Friday, 9 May 2014

यूपीए ने फिर कराई किरकिरी ः जासूसी कांड में जांच से पीछे हटी

विनाश काले विपरीत बुद्धि की कहावत कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता पर फिट बैठती है। आठवें चरण के मतदान के पहले चुनावी तापमान बढ़ाने के बाद संप्रग सरकार को गुजरात में कथित महिला जासूसी कांड की जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन के फैसले से पीछे हटना ही पड़ा। सहयोगी दलों के विरोध के बाद आखिरकार यूपीए सरकार को कथित तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारे पर हुई कथित एक युवती की जासूसी मामले में न्यायिक जांच का फैसला वापस लेना पड़ा। आम चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी होने को है। एक सप्ताह  बाद नई सरकार का चेहरा स्पष्ट हो जाएगा। केंद्रीय सत्ता के नीति नियंताओं को यह पहले से आभास होना चाहिए था कि चुनाव परिणाम आने के चन्द दिन पहले इस न्यायिक जांच आयोग के गठन पर जनता के बीच क्या संदेश जाएगा? यदि यूपीए को लोक-लाज की तनिक भी चिंता होती या परवाह होती तो वह इस बेतुके, बेबुनियाद आरोप की जांच ही न करवाते पर डूबते को तिनके का सहारा। यूपीए को लगा कि इस झूठे आरोप पर जांच आयोग का ड्रॉमा करके वह मतदाताओं में नरेन्द्र मोदी को एक्सपोज कर देगा। लड़की का पिता खुद कह रहा है कि यह आरोप गलत और बेबुनियाद हैं, खुद लड़की ने कहीं कोई ऐसा आरोप नहीं  लगाया फिर भी महज ड्रॉमेबाजी करने के लिए यूपीए सरकार ने अपने कदम आगे बढ़ाए और किरकिरी करवाकर वापस खींचने पड़े। यूपीए के दो घटक दलों नेशनल कांफ्रेंस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया। समझना मुश्किल है कि इस मामले को लेकर अगर यूपीए सरकार गम्भीर थी तो उसने पिछले साल नवम्बर में ही जब कांग्रेस ने मोदी पर तीखे वार किए थे तभी इसकी जांच क्यों नहीं कराई? चुनाव परिणाम आने के चन्द दिन पहले जासूसी मामले में न्यायिक आयोग गठित करने के फैसले से देश-दुनिया को यह संदेश गया कि राजनीतिक तौर पर मोदी का मुकाबला करने में नाकाम कांग्रेस उन्हें जबरन फंसाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। ऐसे किसी आयोग को गठित करने का फैसला करीब पांच महीने पहले लिया गया था, लेकिन कोई भी न्यायाधीश इस आयोग की अध्यक्षता करने के लिए तैयार नहीं हुआ। कायदे से तो सरकार को पहले ही समझ जाना चाहिए था कि ऐसे किसी आयोग को गठित करने से आम जनता के बीच सही संदेश नहीं जाएगा। पिछले साल 26 दिसम्बर को कैबिनेट के फैसले पर अब 16 मई के बाद बनने वाली नई सरकार  ही विचार करेगी। कैबिनेट के फैसले के बाद सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद मोदी के खिलाफ जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का कोई भी  जज तैयार नहीं हुआ। जज की नियुक्ति नहीं करने संबंधी सोमवार को केंद्र के ऐलान के बाद भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा कि इस मामले की जांच करने के लिए कुछ बचा ही नहीं था क्योंकि गुजरात सरकार इसकी जांच के लिए पहले ही आयोग गठित कर चुकी है। उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से समानांतर आयोग गठित करने का कदम दुर्भावना से प्रेरित था और मैं भारत की न्यायपालिका का आभार व्यक्त करता हूं कि कोई भी न्यायाधीश दुर्भावना से प्रेरित इस कदम का सहयोग करने को तैयार नहीं हुआ। इस कदम से पता चलता है कि कांग्रेस के अन्दर कितनी हताशा है।

-अनिल नरेन्द्र

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