Friday, 27 February 2015

सुब्रत रॉय की बढ़ती मुश्किलें

अपने मुखिया सुब्रत रॉय की रिहाई के लिए पैसों के इंतजाम में लगे सहारा समूह की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। एक साल से दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद सुब्रत रॉय के बाहर निकलने की संभावना कम होती जा रही है। मंगलवार को देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्प रिजर्व बैंक को सहारा के खिलाफ कार्रवाई करने की छूट दी बल्कि सम्पत्तियां बेचकर अर्जित की गई रकम को सेबी के खाते में जमा कराने के बजाय निवेशकों को लौटाए जाने पर सहारा से जवाब तलब किया। सुब्रत रॉय व कंपनी के दो अन्य निदेशक करीब एक साल से जेल में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक से कहा है कि वह 484.67 करोड़ रुपए की सिक्यूरिटी, एफडी और बांड मनी को कैश कराने के लिए तोड़े गए नियमों की जांच कर कार्रवाई करे। कोर्ट ने उन्हें जेल में आगे और कांफ्रेंसिंग की सुविधा देने से भी इंकार कर दिया। जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की विशेष पीठ ने यह आदेश मंगलवार को तब दिया जब रिजर्व बैंक ने कोर्ट को सूचना दी कि सहारा ने सिक्यूरिटी, एफडी और बांड मनी को तोड़कर उसे अपनी दूसरी कंपनी को उधार दे दिया है। कोर्ट ने कहा कि सहारा अपने कष्ट खुद अपनी करनी से बढ़ा रहा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से पहले उसे कोर्ट से अनुमति लेनी चाहिए थी। पैसा निवेशकों को वापस करने के लिए सेबी के रिफंड खाते में जमा करना था। लेकिन सहारा के वकील गणेशन ने कहा कि यह पैसा निवेशकों को लौटा दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि आप तो कहते थे कि कोई निवेशक सामने नहीं आ रहा है। फिर यह कैसे भुगतान किया गया। वकील ने कहा कि कैश के माध्यम से पैसा लौटाया गया है। कोर्ट ने कहा कि सहारा इसके बारे में पूरा विवरण कोर्ट को दे जिसमें निवेशकों की पहचान और उन्हें दिया गया पैसा शामिल हो। कोर्ट ने रिजर्व बैंक में रखे और धन को भी कैश कराने पर रोक लगा दी। रिजर्व बैंक की ओर से पराग त्रिपाठी ने यह भी कहा कि सहारा ने 1050 करोड़ रुपए भी अपने इस्तेमाल में ले लिए हैं। यह एफडी की रकम है जो मैच्योर होने के बाद निवेशकों द्वारा क्लेम नहीं की गई। सहारा ने यह काम एक साल बाद ही कर दिया जबकि नियमानुसार इसके लिए सात वर्ष तक इंतजार करना होता है। उसके बाद अनक्लेम रह जाने पर पैसा भारत सरकार के खाते में जाता है। उन्होंने कहा कि यह तथ्य सहारा के ऑडिर्ट्स ने खुद अपने दस्तावेजों में स्पष्ट किया है। सहारा के वकीलों ने कहा कि मिराक से सौदा विफल होने के बाद अब सहारा की बात एक डच पेंशन बैंक से चल रही है, इसके लिए सुब्रत रॉय को कांफ्रेंसिंग की सुविधा चाहिए। कम से कम असीमित टेलीफोन कॉल की सुविधा तुरन्त दी जाए। रॉय को जेल में अभी रोजाना दिन में चार घंटे फोन की सुविधा दी जाती है। मामले की अगली सुनवाई 13 मार्च को होगी।

-अनिल नरेन्द्र

व्यापमं घोटाले में एक्शन शुरू ः राज्यपाल ने इस्तीफा दिया

मध्यप्रदेश के बहुचर्चित करोड़ों रुपए के व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाले (व्यापमं) में प्रदेश के गवर्नर रामनरेश यादव ने स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) द्वारा एफआईआर दर्ज करवाने के बाद बुधवार को अपना इस्तीफा दे दिया है। एसटीएफ के एक उच्चाधिकारी ने बताया कि राज्यपाल के खिलाफ प्राथमिकी व्यापमं द्वारा वर्ष 2013 में आयोजित वन रक्षक परीक्षा मामले में दर्ज की गई है। यादव के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने वन रक्षक परीक्षा में पांच उम्मीदवारों की व्यापमं अधिकारियों से सिफारिश की थी। अधिकारी ने बताया कि राज्यपाल के खिलाफ धारा 420 एवं भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में बरामद किए गए दस्तावेजों की गहरी छानबीन के बाद ही राज्यपाल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। मीडिया में इस बात की अटकलें सही साबित हुईं। राज्यपाल के खिलाफ मामला दर्ज होते ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि प्राथमिकी राज्य विधानसभा में  राज्यपाल का अभिभाषण समाप्त होने के तुरन्त बाद दर्ज की गई। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा एसटीएफ की जांच पर निगरानी के लिए गठित एसआईटी ने अदालत के आदेश के बाद एसईएफ को इस मामले में अति विशिष्ठ व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था। सोमवार को मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दलों ने व्यापमं घोटाले पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग करते हुए भारी हंगामा किया था। प्रश्नकाल के बाद विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे, रामनिवास रावत और सुंदर लाल तिवारी ने यह मामला उठाते हुए कहा कि अखबारों में मूल एक्सेल शीट की प्रति छप रही है। इस मामले में मुख्यमंत्री को सदन में अपनी सफाई देनी चाहिए। कांग्रेस सदस्यों ने कहा कि हाई कोर्ट इस मामले में अति विशिष्ठ व्यक्ति का नाम ले चुकी है। इधर व्यापमं मसले को लेकर मध्यप्रदेश में मची सियासी हलचल के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संसद के बजट सत्र की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार और भाजपा के आला नेताओं से मुलाकात कर पूरे प्रकरण पर सफाई देते हुए कांग्रेस के आरोपों को तथ्यहीन करार दिया। संसद और टीवी चैनलों पर व्यापमं मुद्दे पर कांग्रेस के तीखे हमलों का जवाब देने हेतु सरकार के प्रवक्ता और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर के घर पर रविवार को एक विशेष बैठक हुई। इसमें मुख्यमंत्री, प्रदेश संगठन मंत्री, सुषमा स्वराज, रविशंकर प्रसाद व कई अन्य नेताओं ने शिरकत की। सूत्र बताते हैं कि बैठक में यह तय हुआ कि अगर किसी टीवी चैनल पर इस मुद्दे पर बहस होती है तो पार्टी प्रवक्ता तथ्यों के आधार पर शिवराज सरकार का आक्रामक अंदाज में बचाव करेंगे। साथ ही कांग्रेस के आरोपों को तथ्यहीन करार दिया जाएगा। बैठक के  बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं व्यापमं मुद्दे पर कुछ नहीं बोलूंगा। मुझे जो कुछ कहना था मैं कई मर्तबा भोपाल में कह चुका हूं। जहां तक कांग्रेस के आरोपों का सवाल है, वह मीडिया में जाने की बजाय जांच एजेंसियों के समक्ष सबूत पेश करे। शिवराज ने रविवार को वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के आवास पर आडवाणी की 50वीं शादी सालगिरह के कार्यक्रम में शिरकत भी की। संविधान में राज्यपाल को कई मामलों में इम्यूनिटी (विशेष छूट) दी गई है। लेकिन किसी मामले में यदि हाई कोर्ट उनके खिलाफ कार्रवाई का अभिमत दे तो एफआईआर दर्ज की जा सकती है यानि उन्हें संविधान की धारा 361 की छूट का लाभ नहीं मिलेगा। व्यापमं घोटाले में अब एक्शन आरम्भ हो चुका है। देखें और कितनी बड़ी मछलियां इसमें फंसती हैं?

Thursday, 26 February 2015

सोनिया के वफादारों से नाराज राहुल छुट्टी पर गए

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी आजादी के बाद अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही पाटी के मझधार में छोड़कर कुछ हफ्तों की छुट्टी पर चले गए हैं। इसके चलते संसद के सबसे महत्वपूर्ण बजट सत्र में राहुल बाबा नदारद होंगे। राहुल के यूं भाग जाने से न केवल कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में एक गलत संदेश गया है बल्कि भाजपा को कांग्रेस पार्टी पर हमला करने का एक बहाना भी मिल गया है। बजट के समय उनके लोकसभा में अनुपस्थित रहने की खबर पर जहां पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तक को कहना पड़ा कि राहुल को कुछ वक्त चाहिए। कुछ हफ्ते में फिर वापस आएंगे, वहीं भाजपा ने तंज कसते हुए कहा कि पिछले एक दशक में संसद में कांग्रेस नेताओं के इसी रवैए के कारण ही पार्टी 44 सीटों पर सिमट गई है। जमीनी स्तर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि हार के बाद हार की वजह से पहले ही कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है और चुनौतीपूर्ण समय में खुद राहुल के मैदान छोड़कर भागने से न पाटी का भला होगा और न खुद राहुल का। क्या राहुल गांधी अपने ही नेताओं से नाराज हैं? क्या अपनी ही पार्टी में उन्हें तवज्जो नहीं मिल रही है? या कांग्रेस की लगातार हार की वजह तलाशने के लिए एकांतवास पर चले गए हैं? अटकलबाजी तो यह भी लगाई जा रही है कि राहुल पार्टी अध्यक्ष के करीबी कुछ वरिष्ठ नेताओं की लॉबी से नाखुश हैं और पाटी के जल्दी होने जा रहे आगामी फेरबदल मे उन्हें हटाना चाहते थे। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक पाटी में राहुल के सुधार करने के कुछ विचारों से दल के पुराने नेताओं का एक पभुत्वकारी हिस्सा सहमत नहीं है और दोनों खेमों के अलग विचारों से बार-बार तनाव उभर कर सामने आते हैं। बेंगलुरू में अपैल में कांग्रेस अधिवेशन है जिसमें राहुल को अध्यक्ष बनाने की चर्चा है। लेकिन पाटी के एक बड़े तबके ने सोनिया को ऐसा न करने की सलाह दी है। राहुल की नाराजगी की यही वजह बताई जा रही है। राहुल गुरुवार को ही बैंकाक से लौटे थे। उन्होंने सोनिया से बदलाव की बातचीत की, वे नहीं मानीं। फिर राहुल ने अपनी मंडली से सलाह-मशविरा किया। इसमें राहुल के किसी खास को अध्यक्ष बनाने की बात भी आई लेकिन राहुल ने मना कर दिया। इसके बाद वे सीपी जोशी, मिस्त्राr, माकन से चर्चा के बाद विदेश रवाना हो गए। राहुल के रवैए ने नाराज पाटी के कईं नेता अब सोनिया से कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाने की मांग भी कर सकते हैं। राहुल गांधी के रवैए से पियंका गांधी वाड्रा को पाटी में लाने की वकालत करने वाले नेता काफी उत्साहित हैं। अब वे ``पियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ'' के अपनी मुहिम को और तेज कर सकते हैं। राहुल के रवैए से यह लग रहा है कि वह राजनीति में अहम भूमिका निभाने को तैयार नहीं हें। उनका संसद के अंदर का इतिहास सबके सामने है। अनके ऑन-आफ होने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। सबसे ज्यादा मुश्किल सोनिया की है, इधर कुआं तो उधर खाई।   

-अनिल नरेन्द्र

चौथी बार सुशासन बाबू ने थामी बिहार की कमान

बिहार के सियासी ड्रामे का पहला एक्ट समाप्त हो गया है। जीतन राम मांझी युग समाप्त हो गया है और सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने कमान संभाल ली है। वह चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं। नीतीश अपनी पाटी जेडीयू को एकजुट रखने में सफल रहे लेकिन अब उनके सामने नई चुनौतियां होंगी। अपने महादलित वोट बैंक को समझाना होगा कि मांझी को हटाना क्यों जरूरी था? यह भी बताना होगा कि किस कारण उन्हें लालू पसाद से समझौता करना पड़ा है। राज्य की कानून व्यवस्था और विकास कार्य को फिर से पटरी पर लाना होगा। उनके सामने यह भी दुविधा होगी कि मांझी द्वारा आनन-फानन में लिए गए उन निर्णयों का क्या करें? दलितें के पक्ष में लिए गए उन निर्णयों को पलटने से उन्हें सियासी नुकसान भी हो सकता है। सवाल है कि  पिछले पंद्रह दिनों तक चले सत्ता के खेल में नीतीश जीते तो हारा कौन? मांझी या भाजपा या दोनों? सच्चाई यह है कि इन दोनों को पता था कि नंबर गेम में वे नीतीश को नहीं हटा पाएंगे। फिर भी उन्होंने यह दांव चला तो उसकी कुछ और वजह है। मांझी ने इस पकरण में अपना कद बढ़ाने की कोशिश की। कल तक उन्हें कोई जानता नहीं था पर आज वे महादलितों के नेता के रूप में अपने आप को पोजेक्ट कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में वह एक अलग ताकत के रूप में दावेदारी कर सकते हैं। भाजपा की रणनीति महादलित वोट बैंक में तोड़फोड़  की थी। बिहार विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है। यानी अक्टूबर के अंत में या नवंबर के शुरुआत में बिहार चुनाव होंगे जिसमें पहली बार भाजपा पूरे पदेश में अपने बूते पर चुनाव लड़ेगी। नीतीश कुमार के शपथ समारोह में जनता परिवार के नेताओं के अलावा जिस तरह ममता बनजी से लेकर तरुण गोगोई तक शामिल हुए उससे लगा कि मोदी विरोधी मोर्चे को और मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। बिहार का जहां तक सवाल है तो वह फिर जातिवाद की राजनीति के कुचक में घिरता दिख रहा है। पता नहीं बिहार इस जातिवाद से कब निकलेगा? आवश्यकता इस समय बिहार में विकास और स्वच्छ, साफ सुथरे पशासन  की है जो नीतीश कुमार शायद ही दे सकें। इसमें संदेह है कि आगामी चुनाव तक नीतीश राज्य का भला कर सकेंगे। लालू पसाद यादव के साथ मिलकर बेशक नीतीश ने आंकड़ें के खेल में सफलता पा ली हो पर इस गठबंधन से बिहार और साथ ही शेष देश में जनता इस पशासन को भ्रष्टाचार, कुशासन और जंगलराज के रूप में देखती है। हालांकि नीतीश ने कहा है कि बिहार के विकास के लिए वह पधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर काम करेंगे पर यह कहना आसान है। कौन नहीं जानता कि नीतीश मोदी के कट्टर विरोधी हैं और एंटी मोदी पंट के संयोजक हैं।

Wednesday, 25 February 2015

इस जीत के बाद फिर विश्व विजेता बनने का अहसास जाग उठा है

शिखर धवन के करियर की बेस्ट पारी की बदौलत भारत ने गत रविवार को दक्षिण अफ्रीका जैसी मजबूत टीम को धूल चटा दी। विश्व कप में खिताब बचाने उतरी टीम इंडिया की जीत का सिलसिला जारी रखना न केवल टीम इंडिया के लिए बल्कि पूरे देश के लिए खुशखबरी है। दक्षिण अफ्रीका जैसी विश्व कप क्रिकेट की बेहद सशक्त टीम के खिलाफ भारतीय टीम ने जिस दबदबे वाले अंदाज में मुकाबला जीता है वह खिताब बचाने के लिहाज से बेहद शुभ संकेत है। पाकिस्तान के खिलाफ मिली जीत ने न सिर्प आस्ट्रेलिया दौरे के भूत को भगा दिया था बल्कि वर्ल्ड कप के अभियान को पटरी पर ला दिया था और मेलबोर्न में खिताब के प्रबल दावेदार दक्षिण अफ्रीका पर मिली ऐतिहासिक जीत ने टीम इंडिया के अंदर फिर से विश्व विजेता बनने के अहसास को जगा दिया है। भारत की वर्ल्ड कप में दक्षिण अफ्रीका पर पहली जीत है। इससे पहले वर्ल्ड कप 1992, 1999 और 2011 में दोनों देशों के बीच हुए मुकाबलों में दक्षिण अफ्रीकी टीम विजय रही थी। भारत ने 23 साल पुरानी हार की इस परम्परा को ताजा जीत से खत्म कर दिया है। गेंदबाजी को टूर्नामेंट से पहले टीम इंडिया की कमजोर कड़ी के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन संडे के मैच में अश्विन के तीन, शमी और मोहित के दो-दो विकेटों ने बॉलरों का एकजुट प्रदर्शन देखा। पाक के मैच में उमेश यादव और जडेजा ने भी विकेट लिए थे। अब लगने लगा है कि भारत की यह कमजोर कड़ी उतनी कमजोर नहीं है। हाल के दौरों में शिखर की बेटिंग फरफार्मेंस को लेकर चिन्ताएं बढ़ गई थीं। लेकिन पहले पाकिस्तान के खिलाफ 73 रन और अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 137 के स्कोर से उनका आत्मविश्वास लौट चुका है और वह रोहित शर्मा के साथ ओपनिंग स्टैंड ले रहे हैं। इस मैच से यह भी साबित हो गया कि भारतीय टीम विदेशी पिच पर बड़ा स्कोर खड़ा कर सकती है। दरअसल आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ त्रिकोणीय सीरीज में इस मामले में सवाल खड़े हो रहे थे। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टीम इंडिया की फील्डिंग भी उम्दा रही। इस जीत से टीम इंडिया ने धुरंधरों के खिलाफ लड़ाई की परीक्षा तो पास कर ही ली साथ ही क्वार्टर फाइनल में भी प्रवेश लगभग पक्का ही कर लिया है। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेले मैच में हमारी टीम ने कई सही फैसले किएöधोनी का टास जीतकर पहले बल्लेबाजी करना, टीम इंडिया के टाप आर्डर का फायर करना, रहाणे को पहले उतारने का फैसला, गेंदबाजों को सही समय पर गेंद थमाना होöधोनी का हर फैसला इस मैच में सुपर हिट साबित हुआ। क्वार्टर फाइनल के लिए भारत की दावेदारी अब ग्रुप लीडर के तौर पर मानी जा रही है। इसे अब सिर्प एक दमदार टीम (वेस्टइंडीज) के खिलाफ खेलना है। बाकी मैच आयरलैंड, जिम्बाब्वे और यूएई के खिलाफ हैं। हालांकि टीम को सचेत रहने की जरूरत होगी क्योंकि नाकआउट मुकाबलों में एक खराब दिन उम्मीदों पर पानी फेर सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

कांटों से भरी है केजरीवाल की राह

दिल्लीवासियों ने आम आदमी पार्टी (आप) को प्रचंड बहुमत देकर अपना काम कर दिया है अब बारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की है। केजरीवाल के सामने दिल्ली की जनता से किए गए वादों को पूरा करने की चुनौती है। इसे लेकर वह गंभीर भी हैं और जीत हासिल करने के बाद उन्होंने पहला काम यह किया कि दिल्ली के मुख्य सचिव को बुलाकर पार्टी का घोषणा पत्र देकर दिल्ली की जनता से किए वादों को पूरा करने के लिए एक्शन प्लान बनाने का निर्देश दिया। अधिकारी इसमें लग भी गए हैं। लेकिन केंद्र शासित दिल्ली की गद्दी पर बैठना केजरीवाल के लिए कांटों की सेज पर चलने जैसा होगा। आप ने अपने घोषणा पत्र में कई ऐसे वादे किए हैं जिनके लिए उसे या तो मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार या फिर भाजपा की कमान वाले दिल्ली नगर निगम पर निर्भर होना पड़ सकता है। जनलोकपाल बिल, पूर्ण राज्य का दर्जा, आवासीय योजना, कानून व्यवस्था, पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरों व वाई-फाई आदि के लिए बजट या मंजूरी उसके सबसे बड़े मौजूदा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भाजपा की मोदी सरकार से ही मिलेगी। इतना ही नहीं, अन्य बड़े चुनावी मुद्दे जैसे अनाधिकृत कॉलोनियों को अधिकृत करने और इनके विकास कार्य के लिए भी उन्हें केंद्र की ओर देखना पड़ेगा। दिल्ली सरकार के वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सस्ती बिजली व मुफ्त पानी उपलब्ध कराने के लिए फिलहाल सब्सिडी ही रास्ता है। अगस्त 2014 में केंद्र सरकार से 31 मार्च 2015 तक के लिए 260 करोड़ रुपए की सब्सिडी मिली थी, इससे 200 यूनिट तक के बिल पर 30 फीसद और 400 यूनिट तक के बिल पर 15 फीसद की छूट दी जा रही है। यदि 400 यूनिट तक 50 फीसद छूट दी जाएगी तो इसके लिए लगभग 1400 करोड़ रुपए की जरूरत होगी। वहीं बिजली वितरण कंपनियां घाटे का हवाला देकर पहले ही दिल्ली विद्युत नियामक आयोग से बिजली दरों में 10 से 15 फीसद बढ़ोत्तरी की गुहार लगा चुकी हैं। अगर यह बढ़ोत्तरी हुई तो सब्सिडी की राशि 1600 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगी। इसी तरह प्रति माह प्रति परिवार 20 हजार लीटर मुफ्त पानी के लिए 350 करोड़ रुपए की जरूरत होगी। इस तरह अकेले बिजली-पानी के लिए 1950 करोड़ रुपए की जरूरत है। यह राशि दिल्ली सरकार के विकास बजट का 11 फीसद के करीब है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरविंद केजरीवाल को फोन पर जीत की बधाइयां देते हुए दिल्ली की नई सरकार को केंद्र से हर संभव मदद देने की बात कही है लेकिन तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर केंद्र और केजरीवाल सरकार में टकराव की स्थिति बन सकती है। दिल्ली विधानसभा में जो भी बिल पास करके केंद्र को भेजा जाएगा उस पर केंद्र की ही मुहर लगेगी। पुलिस, जमीन, पानी, पूर्ण राज्य का दर्जा, जनलोकपाल बिल जैसे तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिन पर केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है।

Tuesday, 24 February 2015

बजट सत्र के हंगामेदार रहने के आसार

सोमवार से शुरू हुए बजट सत्र के काफी हंगामेदार रहने की संभावना है। यह सत्र तीन महीने चलेगा। संसद सत्र का पहला भाग 20 मार्च तक जारी रहेगा और एक महीने के अवकाश के बाद 20 अप्रैल से दूसरा भाग होगा। संसद का बजट सत्र जैसे राजनीतिक और आर्थिक माहौल में शुरू हो रहा है उसके चलते उसके प्रति लोगों की दिलचस्पी और अधिक बढ़ जाना स्वाभाविक ही है। इसमें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को ऊपरी सदन में अध्यादेशों के स्थान पर छह विधेयकों को पारित कराना सुनिश्चित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी पराजय के बाद कई विपक्षी दलों ने वस्तुत अध्यादेश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और विशेष तौर पर भूमि कानून में बदलाव के खिलाफ उनका रुख सख्त है। फिर अन्ना हजारे का धरना भी आग में घी का काम करेगा। पिछले कुछ समय में कुछ भाजपा नेताओं, संघ परिवार के सदस्यों के विवादास्पद बयानों और मुद्रास्फीति जैसे कई मुद्दे विपक्षी दलों के पास हैं जिनके मार्पत वह सरकार पर निशाना साध सकते हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय में जासूसी के खुलासे को देखते हुए भी सत्र काफी हंगामेदार रहने के आसार हैं। विपक्ष इसे लेकर सरकार को घेरने की कोशिश करेगा। सरकार पर भी छह महत्वपूर्ण अध्यादेशों से जुड़े विधेयकों को पास कराने की चुनौती होगी। इनमें भूमि अधिग्रहण, कोयला खनन, -रिक्शा, नागरिकता और बीमा संशोधन विधेयक शामिल हैं। राज्यसभा में सरकार का बहुमत नहीं होने के कारण उसे कुछ विधेयकों को पारित कराने में दिक्कत हो सकती है। विपक्षी दल केवल भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए लाए गए अध्यादेश के खिलाफ ही लामबंद नहीं हैं बल्कि वह कुछ अन्य विधेयकों का भी विरोध कर रहे हैं। भूमि अधिग्रहण कानून में परिवर्तन के खिलाफ समाजसेवी अन्ना हजारे व कांग्रेस की मानें तो संप्रग सरकार के समय तैयार किए गए भूमि अधिग्रहण कानून में किसी भी तरह के संशोधन-परिवर्तन की जरूरत नहीं है। दूसरी ओर उद्योग जगत का मानना है कि यह एक कठोर कानून है और इसके जरिये औद्योगिक-व्यापारिक गतिविधियों को गति नहीं दी जा सकती। पिछले सत्र में राज्यसभा में जिस तरह यह देखने को मिला कि विपक्षी दलों ने कुछ विधेयकों पर चर्चा के बजाय कुछ सवालों पर सरकार से जवाब मांगने के बहाने कोई कामकाज नहीं होने दिया उससे एक नई परम्परा आकार लेती दिखी। आशंका यह है कि इस बार भी ऐसा ही किया जाएगा। फिलहाल यह कहना कठिन है कि सत्तापक्ष विपक्ष के हमलों से निपटने के लिए क्या करेगा, लेकिन यदि किन्हीं कारणों से जरूरी विधेयक कानून का रूप नहीं ले पाते तो इससे कुल मिलाकर देश का ही नुकसान होगा। पर देश की चिन्ता किसको है? यहां तो एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल हो रहा है।
-अनिल नरेन्द्र


सामाजिक रिश्ते की थाल से निकली सियासी खुशबू

यह अनोखा दृश्य रहा होगा। एक ओर समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में मैनपुरी के सांसद पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव के तिलक की रस्मों के बीच शहनाई गूंज रही थी तो दूसरी तरफ राजनीतिक महारथी एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे। शहनाई की मधुर गूंज से रिश्तों में मिठास भी घुल रही थी। सड़क से लेकर सदन तक एक-दूसरे पर सियासी तीर चलाने वाले गले मिले तो खांटी समाजवादियों के चेहरे भी खिल उठे। राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव तय वक्त से पहले ही समारोह स्थल पर पहुंच चुके थे। मित्र रघुवंश प्रसाद और जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव के साथ तिलक की रस्मों के  बीच बार-बार घड़ी और मोबाइल पर वक्त देख रहे थे। करीब पौने 11 बजे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राज्यपाल राम नाइक समारोह स्थल पर पहुंचे तो एक उमंग-सी दौड़ गई। पंडाल में मौजूद जिन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र तेज था, वह भी मोदी को देखने को दौड़ पड़े। जब मोदी ने मुलायम का हाथ पकड़ सीढ़ियां चढ़ने में उनकी मदद की तो सैफई और भी निहाल हो गई। मुलायम सिंह के मेहमानों और अतिथियों में भी गजब का मोदी प्रेम दिखा। पंडाल में मौजूद भीड़ मोदी की एक झलक पाने को बेताब रही। जैसे ही वह मंच पर पहुंचे पंडाल में बैठे लोग अपने स्थान पर खड़े होकर मोदी को देखने की कोशिश करने लगे। मंच पर मौजूद मुलायम व लालू के परिवार के लोगों में भी मोदी के साथ फोटो खिंचवाने की होड़ लगी रही। मुलायम सिंह यादव एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बीच हो रही रिश्तेदारी के गवाह बने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। मंच पर पहुंचते ही मोदी ने मुलायम व लालू दोनों से हाथ मिलाया। दोनों को साथ लेकर उपस्थित लोगों का अभिवादन किया। करीब 22 मिनट प्रधानमंत्री दोनों परिवारों के सदस्यों से बड़ी आत्मीयता से मिले। उन्होंने तेज प्रताप सिंह को आशीर्वाद दिया तो अखिलेश यादव की बेटी को गोद में लेकर दुलारा। मुलायम सिंह यादव के भतीजे स्वर्गीय रणवीर सिंह यादव के बेटे व मैनपुरी के सांसद तेज प्रताप सिंह यादव एवं लालू प्रसाद की बेटी राजलक्ष्मी की शादी 26 फरवरी को दिल्ली में होगी। शनिवार को सैफई में तिलकोत्सव हुआ। तिलक समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल क्या हुए कि सियासी विशेषज्ञ इसके निहितार्थ तलाशने में जुट गए। सवाल उठने लगा कि क्या इसके पीछे मोदी और मुलायम की कोई नई सियासी रणनीति है? क्या भाजपा राज्यसभा में सपा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन चाहती है? क्या एनसीपी मुखिया शरद पवार के साथ मंच साझा करने के पीछे भी मोदी की यही मंशा थी? जब कांग्रेस और अन्ना ने भाजपा के खिलाफ जंग छेड़ने का ऐलान कर दिया हो और दिल्ली के बाद बिहार के सियासी संग्राम में वह गच्चा खा चुकी हो तब क्या मोदी के लिए विपक्षी दलों को साधना जरूरी हो गया है? कहते हैं कि राजनीति में कोई किसी का न तो स्थायी दुश्मन होता है और न ही दोस्त। अंदरखाते हर कोई जरूरत पर एक-दूसरे का हाथ पकड़ लेते हैं।

Sunday, 22 February 2015

मुठभेड़ नहीं करता तो कश्मीर बन जाता गुजरात

2860 दिन बाद सोहराबुद्दीन व इशरत जहां मुठभेड़ मामले में गिरफ्तार हुए पुलिस के पूर्व डीआईजी डीजी बंजारा जमानत पर जेल से बाहर आए। इस मौके पर लगभग आठ साल (सात साल 10 माह) बाद बुधवार को साबरमती जेल के बाहर पत्नी और बेटे सहित उनके प्रशंसकों की भारी भीड़ जमा थी। लोगों ने एक नायक की तरह उनका स्वागत किया और फूल-मालाओं से लाद दिया। अखिल भारतीय आतंकवाद विरोधी मोर्चे के अध्यक्ष मनिंदर जीत सिंह बिट्टा ने जेल के बाहर उनकी अगवानी की। बंजारा ने बाहर निकलते ही कहा कि एनकाउंटर सच है। जांच करने वाली दोनों एजेंसियों की जांच ही बोगस है। इस कारण तीनों एनकाउंटर में 30 पुलिस वालों को जेल जाना पड़ा। उन्होंने दो टूक कहा कि मुठभेड़ नहीं करता तो यह देश का दूसरा कश्मीर बन जाता। निश्चित रूप से मेरे लिए और गुजरात पुलिस के लिए अच्छे दिन आ  गए हैं। खुद को देश की राजनीतिक साजिश का शिकार बताते हुए उन्होंने कहा कि उस वक्त सत्ता में बैठे लोगों के इशारे पर सीबीआई व गुजरात पुलिस को काम करना पड़ा। मुठभेड़ को सही बताते हुए उन्होंने कहा कि उस समय के घटनाक्रम को साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। गोधरा कांड, अक्षरधाम हमला, पूर्व मंत्री हरेन पांड्या की हत्या, बस में टिफिन बम यह ऐसी घटनाएं थीं जिनका जवाब देना जरूरी था। बंजारा ने जेल से बाहर आने के बाद शायराना अंदाज में पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया। उन्होंने एक शेर गुनगुनाया, `फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमा क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे।' उल्लेखनीय है कि सोहराबुद्दीन व इशरत जहां मुठभेड़ मामलों में 24 अप्रैल 2007 को बंजारा को गिरफ्तार किया गया था। सितम्बर 2013 को उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन सरकार ने उसे स्वीकार नहीं किया। पिछले साल जून में जेल से ही वह सेवानिवृत्त हो गए थे। गत चार फरवरी को ही सीबीआई कोर्ट ने उन्हें सशर्त जमानत दी थी। एमएस बिट्टा ने मौके पर कहाöबंजारा राजनीतिक आतंक के शिकार हुए। सीबीआई और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया गया। आतंकियों को सिर्प गुजरात में सही जवाब दिया गया। अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जून 2004 को गुजरात पुलिस के साथ मुठभेड़ में पुंद्रा में रहने वाली कॉलेज की छात्रा इशरत, जावेद शेख उर्प प्रणेश पिल्लई, अहमद अली अकबराली राणा और जीशान जौहर के मारे जाने की घटना के वक्त बंजारा अपराध शाखा में पुलिस उपायुक्त थे। अपराध शाखा ने उस वक्त दावा किया था कि मुठभेड़ में मारे गए लोग लश्कर--तैयबा के आतंकी थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने के लिए गुजरात आए थे। बंजारा ने पिछले साल जमानत याचिका दायर की थी और उसमें दलील दी थी कि वह जेल में सात साल गुजार चुके हैं और चूंकि आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है ऐसे में उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

जीतन राम मांझी की डूब गई नाव

शुक्रवार सुबह कुछ मिनट के घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में महीनों से चल रहे घात-प्रतिघात के खेल का पटाक्षेप कर दिया। जद (यू) से बगावत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमे जीतन राम मांझी ने विधानसभा में शक्ति परीक्षण से ऐन पहले 10 बजे अपना इस्तीफा राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को सौंप दिया। जीतन राम मांझी के विश्वास मत के दौरान जैसी उठापटक और निष्ठा में परिवर्तन के रोचक दृश्यों की कल्पना की गई थी वह साकार नहीं हुई। विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही राजभवन पहुंच कर मांझी द्वारा इस्तीफा दिए जाने से मई के बाद बिहार में हो रही नाटकीय राजनीति का एक अध्याय खत्म हो गया। यह तो कोई नहीं सोच रहा था कि मांझी को विधानसभा में बहुमत मिल पाएगा, लेकिन मांझी न अटल बिहारी वाजपेयी हैं, न अरविंद केजरीवाल जो अल्पमत की वजह से इस्तीफा देने को यादगार बना पाएं। उनका सत्ता में बने रहना नामुमकिन था क्योंकि जनता दल (यू) विधायक दल ने नीतीश कुमार के पीछे एकजुट रहने का फैसला किया था। अगर मांझी कुछ विधायकों को तोड़ पाते तो शायद मामला ज्यादा नाटकीय बनता। हालांकि उनकी सरकार बने रहने की संभावना तब भी नहीं होती। भाजपा ने उन्हें समर्थन का फैसला भी इसीलिए किया था क्योंकि उसे भरोसा था कि मांझी बहुमत नहीं जुटा पाएंगे। भाजपा की कोशिश मांझी के सहारे सिर्प नीतीश कुमार-लालू प्रसाद यादव गठबंधन की फजीहत करवाने की थी। उसमें वह कुछ हद तक कामयाब रही, लेकिन जद (यू)-राजद गठबंधन अपने नुकसान को कम से कम रखने में कामयाब रहा। बेशक नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री पद को रविवार  को संभाल लेंगे लेकिन असल परीक्षा तो नवम्बर में विधानसभा चुनाव में होगी जब उन्हें नया जनादेश लेना होगा। ऐसे में फिलहाल जो दृश्य है उसमें नीतीश कुमार-लालू खेमा विजेता दिख रहा है और मांझी व उनके समर्थन में उतरी भाजपा अपने मंसूबों में विफल नजर आ रही है। लेकिन ऐसा मानना हालात का तात्कालिक और सतही विश्लेषण हो सकता है। इसकी एक वजह तो यह है कि नीतीश कुमार की एक और कठिन परीक्षा मुख्यमंत्री बनते ही शुरू होने वाली है और वह होगी लालू यादव की राजद को सरकार में साझीदार बनाना। कहने को अभी विधानसभा में राजद के दो दर्जन विधायक भी नहीं हैं लेकिन सच यह भी है कि लोकसभा चुनाव के बाद से जद (यू) की सरकार लालू और उनकी सहयोगी कांग्रेस की कृपा से ही चल रही थी और आगे भी उनकी जरूरत बनी रहेगी। भाजपा ने लोकसभा चुनावों में जबरदस्त कामयाबी पाई थी जो विपक्ष के बिखराव की वजह से भी थी और अच्छे दिनों की उम्मीद में भी काफी वोट बैंकों में दरारें आ गई थीं। अब विपक्ष एकजुट है और अच्छे दिनों के बारे में लोगों की राय मिलीजुली है। मांझी प्रकरण से भाजपा को कुछ फायदा तो हुआ है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि लोगों ने इसे महादलितों के साथ नीतीश कुमार के अन्याय की तरह देखा या मांझी के नीतीश के साथ विश्वासघात की तरह। अब विधानसभा चुनाव तक बिहार की राजनीति में इसी तरह की उठापटक चलने की संभावना है।

Saturday, 21 February 2015

आईएस ने बर्बरता में नया अध्याय लिखा है, इसे उखाड़ना ही होगा

सीरिया और इराक में सक्रिय आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) की बर्बरता के नए-नए किस्से सामने आ रहे हैं। लोगों को जिन्दा जलाना, लोगों के सिर कलम करना, बर्बरता की सारी सीमाएं तोड़ना अब यह आईएस के लिए आम बात हो गई है। हाल ही में लीबिया में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने मिस्र के 21 ईसाइयों के सिर सामूहिक रूप से कलम करने का एक वीडियो जारी किया है। पांच मिनट के इस भयावह वीडियो में दिखाया गया है कि लीबिया की राजधानी त्रिपोली के पास एक समुद्री तट पर सतरंगी सूट पहने बंधकों के हाथ बंधे हुए हैं और काले नकाब पहने आतंकी उनके सिर कलम कर रहे हैं। वीडियो के एक अंश के अंत में एक आतंकी कहता हैöजिस समुद्र में तुमने शेख ओसामा बिन लादेन को दफना दिया था, अल्लाह कसम, उसी समुद्र के पानी को तुम्हारे खून से रंग देंगे। आईएस की बर्बरता से निपटने के लिए इन दिनों अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में वैश्विक मंथन हो रहा है। व्हाइट हाउस की ओर से चरमपंथ के खिलाफ ठोस रणनीति बनाने के लिए आयोजित इस तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारत सहित 60 देश शिरकत कर रहे हैं। इसमें दुनियाभर में बढ़ रहे धार्मिक उग्रवाद पर चर्चा हो रही है। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों की लड़ाई इस्लाम के खिलाफ नहीं बल्कि उन लोगों के खिलाफ है जिन्होंने धर्म की गलत व्याख्या की है। ओबामा ने कहा कि आईएस और अलकायदा जैसे समूह स्वयं को धर्म की रक्षा करने वाले पवित्र योद्धा बताते हैं क्योंकि वह खुद को सही साबित करने के लिए बेचैन हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने `हिंसक चरमपंथ से मुकाबला' विषय पर व्हाइट हाउस में शिखर सम्मेलन में कहा कि हमारी लड़ाई इस्लामियों से नहीं बल्कि उन लोगों से है जिन्होंने इस्लाम की गलत व्याख्या की है। वह स्वयं को धार्मिक नेताओं और इस्लाम की रक्षा करने वाले पवित्र योद्धाओं के रूप में दिखाने की कोशिश करते हैं। इसीलिए आईएस स्वयं को इस्लामिक स्टेट कहता है और दुप्रचार करता है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की लड़ाई इस्लाम से है। अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन दल इन दिनों आईएस के ठिकानों पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं और संगठन की कमर तोड़ने में लगे हैं। ताजा समाचार के अनुसार आईएस ने अपने कमांडरों के लिए एक नई गाइडलाइन जारी की है। आईएस ने जंग के मैदान में उतरे अपने कमांडरों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें बताया गया है कि किस तरह जेहादी लड़ाकों का उत्साह बनाए रखें और विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रहें। दाबिक में प्रकाशित 30 बिन्दुओं के यह दिशानिर्देश अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन दलों के हवाई हमलों में आईएस के आधे लड़ाकों के मारे जाने के बाद सामने आए हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने विश्व की सभी सरकारों से आतंकवाद और चरमपंथ को उखाड़ फेंकने की लड़ाई में अपने प्रयासों को और तेज करने की अपील की है। आईएस न केवल एक आतंकी संगठन ही है बल्कि यह सभ्य समाज के लिए चुनौती बन गया है जिसे उखाड़ना बेहतर ही होगा।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी के लखटकिया सूट की दास्तान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक ऐसी लॉबी है जो उनकी आलोचना करने के लिए बहाना ढूंढती रहती है। वह हर समय ऐसी खबर की तलाश में रहती है जिससे मोदी पर हमला कर सके। मोदी क्या पहनते हैं, कितनी बार कपड़े बदलते हैं इन सब पर यह लॉबी कड़ी नजर रखती है और कुछ नहीं मिला तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान मोदी द्वारा पहना गया एक सूट भी चर्चा का विषय बना दिया। किसी ने कहा कि यह चार लाख का सूट है तो किसी ने दावा किया कि यह 10 लाख का सूट है। दुर्भाग्य की बात यह है कि पहले के प्रधानमंत्रियों, सोनिया गांधी इत्यादि को बहुत महंगे-महंगे तोहफे मिले, महंगे कपड़े पहने पर इन पर कभी किसी ने कोई प्रश्न नहीं किया। यह पहली बार है जब मोदी के सूट पर इतनी बहस हुई है। ज्यादातर मामलों में होता यह था कि महंगे तोहफों को अपने पास रख लिया जाता था। जो निजी काम का नहीं हो उसे सरकारी खजाने में जमा करा दिया जाता था। नरेंद्र मोदी पहले पीएम हैं जो देश-विदेश से मिले गिफ्ट्स की नीलामी करा रहे हैं। आलोचकों को मोदी का यह करारा जवाब है। यह आगे आने वालों के लिए भी राह दिखाने, बनाने की तरह है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि सूरत में तीन दिन तक होने वाली नीलामी की रकम वाराणसी में गंगा सफाई अभियान में लगाने की बात कर मोदी ने यह भी साफ कर दिया है कि वह इस अभियान को कितना महत्व देते हैं। मोदी को मिले 455 आइटम की नीलामी आजकल सूरत में चल रही है। नीलामी के पहले दिन बुधवार को उनके चर्चित सूट की बोली एक करोड़ 21 लाख तक पहुंच गई। सूरत के एक कपड़ा व्यापारी राजेश जुनेजा ने इस चर्चित बंद गले के सूट की बोली 1.21 करोड़ रुपए लगाई। बोली की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और आखिरी क्षणों में इसे सूरत के हीरा कारोबारी लाल जी पटेल ने 4.31 करोड़ रुपए में खरीदा। दरअसल पिछले माह अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने यही सूट पहना था। इस सूट पर बारीक अक्षरों में पीएम मोदी के नाम उकेरे गए हैं जिसको लेकर इसकी खूब चर्चा हुई थी। मीडिया में इस सूट की कीमत 10 लाख रुपए के करीब आंकी गई थी। मजेदार बात यह है कि श्री नरेंद्र मोदी को यह सूट एक कारोबारी रमेश भीखा भाई ने अपने बेटे की शादी में पहनकर आने के लिए भेंट किया था। वह शादी पर तो नहीं आ पाए पर उन्होंने सूट जरूर पहना। सूट की बोली लगाने वाले राजेश जुनेजा (कपड़ा व्यापारी) ने कहा कि 2006 में सूरत में बाढ़ के समय मोदी जी विद्या भारती स्कूल में रुके और 22-22 घंटे काम किया। मैं बहुत प्रभावित हुआ। मैं यह सूट पहनूंगा नहीं, अपने ऑफिस में बुत के साथ रखूंगा और रोज उससे बात करूंगा। इससे मुझे प्रेरणा मिलेगी। मोदी नीलामी का यह सिलसिला तब भी चलाते थे, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब उन्होंने सीएम के नाते मिले तोहफों की नीलामी से करीब 95 करोड़ रुपए की रकम लड़कियों की शिक्षा के लिए दी थी। मोदी जी क्या पहनते हैं यह उनका एकाधिकार है पर जैसा मैंने कहा कि एक लॉबी है जो उनकी आलोचना करने के लिए बहाने ढूंढती रहती है।

Friday, 20 February 2015

नफरत फैलाने की इजाजत नहीं देगी मोदी सरकार

हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान का स्वागत करते हैं जिसमें उन्होंने दो टूक कहा कि उनकी सरकार किसी भी धार्मिक समूह को किसी के खिलाफ द्वेष फैलाने की मंजूरी नहीं देगी और जो भी ऐसा करेगा उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होगी। पीएम ने कहा कि उनकी सरकार सभी धर्मों को समान रूप से सम्मान देती है। मोदी ने कहा कि मेरी सरकार अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक से ताल्लुक रखने वाले किसी भी धार्मिक समूह को दूसरों के खिलाफ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से घृणा फैलाने की इजाजत नहीं देगी। मेरी सरकार सभी धर्मों को सम्मान प्रदान करती है। प्रधानमंत्री ने विज्ञान भवन में केई चवारा और मदर यूफरेशिया को संत की उपाधि दिए जाने के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय समारोह को संबोधित करते हुए यह विचार व्यक्त किए। प्रधानमंत्री का देर से ही सही इस बयान का हम स्वागत करते हैं। उनका यह बयान हाल ही में दिल्ली के गिरिजाघरों पर हुए हमले और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के सन्दर्भ में की गई तल्ख टिप्पणी के सन्दर्भ में भी देखा जा सकता है। वास्तव में दुनियाभर में भारत की पहचान ऐसे देश के रूप में है जहां व्यापक रूप से धार्मिक सहिष्णुता रही है। वैसे अच्छा होता कि प्रधानमंत्री का यह बयान और पहले दिया जाता और खासकर तब जब कुछ हिन्दुवादी संगठनों की ओर से घर वापसी के नाम पर अतिसक्रियता दिखाने के साथ ही बेतुके बयान दिए जा रहे थे। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद तमाम हिन्दुत्ववादी ताकतों को यह लग रहा है कि उन्होंने यह सरकार बनाई है और अब उनका राज आ गया है। साक्षी महाराज जैसे भाजपा सांसदों ने तो इस तरह के बयान भी दे डाले हैं कि वह सरकार को बना और बिगाड़ सकते हैं। यदि प्रधानमंत्री ने इन बेलगाम हिन्दू संगठनों की लगाम समय रहते कसी होती और साथ ही आपत्तिजनक बयान देने वाले पार्टी नेताओं के प्रति तत्काल प्रभाव से कठोर रवैया अपनाया होता तो शायद दिल्ली विधानसभा के चुनावों का नतीजा शायद कुछ और ही होता। भाजपा ने धर्मनिरपेक्षता को हमेशा अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के औजार के तौर पर देखा है। इस लिहाज से नरेंद्र मोदी का यह बयान एक बड़े परिवर्तन का संकेत देता है। अब उचित होगा कि मोदी सरकार यह सुनिश्चित करे कि जो भी संगठन अपने हिन्दुवादी एजेंडे को लेकर जरूरत से ज्यादा सक्रिय हैं उन पर वास्तव में लगाम लगे। इसी तरह यह भी आवश्यक है कि यदि भाजपा नेताओं की ओर से दूसरे समुदायों को निशाना बनाने वाले आपत्तिजनक बयान दिए जाएं तो उनके खिलाफ वास्तव में कठोर कार्रवाई हो। वैसे यह भी सही है कि हमारे देश में ज्यादातर दल सेक्यूलरिज्म के नाम पर तुष्टिकरण को बढ़ावा देने वाली नीति पर चलते हैं। अल्पसंख्यकों को वोट बैंक के नजरिये से देखते हैं। प्रधानमंत्री के इस बयान को दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार से जोड़कर न देखा जाए। लाख टके का सवाल है कि संघ और अन्य हिन्दुवादी संगठन अपनी हरकतों से बाज आएंगे?

वायरल, जुकाम, खांसी को हल्के में न लें, स्वाइन फ्लू से डरें नहीं

मौसम में बदलाव दिखने लगा है। सुबह-शाम के तापमान और दिन के तापमान में काफी अंतर देखा जा रहा है। आने वाले समय में यह अंतर और बढ़ सकता है। ऐसे में कॉमन वायरल के अलावा संक्रमण की बीमारियों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।  विशेषज्ञों का कहना है कि 10 से 15 दिन बाद यह परेशानी और बढ़ेगी। जरा-सी भी लापरवाही सर्दी, जुकाम, बुखार, गले में संक्रमण, पेट की बीमारियां, मोटापा और प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने जैसी दिक्कतों की वजह बन सकती हैं। पिछले कुछ दिनों में राजधानी दिल्ली सहित देश के अन्य भागों में स्वाइन फ्लू के केस बढ़ते जा रहे हैं। देशभर में स्वाइन फ्लू का कहर जारी है। मंगलवार तक यह संख्या 585 थी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने मंगलवार को उच्च स्तरीय मीटिंग ली। इसमें उन्होंने कहा कि अस्पतालों में स्वाइन फ्लू की दवा और वैक्सीन की कमी हो रही है। इससे मरने वालों का आंकड़ा बढ़ रहा है। उन्होंने सभी दवा कंपनियों को इस बीमारी की दवाओं और वैक्सीन का स्टाक रखने को कहा। ताकि इस गंभीर संक्रमण से जल्द निजात पाई जा सके। डाक्टरों का कहना है कि जब मौसम के साथ तापमान में बदलाव होता है तो खानपान में थोड़ी-सी भी लापरवाही सेहत के लिए खतरा बन सकती है। इस मौसम में इंफेक्शन का डर रहता है, इसलिए ठंडी चीजों को अवाइड करें। ठंडे पेय में नारियल पानी, शिकंजी और छाछ आदि का प्रयोग कर सकते हैं। बाहर मिल रहे कटे फलों या जूस की बजाय घर पर मौसमी खाना बेहतर है। फलों के जूस भी घर पर निकालकर पीना ठीक होगा। एक-दो हफ्ते में तापमान और ज्यादा होगा लेकिन अचानक से फ्रिज का पानी पीना शुरू न करें। फ्रिज में रखी चीजों को भी कुछ समय बाहर रखें और कमरे के तापमान के अनुसार खाएं। खाने में सभी तरह की दालें और सीजनल सब्जियां जरूर खाएं। ऑयली व स्पाइसी खाने से बचें। ड्राई फ्रूट्स, मूंगफली, गुड़, तिल आदि का सेवन कम कर दें। शरीर में पानी की कमी न होने दें। ऐसे में खीरा खाना भी अच्छा है जिससे पानी की कमी पूरी होती है। दिन के समय तापमान 26 से 27 डिग्री तक देखा जा रहा है। सुबह-शाम 15 डिग्री के आसपास है। अगले कुछ दिनों बाद इसमें बढ़ोतरी होगी, ऐसे में कपड़े पहनने में थोड़ा ध्यान जरूर दें। एकदम से बिल्कुल हल्के कपड़े पहनना शुरू न कर दें। क्योंकि बदलते मौसम में आपके शरीर को इसकी आदत नहीं होती है और आप बीमार पड़ सकते हैं। राष्ट्रपति के पर्सनल फिजीशियन डॉ. वली ने एक मुलाकात में बताया कि स्वाइन फ्लू से  बचने के लिए यह जरूरी है कि आपको ठंड न लगे, छाती में जकड़न न हो, छींकें न आएं। अगर क्रोसिन जैसी दवा असर न हो तो आप तुरन्त डाक्टर को जाकर दिखाएं। स्वाइन फ्लू शुरुआती दौर में तो पकड़ा जा सकता है और उसका इलाज हो सकता है पर अगर एडवांस स्टेज तक पहुंच जाए तो जानलेवा होता है। वैसे टमीफ्लू नामक दवा भी स्वाइन फ्लू में दी जा सकती है। आप अपना ध्यान रखें।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 19 February 2015

पाकिस्तान को हरा कर टीम इंडिया ने शानदार शुरुआत की है

विश्व कप किकेट में भारत की इससे बेहतर शुरुआत नहीं हो सकती। रविवार को आस्ट्रेलिया के शहर एडीलेड के मैदान पर अपने पहले ही मैच में टीम इंडिया ने अपने चिर-पतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 76 रनों से पराजित कर विश्व कप में शानदार आगाज के साथ शुरुआत की, पाकिस्तान को हराने में अलग ही मजा है। मानो हमने वर्ल्ड कप जीत लिया हो। भारत-पाकिस्तान मैच में जो टीम जीते उसमें अलग उत्साह होता है। जो हारे उसमें ऐसी मायूसी होती है जिसका वर्णन आसान नहीं। पाकिस्तान में इस हार का भंयकर परिणाम हुआ। टीम इंडिया से लगातार छठी बार हार मिलने के साथ ही सरहद पर पूर्व किकेटरों, जानकारों आलोचकों और पशंसकों के बीच निराशा छा गई। हर कोई अपनी टीम से बेहतर पदर्शन और भारतीय टीम से हार के सिलसिले को रोकने की उम्मीद कर रहा था। कराची में कई स्थानों पर मैच देखने के लिए बड़े स्कीन लगाए गए थे। इन स्थानों पर बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे। मैच के दौरान जब पाक टीम अच्छा पदर्शन कर रही थी तो लोग गाड़ियों में हॉर्न बजाकर और हवा में गोलियां चलाकर जश्न मना रहे थे लेकिन टीम के हारने के साथ पशंसक, दर्शक मायूस हो गए। कई लोग इस हार से इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपने टीवी सेट तोड़ दिए। सोशल मीडिया में भी भारत और पाकिस्तान के पशंसकों के बीच खुद तल्ख टिप्पणियों का आदान-पदान हुआ। इस मैच में कई नई बातें हुईं। पहली बार बॉलीवुड के लेजेंड अमिताभ बच्चन ने कमेंट्री की। अमिताभ ने राहुल द्रविड़, शोएब अख्तर, अरुण लाल और  कपिल देव के साथ शानदार कमेंट्री की। अमिताभ की किकेट की जानकारी ने सभी को चौका दिया। बॉलीवुड के कई सितारों ने उनकी कमेंट्री की तारीफ की। अमिताभ ने कहा मैं ज्यादा देर मैच नहीं देखता क्योंकि डरता हूं कहीं टीम इंडिया हार न जाए। पाकिस्तान की वर्तमान टीम एक तरह से अधूरी है। उनके स्टार स्पिनर सईद अजमल और मोहम्मद हफीज टीम में नहीं हैं। पर फिर भी भारत-पाक मैच में जो रोमांच होता है वह अन्य टीमों के साथ खेलने में नहीं होता। विराट कोहली और सुरेश रैना ने शानदार बल्लेबाजी का पदर्शन किया। विराट कोहली विश्व कप में पाक के खिलाफ शतक लगाने वाले पहले भारतीय बने। सचिन के विश्व कप में पाक के खिलाफ 98 रन का रिकार्ड तोड़ा। 36 साल बाद किसी भारतीय स्पिनर (अश्विन) ने विश्व कप में तीन मेडन ओवर फेंके। पाक पर शानदार जीत के साथ अब भारत के र्क्वाटर फाइनल में पहुंचने के लिए 5 मैचों में से सिर्फ 2 मैच ही जीतने होंगे जो वह आसानी से जीत सकता है। हमारी बैटिंग तो स्ट्रांग है पर बॉलिंग नहीं। पर पाकिस्तान के साथ तो हमारी बॉलिंग भी शानदार रही। अब भारत का अगला मैच 22 फरवरी को दक्षिण अफीका के साथ है। यह भारत के लिए एक कड़ी चुनौती है। दक्षिण अफीका न केवल एक मजबूत टीम ही है बल्कि इस विश्व कप की दावेदार भी है।  चैंपियन का खिताब यदि बचाना है तो खेल में लयबद्धता और एकरूपता होना जरूरी है। फिलहाल पाक से जीतने पर टीम इंडिया को बधाई।

-अनिल नरेंद्र

केजरीवाल सरकार में मीडिया की नो एंट्री?

लोकपाल बिल में व्हिसल ब्लोअर की सुरक्षा की गारंटी देने वाली आम आदमी पाटी की सरकार ने पहला काम यह किया है कि जनता की आवाज बुलंद करने वाली मािrडिया की एंट्री दिल्ली सचिवालय में बंद कर दी है। शपथ के दिन से  चौथे स्तंभ की सचिवालय में एंट्री को लेकर सरकार और मीडिया के बीच जंग चल रही है। हालत यहां तक आई कि फोटो जर्नलिस्ट ने कैबिनेट का फोटो सेशन नहीं किया तो उप मुख्यमंत्री की पेस कांपेंस भी नहीं हो सकी। मनीष सिसोदिया बीच में ही पेस कांपेंस छोड़ कर चले गए। जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल करीब 12 बजे दिल्ली सचिवालय पहुंचे तो मीडियाकमी उनकी फोटो लेना चाहते थे पिंट, इलेक्ट्रानिक मीडिया और फोटो जर्नलिस्ट बड़ी संख्या में कैबिनेट की पहली बैठक कवर करने पहुंचे थे लेकिन सुरक्षा गेट से आगे पवेश नहीं होने के कारण मीडिया रूम या सड़क, फुटपाथ पर बैठने को मजबूर हुए। मीडियाकर्मियों ने इस बरताव से नाराज होकर कैबिनेट फोटो सेशन का बहिष्कार कर दिया। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की पहली ही पेस कांपेंस में हंगामा हो गया और सिसोदिया कांपेंस को बीच में छोड़ कर चले गए। कांपेंस में मीडियाकर्मियों ने सचिवालय में पत्रकारों की एंट्री को लेकर सवाल पूछा गया कि सचिवालय में पवेश पर पाबंदी क्यों हैं और पत्रकारों की सीमाएं क्या हैं? इस सवाल का जवाब देने के बजाए सिसोदिया ने नाराज होकर पेस कांपेंस बीच में ही छोड़ दी। उल्लेखनीय है कि इससे पहले 49 दिनों की सरकार में भी आम आदमी पाटी की सरकार ने मीडिया पर पाबंदियां लगाई थीं। सरकार की दलील यह है कि दिल्ली की जनता ने उन्हें काम करने के लिए जबरदस्त बहुमत दिया है। ऐसे में पहले काम को पमुखता दी जाएगी। सरकार के एक ग्रुप का यह भी मानना है कि पत्रकारों का एक ग्रुप उस पर बेवजह पेशर बनाने का पयास कर रहा है जिसे सफल नहीं होने दिया जाएगा। बेशक यह सही है कि पत्रकारों में कुछ ऐसे लोग हों जो सरकार को बेवजह तंग करते हों पर इसका यह मतलब नहीं कि आप तमाम मीडिया पर रोक लगा दें। केजरीवाल एंड कंपनी क्या यह भूल गई है कि उनकी जीत में इसी  मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। फिर मीडिया का यह मौलिक अधिकार है कि वह जब चाहे आ-जा सकते हैं। बिना मंत्री की स्वीकृति के वैसे भी कोई मीडिया वाला इनके कमरे में नहीं जा सकता और अगर पत्रकारों का रूप धारण करके सत्ता के दलालों की बात करें तो वह तो मंत्रियों, विधायकों से उनके घर में भी मिल सकते हैं। अरविंद केजरीवाल सरकार गलती कर रही है। शुरुआत में ही अगर उसने इस पकार का अलोकतांत्रिक रवैया अपनाया तो आगे चल कर इसके अंजाम उसी के लिए नुकसानदेह होंगे। वह बिना वजह मीडिया को अपने खिलाफ कर रहे हैं। आज तक किसी ने मीडिया पर इस तरह की पाबंदी नहीं लगाई। हम इसका घोर विरोध करते हैं।

Wednesday, 18 February 2015

भारत के आरोपों की परवेज मुशर्रफ ने पुष्टि की

जो बात भारत वर्षों से कहता आ रहा है उसकी पुष्टि अब खुद पाकिस्तान के पूर्व सदर व पूर्व पाक आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने कर दी है। जनरल परवेज मुशर्रफ ने इसकी पुष्टि की है कि पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ही आतंकी संगठनों को खड़ा किया है और आईएसआई ने यह काम भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने के मकसद से अंजाम दिया। मुशर्रफ ने अंग्रेजी के प्रतिष्ठित समाचार पत्र `द गार्जियन' को दिए एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि तालिबान आईएसआई द्वारा बनाया गया आतंकी संगठन है। पाकिस्तान 
26/11 हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद के नेतृत्व वाले जमात-उद-दावा और हक्कानी नेटवर्प सहित कम से कम 10 आतंकी संगठनों को हर संभव मदद कर रहा है। मुशर्रफ का कहना है कि पाकिस्तान की मौजूदा नवाज शरीफ सरकार को अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन को दी जा रही मदद पर विराम लगा देना चाहिए। इंटरव्यू के दौरान मुशर्रफ ने माना कि जब वह सत्ता में थे तो उनकी सरकार ने अफगानिस्तान की तत्कालीन हामिद करजई सरकार को नीचा दिखाने की कोशिश की और हामिद करजई की राह में कांटे बिछाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने बताया कि करजई का विरोध इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान की पीठ में छुरा घोंपने में भारत की मदद की थी। लेकिन अब वक्त आ गया है कि अफगानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी की मदद करें। लिहाजा आतंकी संगठनों को आईएसआई की ओर से दी जा रही मदद फौरन बंद कर दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में शांति के लिए राष्ट्रपति गनी उम्मीद की आखिरी किरण हैं। बकौल मुशर्रफ यह सच है कि अपने कार्यकाल के दौरान करजई पाकिस्तान को चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हम उस सरकार के खिलाफ काम कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आईएसआई के जासूसों ने 2001 के बाद तालिबान को मदद पहुंचानी शुरू कर दी थी क्योंकि करजई सरकार भारत समर्थक थी। मुशर्रफ ने कहा कि पाकिस्तानी सेना भारत से सशंकित रहती है क्योंकि युद्ध में उसने हमें तीन बार हराया है। पाकिस्तान को तोड़कर बंगलादेश के गठन में नई दिल्ली का पूरा हाथ रहा है। उन्होंने बताया कि वह भारत विरोधी नहीं हैं लेकिन पड़ोसी देश के प्रति अमेरिकी दुर्भावना का इस्तेमाल करने से चूकते नहीं थे। पूर्व राष्ट्रपति का कहना था कि भारत भले ही खुद को बड़ा लोकतांत्रिक देश कहे, मानवाधिकारों का रक्षक बताए लेकिन सच्चाई यह है कि वहां कोई मानवाधिकार नहीं है। अगर किसी पंडित पर अछूत जाति के लोगों की परछाईं भी पड़ जाए तो वह गरीब बेचारा मार दिया जाता है। मुशर्रफ ने कहा कि अन्य जवानों की तरह वह भी भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ की भूमिका को लेकर सशंकित थे। रॉ पाकिस्तान को तोड़ने के लिए अलगाववादी ताकतों को मदद पहुंचा रही थी और दोनों रॉ और आईएसआई पर नियंत्रण लगना चाहिए। मुशर्रफ की स्वीकृति भारत के आरोपों की पुष्टि करती है।


-अनिल नरेन्द्र

बदले हुए केजरीवाल, अब ज्यादा परिपक्व नेता लगते हैं

दिल्ली की गद्दी पर विराजमान अब एक सधे हुए राजनेता की तरह नजर आ रहे हैं। यह खुशी की बात है कि श्री केजरीवाल ने अपनी पुरानी गलतियों से काफी कुछ सबक लिया है और उन्हें दोहराने से बच रहे हैं। दोबारा कोई गलती न हो इसके लिए केजरीवाल खुद तो अलर्ट हैं ही साथ ही अपने सहयोगियों तथा कार्यकर्ताओं को भी अलर्ट कर रहे हैं। अपनी गलतियों को स्वीकार करते हुए अरविंद केजरीवाल कई बार सार्वजनिक तौर पर माफी मांग चुके हैं और कड़ी मेहनत से उन्होंने पुरानी गलतियों को बदल कर उलटा प्लस प्वाइंट बना लिया। दिल्लीवासियों ने न केवल पुरानी गलतियों को माफ ही किया बल्कि दिल खोल कर उन्हें वोट दिया। अब केजरीवाल काफी सतर्पता बरत रहे हैं ताकि जनता के बीच अपरिपक्व नेता होने का संदेश न जाए। मैं आज कुछ पुरानी गलतियों व उनके सुधार का जिक्र करना चाहूंगा। एक गलती थी कि पिछली बार केजरीवाल मेट्रो से सफर कर शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे थे। उन्होंने सरकारी गाड़ी, बंगला और सुरक्षा लेने से इंकार किया था। इसके लिए उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी। इस बार कौशाम्बी से इनोवा गाड़ी में सवार होकर शपथ ग्रहण समारोह स्थल तक पहुंचे। वीआईपी कल्चर को खत्म करने के लिए केजरीवाल ने शपथ ग्रहण समारोह में ऐलान किया कि कोई अधिकारी और मंत्री लाल बत्ती वाली गाड़ी से नहीं चलेगा यानि बगैर लाल बत्ती लगी सरकारी गाड़ी से चल सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चार कमरे का सरकारी आवास लूंगा ताकि दो-चार सौ लोग मिलने आएं तो दिक्कत न हो। पिछली बार विपक्षी दल के किसी भी व्यक्ति को शपथ ग्रहण के लिए निमंत्रण नहीं भेजा था। इस पर केजरीवाल पर शिष्टाचार नहीं निभाने का आरोप लगा था। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू, दिल्ली के सभी सात सांसद, किरण बेदी व अजय माकन तक को न्यौता भेजा। शपथ ग्रहण में सभी सात सांसद, विजेन्द्र गुप्ता व अजय माकन पहुंचे थे। पिछली बार घोषणा पत्र में किए गए चुनावी वादों को पूरा करने के लिए समयसीमा तय की थी। तकनीकी कारणों से कम समय में सब पूरा करना नामुमकिन साबित हुआ और जनता निराश हुई। आम आदमी पार्टी ने इस बार चुनावी नारा ही गढ़ दिया थाöपांच साल केजरीवाल यानि मेनडेट पांच साल के लिए मिला है। पांच साल के भीतर चुनावी वादे पूरे किए जाएंगे। केजरीवाल ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि 24 या 45 घंटे में रिजल्ट मत मांगना। पांच साल के भीतर दिल्ली को भ्रष्टाचारमुक्त शहर बनाने का अब की बार दावा किया है। पिछले चुनाव में केजरीवाल ने शीला सरकार के खिलाफ नकारात्मक प्रचार जमकर किया था। इस बार लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए मोदी स्टाइल को ही अपनाया। उन्होंने नकारात्मक चुनाव प्रचार के बजाय सकारात्मक चुनाव प्रचार किया, मुद्दों की बात की जबकि भाजपा ने सिर्प नकारात्मक प्रचार किया और उसका दुष्परिणाम भी भुगता। अरविंद केजरीवाल ने अपने आपको बदला है।

Tuesday, 17 February 2015

‘Political Earthquake’ strikes Delhi

In last Delhi Assembly elections, when Congress failed to reach double digit mark and ended up with 8 seats only, then national president of BJP rode Congress so hard over its failure. During campaigning of Lok Sabha, he used to taunt Congress for its collapse and say that Congress MLAs can go to the Assembly by riding in a car like Innova. Current Delhi Assembly elections are over and results boomeranged on BJP itself. BJP has suffered a rude shock in Delhi's Assembly elections and its situation became worse than last elections. Now its MLAs can go to the Assembly riding on even smaller vehicle like auto rickshaw. Congratulating Arvind Kejriwal, Coordinator of AAP, on this historical victory, UP Chief Minister Akhilesh Yadav said that crushing defeat of BJP is result of over campaigning of issues like Love Jihad, Ghar Wapsi, Four Children etc. Public of Uttar Pradesh will teach a lesson to BJP in 2017 Assembly Elections in the same fashion as Delhiites taught it by denying these issues altogether, he further added. On one hand global media termed AAP’s stunning victory as political earthquake, on the other hand taking a jibe on Narendra Modi the International media said what goes up must come down. Commenting of BJP’s defeat in Delhi Assembly election, less than a year after the party's stunning victory in the Lok Sabha election, The New York Times termed it as a "small political earthquake". Paper said that after registering a historic victory in Lok Sabha elections Modi became India's Prime Minister. Tuesday’s defeat in Delhi Assembly election is not less than a political earthquake.  Washington Post termed it as "stunning defeat" at the hands of the upstart anti-corruption Aam Aadami Party. The newspaper wrote that Delhi election is a setback to Modi. CNN, for deriding Modi quoted Isaac Newton's principle of physics and said what goes up must come down. Global Media is abuzz more with Modi’s defeat than AAP’s triumph.  Congratulating Aam Aadmi Party’s Chief Arvind Kejriwal for the landslide triumph, JD(U) said the people of Delhi have rejected Prime Minister Narendra Modi and BJP and the results will have far reaching effect on the entire country, including Bihar. JD(U) State President at Patna said that  Arvind Kejriwal has won a big fight. The results also indicate that the people of Delhi have rejected the working style of Prime Minister Narendra Modi as well as BJP. The people have preferred a man with simple living against a person who wears a suit of Rs. 10 lakh and sent a message that a tea-seller, who wear a suit of Rs. 10 lakh, should not talk about common man. 
Heavyweight MLA candidates of Congress couldn’t save their security deposit. Party failed to get even single seat and has created a history. Along with it, Congress set another record as its two-third candidates forfeited their security deposit. Only 8 out of the 70 Congress candidates could save their security deposit. Even Ajay Maken, party's poll campaign face, forfeited his security deposit. Half of Congress candidates could not cross the figure of 10000 whereas 13 candidates got lesser than 5000 votes. Kiran Walia got only 4781 votes. It will be Delhi’s first Congress-free Assembly i.e. without a single MLA from Congress Party. It happened for the first time in 130 year long history of Congress when even its single candidate couldn’t win a seat in any State Assembly Election and most of its candidates have forfeited their security deposit in a single election. Voters of Delhi rejected those leading politicians who were occupied in grabbing power by changing their parties just before this election. Former Union Minister Krishana Tirath, former assembly speaker M.S. Dheer, three former MLAs and three former councilors are among those who got defeat in this election. 
After Lok Sabha election, whichever election the duo of PM Modi and Amit Shah has contested came out with flying colour. But it defeated in Delhi Assembly election. This is the first time in last 13 years when this duo has lost any election. Amit Shah started election management at the age of 19. He managed over three dozen elections ranging from Cooperative to Parliament elections and won election every time.  Defeat of trio of Modi-Shah-Jethali   brought elation for Modi’s opponents. Nitish Kumar and Mamta Banerjee are more than happy. First effect of AAP’s success is clearly visible in Bihar. Now BJP has distanced itself from Jitan Ram Manjhi. BJP said it is an internal matter of JD(U).  Several parties like SP, RJD, JDU, TMC, CPM had supported AAP in this election.  Now AAP has set its eyes on UP, Bihar and Punjab . Elections in these three states are to be held in 2017. All four MPs are from Punjab. Shiv Sena President Uddhav Thackeray said the sweeping AAP win in Delhi Assembly polls a 'tsunami' of AAP overpowered Modi’s wave. I told Kejariwal that he should not even think of quitting now.  If I get invitation, I will go and attend the oath ceremony, he further added.  Kiran Bedi’s husband said that BJP workers are responsible for this defeat. They didn’t support Kiran Bedi or else the story would have been different.
"The contest was widely viewed as a measure of Modi's political clout here. The bitterly fought election for control of the legislative assembly marks the first political setback to Modi's BJP since he became the PM last May," the paper said.
"Riding on Modi's soaring popularity, the BJP had won in a number of state elections in recent months, and they were expected to repeat their success Tuesday — a phenomenon dubbed Modi's 'victory chariot' by the media. But Delhi proved to be a tough battle for the BJP because of the appeal of the charismatic Kejriwal, a former tax officer-turned anti- corruption activist," it said.
CNN invoked Isaac Newton's physics principle to take a jibe at Modi, saying, "This week New Delhi will be talking about a very different scientific discipline: physics. After all, what goes up must come down."
"Since winning a broad mandate in national elections last May, and then repeating the feat in state elections across the country, India's ruling BJP has suffered a rude shock in Delhi's state elections," the US news channel said.
London's 'The Telegraph' termed BJP's defeat in the Delhi polls, in which the Congress drew a blank, as a "humiliating landslide" while Guardian described the stunning result as a "blow for Modi"
State president of JDU said Arvind Kejariwal has won a big battle. Results indicate that people of Delhi has rejected Prime Minister Narendra Modi as well functioning of BJP.  
Congratulating Aam Aadmi Party chief Arvind Kejriwal for the staggering victory, JD(U) today said the people of Delhi “have rejected Prime Minister Narendra Modi and BJP” and the results will have “far reaching effect” on the entire country, including Bihar.
“Arvind Kejriwal has won a big fight. His party has performed fantastically in Delhi polls. We congratulate him.
The results also indicate that the people of Delhi have rejected the working style of Prime Minister Narendra Modi and BJP. The people have preferred a man with simple living against a person who wears a suit of Rs. 10 lakh,” said JD(U) state President Vashistha Narayan Singh.
“The Delhi poll results will have far-reaching effect on the entire country, including Bihar where elections are due later this year. The results show that the public will now vote on the basis of performance and not on high-pitched slogans. Non-issues like love-jihad and sectarianism have failed,” Singh added.
Singh’s statement came ater a meeting with senior JD(U) leader Nitish Kumar, who has staked claim to form government in the state, and is awaiting response of Governor Kesri Nath Tripathi on the issue.
JD(U) spokesperson Neeraj Kumar said that Delhi results have “taken away the halo around BJP” and that the good wishes of Nitish Kumar also worked in favour of AAP.
“The results have taken away the halo around BJP. Nitish Kumar’s good wishes to AAP and Arvind Kejriwal have worked,” he added.
Shiv Sena President Uddhav Thackeray said the sweeping AAP win in Delhi Assembly polls a 'Tsunami' of AAP overpowered Modi’s wave.  and congratulated AAP chief Arvind Kejriwal for the historic victory I told him that he should not even think of quitting now.

सुरेश पटेल की गलती इतनी थी कि वह अंग्रेजी नहीं जानते थे

अपनी ताकत के बूते दुनियाभर में जबरदस्ती बने ठेकेदार अमेरिका को भारत में धार्मिक सहिष्णुता तो घटती दिखाई देती है और इस पर अवांछित टिप्पणी करने में राष्ट्रपति बराक ओबामा तनिक भी विचार या विलंब नहीं करते पर उन्हें यह नजर नहीं आता कि उनकी पुलिस एक भारतीय बुजुर्ग के साथ किस बर्बरता से बर्ताव करती है? 57 साल के सुरेश पटेल अमेरिका के उलबामा में अपने पुत्र के साथ रहने एक दिन पहले ही पहुंचे थे। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती है। गुजरात निवासी सुरेश पटेल सुबह की सैर करने निकले तो पड़ोसी को एक अजनबी को देखकर शक हुआ और उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया। दो पुलिस वालों ने पटेल के साथ जो सुलूक किया उसके कारण वह अस्पताल पहुंच गए। वीडियो में पटेल फुटपाथ पर चलते दिखाई दे रहे हैं। पुलिस ने बताया कि उन्हें एक फोन कॉल आई थी एक व्यक्ति घरों और गैराज में ताकझांक कर रहा है जिसके बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची थी। लेकिन वीडियो में दिख रहा है कि पटेल किसी भी घर या गैराज में ताकझांक नहीं कर रहे थे। इस वीडियो में दो पुलिस अधिकारी पटेल के  पास आते दिख रहे हैं। वह पटेल से उनका नाम, पता और पहचान पत्र आदि के बारे में पूछ रहे हैं। पटेल यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि `अंग्रेजी नहीं आती' और अपने बेटे के घर की ओर इशारा कर रहे हैं। इसके तुरन्त बाद एक पुलिस अधिकारी पटेल को जमीन पर गिराता है और उन पर बल प्रयोग करते दिख रहा है जिसकी पहचान बाद में पार्पर के रूप में हुई। सुरेश पटेल की इतनी पिटाई की गई कि वह अस्पताल पहुंच गए। यह सिर्प इसलिए हुआ क्योंकि वह अंग्रेजी नहीं जानते थे। सुरेश भाई पटेल को अमेरिकी पुलिस नस्लीय बर्बरता के साथ पीट-पीट कर लहूलुहान कर रही थी तब आजादी और मानवाधिकारों के बड़े पैरोकार मार्टिन लूथर किंग की आत्मा को कैसी और कितनी चोट पहुंची होगी, इसका कोई हिसाब ओबामा के पास है क्या? कई अमेरिकी मानवाधिकार संगठनों ने इसे बिना उकसावे के की गई बर्बर और नस्लीय कार्रवाई करार दिया है। सुरेश पटेल का केवल इतना दोष था कि वह अंग्रेजी नहीं जानते थे और पुलिस वालों के सवालों का सही जवाब नहीं दे सके। अमेरिका में अश्वेत लोगों को रहते हुए सदियां बीत गईं, लेकिन अब भी अमेरिका के बहुत सारे लोगों के लिए अमेरिका गोरे लोगों का ही देश है। भारतीय या अन्य नस्लों के लोग भी वह वहां एक-आध सदी से तो रह रहे हैं लेकिन उनके प्रति दुराग्रह काफी हद तक पाया जाता है। 9/11 के आतंकी हमले के बाद यह दुराग्रह बहुत बढ़ गया है। जो लोग अपने जैसे नहीं दिखते उनसे अक्सर अमेरिकी जनता या सुरक्षा एजेंसियों को खतरा महसूस होता है। हालांकि सुरेश भाई के परिजनों ने दोषी पुलिसकर्मियों पर मुकदमा करने का निर्णय किया है, जो भी हो सुरेश भाई का आंशिक विकलांगता का कलंक सभ्य अमेरिका के माथे का काला टीका तो बना ही रहेगा।

-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल सरकार की पहली चुनौती ः दिल्ली की यह बिजली कंपनियां

आम आदमी पार्टी की सरकार बनते ही केजरीवाल सबसे पहले लोगों को सस्ती बिजली और पानी मुहैया कराने का काम करेंगे। ऐसा पार्टी नेता और केजरीवाल सरकार में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा है। 67 सीटों के साथ अब तक का सबसे बड़ा बहुमत पाने के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए सबसे पहली मुसीबत बिजली की दरें ही खड़ी करेंगी। आप ने दिल्ली वालों को चुनावों से ठीक पहले दरों में 50 प्रतिशत राहत देने का वादा किया था। हम भी चाहते हैं कि दिल्लीवासियों को बिजली दरों में राहत मिले। पर इस काम में यह बिजली कंपनियां रोड़ा अटकाएंगी और केजरीवाल सरकार को इस उद्देश्य में नाकाम करने का प्रयास करेंगी। इनके ड्रामे शुरू हो गए हैं। बिजली कंपनियों ने एक बार फिर घाटे का रोना रोते हुए 21 फीसदी तक दाम बढ़ाने की मांग दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) से की है। केजरीवाल द्वारा शनिवार को सीएम पद की शपथ लेने के साथ ही सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। डीईआरसी ने भी बिजली के नए टैरिफ के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है जो राहत के इस रास्ते में रोड़ा लगा सकती है। बिजली कंपनियों ने आगामी वित्त वर्ष के लिए बिजली टैरिफ के लिए जो मसौदा पेश किया है उस मसौदे में करीब 2500 करोड़ रुपए का घाटा दिखाया गया है और इस घाटे के आधार पर ही दिल्ली के लिए नया टैरिफ तैयार करने की सिफारिश की है। डिस्कॉम के मुताबिक बीआरपीएल ने कहा है कि वर्तमान टैरिफ में 16.29 प्रतिशत, बीवाईपीएल ने 19.48 फीसदी और टीपीडीएल ने 20.65 फीसदी की बढ़ोत्तरी होनी चाहिए। बीआरपीएल ने 14.12 फीसदी यानि 1241 करोड़ का घाटा दिखाया है। बीवाईपीएल कंपनी ने 18.83 फीसदी यानि 792 करोड़ का घाटा दिखाया है जबकि टीपीडीएल ने 13.33 फीसदी यानि 635 करोड़ रुपए का घाटा दिखाया है। इन बिजली कंपनियों को ठीक करने के लिए केजरीवाल सरकार को सख्ती करनी पड़ेगी। अभी तक सरकारी एजेंसी सीएजी से ऑडिट करवाने से बच रहीं दिल्ली की इन बिजली कंपनियों को अंतत अपनी खाताबही का ऑडिट करवाने के लिए हामी भरनी पड़ सकती है। राज्य में एक मजबूत सरकार बनाने के बाद आप की सरकार इनके ऑडिट पर वचनबद्ध है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी बिजली व्यवस्था में सुधार एक अहम मुद्दा रहा। आप की तरफ से बिजली पर एक श्वेत पत्र भी जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि किस तरह से पुरानी सरकारों ने बिजली वितरण कंपनियों का ऑडिट नहीं करवा कर दिल्ली के बिजली संकट को आज इतना बड़ा बना दिया है। इसमें बिजली वितरण कंपनियों पर यह आरोप लगाया गया है कि वह आम जनता से गलत तरीके से ज्यादा बिजली बिल वसूल करते हैं। बिजली मीटरों में भी धांधलेबाजी करते हैं। असली स्थिति का पता लगाने के लिए इनकी जांच होनी चाहिए। बिजली कंपनियों पर जानबूझ कर अन्य खर्चों में गड़बड़ी कर आम जनता पर बोझ डालने का आरोप भी इसमें है। इन सभी तथ्यों का खुलासा एक विस्तृत ऑडिट रिपोर्ट से ही हो सकता है। हमारा मानना है कि अदालतें भी इन बिजली कंपनियों की विस्तृत ऑडिट को नहीं रोकेंगी क्योंकि यह पब्लिक हित में है। केजरीवाल सरकार के इस मुद्दे पर हम भी सहमत हैं और जनहित में समर्थन करते हैं।

Sunday, 15 February 2015

करारी हार के बाद भाजपा में मचा घमासान, जिम्मेदार कौन है?

मैंने अक्सर चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदारी तय करने की बात उठाई है। दुख से कहना पड़ता है कि एक के बाद एक हार के बाद भी कांग्रेस ने न तो आत्मचिन्तन ही किया और न ही हार की जिम्मेदारी किसकी है यह तय किया। अब भाजपा की बारी है। भारतीय जनता पार्टी तो अपने आपको पार्टी विद ए डिफरेंस बताती है तो दिल्ली विधानसभा में इतनी करारी हार का जिम्मेदार कौन है इसे क्यों तय करने से कतरा रही है? इस करारी हार के बाद भाजपा के भीतर नेताओं में गुस्सा बुरी तरह से सुलग रहा है। हालांकि फिलहाल इस मामले में पार्टी के सीनियर नेताओं के खिलाफ कोई आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। महत्वपूर्ण है कि आमतौर पर हार के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने वाले दिल्ली भाजपा के ज्यादातर नेता इस बात से एकमत हैं कि हार के लिए स्थानीय नेतृत्व की बजाय सीनियर लीडरशिप जिम्मेदार है क्योंकि उसके गलत फैसलों, नीतियों की वजह से वोटरों के बीच गलत संदेश गया। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने वाली भाजपा को निशाने पर लेते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि इस पार्टी को अपनी अलोकतांत्रिक कार्यशैली और सरकार की अमीर परस्त नीतियों का खामियाजा उठाना पड़ा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की नीतियों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियां अमेरिका और अमीर पसंद हैं, जिससे देश को नुकसान उठाना पड़ रहा है। गोविंदाचार्य ने कहा कि भाजपा में आदर्शवाद तो काफी पहले लुप्त हो गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने पार्टी और संघ के नेताओं से गुरुवार को असहज करने वाले सवाल पूछे। भागवत ने नेताओं से पूछा कि भाजपा के कार्यकर्ता लोगों के मूड भांपने में क्यों नाकाम रहे? भाजपा के तीन मंत्रियोंöस्मृति ईरानी, निर्मला सीतारमण और रविशंकर प्रसाद को संघ कार्यालय केशवपुंज तलब किया गया। सूत्रों के मुताबिक भाजपा के नकारात्मक प्रचार से नुक्सान होने के अनुमान को लेकर नाराज संघ ने सीतारमण से सवाल किया कि फर्जी कंपनियों से चन्दे के मामले में उन्होंने बयान देते वक्त अरविंद केजरीवाल के लिए चोर शब्द का इस्तेमाल क्यों किया? संघ के एक शीर्ष सूत्र ने बताया कि हमारे कार्यकर्ताओं ने कई मंत्रियों और भाजपा नेताओं के अहंकार को लेकर शिकायत की थी। उनकी अनदेखी करके बाहर के लोगों को महत्व दिया गया। भाजपा सांसद कीर्ति आजाद और मनोज तिवारी ने पार्टी के रणनीतिकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी ने पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी की। इसी तरह से पूर्वांचल के लोगों की उपेक्षा का खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा। कीर्ति का कहना है कि यह शर्मनाक हार है। इतनी बुरी तरह से तो आस्ट्रेलिया में भारतीय टीम भी नहीं हारी। भाजपा ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। हम दिन-रात कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेस के सफाए के लिए कोसते रहते हैं। क्या भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी इस शर्मनाक हार के लिए सीधे जिम्मेदार नहीं हैं? क्या अमित शाह इस हार की जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे या फिर छोटे-मोटे नेताओं को बलि का बकरा बनाकर मामले को रफा-दफा कर देंगे। उन्हें अध्यक्ष पद से हटने की जरूरत नहीं पर इस हार की जिम्मेदारी लेने का जिगरा दिखाना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

क्या तीस्ता सीतलवाड़ राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार हैं?

सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार की चैंपियन तीस्ता सीतलवाड़ एक बार फिर सुर्खियों में हैं। 2002 के गुजरात दंगों के बाद सीतलवाड़ अपने मोदी विरोधी अभियान के लिए पूरे देश में चर्चा में आईं। दूसरों को कठघरे में खड़ी करने वाली यह महिला आज खुद कठघरे में खड़ी है और अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति की गिरफ्तारी पर शुक्रवार तक के लिए अंतरिम रोक लगा दी है। दम्पत्ति की अंतरिम जमानत की याचिका गुरुवार को ही गुजरात हाई कोर्ट ने खारिज की थी। क्या है मामला? 28 फरवरी 2002 को गुलबर्ग सोसायटी पर दंगाइयों की भीड़ ने हमला कर दिया था। इसमें 69 लोग मारे गए थे। गोधरा दंगों के बाद यह घटना घटी थी। अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में दंगे में मारे गए लोगों की याद में एक स्मारक बनाने के लिए फंड जमा हुआ था। गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी के ही एक दंगा पीड़ित ने तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति जावेद आनंद और उनके दो गैर-सरकारी संगठन सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस और सबरंग ट्रस्ट के खिलाफ अहमदाबाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद पर एक करोड़ 57 लाख रुपए गबन करने का आरोप लगाया गया था। शिकायत के अनुसार आरोपियों ने गुलबर्ग सोसायटी को संग्रहालय में तब्दील करने के लिए धन एकत्र किया था और अब उन्होंने कथित रूप से 1.57 करोड़ रुपए गबन कर लिया है। दूसरी ओर आरोपियों का दावा है कि इस मामले में उन्हें फंसाया गया है और वे राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार हैं। उनका दावा है कि दंगा भड़काने वाले ही उन्हें निशाना बना रहे हैं। गुजरात हाई कोर्ट ने तीस्ता और उनके पति जावेद की अग्रिम जमानत खारिज कर दी थी। इसके बाद पुलिस तीस्ता को गिरफ्तार करने उनके मुंबई स्थित घर पर पहुंची। गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेबी परदीवाला ने अपने फैसले में कहा था कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। प्रथम दृष्टया ऐसा लग रहा है कि इन लोगों ने ट्रस्ट के फंड का इस्तेमाल निजी कामों में किया है। इसलिए इन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है। इसके बाद सीतलवाड़ पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई थी। सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद के अलावा गुजरात के दंगे में मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी के बेटे तनवीर जाफरी और गुलबर्ग सोसायटी के निवासी फिरोज गुलजार इस मामले के आरोपी हैं। मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। अगर सीतलवाड़ निर्दोष हैं तो उन्हें डरने की, भागने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। देश की सर्वोच्च अदालत तय कर लेगी कि यह मामला पैसों के गबन का है या सियासी दुश्मनी का जैसा सीतलवाड़ दावा कर रही हैं?

Saturday, 14 February 2015

जनता का मूड अब पूर्ण बहुमत देकर स्थिर सरकार बनाने का है

उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड और हरियाणा के बाद अब दिल्ली में भी मतदाताओं ने दिल खोलकर एक ही पार्टी के पक्ष में मतदान किया। उनका यह मत स्थायी सरकार के लिए था। इस बीच महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव हुए। महाराष्ट्र में पहले अलग-अलग चुनाव लड़ी भाजपा और शिवसेना बाद में एकजुट हुई। अब दोनों मिलकर एक मजबूत सरकार चला रहे हैं। उधर जम्मू की जनता ने भाजपा और कश्मीर की जनता ने पीपुल्स डेमोकेटिक पार्टी (पीडीपी) को खुलकर वोट दिया। अब नेताओं ने नहीं उलटा जनता ने राजनीतिक दलों की नब्ज पकड़ ली है। यही कारण है कि 2013 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को 32 और आम आदमी पार्टी को 28 सीटें देने वाली जनता ने इस बार स्थानीय सरकार के लिए अरविंद केजरीवाल की पार्टी के पक्ष में बम्पर मतदान किया। वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश की जनता ने अखिलेश यादव की अगुवाई में प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। उसी साल हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने अपने नेतृत्व में भाजपा को लगातार तीसरी बार जीत दिलाई। इसके  बाद यह संदेश पूरे देश में गया कि स्थायी सरकार से ही विकास होता है। यूपीए की गठबंधन सरकार का हश्र सारे देश ने देखा कि किस तरह गठबंधन के साथी सरकार को सही दिशा में चलने से रोकते हैं। यही वजह थी कि पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में एक स्थिर सरकार बनी। जब ऐसा लग रहा था कि देश में गठबंधन की सरकारों का दौर बना रहेगा। तभी देश की जनता ने उसे नकारना शुरू कर दिया। जनता ने त्रिशंकु विधानसभाओं का भी परिणाम देख लिया है। अब जनता ऐसी सरकारें बनाना चाहती है जिसके साथ पूर्ण बहुमत हो और वह यह बहाना न दे सके हम तो चाहते हैं पर यह हमारे गठबंधन साथी हमें चलने नहीं देते। देश में मतदाताओं का मूड बदल रहा है और यह अच्छी बात है। बहुत हो चुका इस जुगाड़ राजनीति का। इसका अंत होना ही चाहिए और देश की जनता को भी यह बात समझ आ चुकी है। अब अगला चुनाव बिहार में होना है। वहां जनता दल (यू) का गठबंधन होगा और दूसरी तरफ भाजपा नेतृत्व का गठबंधन होगा। देखना यह होगा कि क्या बिहार की जनता भी एक स्थिर सरकार बनाएगी? दूसरी ओर यह भी सही है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत से क्षेत्रीय दलों के हौंसले बढ़ गए हैं। अभी तक मोदी लहर और शाह की रणनीति के सामने खुद को घिरता हुआ समझ रहे राजनीतिक दल दिल्ली परिणाम से हुंकार भरने लगे हैं। क्योंकि आप की जीत ने यह साबित कर दिया है कि मोदी लहर पूरी तरह खत्म हो चुकी है। इस जीत ने बिहार और उत्तर प्रदेश में भी गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस दलों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं और भाजपा से खौफ खाए यह क्षेत्रीय दल अब सीना तानकर खड़े होते नजर आ रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

बिहार का अजीबो-गरीब राजनीतिक संकट

बिहार में इन दिनों एक अजीबो-गरीब राजनीतिक संकट पैदा हो गया है। बिहार में सत्तारूढ़ जेडीयू में नेतृत्व परिवर्तन का फैसला हुआ। कुल 111 में से 97 विधायकों की उपस्थित में वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के स्थान पर नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुन लिया गया। गिनती के हिसाब से जीतन राम मांझी के पास कुल 14 विधायकों का ही समर्थन बचा। लिहाजा जब इतना प्रचंड विधायकों का बहुमत नीतीश के साथ है तो उन्हें पद से हट जाना चाहिए था। लेकिन उन्होंने विधायक दल की इस बैठक को ही अवैध बताते हुए पार्टी का फैसला मानने से ही इंकार कर दिया। उनकी दलील थी कि विधायक दल की बैठक सिर्प वह यानि मुख्यमंत्री ही बुला सकता है। उधर पटना हाई कोर्ट ने उनके इस दावे को सही ठहराते हुए नीतीश को जेडीयू विधायक दल का नेता चुने जाने के फैसले पर रोक लगा दी। पटना हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम में एक नया मोड़ आ गया। हाई कोर्ट का कहना है कि नीतीश कुमार को जनता दल (यू) के विधायक दल का नेता स्वीकार करने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला गलत है, क्योंकि व्यावहारिक रूप से एक नया मुख्यमंत्री चुनने जैसा है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी इस्तीफा न देने पर अड़े हैं और मुख्यमंत्री के साथ बहुमत है या नहीं, इसका फैसला विधानसभा में ही होगा, पर तुले हैं। हालात जिस चरम पर पहुंच गए हैं वहां अब सब कुछ राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के फैसले पर निर्भर है। मांझी कह चुके हैं कि वह 19 या 20 फरवरी को विश्वास मत की परीक्षा के लिए तैयार हैं और वह बहुमत साबित कर देंगे। फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार नीतीश कुमार शायद कुछ जल्दी में है। पटना हाई कोर्ट का फैसला ऐसे समय आया जब नीतीश कुमार दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन करने राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे। महामहिम के सामने अपने समर्थक विधायकों की परेड करवा रहे थे। नीतीश कुमार के पास पर्याप्त विधायकों का समर्थन हो सकता है, लेकिन यह कोई सही तरीका नहीं कि वह विधायकों की परेड राष्ट्रपति के समक्ष कराएं। किसी नेता के पास सरकार बनाने लायक समर्थन है या नहीं, इसका निर्धारण विधानसभा में ही होना चाहिए, न कि राष्ट्रपति भवन में। नीतीश कुमार की इस नई परम्परा डालने के प्रयास को सही नहीं माना जा सकता। बेहतर होता कि वह राज्यपाल के फैसले का इंतजार करते, राज्यपाल के लिए भी यह जरूरी है कि वह दलगत राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर फैसला लें। उनके फैसले में ऐसा कुछ नहीं दिखना चाहिए कि वह संविधान सम्मत ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। बुनियादी मुद्दा यह है कि अगर मुख्यमंत्री के साथ बहुमत होने पर गंभीर संदेह हो तो जल्द से जल्द विधानसभा में फैसला हो, क्योंकि जितना वक्त बीतेगा, विधायकों की खरीद-फरोख्त और राजनीतिक उठा-पटक का मौका मिलेगा।

Friday, 13 February 2015

यह तो राजनीतिक भूकंप है, सियासी जलजला है

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आठ विधायक जीते थे तो लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोदी की रैलियों में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष कटाक्ष करके कहते थे कि कांग्रेसी विधायक एक इनोवा कार में ही सवार होकर विधानसभा जा सकते हैं। अब भाजपा की यह स्थिति बन गई है कि उसके विधायक एक ऑटो में ही जा सकते हैं। 10 लाख के सूट पर 100 रुपए का मफलर भारी पड़ गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत पर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को बधाई देते हुए कहा कि लव जेहाद, घर वापसी, चार बच्चे पैदा करने जैसे मुद्दों को तूल देने की वजह से भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। जिस तरह दिल्ली की जनता ने इन मुद्दों को सिरे से नकार कर भाजपा को एक सबक सिखाया है, उसी तरह उत्तर प्रदेश की जनता भी 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबक सिखाएगी। जहां ग्लोबल मीडिया ने आम आदमी पार्टी की जीत को राजनीतिक भूकंप करार दिया है वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए इंटरनेशनल मीडिया ने कहा है कि जो ऊपर जाता है उसे नीचे आना ही पड़ता है। द न्यूयार्प टाइम्स ने लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के एक साल से भी कम समय में दिल्ली में उसकी हार को हल्का राजनीतिक भूकंप बताया। अखबार ने लिखा है कि लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर मोदी इंडिया के प्राइम मिनिस्टर बने। मंगलवार की हार एक सियासी भूकंप से कम नहीं। वाशिंगटन पोस्ट ने इसे नई भ्रष्टाचार विरोधी आम आदमी पार्टी के हाथों भाजपा की अद्भुत हार करार दिया। अखबार ने लिखा है कि दिल्ली चुनाव ने मोदी को झटका दिया है। सीएनएन नेटवर्प ने मोदी पर तंज कसने के लिए आइजक न्यूटन के भौतिकी के सिद्धांत का जिक्र करते हुए कहा कि जो ऊपर जाता है उसे नीचे आना ही होता है। ग्लोबल मीडिया में केजरीवाल की जीत का इतना जिक्र नहीं जितना मोदी की हार का है। इधर शानदार जीत पर अरविंद केजरीवाल को बधाई देते हुए जद (यू) ने मंगलवार को कहा कि दिल्ली के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को खारिज कर दिया है। जद (यू) के प्रदेशाध्यक्ष ने पटना में कहा कि अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ी लड़ाई जीती है। परिणाम यह भी संकेत देते हैं कि दिल्ली के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की कार्यप्रणाली को खारिज कर दिया है। लोगों ने 10 लाख रुपए का सूट पहनने वाले के मुकाबले सादा जीवन रखने वाले व्यक्ति को प्राथमिकता देकर यह संदेश दिया कि चाय बेचने वाले को 10 लाख रुपए का सूट पहनकर आम आदमी की बात नहीं करनी चाहिए। दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी के तूफान में भाजपा का तो सूपड़ा साफ ही हुआ लेकिन जो दुर्गति 125 साल से ज्यादा पुरानी कांग्रेस पार्टी की हुई उसको शब्दों में बताना मुश्किल है। कांग्रेस के दिग्गज उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। पार्टी ने इस चुनाव में अपना खाता तक न खुलने का तो इतिहास रचा ही साथ ही उसके दो-तिहाई उम्मीदवारों ने जमानत खोकर एक और रिकार्ड बना डाला। दिल्ली में कांग्रेस की किस कदर दुर्दशा हुई है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के 70 में से महज आठ प्रत्याशी ही अपनी जमानत बचा सके यानि 62 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। पार्टी के चेहरे के तौर पर चुनाव लड़ रहे अजय माकन तक अपनी जमानत नहीं बचा सके। कांग्रेस के आधे उम्मीदवार 10 हजार का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए। वहीं 13 उम्मीदवारों को तो पांच हजार से भी कम वोट मिले। किरण वालिया को तो 400 से कम वोट मिले। यह पहली दिल्ली विधानसभा होगी जो कांग्रेसमुक्त होगी यानि एक भी कांग्रेसी विधानसभा में नहीं होगा। कांग्रेस के 130 साल के लम्बे इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी भी प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उसके एक भी उम्मीदवार चुनाव न जीता हो और इतने बड़े पैमाने पर दिग्गजों की जमानत जब्त हुई हो। इस चुनाव में चुनाव से ठीक पहले दल-बदल कर सत्ता हथियाने में लगे प्रमुख राजनीतिज्ञों को नकार दिया है। हारने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एमएस धीर, तीन पूर्व विधायक व तीन पार्षद भी शामिल हैं। वहीं केजरीवाल की हवा में दल-बदल करने वाले छह पार्षद, एक  पूर्व विधायक व विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष विधानसभा में पहुंचने में कामयाब हुए हैं। लोकसभा चुनावों के बाद पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने जो चुनाव लड़ा, जीता है। दिल्ली चुनाव हार गए। 13 साल में इस जोड़ी ने पहली बार चुनाव हारा है। अमित शाह ने 19 साल की उम्र में चुनाव प्रबंधन शुरू किया था। उन्होंने को-ऑपरेटिव से लेकर संसद तक के तीन दर्जन से अधिक चुनाव का प्रबंधन किया है हर बार जीते हैं। दिल्ली में मोदी-शाह-जेटली की तिकड़ी की हार से मोदी विरोधियों के चेहरे खिल गए हैं। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी खासे खुश हैं। आप की सफलता का पहला असर बिहार में दिख रहा है। भाजपा अब जीतन राम मांझी से पल्ला झाड़ चुकी है। इसे जद (यू) की अंदरुनी लड़ाई करार दे रही है। इस चुनाव में सपा, राजद, जद (यू), तृणमूल कांग्रेस, माकपा, जैसी कई पार्टियों ने आप को समर्थन दिया था। अब आप की निगाहें पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पर लगी हैं। इन तीनों राज्यों के चुनाव 2017 में होने हैं। आप के चारों सांसद पंजाब से हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का कहना है कि आप की सुनामी मोदी की लहर से बड़ी है। मैंने केजरी से कहा कि इस बार कुर्सी छोड़ने की सोचना भी मत। यदि मुझे आमंत्रण मिला तो मैं शपथ ग्रहण में जाऊंगा। किरण बेदी के पति ब्रज बेदी ने कहा कि हार के लिए भाजपा वर्पर जिम्मेदार हैं। उन्होंने किरण का साथ नहीं दिया वरना वे क्यों चुनाव हारतीं?

-अनिल नरेन्द्र