Thursday, 31 December 2015

मुलायम सिंह यादव बनाम अखिलेश यादव

उत्तर पदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पाटी की अंदरूनी खींचतान बढ़ती ही जा रही है। एक तरफ बाप-बेटे यानी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव में तनातनी चल रही है तो दूसरी ओर कार्यकर्ता और छुटभैया नेता आला कमान को बगावती तेवर दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं। नतीजा यह हो रहा है कि बेचारे अखिलेश अच्छा काम करते हैं तो कोई न कोई उनकी टांग खींच लेता है। मुलायम और अखिलेश में तनातनी का यह आलम है कि सपा मुखिया के पैतृक गांव सैफई में सालाना होने वाला रंगारंग महोत्सव में इस बार मुख्यमंत्री अखिलेश गायब रहे। हालांकि मुख्यमंत्री के सैफई महोत्सव उद्घाटन समारोह में न पहुंचने के बारे में आधिकारिक रूप से तो कोई जानकारी नहीं दी गई लेकिन पाटी सूत्रों की मानें तो अखिलेश पाटी के पदेश अध्यक्ष भी हैं इसलिए हो सकता है कि वे उनके करीबी समझे जाने वाले दो युवा नेताओं सुनील यादव उर्फ साजन तथा आनंद भदौरिया के निष्कासन से रुष्ट हैं। साजन सपा छात्र सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे जबकि भदौरिया लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। एटा के पाटी विधायक रामेश्वर यादव के बेटे सुबोध यादव को भी शनिवार को पाटी विरोधी गतिविधियों के कारण पाटी से निकाल दिया गया है। अठारह साल पहले शुरू हुआ सैफई महोत्सव पदेश में सत्तारूढ़ यादव परिवार का पारिवारिक जलसा माना जाता है जिसके उद्घाटन समारोह में परिवार के सभी सदस्य उपस्थित रहते हैं। पिछली बार भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी सांसद पत्नी डिंपल और बच्चों के साथ उपस्थित थे। यह समारोह 11 जनवरी तक चलेगा जिसमें पाकिस्तानी गायक राहत फतेह अली खां और गजल गायक पिनाज असानी तथा बॉलीवुड के अनेक कलाकार अपने कार्यकम पस्तुत करेंगे तथा कई तरह के सांस्कृतिक कार्यकम होंगे। दरअसल पाटी नेतृत्व राज्य की 74 जिला पंचायतों के अध्यक्ष पदों को जीतने के लिए हरसंभव दांव चल रहा है। पाटी ने अभी तक 69 जिलों के पत्याशी घोषित किए हैं। सहारनपुर जिले में पाटी के नेता आपस में लड़ रहे हैं। ऐसे में नेतृत्व को इस जिले में चुनाव में जीत हासिल करने को लेकर संशय बना हुआ हैं। इधर पाटी द्वारा घोषित उम्मीदवारों को लेकर अधिकतर जिलों में सपा विधायक व अन्य जिम्मेदार नेता ही खुल कर बगावत पर उतर आए हैं। ये विधायक और नेता अपनी पत्नी बेटे-बेटी या भाई-भतीजों को चुनाव लड़वाने की जुगत बैठाने में लगे हैं। जिलों में बगावत इस कदर बढ़ गई है कि विधायक पाटी के घोषित पत्याशियों व उनके परिजनों के साथ मारपीट तक उतर आए हैं। समाजवादी पाटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की बार-बार दी गई नसीहतों के बावजूद समाजवादियों का रवैया गुटबाजी का शिकार है। मुलायम के निर्देश पर शिवपाल कार्रवाई करने में लगे हुए है। इसका सीधा असर अखिलेश सरकार की कारगुजारी पर पड़ रहा है।

-अनिल नरेंद्र

जंगलराज की याद दिलाती बिहार की कानून व्यवस्था

करीब ड़ेढ़ महीने पहले पांचवीं बार बिहार की कमान सम्भालने वाले सुशासन बाबू उर्प नीतीश कुमार की अगुवाई वाले महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी समस्या बिगड़ती कानून व्यवस्था बन गई है जो कि लालू के टाइम के बिहार में जंगलराज की याद ताजा करती है। बिहार में पिछले 4 दिनों में तीन मर्डर हो चुके हैं। बिहार के वैशाली जिले में एक टेलिकॉम इंजीनियर का शव मिला है। अंकित झा (42) नामक इस शख्स का गला रेता हुआ था। पिछले 4 दिनों में यह तीसरे इंजीनियर की हत्या है। दो दिन पहले दरभंगा में एक निजी कंपनी में करने वाले दो इंजीनियरों की दिन-दहाड़े हुई हत्या के बाद विपक्षी दलों को नीतिश कुमार को घेरने का मौका मिल गया है। कहा जा रहा है कि इन तीनों की हत्या रंगदारी नहीं दिए जाने के कारण हुई है। अगर यह सही है तो इससे सुशासन बाबू के दावों की पोल खुलती है। हैरानी की बात यह है कि पदेश में 2005 से सड़क परियोजनाओं से जुड़ी एक निजी कंपनी ने रंगदारी को लेकर उसके इंजीनियरों को धमकाए जाने की न केवल शिकायत की थी बल्कि जिस जगह उनका काम चल रहा है वहां कुछ सुरक्षाकर्मी भी तैनात किए गए थे। जिन्हें बाद में हटा दिया गया। इस घटना ने नवंबर 2003 में राष्ट्रीय राजमार्ग पाधिकरण के युवा होनहार इंजीनियर सत्येन्द्र दुबे की हत्या की याद दिला दी है, जिन्हें बदमाशों ने सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार के खिलाफ पधानमंत्री कार्यालय को शिकायत करने के कारण निशाना बनाया गया था। इंजीनियरों की हत्या से पहले एक सर्जन को भी रंगदारी के लिए धमकाने और उसके घर के नजदीक गोलाबारी करने का मामला सामने आया था। यह सही है कि अभी नीतीश कुमार और लालू यादव को सत्ता संभाले कुछ ही दिन हुए हैं और किसी पकार के निष्कर्ष निकालना सही नहीं होगा पर इससे इतना तो साबित हो ही गया है कि यदि नीतीश बाबू ने अविलम्ब कानून व्यवस्था नहीं सुधारी और हत्याओं का यह सिलसिला जारी रहा तो फिर सभी यह कहने पर मजबूर हो जाएंगे कि बिहार में एक बार फिर जंगलराज लौट आया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन घटनाओं को काफी गंभीरता से लिया है। सोमवार को गृह विभाग की समीक्षा बैठक में उन्होंने पुलिस के आला अधिकारियों से दो टूक कहा कि सरकार काननू का राज कायम करने के लिए ढृढ़ संकल्प है। हर हाल में अपराध की घटनाओं पर लगाम लगाएं। सीएम इतने नाराज थे कि उन्होंने गृह विभाग का पजेंटेशन भी नहीं देखा।  जाहिर है कि नीतिश कुमार के साथ ही लालू पसाद यादव को भी यह समस्या होगी कि उन्हें यह जनादेश विकास और सुशासन के लिए मिला है, जंगलराज  का नहीं। गठबंधन सरकार की पहली पाथमिकता यही होनी चाहिए कि वह अपराधियों और रंगदारी मांगने वाले संगठित गिरोहों को खत्म करे इसी से उसकी साख भी जुड़ी है।

Wednesday, 30 December 2015

खोदा पहाड़ निकली चुहिया, वह भी मरी हुई

खोदा पहाड़ और निकला चूहा, वह भी मरा हुआ। यह हाल हुआ है दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और उनकी आप पार्टी का जो पिछले कई दिनों से केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली को डीडीसीए घोटाले में लिप्त होने का आरोप लगा रहे थे। पिछले कई दिनों से केजरीवाल एंड कंपनी ने न तो प्रधानमंत्री को छोड़ा और न ही अरुण जेटली को और निकला क्या? दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के मामलों में दिल्ली सरकार की खुद की जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। इस सरकारी रिपोर्ट में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली का नाम तक कहीं नहीं है। दिल्ली सरकार के सतर्पता विभाग के प्रधान सचिव चेतन सांधी की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय समिति की 237 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि डीडीसीए पर बड़ी संख्या में आरोपों को देखते हुए बीसीसीआई को इस क्रिकेट संस्था को तुरन्त निलंबित कर देना चाहिए। रिपोर्ट में जेटली का उल्लेख किए बिना समिति द्वारा डीडीसीए में कथित अनियमितताओं के बारे में कई टिप्पणियां की गई हैं। जेटली 1999 से 2013 के बीच जब डीडीसीए के अध्यक्ष थे तो संप्रग शासनकाल में गंभीर धोखाधड़ी की जांच कार्यालय द्वारा की गई। जांच में भी अरुण जेटली के विरुद्ध कुछ नहीं पाया गया था। भाजपा ने राज्य सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति में अरुण जेटली का नाम न आने का हवाला देते हुए दिल्ली सरकार पर सस्ती राजनीति करने का आरोप लगाया। पार्टी ने कहा कि रिपोर्ट आ जाने के बाद या तो केजरीवाल ईमानदारी से अदालत में अपनी गलती स्वीकारते हुए माफी मांगें या फिर मानहानि के तौर पर 10 करोड़ रुपए का जुर्माना भरने को तैयार रहें। रिपोर्ट से साफ हो गया है कि पूरे मामले में मुख्यमंत्री केजरीवाल असत्य राजनीति करते हैं। सबसे दुखद पहलू यह है कि अरविंद केजरीवाल को न तो पद की गरिमा की चिन्ता है और न ही अपनी विश्वसनीयता की। जिस दिन से उन्होंने पदभार संभाला है ऐसे ही अनाप-शनाप आरोप  लगाते आ रहे हैं। भाषा तो बिल्कुल सड़क-छाप स्टाइल की है। अंग्रेजी में कहावत है शूट एंड स्कूट यानि आरोप लगाओ और भाग जाओ। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पर भी इसी तरह आरोपों की बौछार कर दी थी। जब मामला अदालत में आरोपों को साबित करने का आया तो भाग खड़े हुए और अंत में गडकरी से माफी मांगनी पड़ी। इस केस में भी यही होगा। झूठ के पांव नहीं होते, पर शायद श्री केजरीवाल को लगता है कि उनके समर्थकों को इसी प्रकार की भाषा पसंद है। इनका एक मात्र उद्देश्य झूठे आरोप लगाकर मोदी सरकार को बदनाम करने का लगता है। इस चक्कर में वह अपना कितना नुकसान कर रहे हैं इसकी उन्हें फिक्र नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र


विवादों से शुरू हुआ 2015 और विवादों में ही अंत हुआ

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस को बेशक इस साल बिहार में गठबंधन के साथ सत्ता में भागीदारी उसके लिए एक उम्मीद की किरण लेकर जरूर आई पर इसे छोड़ दें तो यह वर्ष पार्टी के लिए संघर्षपूर्ण ही रहा। इस साल की शुरुआत और समाप्ति दोनों कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए अच्छी नहीं रही। दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की आंधी ने भारी जीत हासिल की थी। कांग्रेस के लिए राहत की बात सिर्प इतनी थी कि भाजपा भी बुरी तरह से पराजित हुई। साल की शुरुआत में 56 दिन की अपनी रहस्यमय छुट्टियों के बावजूद राहुल ने पार्टी में अपनी अहमियत बनाए रखी और सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की कमान राहुल की मर्जी के अनुसार कभी भी उन्हें सौंपने के लिए तैयार दिखीं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटों के निम्न स्तर पर पहुंचा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मां-बेटा हौव्वा बने रहे। सरकार और सतारूढ़ भाजपा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर गांधी परिवार पर निशाना साधते रहे। इस साल के दौरान राहुल ने अग्रिम मोर्चा संभाला और वह मोदी और उनके शासन के तरीके व नीतियों के सबसे मुखर आलोचक के रूप में सामने आए। राहुल ने मोदी की सरकार को सूट-बूट की सरकार की संज्ञा देकर सत्तारूढ़ दल को विचलित कर दिया। वर्ष के खत्म होने के कगार पर पहुंच जाने पर नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश सोनिया और राहुल के लिए एक अप्रत्याशित झटका था। राहुल ने इसे 100 फीसदी राजनीतिक प्रतिशोध कहकर खारिज कर दिया, वहीं भाजपा नेताओं ने इसे एक  राष्ट्रीय पार्टी के उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार और विध्वंस पर ध्यान वापस लेकर आने वाला करार दिया। साल के अंत होते-होते सोनिया गांधी के लिए अपनी ही पार्टी की पत्रिका कांग्रेस दर्शन उनके लिए शर्मिंदगी का कारण बन गया। कांग्रेस पार्टी सोमवार को उस समय असहज सिथिति में आ गई जब मुंबई की क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी की ओर से प्रकाशित एक पत्रिका में जवाहर लाल नेहरू की चीन नीति पर सवाल उठाए गए और सोनिया गांधी के पिता को फासीवादी फौजी बताते हुए विवादास्पद टिप्पणियां की गईं। विवाद होने पर पत्रिका कांग्रेस दर्शन के संपादक और मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरूपम ने माफी मांगी और संपादकीय प्रमुख सुधीर जोशी को बर्खास्त कर दिया। कांग्रेस प्रवक्ता टाम वडक्कन ने सफाई दी कि यह हमारा मुख पत्र नहीं है, न ही पत्रिका कांग्रेस की है और यह सब पार्टी के 131वें स्थापना दिवस पर हुआ। कांग्रेस दर्शन के हिन्दी संस्करण में छपे एक लेख में कश्मीर, चीन और तिब्बत की हालत के लिए नेहरू पर दोष मढ़ा गया है। एक अन्य लेख सोनिया के बारे में है। इसमें सोनिया के शुरुआती जीवन के बारे में चर्चा करते हुए उनकी एयर होस्टेस बनने की इच्छा के बारे में लिखा गया है। बताया गया है कि वह किस तरह तेजी से पार्टी अध्यक्ष के पद पर पहुंची। लिखा है, सोनिया ने 1997 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के तौर पर रजिस्ट्रेशन कराया था और 62 दिनों में ही वह पार्टी अध्यक्ष बन गईं। उन्होंने सरकार बनाने की असफल कोशिश की। उनके पिता स्टेफनो मायने के बारे में दावा किया गया है कि वह द्वितीय महायुद्ध में हारी इटली की फौज के सदस्य थे। वह पूर्व फासीवादी सैनिक थे। 2015 का अंत होते-होते यह एक ऐसा विवाद है जो 2016 में भी जारी रहेगा और सोनिया और राहुल को किरकिरी का सामना करना पड़ेगा। नेशनल हेराल्ड केस, रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील आने वाले साल में गांधी-वाड्रा परिवार को सताता रहेगा।

Tuesday, 29 December 2015

हर साल होते हैं नाबालिग बच्चे- बच्चियां हजारों की तादाद में गायब

अपनों की तलाश में करीब 12 साल के  बाद गीता भारत लौटी तो दिल्ली से इंदौर तक खुशियां मनाई जाने लगीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अरविंद केजरीवाल ने न केवल गीता बल्कि उसके साथ आए ईदी फाउंडेशन के सदस्यों से गीता के पाकिस्तान प्रवास का विवरण सुना। गीता तो खुशनसीब है और हाई-प्रोफाइल केस होने के कारण उसे अपने परिजनों से मिलवाने के लिए भारत सरकार व पूरा देश साथ खड़ा हो गया पर आज भी दुख से कहना पड़ता है कि ऐसी सैकड़ों गीता गुमशुदगी के अंधेरे में खोई हुई हैं। उनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। परिवार दर-दर की ठोकरें खाता हुआ उन्हें ढूंढ रहा है। एक स्वयंसेवी संस्था नव सृष्टि ने बच्चों की गुमशुदगी संबंधी जानकारी के लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) का सहारा लिया। जवाब में दिल्ली पुलिस ने बताया कि गत वर्ष एक जनवरी से 31 दिसम्बर 2014 के बीच 18 वर्ष की उम्र तक के 3409 गुमशुदगी के मामले सामने आए। इनमें सबसे ज्यादा संख्या लड़कियों की रही। गत वर्ष 2050 लड़कियां गुमशुदा हुईं जबकि 1359 लड़के। पश्चिमी दिल्ली में सबसे ज्यादा 500 नाबालिग लड़कियां गुमशुदा हुईं, जबकि दूसरे, तीसरे व चौथे नम्बर पर बाहरी, पूर्वी व दक्षिण दिल्ली जिले रहे। जहां से क्रमश 418, 400 और 334 नाबालिग बच्चियां लापता हुईं। राहत की बात यह है कि पुलिस ने 1164 लड़कियों व 843 लड़कों को बरामद करने में सफलता पाई। लेकिन अभी भी 886 लड़कियां और 516 लड़कों समेत 1402 नाबालिग गुमशुदा हैं। इनकी तलाश में दिल्ली पुलिस ने ऑपरेशन मिलाप से लेकर कई अन्य अभियान शुरू किए हैं। हालांकि आरटीआई में सिर्प सात जिलों में नाबालिगों की गुमशुदगी संबंधी आंकड़े दिए गए हैं। स्वयंसेवी संस्था ने बताया कि दक्षिण दिल्ली समेत कई अन्य जिलों ने कोई जवाब नहीं दिया। पश्चिमी दिल्ली में गत वर्ष गुम 323 लड़कियों का अब तक कोई अता-पता नहीं चल सका है। इसी तरह बाहरी दिल्ली की 256, दक्षिणी पूर्वी दिल्ली की 198, पूर्वी दिल्ली की 146, दक्षिणी पश्चिमी से 128, उत्तरी की 92, मध्य जिले से गायब 21 लड़कियों का कोई पता नहीं चला। आज देश में कई ऐसे गिरोह हैं जो नाबालिग लड़कों-लड़कियों का अपहरण कर लेते हैं। लड़कियों को या तो बेच दिया जाता है या फिर उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है।  लड़कों को अपराध की दुनिया में धकेल दिया जाता है। यह गिरोह हर समय ऐसे बच्चों की तलाश में घूमते रहते हैं और जहां कहीं भी बच्चों को अकेला पाते हैं उठा ले जाते हैं। कुछ गिरोह छोटे बच्चों को टॉफी, मिठाई व खिलौने का लालच भी देकर उठा लेते हैं। पुलिस तो अपना काम कर ही रही है पर मां-बाप, समाज को भी ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा। बच्चे कहां हैं, कहां खेल रहे हैं? अनजान लोगों के साथ कहीं भी जाने से रोकना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

रूस हमेशा भारत का भरोसेमंद दोस्त रहा है

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा का महत्व कम नहीं आंका जा सकता है। आज नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन इस समय दुनिया के दो बड़े कद्दावर नेता हैं जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का कई बार परिचय दिया है। इस लिहाज से प्रधानमंत्री मोदी ने सही ही कहा है कि मैं और पुतिन एक जैसे हैं। पीएम ने पुतिन और अपनी राजनीतिक यात्रा के बीच समानता बताते हुए कहा कि पुतिन ने भी 2000 में कमान संभाली थी और मैंने भी साल 2001 में। 2001 में मैंने पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के डेलीगेशन का हिस्सा बनकर बतौर मुख्यमंत्री रूस की यात्रा की थी। वह मेरी और पुतिन की पहली मुलाकात थी। जब भी मैं रूस जाता हूं, मेरे दिमाग में यह ख्याल उभरता है कि मैंने इस यात्रा में थोड़ी देर कर दी। दूसरा मुझ में थोड़ी हिचक भी है। मगर मैं इस बात पर उत्साहित भी हूं कि एक दोस्त के पास जा रहा हूं। संकट में मिले रूस के सपोर्ट पर मोदी ने कहा कि भारत को कभी यह चिन्ता करने की जरूरत नहीं पड़ी कि रूस इस मसले पर हमें सपोर्ट करेगा या नहीं। रूस भारत का एक मजबूत और भरोसेमंद दोस्त रहा है। दोनों देशों के बीच सही अर्थों में सामरिक साझेदारी है। भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक संबंधों का लंबा इतिहास रहा है। रूस कठिनाइयों के समय हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है। समाचार एजेंसी इतर तास ने पुतिन के हवाले से कहाöद्विपक्षीय संबंध सभी क्षेत्रों में बढ़ रहे हैं जिसमें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, आर्थिक और मानवीय क्षेत्र शामिल हैं। कटु सत्य तो यह भी है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन गया। अमेरिका की आदत है कि वैश्विक राजनीति में अपनी छत्रछाया स्थापित करना चाहता है। कभी-कभी भारत भी उसके प्रभाव में आ जाता है, पर अपने हितों के अनुसार वैश्विक राजनीति को चलाना चाहता है। भारत पर वह इसी रणनीति के तहत जायज-नाजायज दबाव डालता रहता है। अमेरिकी डोमिनेंस को तोड़ने का सही तरीका है रूस और भारत व जापान का करीब आना और साझा विदेश नीति अपनाना। सोवियत संघ के टूटने के बाद ब्लादिमीर पुतिन पहले ऐसे रूसी राष्ट्रपति बने हैं जो अपनी बात कहने में कतराते नहीं। उन्होंने मध्य-पूर्व में सीरिया और असद को लेकर अमेरिका को उसकी रणनीति का समर्थन करने पर मजबूर किया। अमेरिका में राष्ट्रपति बराक ओबामा का कार्यकाल समाप्त होने को है। नए राष्ट्रपति के चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि अमेरिका कैसी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति करता है। इस लिहाज से मोदी की रूस यात्रा का विशेष महत्व हो जाता है। हम पीएम मोदी को इस सफल रूस यात्रा पर बधाई देना चाहते हैं। दोनों देशों के आपसी रिश्तों में नई मजबूती आएगी।

Sunday, 27 December 2015

बदमाशों का बढ़ता दुस्साहस ः कोर्ट के अंदर फायरिंग

आजकल इन माफिया और बदमाशों के हौसले कितने बुलंद हो गए हैं कि यह अब अदालत के अंदर भी गोलाबारी से नहीं डरते। राजधानी में अपनी तरह की पहली घटना में मजिस्ट्रेट के सामने कत्ल की वारदात हो गई। जघन्य अपराध में किशोरों को वयस्कों की तरह सजा देने के लिए संसद में कानून पारित होने के ठीक 24 घंटे बाद चार नाबालिगों ने इस दुस्साहसिक घटना को कड़कड़डूमा अदालत में अंजाम दे डाला। बुधवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में रौंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना में हथियारबंद बदमाशों ने कठघरे में खड़े एक गैंगस्टर पर गोलियों की बौछार कर दी। गैंगस्टर को बचाने के चक्कर में दिल्ली पुलिस का हैड कांस्टेबल राम कंवर मीणा शहीद हो गए। वारदात के बाद आरोपियों ने भागने की कोशिश की लेकिन दो बदमाशों को कोर्ट रूम में ही लोगों ने दबोच लिया और पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। अन्य दो बदमाशों को वकीलों ने घेर कर पुलिस के हवाले कर दिया। बताया जा रहा है कि चारों आरोपी नाबालिग हैं। कड़कड़डूमा कोर्ट की छठी मंजिल पर 73 नम्बर कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी सुनील गुप्ता की अदालत में नामी बदमाश इरफान उर्प छेनु पहलवान की पेशी थी। इस बीच एक लड़का वहीं पर ही खड़ा रहा तीनों अन्य ने इरफान की तरफ ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। छेनु ने खुद को बचाने के लिए मीणा को ढाल बना लिया। मीणा को पांच गोलियां लगीं जबकि खुद छेनु को तीन गोलियां लगीं। इस दौरान एक गोली महानगर दंडाधिकारी सुनील गुप्ता के पास से भी गुजरी और वह कोर्ट से भागने पर मजबूर हो गए। कुछ साल पहले अंबाला में विस्फोटकों से लदी एक कार बरामद हुई थी। छानबीन से पता चला कि कार से कड़कड़डूमा कोर्ट की बिल्डिंग को उड़ाने की साजिश थी। साजिश का तब संबंध कोर्ट में चल रहे सिख दंगों से जुड़ा था। तब अदालत की सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी गई थी। जगह-जगह मचान बनाकर कमांडो तैनात किए गए। चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। डीसीपी स्तर के अधिकारी को कोर्ट की सिक्यूरिटी का इंचार्ज बनाया गया। कोर्ट के लिए पुलिस चौकी भी है। इसके बावजूद कोर्ट में हथियार जाना, फायरिंग और मर्डर की वारदात से अदालतों की सुरक्षा पर कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं। कोर्ट के बाहर मजबूत सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। कोर्ट के अंदर जो भी पुलिसकर्मी व अन्य कर्मी होते हैं उन्हें चुस्त रहना पड़ेगा। जो नायब कोर्ट (कोर्ट ड्यूटी पर नियुक्त पुलिसकर्मी) का ज्यादा ध्यान केसों में मलाई काटने में ज्यादा होता है, उनसे सुरक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती है। उनकी जगह नए कर्मियों की तैनाती होनी चाहिए जो अपनी ड्यूटी जिम्मेदारी और चुस्ती से निभाएं। इसके साथ ही पुलिस चौकी का स्टाफ भी बढ़ाने की सख्त जरूरत है। एक कटु सत्य यह भी है कि अब बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि उन्हें वर्दी (यूनीफार्म) का भी खौफ नहीं रहा। न ही अदालत में मजिस्ट्रेट का। दुखद पहलू यह भी है कि हमलावर नाबालिग थे। शुक्र है कि मजिस्ट्रेट साहब इस हमले में बच गए। हम शहीद तीसरी बटालियन के हैड कांस्टेबल राम कंवर मीणा की शहादत को सलाम करते हैं और उनके परिवार के दुख में हम भी शरीक हैं।

-अनिल नरेन्द्र

पुराने भरोसेमंद रूस से रिश्तों में नया आयाम

रूस एक ऐसा देश है जिसने भारत का हमेशा साथ दिया है। कई मौके आए जब भारत अपने आपको अकेला महसूस कर रहा था तब पहले सोवियत संघ ने और फिर बाद में रूस ने भारत को अकेला होने से बचाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा से पुराने दोस्त से नए रिश्तों की ताजगी आ गई। आज एक शक्तिशाली व प्रभावशाली देश में उभर रहे रूस को राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में नई ऊर्जा मिली है। हमारे प्रधानमंत्री की तरह पुतिन भी दिलेर नेता हैं जो कोई भी कदम उठाने से कतराते नहीं। जरूरतों के हिसाब से जो भी कदम रूस के हित में हो उठा लेते हैं चाहे किसी को पसंद आए या नहीं। यह भी सही है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका आज प्राथमिकताओं के लिहाज से प्रथम हो गया है। भारत-रूस की दोस्ती पुरानी और आजमाई हुई है। प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने 16वें भारत-रूस सम्मेलन के अवसर पर रक्षा और परमाणु समझौतों समेत कुल 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। समझौतों के प्रकारों पर गौर करें तो वे मोदी के `मेक इन इंडिया' के मद्देनजर भारत में आर्थिक रूपांतरण को मजबूती देते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जो भी समझौते भारत और रूस के बीच हुए हैं वे रक्षा, ऊर्जा और व्यापार से जुड़े हैं। ऊर्जा-पिपासु देश भारत के लिए परमाणु रिएक्टरों की स्थापना भारत में ऊर्जा को बढ़ाने में मदद देगा जोकि भारत के लिए अत्यंत जरूरी है। वहीं रक्षा क्षेत्र में कामोव 226 हेलीकॉप्टर को देश में बनाने और एस-400 वायु रक्षा तकनीक पाने के साथ-साथ सामरिक जरूरतों के लिए हुए समझौते हमारी रक्षा क्षमता को बढ़ावा देंगे। आज भी हमारी रक्षा क्षेत्र में सबसे ज्यादा निर्भरता रूसी उपकरणों पर है। स्पेयर पार्ट्स भी भारत के लिए जरूरी हैं। जहां तक कारोबार की बात है तो कारोबार भी 10 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 30 बिलियन डॉलर का लक्ष्य रखा गया है। रूसी कंपनियां भारत में अपना कारोबार बढ़ाएंगी जिससे न केवल देश में आर्थिक उन्नति होगी बल्कि नए रोजगार के मौके मिलेंगे। इन समझौतों का वैश्विक सन्दर्भ कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर मध्य एशिया की भू-सामरिक परिस्थितियां जिस तेजी से बदल रही हैं उसमें भारत-रूस मैत्री का अपना ही महत्व है। चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए नरेंद्र मोदी ने जो भारत-रूस और जापान से मिलाकर त्रिगुट बनाया इसमें मदद जरूर करेगा। आईएस के बढ़ते प्रभाव को रोकने में रूस-भारत की सहमति आतंकवादरोधी अभियान में मदद करेगी। रूस के लिए भारत का समर्थन इस समय पुतिन के लिए जरूरी भी है क्योंकि उनके सीरिया में हस्तक्षेप से पश्चिमी देश खासकर अमेरिका नाराज है। मोदी ने संतुलित स्थायी, समावेशी और बहुआयामी विश्व के साझेदार और भारत की सतत तरक्की-प्रगति तय करने में जिस तरह रूस को रेखांकित किया उससे निश्चित ही न केवल भारत-रूस की पुरानी दोस्ती ताजा हुई बल्कि विश्व के इस समय के वह सब नेताओं ने मिलकर सारी दुनिया को नया संकेत दिया है। मोदी की सफल रूस यात्रा की सराहना करते हैं।

Saturday, 26 December 2015

16 साल की उम्र में भी अब कड़ी सजा

अंतत देश और दुनिया को हिलाने वाले जघन्य निर्भया कांड जैसे अपराधों में नाबालिगों के शामिल होने पर उनके खिलाफ वयस्क अपराधियों जैसा बर्ताव करने संबंधी विधेयक को मंगलवार को राज्यसभा ने पारित कर दिया। लोकसभा तो पहले ही इसे पारित कर चुका था। बेशक जुवेनाइल जस्टिस एक्ट नाम से चर्चित यह विधेयक जिन परिस्थितियों में पारित हुआ उस पर संतोष नहीं व्यक्त किया जा सकता। लोकसभा ने इस विधेयक को दो सत्र पहले ही इसी वर्ष मई में पारित कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की हठधर्मिता और जबरन की गई सियासत के कारण सख्त कानून के अभाव में रविवार को ही निर्भया के नाबालिग मास्टर माइंड दोषी को सुधार गृह से मजबूरन रिहा करना पड़ा। जब वह रिहा हो गया और निर्भया के माता-पिता ने प्रभावी ढंग से इसका विरोध किया तब जाकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को होश आया और उन्होंने आनन-फानन में नया विधेयक पारित कर दिया। इस सत्र में भी यह विधेयक तीन बार सूची में चर्चा के लिए दर्ज किया गया, लेकिन विपक्षी दल और खासकर कांग्रेस हंगामा ही करते रहे। यह सारे देश के लिए निहायत शर्म की बात है कि इस सियासत के कारण देश को विचलित और शर्मसार करने वाले दिल्ली के दुष्कर्म कांड में शामिल रहे नाबालिग की रिहाई हो गई। इस विधेयक के कानून बनने पर सात साल या इससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाले जघन्य अपराधों में 16 साल से ऊपर के किशोरों पर वयस्क की तरह केस चलेगा। जिन अपराधों में सात साल या इससे अधिक की सजा का प्रावधान है उन्हें जघन्य अपराधों की सूची में शामिल किया जाएगा। इस विधेयक में जघन्य अपराध करने वाले 16 से 18 साल के किशोरों के खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का प्रावधान सबसे अहम है। इसमें हत्या, दुष्कर्म, अपहरण, डकैती, तेजाब हमले जैसे अपराध को जघन्य माना गया है। हालांकि इन अपराधों के दोषी नाबालिग को अधिकतम सात से 10 साल की सजा होगी। बिल को पेश करते हुए महिला एवं बाल कल्याण विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि इसका मकसद नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले जघन्य अपराधों से निपटना है, साथ ही उन्हें सही रास्ते पर लाने के उपाय भी किए गए हैं। किशोर न्याय बोर्ड यह फैसला करेगा कि बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर मामलों में नाबालिग के शामिल होने के पीछे मंशा क्या थी? बोर्ड तय करेगा कि यह हरकत एडल्ट मानसिकता से की गई या बचपने में। कुछ संशोधन भी लाए गए, लेकिन सभी गिर गए। वैसे बता दें कि कुछ अन्य देशों में इस बाबत क्या कानून हैंöचीन में 14 साल से कम उम्र के किशोर से पूछताछ नहीं की जा सकती। मिस्र में 15 साल से कम उम्र के किशोर को हिरासत में नहीं लिया जा सकता। पाकिस्तान में 18 से कम उम्र के किशोर को हिरासत में नहीं लिया जा सकता। श्रीलंका में 16 से कम उम्र के किशोर की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। बांग्लादेश में 16 से कम उम्र के किशोर की गिरफ्तारी पर रोक है। भारत में बीते वर्ष यानि 2014 में नाबालिगों के खिलाफ देशभर में 38,565 केस दर्ज हुए। यह जानकारी गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में दी। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में  बदलाव वक्त की जरूरत थी, लेकिन यदि उसे समय रहते पूरा किया जाता तो देश में कहीं अधिक संतोष हुआ होता। तीन साल बीतने के बाद भी निर्भया के आरोपी कोर्ट-कचहरी में फंसे हुए हैं। कानून तो बन गया ठीक है पर जब तक हम अपने देश की न्यायिक व्यवस्था नहीं सुधारते ऐसे मामलों में न तो पीड़िता को इंसाफ मिलेगा और न ही दूसरों के लिए सबक। फिर समाज भी अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता। सारा दोष पुलिस-प्रशासन का है यह कहना भी गलत है। स्पष्ट है कि कहीं न कहीं समाज को भी अपनी जिम्मेदारियों की ओर ध्यान देना होगा। इस तरह के अपराधों पर रोक लगाने के लिए घर-परिवार के स्तर पर भी सजगता बरतने और उपयुक्त माहौल का निर्माण करना अति आवश्यक है।

-अनिल नरेन्द्र

बेलगाम कीर्ति आजाद का यही हश्र होना था

आखिर बेलगाम दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद को पार्टी अनुशासन और निर्देशों की अवहेलना करने व अपनी सरकार और पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ा करने के आरोप में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से तत्काल प्रभाव से पार्टी से निलंबित कर दिया गया है। उन्हें पत्र लिखकर पार्टी ने बताया है कि वह पिछले कुछ वर्षों से लगातार विपक्ष के हाथ की कठपुतली बनकर न सिर्प अपने ही शीर्ष नेतृत्व पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं बल्कि संसद में सरकार की भी किरकिरी करा रहे हैं। कीर्ति आजाद को डीडीसीए की वर्किंग कमेटी से बेशक शिकायत हो सकती है और उसके खिलाफ आवाज उठाने में किसी को भी कोई एतराज नहीं हो सकता पर इसकी आड़ में उनका वित्तमंत्री अरुण जेटली को जबरन निशाना बनाने का प्रयास निंदनीय है। अरुण जेटली को यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही क्लीन चिट मिल चुकी है। आज तक कीर्ति आजाद ने एक भी ऐसा दस्तावेज पेश नहीं किया जिससे यह साबित हो कि अरुण जेटली सीधे रूप से डीडीसीए भ्रष्टाचार से जुड़े हों या फिर उन्होंने कोई पैसे का घोटाला किया हो। आज कीर्ति आजाद जो कुछ भी कर रहे हैं उनमें उनकी जेटली के प्रति निजी खुंदस ज्यादा झलकती है। ऐसा लगता है कि अन्य सियासी कारणों (निजी दुश्मनी) से हिसाब-किताब करने में जुटे हैं। जिस तरह से अरविंद केजरीवाल और कीर्ति आजाद एक आवाज में बोल रहे हैं उससे जाहिर है कि वह अंदरखाते मिले हुए हैं। सवाल यह भी किया जा सकता है कि केजरीवाल को डीडीसीए से संबंधित यह दस्तावेज किसने दिए? अरविंद केजरीवाल अब भाजपा व प्रधानमंत्री को कीर्ति आजाद को पार्टी से निलंबित करने पर हायतौबा मचा रहे हैं क्या वह यह बताएंगे कि उनकी पार्टी में बागियों से क्या व्यवहार होता है। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को किस तरह गालियां देकर, बेइज्जत करके निकाला था शायद वह भूल गए हैं। आज आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के लिए कीर्ति आजाद आंखों का तारा बन गए हैं। पहले संगठन महामंत्री राम लाल और फिर खुद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के समझाने के बावजूद कीर्ति ने प्रेसवार्ता भी की और लोकसभा में वित्तमंत्री के बयान के बाद चुप रहने की बजाय एसआईटी जांच की मांग भी कर डाली। शाह और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जेटली पर भरोसा और उनके पीछे खड़ा होने की बात कह चुके हैं, लेकिन कीर्ति का रुख बगावती बना हुआ है। कीर्ति को लिखे पत्र में पार्टी ने कहा है कि उनके आचरण के कारण बेवजह पार्टी की किरकिरी हुई है। यह तो सभी मानेंगे कि अनुशासन किसी भी पार्टी और व्यक्ति के लिए जरूरी है, लेकिन कीर्ति ने इसकी अवहेलना की है जिससे यह आशंका की पुष्टि होती है कि वह विपक्ष के हाथ मोहरा बन गए हैं। कीर्ति आजाद को पार्टी से इसलिए निलंबित किया गया है कि उन्होंने चेतावनियों के बावजूद बार-बार पार्टी का अनुशासन तोड़ा है न कि इसलिए कि वह भ्रष्टाचार एक्सपोज कर रहे हैं। अरुण जेटली बार-बार यह कह चुके हैं कि यदि डीडीसीए में अगर कोई भ्रष्टाचार या अनियमितताएं हुई हैं तो उसके लिए वह जिम्मेदार नहीं हैं। अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पांच अन्य नेताओं के खिलाफ बाकायदा पटियाला हाउस कोर्ट में दीवानी और फौजदारी मानहानि के मामले दर्ज कराए हैं और क्षतिपूर्ति के तौर पर 10 करोड़ रुपए की मांग की है। अगर दिल्ली के सीएम और कीर्ति आजाद के पास जेटली के भ्रष्टाचार के दस्तावेजी सबूत मौजूद हैं तो अदालत में साबित करें। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। यूं एक सम्मानित, वरिष्ठ नेता को अपमानित करने से  बाज आएं।

Friday, 25 December 2015

बदरपुर पॉवर प्लांट बंद करने से ब्लैकआउट की संभावना?

कभी-कभार जल्दबाजी और दबाव में लिया गया निर्णय बहुत महंगा साबित हो सकता है। अब दिल्ली सरकार और उनके पॉल्यूशन कंट्रोल मिशन का भी ऐसा ही होने वाला है। एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) और दिल्ली हाई कोर्ट के सख्त रुख के बाद केजरीवाल सरकार ने बदरपुर और राजघाट थर्मल प्लांट को बंद करने का फैसला तो झट से ले लिया, पर एनटीपीसी की रिपोर्ट तो एक अलग खौफनाक तस्वीर पेश कर रही है। वर्तमान में बदरपुर थर्मल पॉवर प्लांट का संचालन नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (एनटीपीसी) द्वारा किया जा रहा है। यह पॉवर स्टेशन 759 मेगावॉट उत्पादन की क्षमता वाला है। वर्तमान में यहां पर करीब 550 मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। हालांकि दिल्ली सरकार की नजर में यहां से 250 से 300 मेगावॉट बिजली की पैदावार हो रही है। इस बात के मद्देनजर दिल्ली सरकार ने पॉल्यूशन कंट्रोल मिशन के तहत बदरपुर पॉवर प्लांट को बंद करने का निर्णय ले लिया। इसके पीछे लगता है कि सरकार की सोच यह है कि इतनी बिजली बाहर से खरीद लेंगे। इससे बजट पर इतना असर नहीं पड़ेगा कि सरकार उसे वहन न कर सके। यानि सरकार की नजर में इसे बंद करना कोई ज्यादा मुश्किल फैसला नहीं है। चार नवम्बर को इस बारे में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव केके शर्मा ने भी कहा था कि बदरपुर थर्मल पॉवर प्लांट को बंद करने से होने वाली क्षतिपूर्ति की भरपायी कर ली जाएगी। सरकार की इस नीति को देखते हुए दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने बदरपुर थर्मल पॉवर प्लांट को नोटिस जारी कर पूछा था कि आपके थर्मल स्टेशन से दिल्ली प्रदूषित हो रही है, क्यों न 15 मार्च 2016 तक इसे बंद कर दिया जाए? इस पर एनटीसी ने गुरुवार को अपना जवाब भेज दिया है। पॉवर स्टेशन की ओर से जवाब में कहा गया है कि इस प्लांट की वजह से प्रदूषण नहीं फैल रहा है। प्लांट में प्रदूषण से निपटने के नार्म्स पूरे हैं। इसके बाद भी एनटीपीसी ने इसे बंद किया तो दिल्ली में बिजली की किल्लत उत्पन्न हो सकती है। यह किल्लत आईसलैंडिंग सिस्टम की वजह से होगी। दरअसल 30 और 31 जुलाई 2012 को उत्तर भारत में ग्रिड फेल हो जाने के बाद दिल्ली ने घंटों का ब्लैकआउट झेला था। अगर सरकार फिर भी अपने निर्णय पर अडिग रही तो दिल्ली को वर्ष 2012 की तरह ही ब्लैकआउट का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली सरकार पहले तो यह जानकारी प्राप्त करे कि यह थर्मल प्लांट क्या वाकई ही प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है? क्या यह प्रदूषण कंट्रोल नियमों का पालन कर रहे हैं? अगर नहीं तो क्या इन्हें और सख्त किया जा सकता है? पहले वैकल्पिक व्यवस्था का प्रबंध करना बेहतर होगा।

-अनिल नरेन्द्र

बहुविवाह के लिए कुरान की गलत व्याख्या न करें ः अदालत

वैसे तो हमारे मुस्लिम समाज में बहुत जागृति आ चुकी है और आमतौर पर हमारे अधिकतर मुसलमान भाई एक ही शादी करते हैं पर फिर भी कुछ कम पढ़े-लिखे पिछड़े वर्ग से जुड़े मुसलमान आज भी एक से ज्यादा शादियां करते हैं और ऐसा करने के लिए कुरान शरीफ का गलत सहारा लेते हैं। हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय ने इस सिलसिले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। गुजरात हाई कोर्ट ने कड़े शब्दों में आदेश जारी करते हुए कहा कि एक से ज्यादा पत्नियां रखने के लिए मुस्लिम पुरुषों द्वारा कुरान की गलत व्याख्या की जा रही है और ये लोग स्वार्थी कारणों के चलते बहुविवाह के प्रावधान का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। न्यायाधीश जेबी पारदीवाला ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है जब देश समान नागरिक संहिता को अपना ले क्योंकि ऐसे प्रावधान संविधान का उल्लंघन हैं। न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता की धारा 494 से जुड़ा आदेश सुनाते हुए यह टिप्पणी की। भारतीय दंड संहिता की यह धारा एक से ज्यादा पत्नियां रखने से जुड़ी है। याचिकाकर्ता जफर अब्बास मर्चेंट हाई कोर्ट से सम्पर्प करके उसके खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करने का अनुरोध किया था। पत्नी ने आरोप लगाया था कि  जफर ने उसकी सहमति के बिना किसी अन्य महिला से शादी की है। प्राथमिकी में जफर की पत्नी ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा (494) (पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दोबारा विवाह करना) का हवाला दिया। हालांकि जफर ने अपनी याचिका में दावा किया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ मुसलमानों को चार बार विवाह करने की अनुमति देता है और इसीलिए उसके खिलाफ दायर प्राथमिकी कानूनी जांच के दायरे में नहीं आती। जज पारदीवाला ने अपने आदेश में कहाöमुसलमान पुरुष एक से अधिक पत्नियां रखने के लिए कुरान की गलत व्याख्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुरान में जब बहुविवाह की अनुमति दी गई थी तो उसका एक उचित कारण था। आज जब पुरुष इस प्रावधान का इस्तेमाल करते हैं तो वे ऐसा स्वार्थ के कारण करते हैं। बहुविवाह का कुरान में केवल एक बार जिक्र किया गया है और यह सशर्त बहुविवाह के बारे में है। अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ मुसलमान को इस बात की अनुमति नहीं देता है कि वह एक पत्नी के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार करे, उसे घर से बाहर निकाल दे, जहां वह ब्याह कर आई थी और इसके बाद दूसरी शादी कर ले। हालांकि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए देश में कोई कानून नहीं है। इस देश में कोई समान नागरिक संहिता नहीं है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आधुनिक, प्रगतिशील सोच के आधार पर भारत को इस प्रथा को त्यागना चाहिए और समान नागरिक संहिता की स्थापना करनी चाहिए। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दूसरी ओर कहा कि देश के मुसलमान न्यायपालिका का सम्मान करते हैं, लेकिन शरई मामलों में अदालतों का हस्तक्षेप गैर जरूरी है, जिसे किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लॉ बोर्ड के सचिव व इस्लामिक निकाह एकेडमी के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि कानून बनाना अदालतों का काम नहीं है। बदलते समय के साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव किए जाने की जरूरत है, गलत है। कहा कि वह न्यायालय का सम्मान करते हैं, लेकिन अदालतों को अपनी हद पार करने की जो कोशिश की जा रही है वो चिंता का विषय है। देश में इस समय मुसलमानों को बेवजह परेशान करने की कोशिश की जा रही है, जो निंदनीय है। मौलाना ने सुप्रीम कोर्ट के मुस्लिम पर्सनल लॉ के तलाक व बहुविवाह के मसले की वैधता सुनवाई करने के फैसले पर कहा कि कानून बनाना न्यायपालिका का काम नहीं है। संविधान के मुताबिक देश के मुसलमानों को जो हक दिए गए हैं, उनकी खिलाफ वर्जी किसी भी देश में उचित नहीं है।

Thursday, 24 December 2015

बड़वानी में 40 मरीजों की आंखों की रोशनी जाने का जिम्मेदार कौन?

स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में पहले से ही लचर मध्य पदेश पर कुछ समय पहले एक और कलंक लग गया। बड़वानी में हुए आंख फोड़वा कांड ने पदेश ही नहीं पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। शुरुआती जांच में 63 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई और एक वजह थी घटिया स्तर की दवा का उपयोग। लोगों की आंख की रोशनी छीनने वाला मध्य पदेश का स्वास्थ्य महकमा कठघरे में तो है ही साथ ही वहां के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा जनता को गुमराह करने में लगे हुए हैं। वे अपनी जिम्मेदारी से बचने के पयास में लगे हुए हैं। उनकी दलील है कि भोपाल से खरीद नहीं होती है जबकि कटु सत्य यह है कि पदेश भर के सरकारी अस्पतालों में 80 फीसदी खरीद भोपाल से ही हो रही है। इसकी पुष्टि स्वास्थ्य महकमे के सीएमएचओ करते हैं। वे कहते हैं कि दवा खरीदी, दवा कंपनी का चयन और भुगतान भोपाल से होता है। सच कौन बोल रहा है स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा या जिलों के सीएसएचओ ? सरकार ने पदेश के डाक्टरों को मार्केटिंग अफसर बना रखा है। ऑपरेशन के लिए टारगेट दिए जाते हैं। डॉक्टरों पर ऑपरेशन का टारगेट पूरा करने का इस कदर दबाव रहता है कि 15 मिनट में दो-दो मरीजों की सर्जरी हो जाती है। इस दौरान छोटी जगहों पर उपकरणों और ऑपरेशन थिएटर के स्टेराइलेशन में चूक होने की आशंका रहती है क्योंकि इस समय डाक्टर का ज्यादा ध्यान मरीजों की संख्या पर रहता है। आंखों के ऑपरेशन गांवों में शिविर लगाकर नहीं किए जाते। डॉक्टरों के टारगेट (6500 ऑपरेशन) को पूरा करना होता है। सरकार ने पिछले महीने ही 400 दवाओं को अचानक सूची में डाल दिया था। इसमें वे दवाएं भी थीं जिनका उपयोग बड़वानी में किया गया था। बताया जाता है कि जिलों में दवा पाप्ति के बाद तीन दिन के भीतर इसकी अधिकृत लैब से जांच करानी होती है और रिपोर्ट की जानकारी संचालनालय को भेजी जाती है। पर अफसरों को इसकी फिक नहीं। बड़वानी मामले में भी यही हुआ। जब तक जांच रिपोर्ट आती, तब तक दवा मरीजों को दी जा चुकी थी। हालांकि अब सरकार ने खुद को बचाते हुए 17 दवाओं को ब्लैक लिस्ट कर दिया है। बड़वानी जिला के सरकारी शिविर में मोतियाबिंद का ऑपरेशन फेल होने के बाद अरविंदो अस्पताल में इलाज करा रहे मरीजों को गलत दवा देने के कारण  अपनी आंखों की रोशनी गंवानी पड़ी। एम्स के नेत्र रोग विशेषज्ञों की टीम ने साफ कर दिया कि 40 मरीजों की आंखों की रोशनी अब नहीं आ सकती है। विशेषज्ञों ने बताया कि आंखों में डाला गया लिक्विड साल्यूशन मानक स्तर का नहीं था। बड़वानी के नेत्र शिविर के पीड़ितों को बेशक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वेच्छानुदान से हर पीड़ित को 2 लाख रुपए की सहायता राशि तो देने की स्वीकृति दी पर इससे उनकी आंखों की रोशनी तो नहीं लौटेगी?
-अनिल नरेंद्र


रोहतक का निर्भया कांड

हरियाणा के रोहतक शहर में नेपाली युवती से सामूहिक दुष्कर्म ने एक बार फिर दिल्ली के बसंत विहार निर्भया कांड की याद ताजा कर दी है। फरवरी 2015 को शाम पांच बजे गांव गद्दी खेड़ी के मोड़ पर ढाबे में नेपाली किशोर सहित पांच आरोपी शराब पी रहे थे। तभी हिसार रोड़ पर जा रही नेपाली युवती को देखा। शीलू, सुनील माडा, पवन और पदम लड़की को उठाकर गांव के मोड़ पर बने कोठरे में ले गए। इसके बाद उन्होंने मनवीर, सोमबीर, सरवर और घुचड़ू को वहां बुला लिया। सभी ने शराब पी और युवती के साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद लड़की को ड़ेढ़ किलोमीटर दूर दूसरे सुनसान कमरे में ले गए और फिर वहां भी दुष्कर्म किया। भेद खुलने के डर से युवती के सिर में ईंट मारकर उसकी हत्या कर दी और उसके शरीर में नुकीले पत्थर डाल दिए। रोहतक की एडीजे सीमा सिंघल ने इसे रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस बताया। साथ ही कहा कि मैं महिला हूं। इस लड़की की चीखें सुन सकती हूं और दर्द समझ सकती हूं जो इन दरिंदों ने इसे दिया है। इनके लिए फांसी भी कम है। सभ्यता जितनी आगे बढ़ी है, जितनी तरक्की हुई है, हम दिमागी रूप से उतने ही पीछे चले गए हैं। समाज में बड़े स्तर पर जेंडर वायस्डनेस है। पुरूष समझते हैं कि इन हरकतों से औरतों को दबाया जा सकता है। लेकिन आज समाज को संदेश देना है कि औरतें कमजोर नहीं हैं। वे किसी के सामने दबने और झुकने से इंकार करती हैं। निर्भया या दामिनी बनने से भी मना करती हैं। उन्हें अपनी पहचान पर गर्व है, किसी भी कीमत पर इसे छोड़ने को भी तैयार नहीं हैं। शर्मिंदगी औरतों को नहीं उन मर्दों को होनी चाहिए जो ऐसी हरकतें करते हैं। इस तरह के जुर्म शरीर को नहीं आत्मा को चोट पहुंचाते हैं। शरीर के तो नहीं, पर इस फैसले से आत्मा के घाव मिटाने की कोशिश कर रही हूं। यह बताने की कोशिश कर रही हूं कि औरत बेबस नहीं। आज फैसले में ढील रखती हूं तो महिला से मृत्यु के बाद भी अन्याय होगा। जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया गया उसमें फांसी की सजा भी कम है। सजा सुनाए जाने से पहले ये टिप्पणियां कीं एडीजे सीमा सिंघल ने। फास्ट ट्रेक कोर्ट में सोमवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सातों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है। सम्भवत सरकारी वकील की मानें तो देश में किसी भी कोर्ट ने हत्या और गैंगरेप के सात दोषियों को एक साथ फांसी की सजा नहीं सुनाई। मृतका की बहन ने फैसले के बाद कहा कि फांसी की सजा सुनाए जाने से राहत तो मिली है पर चैन उस दिन मिलेगा जब इन सातों को फांसी पर लटकाया जाएगा।

Wednesday, 23 December 2015

The US bends, provided the bender has the Guts

The US bends provided the bender has the guts to do so.  I am talking about the US and Russia.  Since the Russian President Vladimir Putin has come to the Party in Syria-Iraq against the Islamic State the dice is overturning slowly.  The attacks on IS are increasing.  So far the US maintained its insistence that President Bashar-Al-Assad of Syria will have to step down for the sake of peace in the region.  On the other hand Putin insisted that Assad will continue and will take over the command against IS.  At last US had to bow to Russia on Assad issue.  US Foreign Secretary John Kerry accepted the prolonged demand of Russia that the future of President Assad’s should be decided only by the people of Syria.  Muslim nations’ front against IS seems to be a little visible now with some Muslim Nations having decided finally to fight the IS, terror in the entire world in the name of Islam.  34 nations under the leadership of Saudi Arabia have declared to form a military alliance against the IS.  The combined operation command of the alliance will be set up in Riyadh, the capital city of Saudi Arabia.  Briefing the formation of Islamic Military Alliance, the official communication agency of Saudi Arabia said that the alliance was needed because it is must to face terrorism at all stages and it needs cooperation at various levels.  Rival of Saudi Arabia and Shiiite Iran is not involved in this military alliance of Muslim Nations.  It is notable that Iran’s policy is quite different from Sunni Nations.  It supports the regime of Shia President of Syria, Basher-al-Assad and has sent its forces in Syria to support Asad.  It keeps supporting Shia Hudi rebels in Yemen while Saudi Arabia is conducting military expeditions against them.  Pakistan, Turkey, Maldives, Malaysia, UAE, Egypt and Qatar are included in this Islamic Nations alliance.  Libya and Yemen facing civil war are also included in it.  African Muslim-majority nations like Mali, Chad, Somalia and Nigeria are also included in the alliance.  However Pakistan is surprised as to how Saudi Arabia has included its name in the military alliance of 34 Muslim nations without seeking its consent?  As per Dawn’s report Pakistan;s Foreign Secretary Ezaaz Chowdhary said that he is surprised with the news that Saudi Arabia has included Pakistan in the alliance.  This is not the first instance when Saudi Arabia has included Pakistan without its consent.

(ANIL NARENDRA)

वाड्रा के बाद अब हुड्डा का नम्बर है

कांग्रेसी नेताओं को घेरने की रणनीति आगे बढ़ती दिख रही है। अब लगता है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बारी है। पंचकुला में औद्योगिक प्लॉट आवंटन घोटाले में हरियाणा विजिलेंस ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा समेत तीन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। हुड्डा पर 14 चहेतों और रिश्तेदारों को नियमों की अनदेखी कर प्लॉट आवंटित करने का आरोप है। यह कार्रवाई विजिलेंस की जांच कर रहे एडवोकेट बलदेव राज महाजन की सिफारिश पर हुई है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश भी कर दी है। स्टेट विजिलेंस ब्यूरो के हालांकि एक सीनियर अफसर ने बताया कि प्राथमिकी में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम नहीं है। लेकिन 13 लाभार्थियों के अलावा नागल प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य वित्त अधिकारी एससी कंसल और अफसर बीबी तनेजा के नाम हैं। खट्टर ने कहा कि प्लॉट आवंटन मामले में कानून अपना काम करेगा और अपने अनुसार कार्रवाई करेगा। वहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसे राजनीतिक द्वेष से की गई कार्रवाई बताया। आरोपियों पर पद का दुरुपयोग करने, धोखाधड़ी, जालसाजी, कम मूल्यों से  प्लॉटों का आवंटन समेत 11 आरोप हैं। हुड्डा के साथ-साथ सभी के खिलाफ आठ धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। विधानसभा में विपक्षी दल इनेलो ने भारी विरोध किया था। भाजपा ने सत्ता में आते ही जांच विजिलेंस को सौंप दी। लंबी जांच के बाद विजिलेंस ने इसमें काफी अनियमितताएं पाईं। इसके बाद रिपोर्ट एजी को सौंप दी थी, उन्होंने रिपोर्ट पर यह कार्रवाई की है। वर्ष 2011 में हुड्डा सरकार ने पंचकुला में औद्योगिक प्लॉट आवंटन के आवेदन मांगे थे। इसके लिए 582 लोगों ने आवेदन किए थे। विजिलेंस की जांच के अनुसार तत्कालीन उपाधीक्षक, हुडा बीपी तनेजा के नियमानुसार पात्र आवेदकों के नाम फाइनल नहीं किए। इसकी जगह 13 लोगों की लिस्ट दी और अपने अधीनस्थ काम करने वाले कर्मचारियों से इन नामों को फाइनल करने के लिए कहा। जांच में आवेदन में भी गड़बड़ी पाई गई। एजी बलदेव राज महाजन ने कहा कि प्लॉट आवंटन के लिए नई नीति की मंजूरी चेयरमैन भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दी। इसी से हुड्डा ने अपने करीबियों को प्लॉट बांटे। यही उनके खिलाफ एफआईआर का सबसे बड़ा आधार है। बता दें कि हरियाणा सरकार सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ आरोपों की जांच पहले से ही कर रही है। वाड्रा की लैंड डील के बाद प्लॉट अलॉटमेंट के आरोप में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को घेरने की तैयारी है। बेशक हरियाणा सरकार कानून अनुसार काम कर रही है पर कांग्रेसियों का तो यही कहना है कि यह राजनीति से प्रेरित बदले की कार्रवाई है।

-अनिल नरेन्द्र

क्रिकेट की खातिर डीडीसीए का शुद्धिकरण जरूरी है!

पूर्व क्रिकेटर और भाजपा सांसद कीर्ति आजाद ने रविवार को अपनी बहुचर्चित प्रेस कांफ्रेंस कर दिल्ली एंड डिस्ट्रिक क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) घोटाले के संबंध में जो खुलासे किए हैं वह बेशक पुराने हों पर हां उन्हें इतनी आसानी से नकारा भी नहीं जा सकता। आजाद ने अपनी दलीलों के समर्थन में कई ऐसे साक्ष्य व दस्तावेज पेश किए हैं जिससे पता चलता है कि गड़बड़ियां तो हुई हैं। मसलन 14 ऐसी कंपनियों को लाखों रुपए का भुगतान किया जाना जिनका पता और जानकारी या तो अधूरी थी या गलत थी। इनमें से कई कंपनियों के पास पैन कार्ड जैसा बुनियादी जरूरी दस्तावेज तक नहीं था। इसी तरह प्रिंटर का किराया 3000 रुपए प्रतिदिन और लैपटॉप का किराया 16,000 रुपए प्रतिदिन दिए जाने के भी साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं। इतनी ही नहीं, निर्माण करने वाली कंपनियों को एक से ज्यादा बार भुगतान किए जाने, एक ही पते और एक ही फोन नम्बर वाली कंपनियों को भी भुगतान किया गया और इस संबंध में वीडियो दस्तावेज भी पेश किए गए। कीर्ति आजाद ने इस बाबत भी साक्ष्य पेश किए कि स्टेडियम की कंस्ट्रक्शन में 24 करोड़ रुपए खर्च होने थे, लेकिन 130 करोड़ रुपए खर्च किए गए और इसके बावजूद काम पूरा नहीं हो सका। आजाद के मुताबिक सच तो यह है कि पिछले 10 सालों के दौरान 400 करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी हुई है और रीजनल डायरेक्टर एके चतुर्वेदी और दिल्ली के कंपनी रजिस्ट्रार डी. बंद्योपाध्याय ने इसकी जांच के नाम पर सिर्प लीपापोती की। कीर्ति आजाद ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष से नहीं बल्कि डीडीसीए में व्याप्त भ्रष्टाचार से है। उधर डीडीसीए ने कीर्ति आजाद द्वारा भ्रष्टाचार के लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बताया। डीडीसीए के अध्यक्ष एसपी बंसल ने कीर्ति आजाद और पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी पर निशाना साधते हुए कहा कि व्यक्तिगत लाभ के लिए डीडीसीए पर फर्जी आरोप लगाए जा रहे हैं। इनका डीडीसीए और किसी व्यक्ति विशेष से कोई लेनादेना नहीं है। यह सही है कि कीर्ति आजाद आज से नहीं वर्षों से डीडीसीए में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते रहे हैं। अब आप पार्टी ने अपना उल्लू सीधा करने हेतु आजाद के मुद्दे हाइजैक करने का प्रयास किया है। डीडीसीए में धांधली है, अगर है तो कितनी है इसका फैसला या तो हाई कोर्ट कर सकता है या फिर कोई स्वतंत्र जांच एजेंसी। प्रथमदृष्टया हमें तो कीर्ति आजाद के आरोपों में दम लगता है। राजनीति को परे रखें तो स्वच्छ क्रिकेट की खातिर डीडीसीए का शुद्धिकरण जरूरी है।

Tuesday, 22 December 2015

जज पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग की अर्जी

गुजरात हाई कोर्ट के माननीय जज जेबी पारदीवाला की एक टिप्पणी उन्हें इतनी भारी पड़ेगी शायद उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। नौबत अब उनके खिलाफ महाभियोग चलाने तक आ गई है। हुआ यह कि हार्दिक पटेल मामले में आरक्षण के खिलाफ विवादित टिप्पणी करते हुए कह दिया कि यदि मुझे पूछा जाए कि कौन-सी दो बातें हैं, जिन्होंने देश को बर्बाद किया है, या सही दिशा में देश की प्रगति में बाधा पैदा की है तब मेरा जवाब होगा, पहलाöआरक्षण और दूसरा भ्रष्टाचार। हमारा संविधान बना था, तब आरक्षण 10 साल के लिए रखा गया था। लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के 65 साल बाद भी आरक्षण बना हुआ है। यह मामला राज्यसभा में भी उठा। राज्यसभा के 58 सदस्यों ने शुक्रवार को सभापति हामिद अंसारी के समक्ष एक याचिका दायर की कि हार्दिक पटेल मामले में आरक्षण के खिलाफ कथित टिप्पणियों के लिए गुजरात हाई कोर्ट के जज जेबी पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग चलाया जाना चाहिए। सांसदों ने आरोप लगाया है कि हार्दिक पटेल के खिलाफ एक विशेष आपराधिक आवेदन पर फैसला देते हुए अपमानजनक टिप्पणियां की हैं। याचिका में कहा गया है कि जज ने यह भी उल्लेख किया कि जब हमारा संविधान बनाया गया था तब समझा गया था कि आरक्षण 10 साल के लिए रहेगा। लेकिन दुर्भाग्य से यह स्वतंत्रता के 65 वर्ष बाद भी जारी है। सांसदों ने कहा कि 10 वर्ष की समयसीमा राजनीतिक आरक्षण के लिए सुनाई गई थी जो केंद्रीय और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रतिनिधित्व है, न कि शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में आरक्षण के संबंध में। याचिका के मुताबिक यह तकलीफदेह है कि न्यायमूर्ति पारदीवाला अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए नीति से संबंध में संवैधानिक प्रावधान से अनभिज्ञ हैं। सांसदों ने कहाöक्योंकि जज की टिप्पणियों को न्यायिक कार्यवाही में स्थान मिला है, ये चीजें असंवैधानिक स्वरूप की हैं और भारत के संविधान के प्रति कदाचार के बराबर है जो महाभियोग के लिए एक आधार तैयार करती है। सांसदों ने राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी से न्यायमूर्ति पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की अपील की है और साथ ही जरूरी दस्तावेज संलग्न किए हैं। गुजरात सरकार ने दलील दी कि पैराग्राफ-62 में की गई टिप्पणियो को प्रस्तुत मामले से हटाया जाए जिसे हाई कोर्ट ने मंजूर कर लिया और विवादित पैराग्राफ को हटा दिया गया है। अब महाभियोग प्रस्ताव का आगे क्या होगा? वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने कहाöमहाभियोग का आवेदन दिया जा चुका है। जब तक जज संसद को लिखकर नहीं देते कि टिप्पणी हटा ली है तब तक कार्यवाही चलेगी। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि महाभियोग प्रस्ताव दो ही सूरत में खत्म होगा। सांसद प्रस्ताव वापस लें या सभापति जज के लिखित आश्वासन से संतुष्ट हों। सांसदों की याचिका में हस्ताक्षर करने वालों में प्रमुख सांसद हैंöआनंद शर्मा, दिग्विजय सिंह, अश्विनी कुमार, बीके हरिप्रसाद, पीएल पुनिया, राजीव शुक्ला, अम्बिका सोनी, ऑस्कर फर्नांडीस (सभी कांग्रेस), डी. राजा (भाकपा), केएस बालगोपाल (माकपा), शरद यादव (जदयू), एससी मिश्रा व नरेंद्र कुमार कश्यप (बीएसपी), तिरुचि शिवा (डीएमके) व डीपी त्रिपाठी (एनसीपी)। राज्यसभा में ऐसे प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी हैं। लोकसभा में जरूरी संख्या 100 है। राज्यसभा में तो एक तरह से रास्ता साफ है।

-अनिल नरेन्द्र

असहिष्णुता पर शाहरुख की टिप्पणी दिलवाले को भारी पड़ी

असहिष्णुता पर शाहरुख खान को बयान देना भारी पड़ गया है। देश के करोड़ों लोगों ने उनके विचारों को बुरा माना है और अब यह विरोध उनकी ताजा रिलीज हुई फिल्म दिलवाले के रिलीज होने पर देखने को मिल रहा है। शाहरुख-काजोल की जोड़ी वाली दिलवाले और संजय लीला भंसाली की पीरियड फिल्म बाजीराव मस्तानी को प्रदर्शन के पहले ही दिन अलग-अलग कारणों से हिन्दू संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात समेत कई राज्यों में दिलवाले के खिलाफ प्रदर्शन हुए। मुंबई में हिन्दू सेना के पांच कार्यकर्ताओं को दादर स्थित एक मॉल में घुसने की कोशिश करते हुए हिरासत में लेना पड़ा। ये लोग शाहरुख की असहिष्णुता पर की गई टिप्पणी के विरोध में दिलवाले फिल्म का प्रदर्शन रुकवाने का प्रयास कर रहे थे। मॉल के बाहर इन कार्यकर्ताओं ने शाहरुख खान मुर्दाबाद की नारेबाजी भी की। हालांकि मुंबई पुलिस मौके पर पहुंच गई और प्रदर्शनकारियों को खदेड़ दिया। मध्य प्रदेश में अलग-अलग हिन्दू संगठनों ने भोपाल, इंदौर और जबलपुर सहित कई शहरों में दिलवाले फिल्म का जमकर विरोध किया। भोपाल में हिन्दू मित्र मंडल के कार्यकर्ताओं ने ज्योति टाकीज के सामने प्रदर्शन किया वहीं शिवपुरी जिले में प्रदर्शनकारियों ने दो सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन रुकवा दिया। इसी तरह जबलपुर जिले में विरोध के चलते तीन सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन रोकना पड़ा। इंदौर में फिल्म का विरोध करने वाले हिन्दू संगठन के प्रमुख राजेश शिरोडकर को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया। इस बीच बाम्बे हाई कोर्ट ने बाजीराव मस्तानी के प्रदर्शन पर स्थगनादेश से इंकार कर दिया। हालांकि अदालत ने महाराष्ट्र सरकार, सैंसर बोर्ड के अध्यक्ष, फिल्म के निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली और तीनों प्रमुख कलाकारोंöरणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण को नोटिस कर जवाब मांगा है। पुणे के एक कार्यकर्ता हेमंत पाटिल ने भंसाली पर तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। दूसरी तरफ राकांपा नेता अजीत पवार ने कहा कि यदि भाजपा को बाजीराव मस्तानी फिल्म पर कोई आपत्ति है तो उसे यह मामला सैंसर बोर्ड के पास ले जाना चाहिए था। गुजरात में हिन्दू राष्ट्र सेना के कार्यकर्ताओं ने मल्टीप्लेक्स थियेटर और सिनेमाघरों में दिलवाले के पोस्टर उतार दिए। कार्यकर्ताओं ने अहमदाबाद, सूरत और बड़ोदरा, वलसाड, मेहसाणा तथा राजकोट समेत कई शहरों में फिल्म का विरोध किया और शाहरुख खान के खिलाफ नारेबाजी की। यही हाल कानपुर और वाराणसी व हरियाणा के जींद में भी रहा। कानपुर में हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने शाहरुख का पुतला पूंक कर विरोध जताया तो बनारस में काशी विद्यापीठ के छात्रों ने नारेबाजी करने के साथ-साथ ही दिलवाले के पोस्टर जलाए और उन पर जूते-चप्पल भी बरसाए। उधर जींद में भी फिल्म का जमकर विरोध हुआ। इस तरह सात राज्यों में दिलवाले की रिलीज का विरोध हुआ। इसकी वजह से फिल्म की ओपनिंग पर असर पड़ा। जहां तक फिल्म का सवाल है वह क्रिटिक्स हल्की बता रहे हैं। इससे एक बार फिर यह साबित होता है कि फिल्म सितारों को बहुत सोच-समझकर सियासी बयान देना चाहिए खासकर जब आपकी कामयाबी में सबका हाथ है। बता दें कि शाहरुख खान ने अपने 50वें जन्म दिन पर एक चैनल से बातचीत में कहा था कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। अगर मुझे कहा जाता है तो एक प्रतीकात्मक तौर पर मैं भी अवॉर्ड लौटा सकता हूं। देश में तेजी से कट्टरता बढ़ी है। उन्हीं के इस बयान के तुरन्त बाद अगले दिन ही लश्कर--तैयबा प्रमुख हाफिज सईद ने बयान जारी कर कह दिया कि अगर शाहरुख समेत तमाम हिन्दुस्तान के मुसलमान भारत में घुटन महसूस कर रहे हैं तो वह पाकिस्तान आ सकते हैं। बयान देते ही शाहरुख को समझ आ गई कि उन्होंने गलती कर दी है। चतुर शाहरुख ने मौके की नजाकत भांप 16 दिसम्बर को माफी मांग ली लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी। नतीजा सामने है।

Monday, 21 December 2015

Women Revolution in Saudi Arabia

Women revolution has really started in Saudi Arabia. For the first time in the history of the country women have been allowed to take part in any election. The  women voters casted their votes in local election and also contested as a candidate. This achievement of Saudi women cannot be imagined in countries like India, starting their independence with the maximum franchise. In Saudi Arabia, included in the queue of rich countries of the world, women are not yet allowed to drive alone. Even for voting they had to come with male member of their family to cast their vote and stand in the queues exclusively formed for them. It’s surprising that less than 10 per cent women could be registered as voters. Arabia regime with a population of 2 crore and 10 lakhs has only 11 lakh 90 thousand women voters. The first result came from Mecca, the holiest place for Muslims. Mecca’s Mayor Osama-al-Bar told that Salma Bin Hijab-al-Otibi has won in the nearby village. As such she has become the first elected public representative of the country. As per local media 17 women have been elected. One seat from the second largest city of Saudi Arabia, Jeddah was won by one woman candidate Lama-al-Suleman. 7000 candidates including 979 women contested in the elections held for 2100 seats of the country. Saudi Arabia enjoys a regency. Only local bodies go to polls here. Elections were held for the first time in 2005. 1.31 lakh females applied for registration as compared to 13.5 lakh male voters. After the election results Saudi Arabia Cinema Committee has declared that cinema theatres will be opened in the country shortly. In capital city Riyadh a MoU was signed for making it. Many organizations in the country had started a movement to start cinema. There is no such thing like parliament in Saudi regency till now. Though, one-third members are nominated by the Ministry of Local Bodies in 284-member Advisory Committee. Therefore, if some female candidates succeeded in winning the election, some of them may also get a chance to be included in the Advisory Committee. At present when the representatives of Saudi Regime go on foreign tours they do not take even their wives with them. It does not mean that Saudi females are not sensitive to their rights. One woman worker was arrested recently when  she tried to drive alone violating the Shariat laws. If the rulers having such narrow mindedness give some freedom to the females, it will be surely defined as Women Revolution.

 

-        Anil Narendra

 

 

Sunday, 20 December 2015

अलकायदा से जुड़े आतंकियों की गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस की बड़ी कामयाबी

अलकायदा से जुड़े दो खूंखार आतंकियों की गिरफ्तारी निश्चित रूप से दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की बड़ी उपलब्धि है। गिरफ्तार आतंकियों में मोहम्मद आसिफ को भारत में जेहादी तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अब्दुल रहमान नाम का दूसरा आतंकी ओडिशा के टांगी इलाके में एक मदरसा चलाता था और उसके जरिये जेहादी तैयार करने की मुहिम में जुटा था। इन दोनों की प्रारंभिक जांच से पता चला है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का निवासी सनाउल हक ही वह शख्स है जो अलकायदा का दक्षिण एशियाई विंग का सरगना है। दरअसल सनाउल ही मौलाना आसिम उमर नामक आतंकी है जिसे अलकायदा प्रमुख अयमान अल जवाहिरी ने खुद एक्यूआईएस का अमीर (प्रमुख) नियुक्त किया था। यह जानकारी इन दो गिरफ्तार आतंकियों से मिली है। इन दोनों को सनाउल हक ने भारत में जेहादी तैयार करने का जिम्मा दिया था। पकड़े गए आतंकियों ने भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में प्रशिक्षण लिया था। जिस तरह उन्होंने अवैध तरीके से इतनी आसानी से सीमा पार की और ट्रेनिंग लेकर वापस वहां से लौटे इस पर हमारे खुफिया तंत्र व सीमा पर सुरक्षा के लिए तैनात जवानों की चुप्पी पर भी सवाल उठते हैं? दोनों आतंकी क्रिसमस और नए साल के मौके पर दिल्ली में दहशत फैलाने की साजिश रच रहे थे। इन आतंकियों से यह भी पता चला है कि संभल यूपी में कई और रिकूट मौजूद हैं। विशेष पुलिस आयुक्त अरविंद दीप का कहना है कि संभल से जल्द ही कुछ और युवकों को गिरफ्तार किया जा सकता है। 9/11 हमले से अमेरिका को हिला देने वाले आतंकी संगठन अलकायदा अब अपनी रणनीति बदल रहा है। अब उसे लगता है कि अरब देशों के लोगों को दूसरे देशों में भेजकर वह आतंकी हमला नहीं करवा सकता है। इस कारण उसने जिन देशों में अलकायदा को आतंकी हमला करना है वह अपनी फ्रेंचाइजी (संगठन) बना रहा है। खुफिया एजेंसियों ने भी यह माना है कि आईएसआईएस के चलते भी अलकायदा आतंकी हमलों के लिए अपनी रणनीति बदल रहा है। पिछले कई सालों से यह आशंका जताई जा रही है कि अलकायदा और आईएस भारत में भी अपना जाल फैलाने की ताक में हैं। चिन्ता का विषय यह भी होना चाहिए कि हमारी खुफिया एजेंसियों से कहां चूक हुई कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अलकायदा के शिविरों से प्रशिक्षण प्राप्त कर आतंकियों के बारे में उन्हें क्यों भनक तक नहीं लगी? आतंकवाद से निपटने के मकसद से सीमा सुरक्षा बल, राज्यों की पुलिस और खुफिया एजेंसियों के बीच सही तालमेल कायम करने के लिए एक केंद्रीय तंत्र बनाने का प्रयास किया तो गया है पर इस दिशा में अभी तक कामयाबी नहीं मिल पाई। दिल्ली पुलिस को बधाई कि उसकी सतर्पता के कारण एक बार फिर दिल्ली बच गई और उससे भी बड़ी बात है कि अलकायदा के मंसूबों पर पानी फिर गया।

-अनिल नरेन्द्र

सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति अखिलेश सरकार के लिए करारा झटका

लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक अभूतपूर्व झटका दिया है। यह पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार कहने के बाद भी जब अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त नियुक्त नहीं किया तो बुधवार को अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज वीरेन्द्र सिंह को ऑन द स्पॉट लोकायुक्त नियुक्त कर दिया। ऐसा पहली बार हुआ है जब लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग किया है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ ने लोकायुक्त के लिए पांच प्रस्तावित नामों की सूची में बिना किसी देरी इनमें से एक जज वीरेन्द्र सिंह को चुन लिया पर उस नियुक्ति पर विवाद खड़ा हो गया। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो नाम सुझाए उन पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंदचूड सहमति न लिए जाने से खाफा हो गए। उन्होंने इस बारे में राज्यपाल राम नाइक को पत्र लिखा जिसकी कॉपी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी भेजी है। राजभवन ने उनके पत्र की कॉपी सीएम अखिलेश यादव को भेजकर सरकार का पक्ष पूछा है। पूरे मामले में चीफ जस्टिस की सक्रियता की दो वजहें मानी जा रही हैं। पहली कि उन्होंने सरकार के सामने निष्पक्षता का प्रश्न रखा था कि प्रस्तावित लोकायुक्त वीरेन्द्र सिंह यादव एक कैबिनेट मंत्री के रिश्तेदार हैं और उनका बेटा सपा का जिला उपाध्यक्ष है। हालांकि खुद वीरेन्द्र सिंह बेटे की सपा से संबद्धता स्वीकार कर रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि यह बेटे का अपना फैसला है। दूसरी वजह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उनकी भूमिका पर सवाल उठना है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसम्बर को कहा था कि अगर बुधवार तक सरकार लोकायुक्त नियुक्त नहीं करती है तो कोर्ट यह मान लेगा कि सीजेआई, गवर्नर और सीएम अपनी ड्यूटी में असफल रहे। सुप्रीम कोर्ट किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए, अपना आदेश मनवाने के लिए, कानून न होने की स्थिति में कानून के रूप में आदेश देने के लिए, किसी भी कोर्ट में हाजिरी सुनिश्चित करने, किसी दस्तावेज ढूंढने या पेश करने, जांच शुरू करने तथा अपनी अवमानना पर सजा देने के लिए धारा अनुच्छेद 142 के तहत आदेश पारित कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोकायुक्त चयन के लिए समयसीमा तय कर दिए जाने के बावजूद यूपी सरकार जिस तरह अपने कर्तव्यों के निर्वाह में विफल रही, वह तो अदालत की नाफरमानी के कारण अफसोसनाक थी। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब हाई कोर्ट ने राज्य लोकसेवा आयोग के विवादास्पद चेयरमैन की नियुक्ति को असंवैधानिक बताया था, जिसके बाद सरकार को उन्हें हटाना पड़ा था। इसके बाद अब नए लोकायुक्त के लिए खुद शीर्ष न्यायालय का आगे आना सरकार के कामकाज और इरादे पर प्रतिकूल टिप्पणी तो है ही।

Saturday, 19 December 2015

अमेरिका झुकता है बस झुकाने वाला चाहिए

अमेरिका झुकता है बस झुकाने वाला चाहिए। मैं बात कर रहा हूं अमेरिका और रूस की। जब से रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन सीरिया-इराक में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ मैदान में उतरे हैं धीरे-धीरे पासा पलट रहा है। आईएस पर चौतरफा हमले बढ़ रहे हैं। अब तक अमेरिका इस जिद पर कायम था कि सीरिया में राष्ट्रपति असद को शांति स्थापित करने के लिए पद से हटना होगा। दूसरी ओर पुतिन इस बात पर अड़े थे कि असद अपने पद पर बने रहेंगे और वही आईएस के खिलाफ अभियान की कमान संभालेंगे। आखिरकार सीरिया मामले में अमेरिका को रूस के सामने झुकना ही पड़ा। अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने रूस की लंबे समय से चली आ रही उस मांग को मान लिया कि राष्ट्रपति बशर अल असद के भविष्य का फैसला सीरिया के लोगों को करने देना चाहिए। उधर आईएस के खिलाफ अब तो मुस्लिम देशों का भी मोर्चा दिख रहा है। इस्लाम के नाम पर दुनियाभर में दहशतगर्दी फैला रहे आतंकियों को सबक सिखाने के लिए मुस्लिम देशों ने कमर कस ली है। सऊदी अरब के नेतृत्व में 34 देशों ने आतंकवाद के खिलाफ सैन्य गठबंधन बनाने की घोषणा की है। इस गठबंधन का संयुक्त संचालन सऊदी अरब की राजधानी रियाद में स्थापित होगा। इस्लामिक सैन्य गठबंधन बनाने की जानकारी देते हुए सऊदी अरब की सरकारी संवाद एजेंसी ने कहा कि इस गठबंधन की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि हर तरह से आतंकवाद का सफाया करना जरूरी है और इसके लिए विभिन्न स्तरों पर सहयोग की जरूरत है। आतंक के खिलाफ मुस्लिम देशों के सैन्य गठबंधन में सऊदी अरब के धुर विरोधी और शिया बहुल ईरान शामिल नहीं है। बता दें कि ईरान की नीति सुन्नी बहुल देशों से अलग है। वह सीरिया के शिया राष्ट्रपति बशर अल असद की सत्ता का समर्थन करता है और उनके पक्ष में अपनी सेनाएं भी भेजी हैं। वहीं यमन में भी वह शिया हूथी विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है जबकि उनके खिलाफ सऊदी अरब सैन्य अभियान चला रहा है। इस इस्लामिक देशों के गठबंधन में पाकिस्तान, तुर्की, मालदीव, मलेशिया, यूएई, मिस्र और कतर शामिल हैं। वहीं गृहयुद्ध से जूझ रहे लीबिया और यमन को भी इसका हिस्सा बनाया गया है। आतंक का सामना कर रहे अफ्रीकी मुस्लिम बहुल देश मसलन माली, चाड, सोमालिया व नाइजीरिया भी गठबंधन में शामिल हैं। पाकिस्तान बहरहाल इस बात से हैरान जरूर है कि सऊदी अरब ने इस 34 मुस्लिम देशों के सैन्य गठबंधन में उसकी सहमति लिए बिना उसका नाम कैसे शामिल कर लिया? डॉन की रिपोर्ट के अनुसार पाक विदेश सचिव एजाज चौधरी ने कहा कि वह इस खबर से हैरान हैं कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान को गठबंधन में शामिल किया है। यह पहला वाकया नहीं कि जब सऊदी ने इस्लामाबाद की अनुमति के बिना उसे गठबंधन में शामिल किया हो।

-अनिल नरेन्द्र

डीडीसीए ः क्रिकेट का कॉमनवेल्थ घोटाला

पिछले दो दिनों से या कहें कि दिल्ली सचिवालय में सीबीआई के छापे से नाराज व बौखलाई आम आदमी पार्टी ने गुरुवार को केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली पर सीधा हमला बोल दिया है। पार्टी ने बाकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस कर दिल्ली व जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) में बड़े वित्तीय घोटाले और गड़बड़ियों के आरोप दोहराए, जिसके 2013 तक अध्यक्ष अरुण जेटली थे। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्विट के जरिये हल्ला बोला और जेटली के इस्तीफे की मांग कर डाली। प्रेस कांफ्रेंस में डीडीसीए को क्रिकेट का कॉमनवेल्थ घोटाला करार दिया। मैं पाठकों को यह बताना जरूरी समझता हूं कि आखिर डीडीसीए का मामला क्या है? केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के 14 साल तक प्रमुख रहे। पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद, बिशन सिंह बेदी, गौतम गंभीर जैसी नामचीन हस्तियों ने डीडीसीए में व्याप्त अनियमितताओं को लेकर केजरीवाल से तमाम शिकायतें की थीं। फिरोजशाह कोटला मैदान के पुनर्निर्माण पर खर्च हुए 114 करोड़ रुपए पर भी सवालिया निशान लगे हैं। इसका शुरुआती बजट 24 करोड़ था। डीडीसीए ने कोटला मैदान का निर्माण वर्ष 2002 से 2007 के बीच कराया था। डीडीसीए पर यहां तक आरोप लगाया गया है कि रणजी ट्रॉफी सत्र के दौरान खिलाड़ियों को पुरानी गेंदों से खेलने के लिए मजबूर किया गया। तमाम खिलाड़ियों को दो वर्ष से मैच फीस भी नहीं दी गई है। इसके चलते तमाम खिलाड़ियों को अन्य राज्यों में खेलने पर मजबूर होना पड़ा है। दिल्ली सरकार की  जांच रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि खिलाड़ियों के चयन में डीडीसीए एकाधिकार का रुख अपनाए हुए है। डीडीसीए की सभी गतिविधियों में जवाबदेही, पारदर्शिता नहीं दिखाई देती। दिल्ली सरकार की जांच कमेटी ने इन आरोपों के आधार पर जो सिफारिश की है उसमें कहा गया है कि डीडीसीए के पदाधिकारियों व प्रशासकों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 के तहत दिल्ली सरकार द्वारा सतर्पता जांच कराई जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस लोढ़ा कमेटी द्वारा भी डीडीसीए की कार्यप्रणाली को सुधारने के लिए अधिकृत किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, डीडीसीए को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए ताकि आम जनता यह जान सके कि डीडीसीए किस आधार पर फैसले ले रही है और धन कहां और कितना इस्तेमाल कर रही है। कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने मांग की है कि संयुक्त संसदीय समिति से मामले की जांच कराई जानी चाहिए और इसका अध्यक्ष भाजपा सांसद कीर्ति आजाद को बनाया जाना चाहिए। उधर कीर्ति आजाद ने डीडीसीए में भ्रष्टाचार पर जल्द और खुलासे करने की बात भी कही है। उधर अरुण जेटली का कहना है कि केजरीवाल झूठ और बदनामी में यकीन करते हैं और  उन्माद की हदें छूने वाली भाषा बोलते हैं।

Friday, 18 December 2015

पुख्ता जानकारी और सबूतों के चलते ही सीबीआई ने मारे छापे

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के साथ-साथ दो अन्य आरोपियों से सीबीआई ने बुधवार को भी नौ घंटे लंबी पूछताछ की। यह अफसर राजेंद्र कुमार कौन हैं? 48 वर्षीय राजेंद्र कुमार सीएम के प्रधान सचिव हैं। आईआईटी खड़गपुर से बीटेक करने वाले राजेंद्र 1989 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। इसी साल फरवरी में केजरीवाल के प्रधान सचिव के रूप में नियुक्त हुए। राजेंद्र कुमार मुख्यमंत्री के काफी करीबी व विश्वासपात्र अधिकारियों में से हैं। केजरीवाल ने उपराज्यपाल की सलाह को अनदेखा करते हुए उन पर आरोपों के बावजूद उन्हें अपना प्रधान सचिव बनाया। बताया जाता है कि आईआईटी की पढ़ाई के समय से ही दोनों एक-दूसरे को जानते थे। राजेंद्र कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) के पास सात शिकायतें 2012 से आई हैं। शाखा ने एक शिकायत वैट आयुक्त को भेजी है और एक सीबीआई को जांच के लिए भेजी थी। उसी शिकायत पर छापेमारी हुई है जो दिल्ली डॉयलाग कमीशन के सदस्य सचिव रहे आशीष जोशी ने की थी। शीला दीक्षित के कार्यकाल से जो सीएनजी वाहन फिटनेस घोटाला जांच चल रही है उसमें भी एसीबी ने राजेंद्र कुमार का नाम पूछताछ किए जाने वाली सूची में शामिल किया था। केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार काफी समय से सीबीआई के राडार पर थे। रंजीत सिन्हा जब सीबीआई डायरेक्टर थे, तभी राजेंद्र कुमार को घेरने का प्लान बन चुका था। लेकिन किन्ही कारणों से यह टलता रहा। दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में भी राजेंद्र कुमार को लेकर कार्रवाई की बात चली थी। तत्कालीन शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह लवली ने भी शीला जी से कुमार को हटाने की मांग की थी। लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ सका। पिछले डेढ़ साल में सीबीआई ने राजेंद्र कुमार के तीन हजार से ज्यादा फोन कॉल्स रिकार्ड किए हैं। इतना ही नहीं, राजेंद्र के बैच के करीब 15 आईएएस अफसरों और दिल्ली सरकार के 35 अधिकारियों से पूछताछ की थी। इनसे मिले सबूत के आधार पर सीबीआई ने मंगलवार को छापे मारे। जांच एजेंसी का कहना है कि राजेंद्र कुमार के ईमेल में कई पुख्ता सबूत हैं। लेकिन वे इसे खोलने में सहयोग नहीं दे रहे हैं। अब सीबीआई एक्सपर्ट के जरिये ईमेल खुलवाने जा रही है। जब सीबीआई से पूछा गया कि राजेंद्र कुमार ने जो गड़बड़ियां की थीं, वे दूसरे विभागों में रहते हुए की थीं तो फिर अब बतौर सीएम के प्रिंसिपल सैकेटरी के दफ्तर पर छापे क्यों मारे गए? इस पर सीबीआई का कहना है कि चूंकि हमें पुख्ता जानकारी मिली थी कि कार्रवाई से बचने के लिए राजेंद्र कुमार ने अहम फाइलें इसी दफ्तर में छिपा रखी हैं। राजेंद्र कुमार पर कार्रवाई की एक कोशिश कुछ माह पहले भी हुई थी लेकिन उस वक्त उपराज्यपाल और केजरीवाल के बीच तनातनी चरम पर थी। एंटी करप्शन विभाग ने गृह मंत्रालय से इजाजत भी मांगी थी। गृह मंत्रालय के एक अफसर के मुताबिक तब गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि बिना ठोस सबूत पे कोई कदम न उठाया जाए। उन्होंने यह भी सलाह दी थी कि अगर शिकायत प्रारंभिक रूप से तथ्यात्मक लग रही है तो मामले की जांच किसी केंद्रीय एजेंसी से कराई जाए। जिससे यह आशंका न हो कि एंटी करप्शन विभाग किसी के कहने पर काम कर रहा है। पिछले चार दिनों में राजेंद्र कुमार के दफ्तर, घर समेत कुल 14 ठिकानों पर छापे की भी योजना बन चुकी थी। सीबीआई की लिस्ट में कुछ सात लोग थे, जहां छापे मारे जाने थे। सीबीआई के डिप्टी डायरेक्टर की देखरेख में चार डीएसपी लेवल के अधिकारी इसकी कमान संभाले हुए थे। सुबह होते ही 30 गाड़ियों ने एक साथ 14 ठिकानों की ओर कूच कर दिया। इनमें राजेंद्र कुमार के अलावा इंटेलीजेंट कम्युनिकेशन सिस्टम इंडिया लिमिटेड के पूर्व एमडी एके दुग्गल, जीके नंदा, आरएस कौशिक, संदीप कुमार और इंडीवर सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के दिनेश गुप्ता शामिल हैं। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक छापे में उनके हाथ बहुत ही पुख्ता सबूत लगे हैं। जो आने वाले समय में  बड़े खुलासे कर सकते हैं, सूत्रों के मुताबिक गड़बड़ी के तार शीला दीक्षित सरकार तक पहुंच रहे हैं। लिहाजा आने वाले समय में शीला सरकार के मंत्रियों और अफसरों से भी पूछताछ हो सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

ताजा हो गए निर्भया कांड के घाव

ज्योति सिंह उर्प निर्भया कांड दक्षिण दिल्ली में आज से तीन साल दो दिन पहले 16 दिसम्बर 2012 को घटा था। अत्यंत दुख की बात है कि चलती बस में सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई निर्भया के वयस्क अपराधियों को शीर्ष अदालत में सजा दिए जाने पर अब यदाकदा भी चर्चा नहीं सुनाई देती। बहरहाल इस घिनौने अमानवीय कांड का मास्टर माइंड नाबालिग अपराधी जरूर खबरों में है। 16 दिसम्बर के बाद उमड़े जन आंदोलन और तब सरकार और अदालत के रुख से लगा था कि अब तो कुछ सूरत बदलेगी। लेकिन दुख से कहना पड़ता है कि कुछ भी तो नहीं बदला। निर्भया के साथ की गई सामूहिक हैवानियत और बर्बर बलात्कार कांड के सिरहन से भर देने वाली यादें अभी लोगों के जहन से गायब नहीं हुई हैं कि तीन दिन में राजधानी में दो मासूमों को हैवानियत का शिकार बनाए जाने की घटनाओं ने वह घाव फिर ताजा कर दिए हैं। किशोर न्यायालय के नियमों के मुताबिक बाल सुधार गृह में रखे जाने के इस मास्टर माइंड नाबालिग की तीन साल की अवधि पूरी होने वाली है। उसे अगले रविवार को रिहा किया जाना है। लेकिन केंद्र सरकार उसकी अभी रिहाई के पक्ष में नहीं है। सरकार नहीं चाहती कि आधे-अधूरे प्रबंध के बीच इस बर्बर अपराधी को समाज में छोड़ दिया जाए। बसंत विहार के इस हत्याकांड मामले में दोषी किशोर की रिहाई के बारे में दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। इससे पहले गृह मंत्रालय ने हाई कोर्ट को एक सीलबंद लिफाफे में नाबालिग से जुड़ी खुफिया ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की। केंद्र ने तर्प दिएöपुनर्वास की अभी तक कोई ठोस योजना नहीं बनी है। पुनर्वास के लिए तैयार योजना में कई अहम बातें नदारद हैं और रिहाई से पहले इन कमियों को दूर किया जाना जरूरी है। नाबालिग की रिहाई का विरोध कर रहे भाजपा नेता और याचिकाकर्ता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने चीफ जस्टिस जो रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की पीठ से कहा कि इस मामले में ऐसा आदेश पारित किया जाए जो नजीर बने। उन्होंने कहा कि भले ही नाबालिग सुधार गृह में अधिकतम तीन साल का वक्त गुजार चुका है लेकिन कानून के तहत उसे दो साल तक रखा जा सकता है। अदालत ने कहा कि आईबी व पुनर्वास को लेकर तैयार रिपोर्ट पर विचार करने के बाद जल्द ही इस मामले पर विस्तृत निर्णय देंगे। दूसरी ओर सरकार ने लोकसभा में चिन्ता जताई कि बीते 10 साल में किशोरों की अपराध में संलिप्तता में लगभग 50 प्रतिशत इजाफा हुआ है। राज्यों और केंद्रों से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक 2005 में जहां 25601 किशोर अपराध हुए थे वहीं 2014 में यह संख्या बढ़कर 38586 हो गई। एक बड़ा चिंतनीय सवाल यह भी है कि जिन किशोर अपराधियों को रिहा किया जाता है, उन्हें खुले समाज में किस रूप में सौंपा जाता है। जब निर्भया मामले में इतनी खामियां छोड़ दी गईं हों तो बाकी मामलों में उसका क्या रवैया होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

Thursday, 17 December 2015

...जब शरद पवार के सपने को सोनिया ने चकनाचूर कर दिया

आमतौर पर माना जाता है कि मराठा लीडर शरद पवार एक बहुत माहिर सियासतदान हैं। वह कब कौन सी चाल चल दें, कब क्या कह दें कोई नहीं बता सकता पर ऐसे माहिर नेता को भी सोनिया गांधी ने मात दे दी। शरद पवार ने अपनी किताब `लाइफ ऑन माई टर्म्स-फाम ग्रास रूट एंड कारीडोर्स ऑफ पावर' में शरद बाबू ने चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया है। शरद पवार ने दावा किया है कि दस जनपथ के स्वयंभू, वफादारों ने सोनिया गांधी को इस बात के लिए सहमत किया था कि 1991 में शरद पवार के बजाय पीवी नरसिंह राव को पधानमंत्री बनाया जाए क्योंकि गांधी परिवार किसी ऐसे व्यक्ति को पधानमंत्री नहीं बनाना चाहता था जो स्वतंत्र विचार रखता हो। राकांपा अध्यक्ष ने कहा कि वफादारों में शामिल स्वगीय अर्जुन सिंह खुद भी पधानमंत्री पद के दावेदार थे और उन्होंने पवार के बजाय राव को चुनने का निर्णय लेने में सोनिया गांधी को राजी करने की चालाकीपूर्ण चाल चली। राव की कैबिनेट में पवार रक्षा मंत्री थे। पवार की पुस्तक को उनके 75 वें जन्मदिन समारोह में औपचारिक रूप से सोनिया गांधी, पधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति की मौजूदगी में रिलीज किया गया। उन्होंने कहा कि शीर्ष पद के लिए उनके नाम पर विचार न केवल महाराष्ट्र में बल्कि दूसरे राज्यों में भी पार्टी के अंदर चल रहा था। वह काफी सावधान थे क्योंकि वह जानते थे कि काफी कुछ दस जनपथ पर निर्भर करता है, जहां सोनिया गांधी रहती हैं। अपनी किताब में पवार ने लिखा कि पीवी नरसिंह राव भले ही वरिष्ठ नेता थे लेकिन चुनाव से पहले स्वास्थ्य कारणों से वह मुख्य धारा की राजनीति से अलग थे। उनके लंबे अनुभव को देखते हुए उन्हें वापस लाने के सुझाव दिए गए। पवार लिखा कि सोनिया गांधी के वफादारों ने सोनिया को विश्वास दिलाया कि नरसिंह राव का समर्थन करना सुरक्षित रहेगा क्योंकि वह बूढ़े हैं और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। अंतत पवार के बजाय राव को चुना गया, जिन्हें 35 से ज्यादा वोटों की बढ़त मिली थी। शरद पवार ने एक अन्य अध्याय में 1977 में मोरारजी देसाई के खिलाफ अविश्वास पस्ताव स्वीकार होने के बारे में भी विस्तार से लिखा है। किताब से साफ झलकता है कि शरद पवार के पधानमंत्री बनने के सपने को सोनिया गांधी ने काफी मात दी और उनका अरमान सच होते-होते रह गया। कहते हैं न कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं। दोस्त कब दुश्मन बन जाए कहा नहीं जा सकता। निजी स्वार्थ ही सर्वेपरि होता है।

-अनिल नरेन्द्र

राजेन्द्र कुमार पर छापे पर हाय-तौबा क्यों?

मंगलवार सुबह से ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हल्ला मचा रखा है कि सीबीआई ने मेरे कार्यालय पर छापा मारा है। सबसे पहले तो यह बता दें कि मंगलवार सुबह सीबीआई ने मुख्यमंत्री के पधान सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर पर छापा मारा। राजेन्द्र कुमार के खिलाफ दिल्ली डायलॉग कमिशन के पूर्व सदस्य आशीष जोशी ने शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद सीबीआई ने मामले की जांच की और पथम दृष्टि में उन्हें करोड़ों रुपए के अवैध लेन-देन और गलत तरीके से अवांछित लोगों का फेवर करने का केस दिखा। आरोप है कि राजेन्द्र कुमार ने अपने पद का दुरुपयोग किया, उन्होंने बरसों से एक ही कंपनी को दिल्ली सरकार के टेंडर दिए और दिलाए। सूत्रों ने बताया कि आशीष जोशी से शिकायत मिलने के बाद कई स्तर पर उस शिकायत की छानबीन की गई। जांच के दौरान कई विभागों और दूसरे जरिए से जानकारी जुटाई गई। जब पुख्ता जानकारी सामने आई तो वारंट जारी करके मंगलवार को रेड डाली गई। राजेन्द्र कुमार के घर और दफ्तर पर छापा मारा गया। छापों में कागजात, फाइलें, कम्प्यूटर से जुड़ी चीजों को कब्जे में लिया गया। कुछ की जांच मौके पर ही की गई। सीबीआई का कहना है कि जरूरत के हिसाब से कानूनी औपचारिकता पूरी कर किसी से भी पूछताछ की जा सकती है, कहीं भी रेड की जा सकती है। एक अफसर का कहना है कि राजेन्द्र कुमार सीएम के पिंसिपल सेपेट्री हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वह सीएम आफिस हैं, लेकिन इसे आधार बना कर कोई भी कह सकता है। छापेमारी की यह कार्रवाई कोर्ट से वारंट लेकर की गई। लेकिन सीएम केजरीवाल ने इसके तुरंत बाद ट्वीट करके कहा कि मेरे दफ्तर पर रेड की गई है और मेरी फाइलें खंगाली जा रही हैं। यहां तक भी रुकते तब भी बात थी पर उन्होंने तो इसके लिए सीधा पीएम पर निशाना साध दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि पधान सचिव की फाइलें खंगालने के बहाने सीबीआई उनकी फाइलें देख रही है। सिलसिलेवार ट्विट करके केजरीवाल ने लिखा कि मोदी उन्हें राजनीतिक तौर पर हैंडल नहीं कर पाए तो उन्होंने यह कायरतापूर्ण काम किया। मोदी कायर और मनोरोगी हैं। सीबीआई झूठ बोल रही है। मेरे आफिस पर रेड की गई है। राजेन्द्र के बहाने मेरे दफ्तर में सारी फाइलें देखी जा रही हैं। अगर राजेन्द्र के खिलाफ सीबीआई के पास कोई सबूत है, तो क्यों नहीं मुझसे शेयर किया गया? मैं उनके खिलाफ एक्शन लेता। शाम होते-होते उन्होंने वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी लपेट लिया। उन्हेंने अरुण जेटली के खिलाफ डीडीसीए में घोटाले के सबूत होने का दावा करते हुए आरोप लगाया कि सीबीआई इससे जुड़ी फाइलें ढ़ूंढने आई थी। इस पर हैरत नहीं कि अरविंद केजरीवाल आपे से बाहर हो गए, बल्कि संसद में भी खूब हंगामा हुआ। हंगामा अब संसद की नियति बन गई है। कोई भी मामला हो वह संसद को बाधित करने का जरिया बन जाता है। श्री केजरीवाल को यह भली-भांति मालूम है कि राजेन्द्र कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप पुराने हैं। यह जानकारी होते हुए भी उन्होंने ऐसे दागी अफसर को अपना पिंसिपल सेपेट्री क्यों बनाया? क्या उन्होंने यह जानबूझ कर किया ताकि वे चाणक्य कहलाने वाले इस चहेते अफसर को बचा सकें? वैसे इससे पहले भी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे विभिन्न नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ भी सीबीआई इसी तरह की कार्रवाई कर चुकी है। जब भी ऐसी कार्रवाई होती है विपक्षी सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगा देते हैं। यह अजीब है कि जब सुपीम कोर्ट ने सीबीआई को किसी भी स्तर के अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के पहले सरकार से पूर्व अनुमति लेने का पावधान खत्म किया था तो इसे केजरीवाल ने अपनी जीत बताया था लेकिन वही अब ये रोना रो रहे हैं कि जांच एजेंसी ने उनके पधान सचिव पर रेड से पहले उन्हें क्यों नहीं सूचित किया। अंत में क्या एक मुख्यमंत्री को देश के पधान मंत्री के पति इस सड़क छाप भाषा, शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए? पर सड़क छाप राजनीति करते-करते माननीय मुख्यमंत्री महोदय सभ्य, मधुर भाषा लगता है भूल गए हैं।