Friday, 3 July 2015

समलैंगिकता को कानूनी वैधता देने की तैयारी

समाज में ट्रांसजेंडर विवाह के मुद्दे को लेकर घमासान मचा हुआ है। भारतीय संविधान धारा 377 समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखती है। हालांकि दुनिया के कई देशों ने गे मैरिज को स्वीकार कर लिया है और उसके अनुसार इसे अपराध की श्रेणी से हटा दिया है। हाल ही में अमेरिका की शीर्ष अदालत द्वारा अपने देश में समलैंगिक विवाह को वैध ठहराया गया है और यह पूरे अमेरिका में स्वीकार्य हो गया है। आस्ट्रेलिया में मुख्य विपक्षी दल लेबर पार्टी ने समलैंगिकों के विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी एक प्रस्ताव को संसद में पेश कर दिया है। कंजरवेटिव पार्टी के प्रधानमंत्री टोनी एबट के विरोध के बावजूद लेबर पार्टी के प्रस्ताव को संसद में पेश करना पड़ा। आयरलैंड में एक माह पहले जनमत संग्रह में इस तरह की शादियों को भारी बहुमत के साथ समर्थन मिला जबकि इस परंपरागत कैथेलिक देश में दो दशक पहले तक समलैंगिक संबंधों को लेकर काफी भेदभाव किया जाता था। इधर हमारे देश में विधि मंत्री सदानन्द गौड़ा ने मंगलवार को कहा कि भारत में समलैंगिक विवाहों को अवैध करार देने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने का मुद्दा उनके मंत्रालय के समक्ष लंबित नहीं है। उनका यह बयान अमेरिका की शीर्ष अदालत द्वारा अपने देश में समलैंगिक विवाह को वैध ठहराने के बाद आया। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर एक अखबार ने उन्हें गलत उद्धृत किया। उन्होंने कहाöसंवाददाता ने सहमति जताई कि इस मुद्दे पर गलत उद्धृत किया गया। गौड़ा ने कथित तौर पर समाचार पत्र से कहा कि भारत की आईपीसी की धारा 377 को समाप्त कर सकता है और समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने पर विचार कर सकता है। उन्होंने कहा कि जब भी यह मुद्दा आएगा तब हम सिर्प चर्चा के बाद आगे जा सकते हैं। यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है। इसे इतनी आसानी से नहीं किया जा सकता है। समाज की मुख्यधारा से ट्रांसजेंडर समुदाय को जोड़ने और उनके सामाजिक आर्थिक अधिकारों से जुड़े बिल को केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में पेश कर सकती है। यह बात सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्री थावर चन्द गहलोत ने कही। ट्रांसजेंडर के एक कार्यक्रम में शामिल होने आए गहलोत ने कहा कि हमारी संस्कृति हमें भेदभाव करना नहीं सिखाती है। आगामी सत्र में ट्रांसजेंडर के लिए तैयार हो रहे बिल को लोकसभा में पेश किया जाएगा। हालांकि पिछले सत्र में गहलोत ने इससे जुड़े निजी विधेयक को वापस लेने की बात कही थी। हमारा समाज इस तरह के विवाह पर बंटा हुआ है। कुछ लोग इसे बीमारी और आप्रकृतिक संबंध मानते हैं तो  कुछ इसको स्वीकार करने की वकालत कर रहे हैं। ऐसे नाजुक मामले में केंद्र सरकार को जल्दी नहीं करनी चाहिए। सभी संबंधित विचारधाराओं को समझना होगा और फिर जाकर अगर कोई निष्कर्ष निकलता है तो आगे बढ़ने पर विचार हो सकता है। वैसे गे मैरिजें भारत में शुरू हो चुकी हैं चाहे वह गैर कानूनी, अवैध हों।

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