Wednesday, 21 May 2014

मोदी की आंधी में उड़े सभी सूबेदार, क्षत्रप

2014 लोकसभा चुनावों में मुझे एक बात बहुत अच्छी लगी जिससे मैं समझता हूं कि भारतीय लोकतंत्र व केंद्र को फायदा होगा। इस चुनाव में आई मोदी की आंधी में तमाम क्षेत्रीय दलों और उनके क्षत्रपों का सफाया हो गया है। उत्तर प्रदेश की सियासत की सच्चाई बन चुके सपा और बसपा जैसे ताकतवर दल न जाने कहां गायब हो गए। कुनबे की मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी कुनबे में ही सिमट गई वहीं बसपा का तो सूपड़ा ही साफ हो गया। बिहार में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, महाराष्ट्र में शरद पवार और तमिलनाडु में करुणानिधि जैसे क्षत्रपों को अपनी राजनीतिक साख बचाने के लाले पड़ गए। मुझे द्रमुक की हार पर विशेष खुशी हो रही है। याद है करुणानिधि ने सवाल पूछा था कि भगवान राम ने कौन-से विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी। सेतु समुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु तोड़ने पर आमादा को भगवान राम ने ऐसा सबक सिखाया कि अब तो राजनीतिक भविष्य के भी लाले पड़ गए हैं। खुद करुणानिधि के परिवार में फूट पड़ गई है। भाई-भाई से लड़ रहा है। ऐसा होता है भगवान की इज्जत उछालने का नतीजा। विपक्षी दलों की वह हालत हुई है कि कहां तो सरकार गठबंधन से बनती थी अब लोकसभा में नेता विपक्ष बनाने के लिए किसी भी दल के पास पर्याप्त संख्या ही नहीं है। महज 57 सीटों के साथ प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभाना अब कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है। लगभग 150 सीटों वाले गैर-राजग और गैर-संप्रग दल भी इतने खानों में बंटे हैं कि यहां न तो वामदलों का दबाव होगा और न ही किसी मोर्चे का। तमिलनाडु में जयललिता की अन्नाद्रमुक जरूर सीटों की संख्या के लिहाज से राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे नम्बर की पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन उनकी फितरत को समझने वाले जानते हैं कि मोदी सरकार से टकराव की बजाय उनके साथ मिलकर ही  चलेंगी। इसी तरह चौथे नम्बर पर रहीं ममता बनर्जी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ किसी भी कीमत पर खड़ी नहीं दिखना चाहेंगी। महज एक दशक पहले राष्ट्रीय फलक पर बड़ी ताकत और एक गम्भीर विकल्प बनती दिख रही वामपंथी पार्टियां इस बार कहीं नहीं हैं। वामपंथियों के दोनों प्रमुख साथी मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार व लालू प्रसाद यादव को मुंह की खानी पड़ी है। एक और खास बात इस चुनाव में सिर्प कांग्रेस को ही जनता ने सबक नहीं सिखाया बल्कि यूपीए सरकार और संसद में उसका साथ देने वाले राष्ट्रीय लोक दल, नेशनल कांफ्रेंस, द्रमुक, राकांपा, राष्ट्रीय जनता दल, जद (यू) तथा सपा व बसपा जैसे दलों की भी जमकर खबर ली है जबकि एफडीआई का विरोध करके मनमोहन सिंह सरकार को त्यागने वाली तृणमूल कांग्रेस को इसी जनता ने सिर-आंखों पर बिठाया है। यूपीए सरकार में शामिल रही डीएमके, आरएलडी का तो लोकसभा में खाता तक नहीं खुला जबकि एनसीपी भी मात्र तीन सीटों पर सिमट गई। कोरे तर्प देकर कई मौकों पर कांग्रेस को बचाने वाली बसपा, सपा और राजद का भी इस चुनाव में लगभग सूपड़ा साफ हो गया। अब जनता ने इन्हें सबक सिखाकर अपना हिसाब बराबर कर लिया है। हालांकि डीएमके बाद के दिनों में अलग हो गई थी लेकिन उसके ए. राजा, कनिमोझी जैसे नेताओं ने देश को जमकर लूटा और बदनामी सारी कांग्रेस की हुई। जनता ने इस चुनाव में पार्टियों और नेताओं को चुन-चुन कर मारा है।

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