Friday 3 July 2015

क्या दुनिया में फिर आ सकती है 1930 जैसी मंदी?

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन उन विरले अर्थशास्त्रियों में से हैं, जिन्होंने 2008 की आर्थिक मंदी की आहट भांप ली थी। इसलिए मौजूदा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर उनकी इस चेतावनी को गंभीरता से लेना होगा कि विश्व अर्थव्यवस्था एक बार फिर 1930 जैसी भीषण मंदी में फंस सकती है। उन्होंने दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों से कहा कि संकट से निकलने के लिए नए उपाय तलाशने होंगे। लंदन बिजनेस स्कूल में उनके भाषण को इसलिए भी गंभीरता से लिया गया है। उनकी चिन्ता का कारण विकसित देशों की मौद्रिक नीतियां हैं जिनका खामियाजा सबको भुगतना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि हालांकि भारत में हालात अलग हैं, जहां आरबीआई को अभी निवेश प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत दरों में कटौती करनी है। वर्ष 1929 में शुरू हुआ महामंदी का दौर 1939-40 तक चला था। मंदी की शुरुआत 29 अक्तूबर 1929 में अमेरिका के शेयर बाजार में गिरावट से हुई थी। गिरावट का मनोवैज्ञानिक असर इतना हुआ कि लोगों ने अपने खर्च में 10 फीसदी की कटौती कर दी जिससे मांग में बड़ी गिरावट आई। इस दौरान 5000 बैंक बंद हो गए थे। अमेरिका में इसी साल आए सूखे से कृषि पैदावार 60 फीसदी तक घट गई। धीरे-धीरे इस महामंदी का पूरे विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ा और इससे उभरने में काफी लम्बा समय लगा। 2008 की मंदी में अमेरिका-यूरोप के बैंक दिवालिया हुए थे, तो इसके पीछे यह कारण था कि कर्ज लेने के लिए बैंकों से बेतहाशा कर्ज लेने की होड़ लग गई थी। शुक्र है कि अपने यहां कर्ज देने के रिजर्व बैंक के प्रावधान अब भी काफी सख्त हैं, इसलिए अनहोनी की वैसी आशंका नहीं है। पर सिर्प इस वजह से नहीं, राजन की चिन्ता वस्तुत मुद्राओं का अवमूल्यन करने की कोशिश के कारण भी है। मुद्रा का अवमूल्यन कर एक देश को नुकसान होता है तो दूसरा अपना निर्यात बढ़ाता है, मजबूरन उसे भी इस रास्ते पर चलना पड़ता है। महामंदी के दौर में तब की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन करने की होड़ मची थी। रघुराम राजन की चेतावनी सच होती दिख रही है। ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिपरास ने सोमवार को ग्रीस के सभी बैंकों को बंद रखने को कहा है। इसके साथ ही एटीएम मशीनों से पैसा निकालने पर भी पाबंदियां लगा दी गई हैं। सरकार का कहना है कि हफ्तेभर तक बैंकों में कामकाज नहीं होगा। इस दौरान खाता धारकों को दिन में 60 यूरो से ज्यादा निकालने की अनुमति नहीं होगी। लोग बिना पूर्व अनुमति के अपने पैसे को देश के बाहर भी नहीं भेज सकेंगे। राजन के विचार के उलट आईएमएफ अनुसंधान पत्र में कहा गया है कि सिर्प मौद्रिक नीति आसान बनाने को ही वित्तीय अस्थिरता के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। विश्व के समक्ष बड़ी समस्याएं वित्तीय प्रणाली की अस्थिरता की हिफाजत के लिए प्रभावी नियामकीय व्यवस्था के कारण पैदा हुई। सवाल तो यह है कि मौद्रिक नीति और वित्तीय बाजार के मध्यस्थों की निगरानी की व्यवस्था को कैसे संचालित किया जाएगा ताकि भविष्य में संकटों की पुनरावृत्ति न हो।

-अनिल नरेन्द्र

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