा
और कांग्रेस के। हमने इन तीन दिनों में बहुत लोगों से पूछा। पहले तो वह डर की वजह से
जवाब देने को तैयार नहीं थे पर समझाने के बाद एक के सिवाय सभी ने मोदी को वोट देने
की बात कही। एक रेहड़ी वाले ने जरूर झाडू पर मुहर लगाने की बात कही। हमारा निष्कर्ष
है कि रेहड़ी वाले, पटरी वाले, दलित वर्ग
और कुछ बाबू क्लास जरूर अरविंद केजरीवाल को वोट देगा। एक मुसलमान भाई से बात करने पर
उसने दो टूक में कहा कि केजरीवाल बेशक आम आदमी हैं पर हम उन्हें क्यों वोट दें? वह सरकार बनाने तो जा नहीं रहे,
न ही वह हमें यहां की पुलिस व नौकरशाहों की सख्ती से बचा सकेंगे इसलिए
हम उन्हें वोट नहीं देंगे। पर इतना तय लगता है कि कोई भी मुसलमान मोदी को वोट शायद
ही दे। मुसलमानों को इस बात का गुस्सा है कि कांग्रेसी उम्मीदवार अजय राय ने अपने भाई
के हत्यारे मुख्तार अंसारी से क्यों समर्थन लिया? वह इससे नाराज
होकर कांग्रेस को वोट नहीं देंगे। जब हम काशी में थे तो सपा की भी हलचल देखने को मिली।
चूंकि यूपी में सपा की सरकार है, पशासन भी हलचल देखने को मिली।
चूंकि यूपी में सपा की सरकार है, पशासन है तो जाहिर सी बात है
कि उसे भी वोट डर के मारे मिलेंगे। लिहाजा मुस्लिम वोट हमें तो कांग्रेस, सपा और आम आदमी पाटी में बंटता नजर आया। बसपा का कोई पभाव देखने को नहीं मिला।
हालांकि लोकसभा चुनाव की राजधानी बन चुकी काशी में भले ही 42 उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हों लेकिन मुख्य मुकाबला अगर है तो मोदी बनाम केजरीवाल
है। हम सिगरा क्षेत्र में वरुण होटल में ठहरे थे। इलाके में समाजवादी पाटी के उम्मीदवार कैलाश चौरसिया के केंद्रीय
कार्यालय के बगल में नारियल पानी बेच रहे संजय से उसकी राय जाननी चाही तो उसने तपाक
से कहा कि बाबूजी यहां फूल (कमल) और झाडू
(आप) की लड़ाई है बाकी तो सब हवा हवाई है। बाबा
विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद हम बाहर अपने जूते पहन रहे थे तो सामने दो दुकानदारों
में बहुत तेज बहस छिड़ गई। एक कमल समर्थक था तो दूसरा झाडू। बहस इतनी गर्म हो गई कि
हाथापाई तक की नौबत आ गई। वाराणसी में मिनी पाकिस्तान के नाम से लोकपिय मदनपुरा इलाके
में कारोबारियों की भी यही राय थी कि लड़ाई कमल और झाड़ू में हो रही है। हालांकि इस
अल्पसंख्यक में आप की सफेद टोपी काफी संख्या में नजर आई। एक पत्रकार भाई का कहना था
कि पारंभ में स्थिति अलग थी लेकिन मोदी और केजरीवाल के कारण यहां चुनाव द्विधुवीकरण
होने की संभावना पबल हो गई है। मतदान की तिथि जैसे-जैसे करीब
आती जा रही है वाराणसी के मतदाता दों खेमों में बंटते नजर आ रहे हैं। मोदी वाराणसी
पहुंचने वाले हैं लगता है कि उनके आने से हवा मोदी मय हो जाएगी और मोदी के तूफान के
आगे सब उड़ जाएंगे। यह है हमारी काशी यात्रा की रिपोर्ट।
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