Tuesday 13 May 2014

56 दिन के चुनावी जुनून में सभी दलों ने अपना सब कुछ झोंका

16वीं लोकसभा के लिए पांच सप्ताह से अधिक समय तक नौ चरणों में हो रहे चुनाव के लिए प्रचार और शोर शनिवार शाम छह बजे समाप्त हो गया। 56 दिन तक चली वोट की रस्साकशी शनिवार शाम खत्म हो गई। सत्ता की चॉबी पाने की खातिर वोटरों को लुभाने के लिए इस बार राजनीतिक जुनून चरम पर रहा। कई इनोवेशन देखने को मिली, विवादों की छाया भी पड़ी और कभी न भूलने वाली घटनाओं के लिए भी यह चुनाव याद रखा जाएगा। यह जुनूनी सफर पांच मार्च से शुरू हुआ था जो प्रचार का शोर शनिवार शाम छह बजे थमने के बाद खत्म हो गया। तमाम दलों के नेता चैन की सांस ले सकेंगे, क्योंकि अब उन्हें न तो धूप में वोट मांगने की गुहार करनी होगी, न कोई रैली और न ही कोई रोड शो। कई मायनों में यह चुनाव ऐतिहासिक साबित होगा। चौराहे पर खड़ी भारतीय राजनीति में एक निर्णायक मोड़ आ सकता है। वैसे तो सही नतीजे 16 मई को आएंगे पर अगर शेयर मार्केट पर विश्वास किया जाए तो एनडीए सत्ता में आ रहा है। भारतीय बाजारों ने शुक्रवार को सारे रिकार्ड तोड़ डाले। बाजार सुबह सुस्ती के साथ फ्लैट खुले, लेकिन इसके बाद उन्होंने शानदार बढ़त दिखाई। खबर आई कि बाजार को 12 मई के एग्जिट पोल की आहट मिल गई। एग्जिट पोल करने वाली कुछ एजेंसियों ने डेटा लीक कर दिए हैं। इन डेटाओं के मुताबिक केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनती दिख रही है। यही वजह थी कि तमाम फंडामेंटल कमजोरियों के बावजूद बाजार में अप्रत्याशित उछाल देखने को मिल रहा है। संवेदी सूचकांक ने 650 अंकों की छलांग लगा डाली। एनएसई का निफ्टी भी 198.95 अंक उछलकर नई ऊंचाई पर पहुंच गया। यह चुनाव अब तक के सबसे खर्चीले चुनाव में शुमार हो गया। एक अनुमान के अनुसार केवल चुनाव प्रचार में ही 30 हजार करोड़ रुपए खर्च हो गए। इसके पीछे कई कारण हैं। मैं इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार चुनाव आयोग को मानता हूं। छह हफ्ते में फैले इस चुनाव में खर्च तो होना ही था। अगर यही चुनाव एक महीने के अन्दर करा लिए जाते तो एक-तिहाई खर्च कम हो जाता। फिर भारत की जनसंख्या इतनी बढ़ गई है कि सभी उम्मीदवार मॉस कांटेंट करने पर मजबूर हैं। इसलिए टीवी जैसे माध्यमों को ज्यादा प्राथमिकता दी गई जिसमें एक ही बार ज्यादा से ज्यादा लोगों में प्रचार हो सके। इस बार न तो हमें पोस्टर नजर आए, न बैनर। इक्का-दुक्का होर्डिंग जरूर नजर आए। महंगाई की वजह से भी जिस आइटम पर 10 साल पहले हजार रुपए खर्च होता था उस पर 10 हजार हो गया। हैलीकॉप्टरों, वाहनों, कार्यकर्ताओं पर भी उसी हिसाब से खर्चा बढ़ा। नरेन्द्र मोदी ने पहली बार 3डी रैली की तकनीक का उपयोग किया। सोनिया गांधी ने तमाम न्यूज चैनलों पर एक ही समय विज्ञापन का स्लॉट लेकर देश को संबोधित किया। इस बार भाजपा की ओर से नरेन्द्र मोदी ने वन मैन शो किया। सितम्बर से ही उन्होंने प्रचार की शुरुआत कर दी थी। जब तक बाकी मैदान में आते मोदी फुल फॉर्म में आ चुके थे। इस मैराथन प्रचार में मोदी ने 25 राज्यों में तीन लाख किलोमीटर घूम कर 500 से अधिक रैलियों को संबोधित किया। मोदी 1390 3डी रैलियां, 4827 पब्लिक प्रोग्राम और लगभग चार हजार चाय पर चर्चा में शामिल हुए। एक नया आयाम इस चुनाव में जो देखने को मिला वह था सोशल मीडिया। भारत में चल रहे आम चुनाव में सोशल मीडिया क्षेत्र के तीन अमेरिकी दिग्गज-फेसबुक, ट्विटर और गूगल ने अहम भूमिका निभाई। राजनीतिक दल और उम्मीदवार पारम्परिक मीडिया के जरिये तो अपनी बात पहुंचा ही रहे थे वहीं अपना संदेश प्रसारित करने के लिए इन सोशल साइट्स पर भी वह एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में लगे रहे। हालांकि इन सोशल साइट्स का चुनाव पर पड़ने वाला प्रभाव का सही आइडिया 16 मई को परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। चुनाव प्रचार का गिरता स्तर इस बार चिंता छोड़ गया। राजनीति में मर्यादा की सारी सीमाएं टूटीं और निजी जिंदगी सार्वजनिक तौर पर चुनावी मुद्दे बनी। मोदी की पत्नी से लेकर राहुल, प्रियंका तक के निजी मामले उठे, दिग्विजय सिंह की निजी जिंदगी भी पब्लिक डोमेन में आ गई। अब तक चुनाव प्रचार का इतिहास था कि अमूमन बड़े नेता न एक-दूसरे के खिलाफ बड़े उम्मीदवार उतारते थे, न ही उनके गढ़ में गहन चुनाव प्रचार करते थे। लेकिन इस बार राजनीतिक रण में यह अनकहा कोड भी टूट गया। राहुल के गढ़ में मोदी बरसे तो मोदी के गढ़ में राहुल और दोनों के गढ़ में आम आदमी पार्टी गरजी। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी एक मजबूत राजनीतिक दल के रूप में उभर कर सामने आई। बहुत कम साधनों के साथ आम आदमी पार्टी उम्मीदवारों ने जमकर लड़ाई पेश की। इस चुनाव में भाषा का स्तर इतना गिरा कि क्या बताएं। कोई तो मोदी की बोटी-बोटी काट रहा था तो कोई मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान भेज रहा था। कोई कह रहा था कि राहुल गांधी दलितों के घर जाकर हनीमून मनाते हैं तो कोई कह रहा था कि कुत्ते के बच्चे के बड़े भाई नरेन्द्र मोदी जी हमें तुम्हारा गम नहीं चाहिए। इस चुनाव में रीयल टाइम कवरेज का नया दौर दिखा। पहले लोग अपने शहरों में बड़े नेताओं की होने वाली रैलियां सुनने के लिए जाया करते थे। लेकिन इस बार रैलियों के कवरेज से हालात बदले। रीयल टाइम कवरेज ने इन रैलियों का गणित बदला और नेताओं ने इसका उपयोग भी उसी तरह किया। एग्जिट पोल कब प्रसारित होगा, इस बारे में गुरुवार को थोड़ा कंफ्यूजन जरूर हो गया था। चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने कह दिया कि एग्जिट पोल 16 मई से पहले प्रसारित नहीं हो सकते हैं जबकि उस दिन काउंटिंग होगी। नियम के अनुसार सभी चरण समाप्त होने के बाद एग्जिट पोल दिखाए जा सकते हैं। उनके इस बयान पर कुछ देर के लिए उलझन हो गई। बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस सम्पत्त ने संशोधन  करते हुए कहा कि नियम में कोई बदलाव नहीं किया गया है और पहले की तरह ही 12 को अंतिम चरण होने के बाद मतलब पांच बजकर 30 मिनट के बाद कभी भी प्रसार हो सकता है। कई मायनों में यह चुनाव इन कारणों से ऐतिहासिक रहा। प्राप्त संकेतों से नई सरकार सम्भव है। देश को एक नई दिशा मिलेगी। चुनाव आयोग लगातार राजनीतिक दलों के निशाने पर है। रैलियों में आयोग के साथ विरोधी दल की तरह व्यवहार किया गया। ममता बनर्जी, जयललिता ने जहां आयोग की ताकत को चुनौती दी वहीं नरेन्द्र मोदी ने उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए। कुल मिलाकर देश का यह सबसे बड़ा पर्व शांति से गुजर गया। इसके लिए चुनाव आयोग व सुरक्षा बल बधाई के पात्र जरूर हैं।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment