मोदी
लहर से भाजपा ने केंद्र में परचम लहराया तो अब दिल्ली में राष्ट्रपति शासन के दिन खत्म
होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। शहर की सभी सातों सीटों पर मिली जोरदार विजय से उत्साहित
साथ ही लोकसभा की 60 विधानसभा
सीटों पर जीतने के बाद भाजपा का एक खेमा छाती ठोंक कर चुनाव मैदान में उतारने की वकालत
कर रहा है जबकि कुछ नेता चाहते हैं जनता को एक और चुनाव में झोंकने से बेहतर है कि
पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने की पहल करे। यह दीगर बात है कि दिल्ली विधानसभा के वर्तमान
आंकड़ों को देखते हुए यह साफ है कि बगैर जोड़तोड़ किए भाजपा दिल्ली में अपनी सरकार
नहीं बना पाएगी। पिछले साल दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा-अकाली गठबंधन के 32, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं। दूसरी ओर जद (यू)
को एक और एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी को मिली थी। स्पष्ट बहुमत नहीं होने
से भाजपा ने सरकार बनाने से हाथ खड़े कर दिए थे और करीब 20 दिन
तक चले राजनीतिक ड्रामे के बाद कांग्रेस के सहयोग से केजरीवाल सरकार का गठन हुआ और
यह सरकार 49 दिन ही चल सकी। अब जबकि भाजपा के तीन विधायक डॉ.
हर्षवर्धन, रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा लोकसभा
चुनाव जीत चुके हैं तो साफ है कि भाजपा-अकाली गठबंधन के सदस्यों
की संख्या 29 रह जाएगी। 70 सदस्यों की विधानसभा
में अब बहुमत का फैसला 67 सदस्यों के आधार पर होगा। भाजपा को
कम से कम 34 विधायकों की जरूरत होगी। जाहिर तौर पर उसे पांच विधायकों
की तत्काल जरूरत है। ये विधायक आएंगे कहां से? इस बीच चर्चा यह
भी है कि आम आदमी पार्टी के अधिकतर विधायक जल्द विधानसभा चुनाव के पक्ष में नहीं हैं।
उन्हें डर है कि अगर जल्द विधानसभा चुनाव हो गए तो उन्हें हार का सामना करना पड़ सकता
है। इसी डर के चलते आम आदमी पार्टी टूटने के कगार पर है। आप के कुछ विधायक चाहते हैं
कि कांग्रेस न सही तो भाजपा से ही गठबंधन कर लिया जाए और चुनाव से बचा जा सके। संभावना यह भी बन
रही है कि विधायकों का यह गुट इस मसले पर पार्टी छोड़कर भाजपा से हाथ मिलाने को आतुर
है। आप से निष्कासित लक्ष्मीनगर के विधायक विनोद कुमार बिन्नी ने सोमवार को कहा कि
दिल्ली को विधानसभा चुनाव से बचाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ.
हर्षवर्धन और अरविंद केजरीवाल को एक पत्र भी लिखा है। उन्होंने कहा कि
अगर भाजपा पहल करे तो आप के कई विधायक उनका समर्थन करने को तैयार हैं। बिन्नी ने कहा
कि आप की राजनीति खत्म हो चुकी है। देश की जनता ने आप नेतृत्व को आइना दिखा दिया है।
दिल्ली के लोग भी नहीं चाहते कि प्रदेश में आप की सरकार बने। राजधानी में पिछले दो
दिनों से यह खबर खासी गरम है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर फिर से राजधानी में
सरकार बनाना चाह रहे हैं पर फिलहाल दोनों आप और कांग्रेस नेतृत्व ऐसी किसी संभावना
को खारिज कर रहा है। दिल्ली में तीनों प्रमुख दल भाजपा, आप और
कांग्रेस द्वारा मध्यावधि चुनाव के विकल्प पर सहमति जताने के बाद अब इस बात की चर्चा
तेज हो गई है कि दिल्ली में अगर कोई सरकार न बनी तो आखिरी विकल्प दोबारा विधानसभा चुनाव
ही होगा। यह चुनाव कब मुमकिन होगा? चुनाव आयोग के नियमों को देखते
हुए इस प्रक्रिया में कम से कम तीन महीने लगने के कारण आगामी अक्तूबर में हरियाणा सहित
अन्य राज्यों में संभावित चुनाव के साथ दिल्ली में भी चुनाव कराने की अटकलें तेज हो
गई हैं। दिल्ली चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लोकसभा चुनाव के बाद कम
से कम 45 दिनों तक ईवीएम के इस्तेमाल की बाध्यता को देखते हुए
अगले डेढ़ महीने तक दिल्ली के चुनाव की घोषणा मुमकिन नहीं है। इतना ही नहीं,
चुनावी तैयारियों के लिए कम से कम दो महीने का समय दिया जाना जरूरी है।
नियमों की इन दो बाध्यताओं के मद्देनजर जुलाई तक चुनाव कराना मुमकिन नहीं होगा। नियमों
की मजबूरियों को देखते हुए अब गेंद केंद्र सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के पाले में
होगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली विधानसभा के भविष्य का फैसला उपराज्यपाल के विवेक
पर छोड़ दिया है। ऐसे में राजनिवास और केंद्र की नई सरकार ही इस गुत्थी का हल निकालेंगे।
देखें, बिना चुनाव कराए कोई दल सरकार बनाने के लिए निकलता है
या एक बार फिर दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे?
-अनिल नरेन्द्र
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