Sunday 12 July 2015

नीतीश और लालू को तगड़ा झटका

बिहार विधान परिषद की 24 सीटों के चुनाव में सत्तारूढ़ जद (यू)-राजद-कांग्रेस महागठबंधन को तगड़ा झटका लगा है। वहीं भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों का उत्साह बढ़ना स्वाभाविक है। इस चुनाव में 152 प्रत्याशियों का राजनीतिक भविष्य दांव पर था। विधान परिषद की स्थानीय निकाय कोटे की 24 सीटों के लिए सात जुलाई को मतदान हुआ था। गोपालगंज में सबसे कम दो प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे जबकि सहरसा में सबसे अधिक 14 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे थे। इस चुनाव में भाजपा गठबंधन से मुकाबले में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस व राकांपा ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा। भाजपा अकेले दम पर जेडीयू-महागठबंधन पर भारी पड़ी। एनडीए ने 14 जबकि जेडीयू गठबंधन ने आठ सीटें जीती हैं। इनमें से भाजपा को 12, एलजेपी-आरएसएसपी को एक-एक सीट मिली है जबकि अन्य को दो सीटें मिली हैं। बिहार विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे इस चुनाव में जीत से भाजपा के हौंसले बुलंद हैं। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि बिहार में भाजपा विधानसभा चुनाव भी जीतेगी। नीतीश और लालू कितना भी बड़ा गठबंधन बना लें, बिहार की जनता ने उन्हें नकार दिया है। इन परिणामों से यह तो साफ नजर आ रहा है कि कागज पर जद (यू)-राजद गठबंधन कितना ही मजबूत हो, भाजपा कुछ मायनों में उससे ज्यादा बेहतर स्थिति में है। विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इन नतीजों से राज्य के मतदाताओं को एक संदेश तो गया ही है, क्योंकि इन चुनावों को सेमीफाइनल कहा जा रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बिहार में अभियान की शुरुआत करेंगे तो उनके सामने इस जीत से उत्साहित भाजपा कार्यकर्ता होंगे। इन परिणामों ने नीतीश-लालू गठबंधन की पोल खोल दी है, हवा निकाल दी है। ऊपरी स्तर पर तो गठबंधन जरूर बन गया लेकिन इस गठबंधन के बीच जमीनी स्तर पर तालमेल का अभाव रहा। यह होना ही था क्योंकि लगभग दो दशक से ज्यादा तो यह पार्टियां बिहार में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ती रही हैं और इस गठबंधन को बने हुए बहुत थोड़ा वक्त हुआ है। जाहिर है कि इन दलों के कार्यकर्ताओं में तालमेल का अभाव नजर आ गया है। यही नहीं, एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे हैं। अब सिर्प नेताओं के गले मिलने से काम नहीं चलता। वर्षों से जद (यू)-राजद एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे हैं। फिर यह भी तय नहीं हो पाया कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। बेशक लालू ने भारी मन से नीतीश को स्वीकार कर लिया हो पर अन्दरखाते अभी भी विरोध चल रहा है। इन परिणामों से यह भी साबित हो गया कि बिहार में भाजपा का जो जनाधार था वह काफी हद तक मौजूद है और विभिन्न जातियों या सत्ता समूहों के साथ उसने जो रणनीति बनाई थी वह अब भी कारगर है। सबसे बड़ा झटका तो नीतीश कुमार को लगा है। उन्हें जो जनसमर्थन की उम्मीद थी वह नहीं मिला यानि वह इतने लोकप्रिय नहीं हैं जितने वह अपने आपको समझते हैं। बेशक विधान परिषद और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं, मुद्दे अलग-अलग होते हैं और विधान परिषद का प्रभाव विधानसभा में भी पड़े जरूरी नहीं पर फिर भी हवा के रुख का तो पता चलता है। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को अगले दो महीने बहुत मेहनत करनी होगी। भाजपा के लिए यह परिणाम शुभ संकेत हैं और पार्टी का उत्साहित होना स्वाभाविक ही है।

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