Sunday 26 July 2015

नीतीश तो चंदन हैं और सांप कौन है?

प्रतीकों के माध्यम से अपने सियासी प्रतिद्वंद्वियों पर करारे हमले करने में माहिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ताजा ट्विट ने राज्य के सियासी पारे को फिर चढ़ा दिया है। नीतीश ने रहीम के एक चर्चित दोहे के जरिये खुद को चंदन घोषित किया जिस पर लिपटे रहने वाले सांपों के जहर का कोई असर नहीं होता। सांप किसे कहा गया है इसे लेकर दिनभर बयानों एवं अटकलों का बाजार गर्म रहा। यही अंदाजा लगाया गया कि इशारा राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की तरफ था। विरोधियों ने इसे एक नया मौका मान कर खुलेआम बयानबाजी शुरू कर दी। बार-बार गले मिलने और जहर पीकर भी भाजपा का विरोध करने की हद पर नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने वाले लालू के साथ गठबंधन पर नीतीश की दुविधा को आसानी से समझा जा सकता है। लालू के जंगलराज को उखाड़ने वाले विकास पुरुष की छवि बचाना उनकी और पार्टी कार्यकर्ताओं की बड़ी चुनौती है। नीतीश ने लिखाö`जो रहीम उत्तम प्रवृत्ति, का करि सकत कुसंगा। चंदन विष व्याप्त नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।' लालू ने इसे भाजपा के लिए बताया हालांकि उन्होंने नीतीश को इसे स्पष्ट करने की बात भी कही। खुद पर शिकंजा कसते देखकर नीतीश ने भी स्पष्ट किया कि ट्विट लालू के संबंध में नहीं  बल्कि भाजपा के बारे में है। नीतीश और लालू में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दिल से तो एक-दूसरे को पसंद नहीं करते पर सियासी मजबूरी के चलते या यूं कहें भाजपा के बढ़ते कदमों से डर की वजह से दोनों को जबरन हाथ मिलाना पड़ रहा है पर हाथ तो मिल गए हैं, दिल कभी नहीं मिल सकते। इसीलिए नीतीश के प्रचार के पोस्टरों पर लालू का चित्र भी गायब है। जिस पर राजद के रघुवंश प्रसाद सरीखे नेता का कड़ा विरोध और प्रतिक्रिया भी आई है। जन अधिकारी पार्टी के संरक्षक व सांसद राजेश रंजन उर्प पप्पू यादव ने कहा कि पिछले 25 साल से लालू और नीतीश जहरीले सांप की तरह बिहार को डंस रहे हैं। उन्होंने  पत्रकारों से कहा कि नीतीश ने लालू की तुलना सांप से करके अपनी पीड़ा उजागर की है। अब लालू को बताना चाहिए कि उनकी नीतीश के प्रति क्या धारणा है। दोनों जातीय गठबंधन के जरिये बिहार को कौन-सा संदेश देना चाहते हैं? हकीकत तो यह है कि  लालू ने भी जहर पीकर नीतीश को गठबंधन का मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी माना है। ऐसे में सत्ता के अंक-गणित को साधने के लिए किया गया यह बेमेल गठबंधन चुनाव तक व्यवहार के गणित पर कितना खरा उतरता है यह समय ही बताएगा?

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