Thursday 25 June 2015

तालिबान का अफगान संसद पर हमला

काबुल में अफगानिस्तान की संसद पर तालिबान आतंकियों का हमला इस देश में मंडरा रहे खतरे की गम्भीरता को नए सिरे से बयान करता है। बेराक यह आश्वस्त करने वाली बात है कि तालिबान को उनकी मंशा पर कामयाब नहीं होने दिया गया पर अफगानिस्तान की संसद को निशाना बनाकर तालिबान ने अपने इरादे तो साफ कर ही दिए हैं कि आने वाले दिन वहां के लिए और अशांत होने वाले हैं। दरअसल तालिबान का दुस्साहस तो पिछले साल के अंत में नाटो फौज की अफगानिस्तान से औपचारिक विदाई के बाद ही बढ़ गया था। सोमवार को संसद पर हुए हमले का निशाना शायद नवनियुक्त रक्षा मंत्री मोहम्मद मासूम सतनीकरजई तो नहीं थे। बीते नौ महीने से देश में रक्षा मंत्री का पद खाली था, राष्ट्रपति अशरफ गनी और पहले उनके पतिद्वंदी और अब सरकार में सहयोगी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच रक्षा मंत्री के नाम पर असहमति की वजह से यह पद अब तक खाली था। पिछले दिनों रक्षा मंत्री के लिए सतनी करजई को नामित किया गया था। सोमवार को उनकी नियुक्ति पर मोहर लगाने के लिए संसद के निम्न सदन से उनका परिचय कराने की पकिया चल रही थी। इसी दौरान संसद पर तालिबान आतंकियों ने हमला किया। यह राहत की बात है कि संसद पर हमले में सासंदों, सुरक्षा बलों के जवान और आम नागरिकों को गंभीर क्षति नहीं पहुंची। यह भी उल्लेखनीय है कि सुरक्षा बलों ने संसद को निशाने बनाने वाले आतंकियों को मार गिराया। सुरक्षा बलों ने जिस मुस्तैदी से आतंकियों के मंसूबे को नाकाम किया है उससे यह स्पष्ट है कि वे तालिबान का सामना करने और उन्हें मुंहतोड़ जवाब देने में समर्थ हो रहे हैं। अलबत्ता अफगानिस्तान के मौजूदा संकट में दो तथ्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती। एक तो यही कि अशरफ गनी ने बेहद चुनौतीपूर्ण समय में अफगानिस्तान का नेतृत्व संभाला है और उनमें मुल्क के तमाम कबिलाई समूहों को साधे रखने की वैसी क्षमता नहीं है जैसी पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई में थी। दूसरा यह कि आईएस के अफगानिस्तान में पैठ बना लेने के बाद तालिबान की यह आकमकता वर्चस्व की लड़ाई में आगे बढ़ने की होड़ भी हो सकती है। हामिद करजई के स्थान पर राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे अशरफ गनी ने पिछले दिनों जिस तरह कथित तौर पर अपनी सुरक्षा मजबूत करने के लिए पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ समझौता किया उससे भारत समेत विश्व समुदाय का चिंतित होना स्वाभाविक है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि हामिद करजई और उनके साथियों के विरोध के बाद अशरफ गनी ने अपने कदम पीछे खींच लिए लेकिन यह रहस्य तो बना ही हुआ है कि आखिर उन्होंने आईएसआई से हाथ मिलाने के बारे में सोचा ही क्यों? तालिबान की मौजूदा आकामकता को न सिर्प पिछले एक दशक में सबसे भीषण हमला बताया जा रहा है बल्कि इस साल के शुरुआती चार महीने में आतंकी हिंसा में वहां करीब 1000 नागरिकों ने जान गंवाई है। मौजूदा स्थिति पूरी दुनियां के लिए अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है। यह पूरे क्षेत्र के लिए खतरा बन गई है।

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