Saturday 26 December 2015

16 साल की उम्र में भी अब कड़ी सजा

अंतत देश और दुनिया को हिलाने वाले जघन्य निर्भया कांड जैसे अपराधों में नाबालिगों के शामिल होने पर उनके खिलाफ वयस्क अपराधियों जैसा बर्ताव करने संबंधी विधेयक को मंगलवार को राज्यसभा ने पारित कर दिया। लोकसभा तो पहले ही इसे पारित कर चुका था। बेशक जुवेनाइल जस्टिस एक्ट नाम से चर्चित यह विधेयक जिन परिस्थितियों में पारित हुआ उस पर संतोष नहीं व्यक्त किया जा सकता। लोकसभा ने इस विधेयक को दो सत्र पहले ही इसी वर्ष मई में पारित कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की हठधर्मिता और जबरन की गई सियासत के कारण सख्त कानून के अभाव में रविवार को ही निर्भया के नाबालिग मास्टर माइंड दोषी को सुधार गृह से मजबूरन रिहा करना पड़ा। जब वह रिहा हो गया और निर्भया के माता-पिता ने प्रभावी ढंग से इसका विरोध किया तब जाकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को होश आया और उन्होंने आनन-फानन में नया विधेयक पारित कर दिया। इस सत्र में भी यह विधेयक तीन बार सूची में चर्चा के लिए दर्ज किया गया, लेकिन विपक्षी दल और खासकर कांग्रेस हंगामा ही करते रहे। यह सारे देश के लिए निहायत शर्म की बात है कि इस सियासत के कारण देश को विचलित और शर्मसार करने वाले दिल्ली के दुष्कर्म कांड में शामिल रहे नाबालिग की रिहाई हो गई। इस विधेयक के कानून बनने पर सात साल या इससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाले जघन्य अपराधों में 16 साल से ऊपर के किशोरों पर वयस्क की तरह केस चलेगा। जिन अपराधों में सात साल या इससे अधिक की सजा का प्रावधान है उन्हें जघन्य अपराधों की सूची में शामिल किया जाएगा। इस विधेयक में जघन्य अपराध करने वाले 16 से 18 साल के किशोरों के खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का प्रावधान सबसे अहम है। इसमें हत्या, दुष्कर्म, अपहरण, डकैती, तेजाब हमले जैसे अपराध को जघन्य माना गया है। हालांकि इन अपराधों के दोषी नाबालिग को अधिकतम सात से 10 साल की सजा होगी। बिल को पेश करते हुए महिला एवं बाल कल्याण विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि इसका मकसद नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले जघन्य अपराधों से निपटना है, साथ ही उन्हें सही रास्ते पर लाने के उपाय भी किए गए हैं। किशोर न्याय बोर्ड यह फैसला करेगा कि बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर मामलों में नाबालिग के शामिल होने के पीछे मंशा क्या थी? बोर्ड तय करेगा कि यह हरकत एडल्ट मानसिकता से की गई या बचपने में। कुछ संशोधन भी लाए गए, लेकिन सभी गिर गए। वैसे बता दें कि कुछ अन्य देशों में इस बाबत क्या कानून हैंöचीन में 14 साल से कम उम्र के किशोर से पूछताछ नहीं की जा सकती। मिस्र में 15 साल से कम उम्र के किशोर को हिरासत में नहीं लिया जा सकता। पाकिस्तान में 18 से कम उम्र के किशोर को हिरासत में नहीं लिया जा सकता। श्रीलंका में 16 से कम उम्र के किशोर की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। बांग्लादेश में 16 से कम उम्र के किशोर की गिरफ्तारी पर रोक है। भारत में बीते वर्ष यानि 2014 में नाबालिगों के खिलाफ देशभर में 38,565 केस दर्ज हुए। यह जानकारी गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में दी। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में  बदलाव वक्त की जरूरत थी, लेकिन यदि उसे समय रहते पूरा किया जाता तो देश में कहीं अधिक संतोष हुआ होता। तीन साल बीतने के बाद भी निर्भया के आरोपी कोर्ट-कचहरी में फंसे हुए हैं। कानून तो बन गया ठीक है पर जब तक हम अपने देश की न्यायिक व्यवस्था नहीं सुधारते ऐसे मामलों में न तो पीड़िता को इंसाफ मिलेगा और न ही दूसरों के लिए सबक। फिर समाज भी अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता। सारा दोष पुलिस-प्रशासन का है यह कहना भी गलत है। स्पष्ट है कि कहीं न कहीं समाज को भी अपनी जिम्मेदारियों की ओर ध्यान देना होगा। इस तरह के अपराधों पर रोक लगाने के लिए घर-परिवार के स्तर पर भी सजगता बरतने और उपयुक्त माहौल का निर्माण करना अति आवश्यक है।

-अनिल नरेन्द्र

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