Thursday 16 July 2015

एक बार फिर पलटा पाकिस्तान

रूस के उफा में तीन दिन पहले नए सिरे से बातचीत शुरू करने पर सहमति जताने वाला पाकिस्तान अपनी आदत के अनुसार एक बार फिर मुकर गया है। यूटर्न लेने के लिए मशहूर पाक पधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज ने कहा है कि जब तक कश्मीर का मुद्दा एजेंडा में नहीं होगा तब तक भारत से कोई बातचीत नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपनी गरिमा और सम्मान से कोई समझौता नहीं करेगा। पाक के राष्ट्रीय सलाहकार ने बताया रूस में मोदी और शरीफ के बीच हुई बातचीत किसी वार्ता पकिया की कोई औपचारिक शुरुआत नहीं थी। उसका मकसद दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव कम करने के लिए एक बेहतर सोच बनाना था। नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की रूस के उफा में हुई बातचीत से जगी उम्मीदों को पाकिस्तान ने तीन दिन भी जिंदा नहीं रहने दिया। भारत सरकार ने दोनों देशों के पधानमंत्रियों की मुलाकात की उपलब्धि यह बताई थी कि इससे 26/11 के दोषियों को सजा दिलवाने का मुद्दा फिर एजेंडे पर आया है। मोदी-शरीफ वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में जिक हुआ कि नवंबर 2008 में मुंबई पर आतंकी हमलों के षड्यंत्रकारियों की आवाज के नमूने देने पर पाकिस्तान राजी हो गया है। मगर पाकिस्तान सरकार के लोक अभियोजक ने यह कहते हुए इसका खंडन कर दिया कि ऐसे नमूने देने पर अदालती रोक लगी है। पाकिस्तान ने मुंबई बम कांड के मुख्य साजिशकर्ता और भारत में वांछित आतंकी जकी-उर-रहमान लखवी के मुद्दे पर जिस तरह से रुख बदला है, उससे आतंकवाद के मुद्दे पर उसका दोहरा चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है। उफा में दोनों पधानमंत्रियों के साझा बयान में दोनों नेताओं ने न केवल आतंकवाद के सभी रूपों की आलोचना की थी, बल्कि शांति और स्थिरता कायम करने के लिए इससे निपटने की साझा जिम्मेदारी भी स्वीकार की थी। इतना ही नहीं यह भी आश्वासन दिया था कि मुंबई कांड की सुनवाई तेज करने व आरोपियों के वॉयस सैंपल देने पर भी सहमति जताई थी। लेकिन महज तीन दिन के बाद ही पाक की ओर से जो बयानबाजी हो रही है उससे उसकी कथनी और करनी का फर्क साफ देखा जा सकता है। बची  खुची कसर सरताज अजीज के बयान से पूरी हो गई है। यह अकारण नहीं है कि ठीक इसी समय पाकिस्तानी उच्चायुक्त द्वारा ईद के बहाने कश्मीरी अलगाववादियों को आमंत्रित किए जाने की खबर आई है। इससे पहले भी पिछले वर्ष दोनों देशों के विदेश सचिवों की पस्तावित बातचीत से ऐन पहले भी पाक उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं को आमंत्रित कर भड़काने वाला काम किया था। यह तमाम बयान अच्छे इरादे का संकेत नहीं माने जा सकते। अब यह भारत को तय करना है कि वह कितना संयम दिखाता है। कश्मीर को जबर्दस्ती मुद्दा बनाने की मजबूरी पाक सरकार की हो सकती है, यह भी साबित होता है कि पाक सरकार पाक सेना के हाथों में महज एक कठपुतली है जिसे जब सेना चाहे घुमा सकती है। लेकिन इससे सच्चाई तो नहीं बदल जाएगी। हकीकत तो यह है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता। यह भी हकीकत है कि पाकिस्तान इन जेहादी आतंकी समूहों को हर तरह मदद करने से बाज नहीं आएगा। हमें समझ नहीं आता कि जब तक पाक जमीनी माहौल नहीं बदलता तब तक अमन की बात करने का फायदा क्या है? क्यों हम बार-बार शांति की वार्ता करते हैं

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