Thursday, 29 May 2014

नवाज शरीफ को नरेंद्र मोदी की खरी-खरी

पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को पदभार संभालते ही दक्षेस देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मेल-मुलाकातों का दौर शुरू कर दिया। पदभार संभालने के बाद वह हैदराबाद हाउस पहुंच गए जहां सुबह सवा नौ बजे से ही मारीशस और सार्क देशों के राष्ट्र पमुखों से उनकी मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ। सबसे अहम मुलाकात मोदी और पाकिस्तान के वजीर--आजम नवाज शरीफ के बीच हुई। हैदराबाद हाउस में वह मुलाकात औपचारिक रूप से 1210 बजे दोनों की वार्ता शुरू हुई। पाक पधानमंत्री के साथ 14 सदस्यीय एक पतिनिधिमंडल आया है। इसमें नवाज शरीफ के पुत्र भी हैं। वे एक बड़े बिजनेस मैन भी है। यह पहले से ही तय था कि नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने आ रहे पाकिस्तानी पधानमंत्री नवाज शरीफ से जब भारतीय पीएम की मुलाकात होगी तो वह महज दो देशों के नेताओं के बीच की सामान्य वार्ता नहीं होगी। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवाज शरीफ के साथ अपनी पहली बैठक में आतंकवाद को लेकर दो टूक बात की। तय समय से ज्यादा चली बातचीत में मोदी ने नवाज से साफ कहा कि हम पाकिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्ते चाहते हैं लेकिन रिश्तों को आगे बढ़ाना है तो पाकिस्तान को यह देखना होगा कि भारत विरोधी आतंकवाद और हिंसा को खत्म किया जाए। नवाज शरीफ के साथ मोदी की मुलाकात के लिए 35 मिनट का समय तय किया गया था लेकिन दोनों की बैठक करीब 45 मिनट तक चली। मोदी ने नवाज शरीफ से यह भी कहा कि 26/11 के आतंकवादी हमलों की पाकिस्तान में चल रही जांच में पगति नहीं दिख रही है। उन्होंने अफगानिस्तान में हैरात में स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले का भी जिक किया और पाकिस्तान में रह रहे भारत के भगोड़े आतंकवादी दाउद इब्राहिम का मसला भी उठाया। नवाज शरीफ ने वार्ता के बाद यह टिप्पणी की हम दोनों इस बात पर सहमत थे कि यह बैठक दोनों देशों के लिए एक ऐतिहासिक मौका है। मैंने अनुरोध किया कि हमें मिलकर क्षेत्र को अस्थिरता और असुरक्षा से छुटकारा दिलाना चाहिए जो दशकों से हमे घेरे हुए है। मैंने 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बैठक का भी जिक किया और कहा कि लाहौर घोषणा पत्र जारी होने के बाद रिश्तों को हम वहीं से आगे बढ़ाना चाहेंगे। शायद ही कोई होगा जिसने नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की पहली मुलाकात से उम्मीदें बांध रखी हों। हम तो इतने में ही खुश थे कि शरीफ ने अपनी सेना और कट्टरपंथियों के विरोध का जोखिम उठाते हुए एक भाजपा पधानमंत्री के शपथ समारोह में शिरकत करने की हिम्मत दिखाई। इसमें भी शक नहीं कि अपने शपथ समारोह में दक्षेस देशों के नेताओं को आमंत्रित करके मोदी ने कूटनीति की पहली गेंद पर ही छक्का मार दिया था क्योंकि पाकिस्तान से जारी शीत युद्ध में देश उलझा हुआ है उसमें नवाज शरीफ के अलग से बुलाने की गुंजाइश नहीं थी। चुनाव पचार के दौरान भी मोदी ने ऐसे ही सपाट शब्दों में अपना रुख दिखाया था और अब इसका अनुभव नवाज शरीफ को भी हो गया होगा। यह जरूरी भी था कि पाकिस्तान के सामने यह बात बिना लाग-लपेट के रखी जाए कि वह न तो अपने यहां सकिय भारत विरोधी तत्वों पर लगाम लगाने में गंभीरता का परिचय दे रहा है और न ही मुंबई हमले के षड्यंत्रकारियों को दंडित कर रहा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि अफगानिस्तान के हैरात में जो हमला हुआ उसके पीछे भी आईएसआई का हाथ था। पाकिस्तान यह तर्क नहीं दे सकता कि अफगानिस्तान की गतिविधियों से उसका लेना-देना नहीं क्योंकि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजाई ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान में स्थित आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा का हाथ नजर आया। इसके अतिरिक्त यह तो जगजाहिर ही है कि पाकिस्तान में मुंबई हमले के दोषियों के खिलाफ जो कानूनी कार्रवाई चल रही है वह कितनी शिथिल और निराशाजनक है। दोनों पधानमंत्रियों की बातचीत के बाद विदेश सचिव स्तर की वार्ता पर सहमति बनी। इस स्तर की वार्ता में कोई हर्ज नहीं लेकिन पाकिस्तान को भरोसा पैदा करने के लिए कोई न कोई पहल तो करनी ही होगी। वह चाहे आतंकी सरगना हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई की हो अथवा दाउद इब्राहिम को भारत को सौंपने की। दोनों नेताओं के बीच बातचीत में कारोबारी रिश्ते सुधारने पर भी चर्चा हुई। कारोबारी रिश्ते सुधरने ही चाहिए लेकिन सभी जानते हैं कि जहां यह बात हो कोई न कोई आतंकी वारदात करके सार्थक पहल को नुकसान पहुंचाता है। कारोबारी रिश्ते आतंकवाद की कीमत पर नहीं हो सकते। नवाज शरीफ की दुविधा हम समझ सकते हैं। जहां उन्हें पाकिस्तानी सेना का ध्यान रखना होगा वहीं कट्टरपंथी संगठनों के दबाव को भी झेलना पड़ रहा है। मोदी के पीछे जो पबल जनमत है वही उनकी हिम्मत है और इसका एहसास भी शरीफ को कराने में वह नहीं चूके। नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही अपनी पाथमिकताएं जाहिर कर दी हैं। यह अच्छा संकेत है।

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