Wednesday 15 July 2015

इन सियासी दलों को पारदर्शिता से परहेज क्यों?

राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकार मान रहे आरटीआई यानि सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने की मांग पिछले कई सालों से उठ रही है। मगर पार्टियां इसे मानने पर राजी नहीं हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा, कांग्रेस सहित छह राजनीतिक दलों को नोटिस जारी कर पूछा है कि उन्हें क्यों नहीं आरटीआई के दायरे में लाया जाए? इन दलों को इस मामले पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह हफ्ते का समय दिया गया है। गौरतलब है कि गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोकेटिक रिफॉर्म ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर मांग की है कि वह सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए अपनी आय के बारे में विस्तृत जानकारी का खुलासा करने को अनिवार्य बनाए। इसमें 20 हजार रुपए से कम चन्दा देने वालों का नाम बताना जरूरी नहीं है, इसलिए राजनीतिक दल बड़ी रकम को छोटी-छोटी राशियों में बांट कर दर्ज कर लेते हैं। जाहिर है कि यह चुनाव आयोग के नियमों से बचने का दरवाजा है जिसका फायदा सभी पार्टियां उठाती रही हैं। केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने जून 2003 में फैसला दिया था कि सियासी पार्टियां सार्वजनिक प्राधिकारी (पब्लिक अथॉरिटी) की परिभाषा के दायरे में आती हैं, इसलिए उन्हें आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाएं देनी होंगी। मगर सियासी दलों ने इस फैसले की अनदेखी की। सीआईसी अर्द्ध न्यायिक व्यवस्था है। अत वह नोटिस भेजने के अलावा पार्टियों के खिलाफ कोई कदम उठाने में अक्षम था, इसलिए पार्टियां उन्हें गंभीरता से नहीं लेतीं पर अब यह प्रश्न देश की सर्वोच्च अदालत ने पूछा है। जाहिर है कि अब पार्टियां इस सवाल को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं। उनकी यह दलील रही है कि आरटीआई अधिनियम पारित करते समय संसद ने सियासी दलों को इसके अंतर्गत नहीं रखने का फैसला किया। विधि निर्माण विधायिका का विवेकाधिकार है। अत किसी कानून की सीमा वहीं तक हो सकती है, जहां तक संसद उसे तय करती है। मगर अब प्रधान न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट एचएल दत्तू, जस्टिस अरुण कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की बैंच के सामने वह अर्जी है जिसमें सियासी पार्टियों को यह हिदायत देने की गुजारिश की गई है कि वे अपने सारे चन्दे का स्रोत घोषित करें। बेहतर होगा कि तमाम सियासी दल केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश का सम्मान करें। अब भी वक्त है कि वे अदालती नोटिस के जवाब में खुद को आरटीआई के तहत लाने का ऐलान कर दें। देर-सबेर तो उन्हें ऐसा करना ही पड़ेगा।

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