Thursday, 18 June 2015

...और अब जांच के फेरे में आए डिब्बा बंद खाद्य उत्पाद

मैगी नूडल्स में तय मानकों से अधिक सीसा की मात्रा पाए जाने के बाद अब सभी डिब्बाबंद, खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सेंट्रल फूड सेफ्टी रेग्यूलेटर (एफएसएसएआई) ने स्टेट फूड कमिश्नरों से कहा है कि वे मार्केट में उपलब्ध सभी डिब्बाबंद उत्पादों की जांच करें। यह आदेश मैगी को लेकर पैदा विवाद के बीच आया है। देश में सैकड़ों डिब्बाबंद खाद्य उत्पाद बिना रजिस्ट्रेशन के ही बिक रहे हैं। ऐसे में उत्पादों की जांच जरूरी हो गई है। पर इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि भारतीय खाद्य विभाग की ओर से राज्य सरकारों को डिब्बाबंद उत्पादों की जांच का आदेश दिया गया है। इस आदेश के तहत जिस तरह यह कहा गया है कि उन खाद्य पदार्थों के भी नमूनों की जांच हो जो एफएसएसएआई से पंजीकृत नहीं हैं उससे पता चलता है कि देश में ऐसे भी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ बिक रहे हैं जिनकी गुणवत्ता की कहीं कोई जांच-परख नहीं हो रही है। हालांकि डिब्बाबंद आहार से सेहत पर पड़ने वाले पतिकूल पभाव को लेकर पहले कई अध्ययन आए और इनकी गुणवत्ता पर कड़ाई से नजर रखने की जरूरत रेखांकित की गई, पर तब इस मामले में कोई संजीदगी नहीं दिखी थी। रसोईघर में रोज तैयार होने वाले भोजन पर धीरे-धीरे बाजार का कब्जा होता गया है। तरह-तरह की नमकीन, मिठाइयां और दुग्ध उत्पाद के अलावा अचार, चटनी, मुरब्बे, फलों के रस, शर्बत, कटी-कटी सब्जियां, यहां तक कि तैयार रोठी, पराठे, दाल, मांसाहार वगैरह भी पैकेटों में उपलब्ध रहने लगे हैं। शायद ही अब ऐसा कोई परंपरागत भोजन है जिसे पैकेटों में बंद करके बेचने की तरकीब न निकाली गई हो। खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता में खामी का मामला कोई पहली बार सामने नहीं आया है। इस तरह के पकरण रह-रह कर सामने आते ही रहते हैं और उनसे यही पता चलता है कि पेंद्र और राज्यों ने खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता परखने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना रखी है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता की जांच-परख का मौजूदा तंत्र कोई बहुत अधिक भरोसेमंद नहीं है। खाद्य पदार्थ सेहत के लिए हानिकारक हैं या नहीं, इसका परीक्षण करने वाली पयोगशालाओं की स्थिति भी संतोष जनक नहीं है। कई राज्यों में तो इस तरह की पयोगशालाओं में बुनियादी संसाधन ही नजर नहीं आते। देर से ही सही एफएसएसएआई सभी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने तो तत्पर हुआ है। देखना यह है कि इस मामले में कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता बरत पाती है। नामी कंपनियों के पचार और बिकी तंत्र को लेकर कई बार संदेह हुआ है पर उनके पभाव व पहुंच के कारण कभी उन पर जांच की आंच नहीं आई। उपभोक्ताओं के पास खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता जांचने का न तो कोई आसान और पामाणिक साधन है और न ही अदालत में यह साबित कर सकने का तरीका कि कोई चीज खाने के बाद उनके स्वास्थ्य पर पतिकूल असर पड़ा। इसलिए एफएसएसएआई की ताजा पहल ने उम्मीद जगाई है, बशर्ते यह अपनी तर्कसंगत परिणति तक पहुंचे।

öअनिल नरेन्द्र

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