Friday 19 June 2015

मोदी के चेहरे पर ही भाजपा लड़ेगी बिहार चुनाव

बिहार के सियासी महाभारत में एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए राजनीतिक दलों में होड़ मची हुई है। सत्ता पाने की होड़ में शामिल राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा से पहले ही चुनाव प्रचार से लेकर वोट प्रबंधन पर पूरा जोर दिया है। वोटों की गोलबंदी के लिए राजनीतिक दलों ने अपने-अपने नेताओं के चेहरे को आगे कर दिया है। बिहार के चुनावी समर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाइटेक प्रचार का कोई भी हथियार छोड़ना नहीं चाहते। उन्होंने बढ़चढ़ कर बिहार अभियान के जरिए खुद को जद (यू)-राजद गठबंधन के नेता के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है वह अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं करेगी। उम्मीद भी यही थी कि महाराष्ट्र, हरियाणा चुनाव की तरह बिहार में भी किसी नेता को भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं करेगी। पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही अपने चुनाव प्रचार का आधार बनाएगी। राज्य के लिए पार्टी के चुनाव प्रभारी अनंत कुमार ने ऐलान किया है कि भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने विकास एजेंडे को प्रचारित करते हुए तीन महीने बाद होने वाले चुनाव में उतरेगी। एक लिहाज से यह चतुराई भरा फैसला है। बिहार के तीखे जातीय समीकरणों के बीच किसी एक जाति का उम्मीदवार कई दूसरी जातियों के लिए विकर्षण का कारण बन सकता था। वैसे भी बिहार में भाजपा के पास कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं है और कई नेता मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हैं। कोई एक ऐसा नहीं जिसके नाम से बिहार भर में वोट मिल सकें। डर यह भी है कि अगर किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता तो असंतुष्ट नेता भीतरघात पर उतर आते। स्वच्छ छवि और अपने खास विकास एजेंडे के साथ नीतीश कुमार आज भी मजबूत शक्ति हैं और जनता दल (यूनाइटेड)और लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल में गठबंधन पक्का होने के बाद सामाजिक समीकरण के मामले में भी भाजपा की राह आसान नहीं रह गई है। इस पृष्ठभूमि में उसकी नैया अपने समर्थक तथा नीतीश-लालू विरोधी मतदाताओं के पूर्ण ध्रुवीकरण से ही पार लग सकती है। भाजपा के रणनीतिकारों ने ठीक ही आकलन किया है कि ऐसी गोलबंदी के लिए जो जोश चाहिए वह सिर्प नरेंद्र मोदी के नाम से ही पैदा हो सकता है। विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को बिहार में 38.77 फीसदी मत मिले थे। क्या एनडीए विधानसभा चुनाव में भी इसे दोहरा सकेगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता वह नहीं जो संसदीय चुनाव के समय थी। इसमें भारी गिरावट आई है। रही-सही कसर ललित मोदी प्रकरण ने निकाल दी। देखना यह होगा कि क्या इस ललित गेट का असर विधानसभा चुनाव में भाजपा को उठाना पड़ेगा? भाजपा के लिए बिहार के चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि लोकसभा चुनावों में उसने बिहार ही नहीं समूचे उत्तर भारत में अपना डंका बजाया था। अगर बिहार में भाजपा के पक्ष में नतीजे नहीं आए तो यह संकेत जाएगा कि मोदी लहर अब रुक गई है और इसका दूरगामी असर होगा।

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