Saturday 25 July 2015

...और अब शांता कुमार का लेटर बम

ललित मोदी मामले और व्यापमं घोटाले पर विपक्ष के तीखे हमलों से जूझ रही मोदी सरकार की मुश्किलें उन्हीं की पार्टी भाजपा के वरिष्ठ सांसद ने और बढ़ा दी हैं। इसे भाजपा में फूट का पहला बुलबुला भी कहा जा सकता है। 80 वर्षीय शांता कुमार ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को पत्र लिखकर व्यापमं जैसे भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए पार्टी में लोकपाल की मांग की है। उन्होंने दो टूक कहा कि इस तरह के मामलों में हम सबका सिर शर्म से झुक गया है। हिमाचल प्रदेश से भाजपा के वयोवृद्ध नेता ने कुछ राज्यों पर आरोप लगाते हुए राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व ललित मोदी विवाद और महाराष्ट्र की मंत्री पंकजा मुंडे पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की ओर इशारा किया। हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि एक नीति समिति को लोकपाल की तरह काम करना चाहिए ताकि वह सरकार में नेताओं के आचरण पर नजर रखे। पत्र में लिखे हरेक शब्द को वाजिब बताते हुए शांता कुमार ने कहा कि उनकी पार्टी ने गौरवशाली उपलब्धियां हासिल की हैं। चुनाव में भारी सफलता के बाद एक साल तक सफल तरीके से सरकार चली। लेकिन अब कुछ जगहों पर कुछ दाग पड़ने लगे हैं। शांता कुमार ने अपनी पार्टी की इस पत्र पर नाराजगी के बावजूद कहा है कि उन्हें उठाए गए कुछ मुद्दों पर काफी मंत्रियों का समर्थन भी मिला है। उन्होंने कहा कि कथित रूप से कुछ नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा की छवि खराब हुई है। संसद के मानसून सत्र की कार्यवाही शुरू होने से ठीक पहले सामने आए शांता कुमार के इस पत्र में पार्टी और सरकार दोनों में हलचल होना स्वाभाविक ही है। कहा तो यह जा रहा है कि शांता कुमार उन वरिष्ठ नेताओं में हैं, जो नए दौर में भाजपा के अन्दर अपेक्षित तथा उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। अब चूंकि भाजपा के अनेक प्रभावशाली नेता भ्रष्टाचार या अनैतिक आचरण के आरोपों से घिरे हैं और इसके परिणामस्वरूप पार्टी के लिए सियासी मुश्किलें खड़ी हुई हैं, तो इसके बीच लेटर बम का विस्फोट कर शांता कुमार ने जवाबी चाल चली हैं। मुमकिन है कि इन बातों व दलीलों में कुछ सच्चाई भी हो। इसके बावजूद यहां उल्लेखनीय तथ्य वर्तमान परिस्थितियां हैं, जो शांता कुमार को अपनी भड़ास निकालने के लिए अनुकूल महसूस हुईं। भाजपा नेतृत्व के लिए विचारणीय है कि ये स्थितियां वास्तविक हैं या नहीं? शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं, फिलहाल वह सिर्प सांसद हैं। पार्टी से भारतीय जन संघ के जमाने से जुड़े हुए हैं, इसलिए उपरोक्त पत्र अगर उनकी निजी नाराजगी का इजहार हो, तब भी भाजपा के लिए उचित होगा कि इसमें लिखी बातों पर वह ध्यान दे। खासकर उनके इस सुझाव पर कि पार्टी के अन्दर लोकपाल नियुक्त किया जाना चाहिए, जो भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करे। स्मरणीय है कि पिछले पांच वर्षों में देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। इसकी उपेक्षा करने की कांग्रेस पार्टी ने बहुत भारी कीमत चुकाई है इसलिए भाजपा को इससे सीख लेनी चाहिए और वही गलतियां नहीं दोहरानी चाहिए। सरकार का हनीमून पीरियड पूरा हो चुका है। अब पार्टी के अन्दर असंतोष के स्वर सामने आने लगे हैं। भाजपा नेतृत्व को इनको गंभीरता से लेना चाहिए न कि यह कहकर टाल दें कि यह तो अपने निजी कारणों से पार्टी पर आरोप लगा रहे हैं।

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