Tuesday 27 May 2014

हार के बाद कांग्रेस में निशाने पर राहुल और उनकी टीम

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोपों का खेल और तेज हो गया है। उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर पार्टी के अन्दर समर्थन और विरोध की  जुबानी जंग बढ़ती ही जा रही है। हार के लिए टीम राहुल के बहाने खुद राहुल पर निशाना साधा जा रहा है। कांग्रेस नेताओं पे एक गुट का कहना है कि नेतृत्व वाले पद उन्हीं को दिए जाएं जिन्हें जमीन पर काम करने का अनुभव है। इन नेताओं ने टीम राहुल पर परोक्ष हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस को अगर फिर से खड़ा होना है तो उसे अपनी समीक्षा करनी होगी। कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने बुधवार को कहा था कि राहुल के सलाहकार हवा का रुख भांप नहीं पाए। जिन लोगों को चुनाव का कोई अनुभव नहीं था वही अहम किरदार निभा रहे थे। उन्होंने कहा कि पार्टी के प्रति गहरी वफादारी की वजह से उन्होंने यह सब कहा। सोनिया से मिलकर आने वाली प्रिया दत्त का भी मानना था कि पार्टी आम लोगों से कट गई थी। देवड़ा का कहना था कि जमीनी सच्चाई को समझने के लिए जमीन पर काम करना और चुनावी लड़ाई में हिस्सा लेना जरूरी है। पार्टी में अगर किसी को नेतृत्वकारी पद दिया जाए तो यही उसका आधार होना चाहिए। पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी भी देवड़ा की इस राय से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि गलतियों को सुधारने के लिए निर्मम और ईमानदार समीक्षा की जरूरत है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि मिलिंद ने जो कहा वह पूरी तरह भले ही सही नहीं हो लेकिन इसमें काफी हद तक सच्चाई है। पार्टी में ऐसे लोगों की राय पर गम्भीरता से विचार होना चाहिए क्योंकि लोगों के बीच यह धारणा है कि चुनावी अभियान में ऐसे लोगों को नेतृत्व सौंपा गया जिन्हें चुनाव लड़ने का कोई अनुभव नहीं था। चुनावी अभियान और गठबंधन के मामले में पार्टी को नौसिखियों की सलाह पर निर्भर रहना पड़ा। कांग्रेस के सहयोगी दल एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा कि कांग्रेस के बड़े नेताओं के अंग्रेजी में बोलने की वजह से ही चुनाव में हार हुई। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता यूपीए सरकार की नीतियों के खिलाफ हिन्दी में आक्रामकता के साथ बोलते थे जिससे उनकी बात अधिक लोगों तक पहुंचती थी। लेकिन भाजपा नेताओं के हमले पर मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और पी. चिदम्बरम की प्रतिक्रिया अंग्रेजी में ही होती थी। जैसी उम्मीद थी कुछ कांग्रेसी नेताओं ने प्रियंका गांधी को आगे लाने की वकालत भी की। यूपीए-2 में खाद्य मंत्री रहे केवी थॉमस ने कहा कि एक कांग्रेसी होने के नाते हमारी इच्छा है कि प्रियंका को मुख्य कार्यक्षेत्र में आना चाहिए, यह इसलिए भी जरूरी है कि प्रियंका में जनता से जुड़ने की स्वाभाविक क्षमता है। उन्हें अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के साथ एक टीम के रूप में काम करना चाहिए। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद संसद के निचले सदन में नेता प्रतिपक्ष चुनने के मसले पर कांग्रेसी दिग्गजों और राहुल ब्रिगेड के बीच भी खींचतान शुरू हो गई है। राहुल ब्रिगेड ने पार्टी के वरिष्ठ नेता कमलनाथ को इस पद पर नियुक्त करने के किसी भी कदम का विरोध करते हुए कहा है कि लोकसभा में पार्टी का चेहरा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ही होंगे। पार्टी सूत्रों ने बताया कि कमलनाथ को पार्टी के कुछ ऐसे पुराने दिग्गजों का समर्थन हासिल है, जो लोकसभा चुनाव के दौरान खुद की अनदेखी के लिए राहुल को मजा चखाना चाहते हैं। दरअसल कांग्रेस के भीतर की लड़ाई तब सामने आई जब पूर्व पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि वह लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता के लिए राहुल गांधी के नाम का समर्थन करते हैं। मोइली ने यह भी कहा कि हमने पार्टी के असंतुष्टों की कमलनाथ को हमारे ऊपर थोपने की कोशिश का विरोध करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि अगर चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी पार्टी का चेहरा थे तो उन्हें नेता विपक्ष क्यों नहीं होना चाहिए? क्या इससे यह संदेश नहीं जाएगा कि जैसे हमने अपने नेता को किनारे कर दिया है क्योंकि वह उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। उधर कांग्रेस की युवा ब्रिगेड के कुछ नेता कमलनाथ का नाम आगे बढ़ाने को पार्टी के कुछ ऐसे असंतुष्टों की साजिश करार दे रहे हैं जो राहुल को बदनाम कर उनकी छवि को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि केवल 44 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस खुद के दम पर नेता विपक्ष का पद हासिल करने की स्थिति में है ही नहीं। अगर लोकसभा अध्यक्ष पूरे यूपीए को एक गुट मान लें तो ही ऐसा सम्भव हो सकता है। यूपीए के 56 सांसद हैं। चुनाव जीतने की स्थिति में जो कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी उसने हारने पर सोनिया गांधी को संसदीय दल का नेता चुन लिया।

-अनिल नरेन्द्र

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