भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी
ने कुछ दिन पहले केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पर आरोप लगाया था कि वे दाउद
इब्राहिम के खिलाफ कार्रवाई के बजाय मीडिया में बयान दे रहे हैं। क्या ऐसी चीजें मीडिया
में बयान देने से हासिल हो सकती हैं?
क्या अमेरिका ने ओसामा को मार गिराने से पहले प्रेस कांफ्रेंस की थी?
उनमें जरा-सी भी परिपक्वता नहीं है। मुझे शर्म
आती है कि गृहमंत्री ऐसे बयान देते हैं। मोदी के इस बयान से पाकिस्तान बौखला गया और
भारत के लोकसभा चुनाव के दौरान ही अनॉप-शनॉप बयान देना आरम्भ
कर दिया है। आतंकी दाउद इब्राहिम पर नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी को भड़काऊ और निंदनीय
बताते हुए पाकिस्तान के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान ने कहा कि मोदी प्रधानमंत्री
बनते हैं तो वे क्षेत्रीय शांति को अस्थिर कर सकते हैं। खान ने कहा कि पहले मोदी को
तय करना चाहिए कि दाउद रह कहां रहा है। भारत के संभावित पीएम और एक अन्य प्रमुख पार्टी
के नेता का बयान पाकिस्तान के प्रति शत्रुता की अंतिम सीमा तक पहुंच गया है। लेकिन
पाक ऐसी धमकियों से डरेगा नहीं और न ही ऐसे प्रभावित होगा। उधर पाकिस्तानी सेना प्रमुख
जनरल रहील शरीफ ने कश्मीर को अपने देश की कंठ शिरा (जुगलर वेन)
करार देते हुए कहा कि इस मुद्दे का समाधान कश्मीरियों की इच्छा के अनुरूप
और क्षेत्र में शांति कायम रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्तावों को ध्यान
में रखते हुए होना चाहिए। जनरल रहील ने शहीदी दिवस के मौके पर रावलपिंडी स्थित सैन्य
मुख्यालय में बुधवार को एक समारोह में दावा किया कि कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय तौर पर मान्य
विवाद है। उन्होंने कहा कि कश्मीरियों का अतुलनीय बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पाकिस्तान
के गृहमंत्री और फिर सेना प्रमुख के बयानों का क्या मतलब निकाला जाए? क्या हम यह समझें कि चूंकि यह बयान श्री नरेन्द्र मोदी के बयान के बाद आए हैं
कि पाकिस्तान मोदी के आने से और भाजपा सरकार बनने की संभावना से बहुत दहशत में आ गया
है। उसे यह डर सता रहा है कि पिछले 10 साल से जो नपुंसक सरकार
भारत में थी अब उसका अंत होने वाला है और भारत में एक ऐसी मजबूत सरकार आने वाली है
जो ईंट का जवाब पत्थर से देगी? उन्हें लग रहा है कि मोदी यूपीए
के नेताओं की तरह शांत और दरियादिली स्वभाव के नहीं होंगे जो पाकिस्तान की ऊल-जुलूल हरकतें बर्दाश्त कर लेंगे। इसलिए सरकार बनने से पहले ही उन्होंने मोदी
को चेताने की कोशिश की है कि आप अपनी हद में रहें। एक मतलब इसका यह भी निकलता है कि
पाकिस्तान के अंदर बहुत सियासी खिटपिट चल रही है, अस्थिरता चल
रही है। पाकिस्तान में कश्मीर सीमेंट की तरह काम कर रहा है जिसने पाकिस्तान को जोड़
कर रखा है। अगर कश्मीर का मुद्दा वह ज्वलंत नहीं रखता तो पाकिस्तान बिखर सकता है। इसलिए
यह आक्रामक रुख एक ओर तो हाफिज सईद जैसे आतकी सरगनाओं के लिए है कि हम कश्मीर पर आतंक
की जंग जारी रखेंगे और दूसरी ओर पाकिस्तान की जनता की बढ़ती अंदरुनी समस्याओं से ध्यान
हटाने के लिए है। पाकिस्तान में पॉवर स्ट्रगल भी चल रही है। पाक सेना व लोकतांत्रिक
सरकार के बीच में तनातनी का माहौल है। क्या जनरल रहील का मियां नवाज शरीफ को यह संदेश
है कि मोदी सरकार बनने के बाद आप मोदी सरकार से कश्मीर पर कोई समझौता हमारी मर्जी के बिना
नहीं कर सकते आप अपनी हदों तक रहें? यह विचित्र नहीं है कि पाकिस्तान
के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में क्षेत्र
की शांति व्यवस्था पर असर पड़ने की बात तब कही जब खुद नई दिल्ली स्थित उनके उच्चायुक्त
यह कह रहे हैं कि भारत में किसी की भी सरकार बने उनका देश उसके साथ काम करने को तैयार
है। क्या पाकिस्तान के गृहमंत्री अपनी अलग विदेश नीति चला रहे हैं? न तो पाकिस्तान को इस बारे में बोलने का कोई अधिकार है कि भारत में लोकतांत्रिक
प्रक्रिया से किसकी सरकार चुनी जाती है और कौन प्रधानमंत्री बनता है और कौन नहीं प्रधानमंत्री
बनता है। सत्य तो यह है कि क्षेत्र में असली खतरा उस पाकिस्तान से है जहां जनता द्वारा
चुनी सरकार का तख्ता पलट दिया जाता है या फिर जिस देश की स्टेट नीति हो आतंकियों को
पालना उनका समर्थन करना और भारत को टेरेरिज्म एक्सपोर्ट करना। नरेन्द्र मोदी की दहशत
न केवल पाकिस्तान को ही है बल्कि देश के अंदर भी ऐसे कई लोग हैं जो सही कानून व्यवस्था
नहीं चाहते। पाकिस्तान की धमकी खोखली है जिसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
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