Friday, 17 July 2015

लोढ़ा कमेटी का दूरगामी व ऐतिहासिक फैसला

क्रिकेट के चमकते चेहरों से नकाब उतर गया। क्रिकेट को कलंकित करने वालों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। आईपीएल में सट्टेबाजी को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस आरएम लोढ़ा कमेटी द्वारा दिए गए फैसले से क्रिकेट की आड़ में चल रहे गोरखधंधे और लम्बे समय से जारी हितों के टकराव से जुड़ी आशंकाओं की ही पुष्टि हुई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित लोढ़ा कमेटी ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आईपीएल की दो चर्चित टीमोंöचेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स की भागेदारी पर दो साल की रोक लगा दी है। साथ ही इन दो बड़ी टीमों के सहमालिक गुरुनाथ मयप्पन (चेन्नई) और राज पुंद्रा (राज) को सट्टेबाजी में लिप्त पाए जाने पर आजीवन क्रिकेट गतिविधियों से प्रतिबंधित कर दिया है। यह फैसला उस बीसीसीआई के मुंह पर तमाचा है जो स्वतंत्र इकाई की दुहाई देकर दादागिरी के अंदाज में क्रिकेट चला रही थी और जिसने आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण में जांच में ईमानदारी नहीं दिखाकर दोषियों को बचाने का काम किया। अगर बीसीसीआई में किसी ने गलत हो रहे काम के लिए आवाज उठाई होती तो आज उसे यह दिन नहीं देखना पड़ता। लेकिन तब सभी आंख मूंद कर अपने आका अध्यक्ष श्रीनिवासन की खुशामद में जुटे थे। असल सवाल भद्र जनों का खेल समझे जाने वाले क्रिकेट की साख का है, जिसे बट्टा लगाने में इसके कर्ताधर्ताओं ने ही कोई कसर नहीं छोड़ी है। इनमें सबसे ऊपर एन. श्रीनिवासन का नाम रखा जा सकता है, जिनके दामाद मयप्पन और राजस्थान रॉयल्स के मालिक राज पुंद्रा पर लोढ़ा कमेटी ने आजीवन रोक लगा दी है। हैरानी की बात यह है कि श्रीनिवासन अपने दामाद को सजा सुनाए जाने और चेन्नई सुपर किंग्स पर दो वर्ष की रोक लगाने के बावजूद नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं, इसके पूर्व कमिश्नर और भारत में वांछित ललित मोदी को लेकर उठे हालिया सियासी तूफान से इतर सच यह है कि इस फैसले ने आईपीएल की परिकल्पना को लेकर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सिर्प श्रीनिवासन और ललित मोदी की मित्रता से बदलती प्रतिद्वंद्विता का नतीजा नहीं है बल्कि लगता है कि आईपीएल को कुछ लोगों ने खड़ा ही इसलिए किया ताकि खेल की आड़ में करोड़ों के वारे-न्यारे किए जा सकें। अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति ब्रिटिश नागरिक राज पुंद्रा जैसे लोगों की इस सट्टेबाजी में संलिप्तता तो यही दर्शाती है कि इसके तार विदेश से भी जुड़े हुए हैं। वैसे समिति के इस फैसले से कई सवाल भी उठ सकते हैं। पहला यह कि दोनों टीमों के खिलाड़ियों को सजा क्यों? दूसरा कि इन टीमों के खिलाड़ियों के भविष्य का क्या होगा? क्या उनकी फिर से नीलामी की जाएगी? तीसरा इन टीमों के नए मालिकों की स्थिति में क्या ये टीमें खेलने की पात्रता हासिल कर सकती हैं। जो स्थिति अब है इसका मतलब यह है कि आईपीएल में सिर्प छह टीमें ही भाग ले सकती हैं। अगले आईपीएल संस्करण में 34 मैच कम हो जाएंगे। इसका सीधा असर फ्रेंचाइजी, बीसीसीआई और प्रसारण अधिकार हासिल करने वालों की कमाई पर पड़ेगा। जस्टिस मुद्गल की रिपोर्ट और जस्टिस लोढ़ा कमेटी के फैसले से बहरहाल यह उम्मीद तो जरूर बंधी है कि सिर्प लीपापोती के लिए कुछ छोटे क्रिकेटरों को टांग दिया जाए, से काम नहीं चलेगा। सट्टेबाजी में लिप्त बड़े लोगों को भी बख्शा नहीं जाएगा। क्रिकेट में स्वच्छता लाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे पर बड़ा सवाल तो यही है कि क्या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड श्रीनिवासन की छाया से बाहर निकल पाएगा? श्रीनिवासन ने अपने दामाद को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी और पूरे मामले को बरी करने का प्रयास किया। अगर वह समय रहते कड़ाई दिखाते तो बोर्ड की साख पर आंच नहीं आती और न ही आईपीएल बदनाम होता।

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