Thursday 15 May 2014

अगर सिंगल डिजिट पर सिमट गए केजरीवाल तो भविष्य क्या होगा?

आम आदमी पाटी का राजनीतिक भविष्य अधर में आ गया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह जादुई जीत दर्ज कर केजरीवाल एंड कंपनी ने सियासी हलकों में खलबली मचा दी थी, उससे लोकसभा चुनावों में भी उनसे उम्मीदें बढ़ गई थीं। तमाम चुनाव सर्वेक्षणों ने आम आदमी पाटी को सीटों से ज्यादा वोट काटने वाली पाटी का निष्कर्ष निकाला है। बाकी तो 16 मई को ही पता चलेगा पर अगर सर्वेक्षणों की बात की जाए तो आम आदमी पाटी सिंगल डिजिट तक सिमट सकती है। कुमार विश्वास ने कल टीवी पर कहा कि हमसे कई गलतियां हुई हैं। हमें इतनी जल्दी में दिल्ली सरकार छोड़नी नहीं चाहिए थी। जिस तरीके से हमने सरकार बनाने में छह-सात दिन लिए थे, सभी से सलाह-मशविरा किया था, उसी तरह से हमें दिल्ली सरकार छोड़ने पर भी करना चाहिए था। एक और बात जो कुमार विश्वास ने कही वह यह थी कि हमें इतनी सीटों पर नहीं लड़ना चाहिए था। हमें 50 सीटों पर ही लड़ना चाहिए था। उल्लेखनीय है कि आम आदमी पाटी ने तो भाजपा और कांग्रेस से भी ज्यादा उम्मीदवार खड़े कर दिए। अंग्रेजी में जैसे कहा जाता है कि पाटी स्पेड टू थिन। नतीजा यह हुआ कि इक्का-दुक्का सीटों को छोड़कर बाकी सीटों पर चुनाव लड़ने की बुनियादी सुविधाएं भी नहीं उपलब्ध हो पाईं। अब आम आदमी पार्टी नेता कहते हैं कि हमें 6 फीसदी वोट मिल जाएं ताकि हम राष्ट्रीय पाटी का दर्जा पा जाएं। वैसे यह भी कम उपलब्धि नहीं होगी। अगर डेढ़ साल में आम आदमी पाटी राष्ट्रीय पाटी का दर्जा पा जाती है तो यह भी एक उपलब्धि मानी जाएगी पर दूसरी ओर अगर केंद्र में मोदी सरकार बनती है तो आम आदमी पाटी के सामने चौतरफा चुनौती होगी। दिल्ली में जल्द विधानसभा चुनाव को लेकर आप को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। इसके अलावा यदि भाजपा की ओर से जोड़-तोड़ पर सरकार बनाने की कोशिश की गई तो आप का कुनबा बिखर सकता है। वैसे भी पाटी के अंदर बगावती स्वर सुनने को मिल रहे हैं। आम आदमी पाटी के संस्थापक सदस्य एवं राष्ट्रीय परिषद के नुमाइंदे अश्विनी उपाध्याय तथा 2400 अन्य लोगों ने पाटी छोड़ दी है। अश्विनी रोज केजरीवाल से तीखे सवाल पूछ रहे हैं जिनका आज तक केजरीवाल ने जवाब नहीं दिया। राष्ट्रीय परिपेक्षय में बेशक इन सवालों का इतना महत्व न हो पर चुनाव परिणाम आने के बाद कभी न कभी तो केजरीवाल को इन सवालों का जवाब देना ही होगा। कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के बीच मतभेदों की खबर भी आ रही है। कुछ लोगों का कहना है कि अगर आप की परफारमेंस अच्छी नहीं रहती तो विश्वास केजरीवाल के नेतृत्व को भी चुनौती दे सकते हैं। पहली बार ही 434 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर चर्चा में आई आप का चुनाव पचार वाराणसी और अमेठी तक सिमट कर रह गया। पाटी के संयोजक अरविंद केजरीवाल शुरुआती दौर में गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली में ही रोड शो कर पाए। इसके बाद वे वाराणसी में ही सिमट गए। आप के पमुख नेता मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और गोपाल राय भी केजरीवाल के इर्द-गिर्द ही रहे। किसी बड़े नेता ने दूसरे संसदीय क्षेत्र में जाकर जोर-शोर से पचार नहीं किया। यहां तक कि सभी वालंटियर और दिल्ली के आप विधायक भी वाराणसी के अखाड़े में कूद गए। चुनाव में आर्थिक रूप से भी किसी पत्याशी को मदद नहीं दी गई। ऐसे में तमाम पत्याशियों ने वोटिंग से पहले ही हथियार डाल दिए। अगर केंद्र में मोदी सरकार बनती है तो भाजपा में दोगुना उत्साह आना स्वाभाविक है। इस बात का अंदेशा आम आदमी पाटी को भी है। जोड़-तोड़ में माहिर भाजपा के एक विधायक इस काम में लगे  हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक आम आदमी पाटी के आधा दर्जन विधायक भाजपा के इस विधायक पे संपर्क में हैं। वैसे 16 तारीख को चुनाव परिणाम आने के बाद भी पाटी अपने विधायकों को विधानसभा चुनाव के लिए रिमार्ग करेगी। सो बहुत कुछ निर्भर करता है कि 16 के परिणामों पर। केजरीवाल एंड कंपनी का भविष्य टिका हुआ है परिणामों पर।

-अनिल नरेंद्र

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