Friday 16 May 2014

मोदी सरकार की सम्भावना से नौकरशाही में हड़कम्प और कुछ में उत्साह

केंद्र में मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार बनने की बढ़ती सम्भावना ने शीर्ष अफसर क्लास में हलचल मचा दी है। एक वर्ग में जहां हड़कम्प मचा है वहीं दूसरे वर्ग में उत्साह की लहर दौड़ रही है। पहले बात करते हैं उस अफसर क्लास की जिसमें हड़कम्प मचा हुआ है। इस वर्ग में हैं नौकरशाह। कैबिनेट सचिव, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) पद के लिए नामों की चर्चा शुरू हो गई है। विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों में भी घबराहट पैदा होने लगी है। सूत्रों के मुताबिक नॉर्थ और साउथ ब्लॉक में बैठने वाले कई सचिवों और अफसरशाहों ने भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली और नितिन गडकरी से मुलाकात भी की है। माना जा रहा है कि मोदी सरकार की नजर रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर भी होगी। नई सरकार के साथ काम नहीं करने के इच्छुक कई अफसरशाहों ने विदेश की पोस्टिंग के लिए भी जोड़तोड़ शुरू कर दी है। कैबिनेट सचिव के लिए देश के सबसे वरिष्ठ अफसरशाह शांतनु बेहुरिया और एनएसए के लिए दो पूर्व विदेश सचिव कपिल सिब्बल और श्याम शरण के नामों की भी चर्चा है। इस पद के लिए खुफिया एजेंसी `रॉ' के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी और आईबी के पूर्व निदेशक अजीत डोभाल के नाम के कयास भी लगाए जा रहे हैं। डोभाल वाजपेयी सरकार में आईबी के निदेशक थे। सूत्रों के मुताबिक मोदी ने कभी दिल्ली की राजनीति नहीं की, लिहाजा अफसरशाही में निजी तौर पर किसी को नहीं जानते। अपने प्रमुख सचिव के लिए वह गुजरात के उन अफसरशाहों को चुनना चाहेंगे जिनके साथ उनका पुराना संबंध है। दूसरी ओर देश की सुरक्षा एजेंसियों में मोदी सरकार के आने की सम्भावना से उत्साह की लहर दौड़ गई है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद न सिर्प उनके खाली पदों को भरा जाएगा बल्कि सालों से अटके फैसलों पर अमल में तेजी आएगी। सीमाओं की सुरक्षा में लगे आईटीबीपी, बीएसएफ और एसएसबी के साथ-साथ सीआरपीएफ के वरिष्ठ अधिकारियों के भी पद खाली पड़े हैं। वहीं मुंबई हमले के बाद तमाम वादों के बाद भी खुफिया ब्यूरो भारी कमी से जूझ रहा है। आंतरिक सुरक्षा से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2008 में मुंबई हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों को मजबूत करने के बड़े-बड़े वादे किए गए थे और पी. चिदम्बरम के गृहमंत्री रहने के दौरान इस पर अमल करने की कोशिश भी की गई लेकिन धीरे-धीरे इन कोशिशों ने भी दम तोड़ दिया। हालत यह है कि पिछले नौ महीने से गृह मंत्रालय में विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) का पद खाली है। सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी में इसी तरह आईजी और एडीजी स्तर के दर्जनों पद खाली पड़े हैं लेकिन उन्हें भरने का कोई प्रयास यूपीए सरकार ने नहीं किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बार-बार नक्सलियों को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते रहे हैं लेकिन नक्सलियों के इलाकों में मोबाइल टॉवर लगाने की गृह मंत्रालय की योजना तीन साल से फाइलों से निकलकर जमीन पर नहीं उतरी। वरिष्ठ अधिकारियों की मानें तो राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी और समस्या की गम्भीरता को समझने की कमी व इच्छाशक्ति की कमी रही है। अब सबको उम्मीद है कि मोदी सरकार न केवल इच्छाशक्ति दिखाएगी बल्कि स्थिति की गम्भीरता को भी समझेगी।

No comments:

Post a Comment