Wednesday 29 July 2015

आतंकी हमले से फिर दहला पंजाब

सोमवार 27 जुलाई 2015 हमेशा याद रहेगी। क्योंकि सोमवार को देश को दोहरा झटका लगा। सुबह-सुबह खबर आई कि पाक समर्थित आतंकियों ने पंजाब में गुरदासपुर के दीनानगर में भारी हमला कर दिया है और शाम होते-होते खबर आ गई कि भारत के मिसाइल मैन, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अब इस दुनिया में नहीं रहे। बात करते हैं गुरदासपुर आतंकी हमले की। सेना की वर्दी पहने भारी हथियारों से लैस तीन आतंकियों ने सोमवार को एक चलती बस और एक पुलिस थाने पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं जिसमें एक पुलिस अधीक्षक सहित सात लोग मारे गए तथा 15 घायल हो गए। राज्य में आठ साल बाद पंजाब में यह हुआ पहला हमला था। माना जा रहा है कि यह आतंकी पाकिस्तान से आए थे और जिस तैयारी के साथ आए थे, जो हथियार व असला साथ लाए थे उससे लश्कर--तैयबा की बू आती है। हमलावरों के बारे में हालांकि कोई अधिकृत बयान तो अभी तक नहीं आया लेकिन संदेह है कि वे जम्मू और पठानकोट के बीच बिना बाड़ की सीमा के जरिये या जम्मू जिले के चक हीरा के रास्ते पाकिस्तान से भारत में घुस आए थे। इससे पहले 20 मार्च को जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में जैश--मोहम्मद के आतंकी सेना की वर्दी में एक थाने में घुस आए थे और तीन सुरक्षाकर्मियों समेत छह लोग मारे गए थे। सेना की वर्दी पहने आतंकियों के हमले में चार आम नागरिकों और तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। शहीद हुए पुलिसकर्मियों में पुलिस अधीक्षक (खुफिया) बलजीत सिंह शामिल हैं। बलजीत अपने पिता निरीक्षक अधार सिंह की मौत के बाद वर्ष 1985 में एसएसपी के तौर पर बल में शामिल हुए थे। ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे शहीद एसपी (डिटेक्टिव) बलजीत सिंह के आखिरी शब्दöबातचीत के साथ मोर्चा संभाले एएसआई भूपेंद्र सिंह के मुताबिक आतंकवादियों की गोलियां लगातार एसपी के पास से निकल रही थीं। बलजीत थाने की छत पर एक टंकी के पीछे छिपकर जवाबी फायरिंग कर रहे थे। भूपेंद्र ने उनसे संभल कर रहने के लिए कहा। बलजीत सिंह का जवाब थाöआप मेरी चिंता मत करो और आगे बढ़कर लड़ो...मैं इनको खदेड़ कर ही दम लूंगा। तभी एक गोली बलजीत के सिर के पार हो गई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। कपूरथला के रहने वाले बलजीत सिंह डेढ़ महीने पहले ही प्रमोशन पाकर एसपी बने थे। सोमवार को दीनानगर थाने में फायरिंग की खबर सुनते ही वह वहां पहुंच गए थे। उनके पिता ने भी देश के लिए अपने प्राण त्याग दिए और बेटे बलजीत ने भी। ऐसे सपूतों पर पूरे देश को गर्व है। पंजाब पुलिस के विशेष बल स्वात की तारीफ करनी होगी जो एक बार थाने के अंदर घुसे और तीनों आतंकियों को मारकर ही बाहर निकले। एक रिपोर्ट के अनुसार एक-एक आतंकी को 50-50 गोलियां लगीं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंजाब के इन जांबाज सिपाहियों ने किस दिलेरी से उन पर हमला किया होगा। आतंक की हाई-वे नाम से कुख्यात पठानकोट-जम्मू राजमार्ग पर इस बार हमले की जगह जम्मू से बदलकर पंजाब बेशक कर दी थी मगर इरादे बड़े खतरनाक थे। भारी हथियारों और पूरी रसद-पानी की तैयारी के साथ आए इस शैतानी गिरोह का निशाना इस राजमार्ग से होकर गुजरने वाले अमरनाथ यात्रियों को मारना था लेकिन कश्मीर में बालटाल में बादल फटने के हादसे के बाद अमरनाथ यात्रा को तात्कालिक रूप से रोक दिया गया था। भोले शंकर की कृपा से तीर्थयात्रियों की जानें तो बच गईं लेकिन इसकी कीमत देश के सात सपूतों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। आतंकी कितनी तैयारी से आए थे इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने हमारे सुरक्षा बलों-सेना को सोलह घंटे से अधिक तक फंसाए रखा। विनाश फैलाने के पहले इस आत्मघाती गिरोह का सफाया करने वाले सुरक्षा बलों की दक्षता और बहादुरी तो बेशक काबिल--तारीफ है ही, लेकिन सुरक्षा तैयारियों व खुफिया विभाग की विश्वसनीयता पर जरूर प्रश्नचिन्ह लगता है। पठानकोट-जम्मू हाई-वे कोई साधारण राजमार्ग नहीं है। जम्मू-कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने वाली लाइफ लाइन है। अब सारे देश की नजरें नरेंद्र मोदी सरकार की ओर हैं। देखें वे इस हमले पर क्या जवाबी कार्रवाई करते हैं? क्या अब भी दोस्ती का हाथ बढ़ाएंगे? आतंक ऐसा सियासी मुद्दा नहीं जिस पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाएं। यह समय एकजुट होकर सतर्प रहने का है और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने का है।

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