Tuesday 7 July 2015

आंकड़े दर्शा रहे हैं ग्रामीण भारत की असलियत

जिस जनगणना का इंतजार पिछले 84 साल से हो रहा था उसके आंकड़े अंतत मोदी सरकार ने जारी कर दिए हैं। लेकिन यूपीए सरकार की शुरू की गई जाति पर आधारित जनगणना पूरी तो हो गई पर उसके आंकड़े जारी नहीं किए गए। सरकार ने पूरे देश के गांवों और शहरों को मिलाकर कुल 24.39 करोड़ घरों-परिवारों में बांटा है। इसमें ग्रामीण घरों की संख्या 17.91 करोड़ है। जो तस्वीर उभरी है उसे लेकर हमारे सभी नीति-नियंताओं को गंभीरता से चिन्तन-मनन करने की जरूरत है। क्योंकि उपलब्ध आंकड़े दर्शा रहे हैं कि जिन गांव-गरीबों-किसानों-मजदूरों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं उनकी स्थिति बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं है। आजादी मिलने के बाद से ही देश में गरीबों और किसानों की स्थिति सुधारने की बातें तो की जाती रही हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सबकी बेहतरी के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की थी, इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था तो लाल बहादुर शास्त्राr ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था तो आज करीब ढाई दशक पहले उदार अर्थ नीति की शुरुआत करने के पीछे यह भरोसा था कि उदारीकरण की लहर ग्रामीण भारत में बदलाव लाएगी पर जमीनी हकीकत कुछ और ही दर्शा रही है। उच्च मध्यम वर्ग की बढ़ती आबादी पर इतराते इस देश के गांवों में अब भी गरीबी है। आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं जिनमें 17.91 करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं, शेष शहरों में। इन 17.91 करोड़  ग्रामीण परिवारों में से 10 करोड़ परिवार हर तरह के अभावों से जूझ रहे हैं। इनमें से लगभग आधे परिवार पूरी तरह भूमिहीन हैं यानि उनका जीवन मजदूरी करके कट रहा है। ये उन 18 करोड़ परिवारों में से हैं जो गांवों में रहते हैं। स्पष्ट है कि गांवों का देश बदहाल स्थिति में है। करीब 18 करोड़ परिवार जो गांव में रहते हैं इनमें से 5.39 करोड़ यानि 30.10 फीसदी खेती पर निर्भर हैं। गांवों की आधी आबादी यानि 9.16 करोड़ परिवार दिहाड़ी-मजदूरी पर जिन्दा हैं। 44.84 लाख परिवार दूसरों के घरों में काम करते हैं। 4.08 लाख परिवार कचरा बीनते हैं और 6.68 लाख परिवार भीख मांगने पर मजबूर हैं। बेशक इस जनगणना से कुछ भ्रम भी दूर हुए हैं। मसलन यह स्पष्ट हुआ कि कुल ग्रामीण परिवारों का करीब 30 फीसदी ही जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है यानि कृषि पर आबादी का बोझ उत्तरोत्तर कम हुआ है, हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि खेती पर कम ध्यान दिया जाए। बल्कि फिलहाल सबसे जरूरी ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलना है ताकि 10 करोड़ वंचित परिवारों को विकास की मुख्य धारा में लाया जा सके। एक लम्बे अरसे से यह महसूस किया जा रहा है कि सरकारी नीतियों को सही ढंग से लागू करने और खास तौर पर उनका लाभ समाज के अंतिम छोर पर खड़े लोगों तक पहुंचाने के लिए शासन-प्रशासन के तौर-तरीकों में बदलाव किया जाए लेकिन ऐसा करने के लिए न तो कोई ठोस प्रयास हो रहे हैं और न ही जमीनी हकीकत बदल रही है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। जब तक हम गांवों की स्थिति को नहीं सुधारेंगे तब तक सही मायनों में भारत आगे नहीं बढ़ सकता। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री ग्रामीण अंचल की स्थिति को बदलने के लिए ठोस प्रयास करेंगे और किसानों की वास्तविक स्थिति बदलेंगे।

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