Thursday 29 May 2014

दांव पर लगा 18 राज्यपालों (गवर्नरों) का भविष्य?

स्पष्ट बहुमत के साथ भारतीय जनता पाटी के केंद्र में सत्ता पर काबिज होने से एक पश्न जो उठेगा वह होगा कांग्रेस नीत यूपीए सरकार द्वारा नियुक्त किए गए 18 से ज्यादा राज्यपालों के भविष्य का। इन पर अब हटने की तलवार जरूर लटक गई है। कुछ विशेषज्ञों व विश्लेषकों का मानना है कि मोदी सरकार के लिए इनको हटाना आसान नहीं होगा। अगले छह से आठ महीने में जिन राज्यपालों का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है उनमें कमला बेनीवाल (गुजरात), एमके नारायणन (पश्चिम बंगाल), जेबी पटनायक (असम), पाटिल (पंजाब) और उर्मिला सिंह (हिमाचल पदेश) पमुख हैं। राज्य में लोकायुक्त नियुक्ति के मुद्दे पर गुजरात में मोदी सरकार के साथ कमला बेनीवाल का विवाद किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की नियुक्ति इस साल मार्च में केरल के राज्यपाल के तौर पर हुई थी। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा को अपैल 2012 में दूसरा कार्यकाल दिया गया। पूर्व गृह सचिव वीके दुग्गल को दिसंबर 2013 में मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। नई राजग सरकार की समीक्षा के दायरे में अन्य जो राज्यपाल आ सकते हैं उनमें बीएल जोशी (उत्तर पदेश में अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं), वीवी वाचू (गोवा), के. शंकर नारायण (महाराष्ट्र में अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं), के रोसैया (तमिलनाडु), रामनरेश यादव (मध्य पदेश), डी.वाई पाटिल (बिहार), श्रीनिवास दादा साहेब पाटिल (सिक्किम), अजीज कुरैशी (उत्तराखंड), वकोम पुरुषोत्तम (मिजोरम) और सैयद अहमद (झारखंड) के नाम हैं। सुपीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मई 2010 में दिए गए फैसले में कहा कि राज्यपाल को हटाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त कारण होने चाहिए। कोर्ट ने यह कहते हुए एक न्यायिक सावधानी रखी कि वह महज उस आधार पर हस्तक्षेप नहीं करेगा कि उसे हटाने के आदेश की कुछ और ही वजह है या दी गई सामग्री/कारण अपर्याप्त है। ऐसे में हटाए गए राज्यपालों के लिए न्यायिक समीक्षा का रास्ता बहुत आशाजनक नहीं है। यूपीए ने 2004 में सत्ता में आने पर एनडीए के समय नियुक्त अनेक राज्यपालों को हटा दिया था और कुछ ने खुद ही इस्तीफा दे दिया था। विश्लेषकों का कहना है कि इस बात की पूरी संभावना है कि मोदी सरकार बनते ही कुछ राज्यपाल खुद ही शालीनता से इस्तीफा दे दें और हटाने की शर्मिंदगी से बचना चाहें। जब यूपीए ने 2004 में एनडीए द्वारा नियुक्त अनेक राज्यपालों को हटाया था तब इन्हीं आदेशों को भाजपा के सांसद रहे वीपी सिंघल ने सुपीम  कोर्ट में चुनौती दी थी जिस पर उक्त फैसला आया था। तत्कालीन कांगेस सरकार ने राज्यपालों को हटाने का पूरा बचाव किया था और कहा था कि राष्ट्रपति (केंद्रीय कैबिनेट) की पशंसा बनी रहने तक ही राज्यपाल पद पर रह सकता है। जब मामला राजनीतिक हो तो जाहिर है कि कोर्ट में आना बहुत उत्साहजनक नहीं रहता। संविधान के अनुच्छेद 156.1 में राज्यपाल को हटाने की कोई पकिया नहीं है। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग जिनकी नियुक्ति इसी साल हुई थी पर भी तलवार लटकी हुई है। एक अधिकारी ने कहा कि यह सामान्य बात है कि नई सरकार राजभवन में जमे कुछ राज्यपालों से इस्तीफा देने को कहे क्योंकि शायद वह उसके खाके में फिट नहीं होते हैं।

-अनिल नरेंद्र

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