Tuesday 21 July 2015

क्या सीबीआई जांच में खुलेंगे बड़े घोटाले?

उच्च न्यायालय ने नोएडा के चीफ इंजीनियर रहे बहुचर्चित यादव सिंह की अकूत सम्पत्ति की जांच सीबीआई को सौंप दी है। इस आदेश के बाद यादव सिंह ही नहीं, उससे जुड़े तमाम नेताओं व नौकरशाहों के भी कठघरे में आने की उम्मीद है। 28 नवम्बर 2014 को आयकर विभाग ने यादव सिंह के नोएडा, दिल्ली, गाजियाबाद सहित कई ठिकानों पर छापे मारकर करोड़ों की नकदी व जेवर बरामद किए थे। अरबपति चीफ इंजीनियर को लेकर हंगामा हुआ तो आठ दिसम्बर 2014 को राज्य सरकार ने यादव सिंह को निलंबित कर दिया था। 10 दिसम्बर 2014 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में जांच सीबीआई से कराने के लिए जनहित याचिका दायर की गई थी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ व न्यायमूर्ति एसएन शुक्ला की पीठ ने इसी याचिका पर गुरुवार को फैसला सुनाते हुए जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए हैं। यूपी के धनकुबेर यादव सिंह की काली कमाई का राज जानने के लिए सीबीआई को पिछले 10 सालों के दौरान नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जमीन आवंटन में हुई धांधलियों की भी जांच करनी पड़ेगी। नोएडा फार्म हाउस घोटाला भी इसकी एक अहम कड़ी साबित हो सकती है, जिसमें कई दलों के बड़े नेताओं से लेकर आईएएस, आईपीएस अफसरों व बड़े उद्योगपतियों को बेशकीमती जमीनें कौड़ियों के भाव में बेच दी गईं। यादव सिंह के बारे में चर्चा है कि वह बिल्डरों को जमीन देने के बदले एक लाख रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से कमीशन लेता था। इसी के बूते उसने 20,000 करोड़ से ज्यादा का साम्राज्य खड़ा कर लिया था, ऐसा माना जाता है। यादव सिंह के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश से प्राधिकरण अधिकारियों और कर्मचारियों में खलबली मच गई है। खासतौर पर उन अधिकारियों-कर्मचारियों में जो वर्ष 2002 से 2014 के बीच यादव सिंह के करीबी रहे। भ्रष्टाचार और काली कमाई के आरोपों से घिरे यादव सिंह का विवादों से गहरा नाता रहा है। बसपा सरकार में पॉवरफुल रहे यादव सिंह का प्रमोशन से लेकर ठेकों में सीधा हस्तक्षेप रहा था। सपा सरकार आते ही उनके खिलाफ मनमाने तरीके से ठेके देने को लेकर कोतवाली सेक्टर-39 में 954 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज हुई। छापे से पहले आयकर विभाग को खुद उम्मीद नहीं थी कि उसके हाथ इतना बड़ा `कैच' लग सकता है। मामला सीबीडीटी के जरिए सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी तक पहुंचा और सीबीआई जांच की उम्मीद जगी, लेकिन राज्य सरकार ने इसका पुरजोर विरोध करते हुए न्यायिक जांच बैठा दी। इस बीच यादव सिंह ने कई बार राजधानी आकर अपने राजनीतिक आकाओं से भी मदद मांगी, नतीजतन आठ महीने तक उसे अभयदान मिलता रहा।

-अनिल नरेन्द्र

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