Thursday 10 December 2015

इन आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल

अगर वैश्विक आतंकवाद पिछले कुछ सालों  में इतना भयानक रूप धारण कर गया है तो इसके पीछे एक पमुख कारण है उसका अपना नेटवर्प बनाना। इस्लामिक स्टेट हो, अल कायदा हो, लश्कर--तैयबा हो इन्होंने अपने स्लीपर सेल बनाने में भारी सफलता पाई है। सालों पहले यह ऐसे समान विचार वाले युवकों की भर्ती करते हैं, उन्हें ट्रेनिंग देते हैं, पैसे देते हैं और उन्हें विभिन्न मुल्कों के शहरों में fिछपे रहने को कहते हैं। इन्हें समय आने पर एक्टिव कर दिया जाता है। स्लीपर सेल आतंक का वह चेहरा है जो आपके और हमारे बीचोंबीच रहता है। लेकिन वह अपनी असल पहचान इतनी अच्छी तरह से छिपाता है कि हम उसे पहचान नहीं पाते। वो आम इंसान की तरह नौकरीपेशा या व्यवसायी कोई भी हो सकता है। लेकिन आतंक के आकाओं का संदेश मिलते ही आतंकी कारनामों को अंजाम देने निकल पड़ता है। ये लोग विदेश से आए आतंकियों की रिहाई से लेकर रेकी तक में मदद करते हैं। इसके बदले आतंकी संगठन उन्हें कीमत चुकाता है या फिर कौम के नाम पर बरगलाते हैं। इराक और सीरिया में अपनी जड़ें जमा चुका आईएस दुनिया भर में ऐसे ही स्लीपर सेल बनाता जा रहा है। पेरिस और अमेरिका में हुए हमले इस बात का जीता-जागता सबूत हैं कि इन्हीं स्लीपर सेल के जरिए इस्लामिक स्टेट(आईएस) पूरी दुनिया में अपने पैर पसारने में सफल है। एक नई बात यह भी सामने आई है कि इन स्लीपर सेलों में महिलाएं भी शामिल हैं। पेरिस और केलीफोर्निया हमलों से यह साबित होता है। वो बेहद खूबसूरत हैं लेकिन बेहद खतरनाक। उम्र कम है लेकिन हाथ खून से रंगे हैं। यह पहचान है दुनियां के सबसे खूंखार आतंकी अल बगदादी की लेडी ब्रिगेड की। ये ऐसी किलर गर्ल्स हैं जिन्हें बेकसूरों का खून बहाने में मजा आता है। इन्हें भी हथियार चलाने से लेकर बम धमाके तक की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। जो लड़कियां उनके काम की नहीं उन्हें आईएस अपने लड़ाकों की हवस बुझाने के लिए इस्तेमाल करता है। आईएस जैसे आतंकी संगठनों ने अपने स्लीपर सेल को एक्टिव करने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करना सीख लिया है। कोडिड भाषा में यह ऐसे संदेश भेजते हैं जो पहली दृष्टि में नार्मल लगते हैं और आप इन पर गौर नहीं करेंगे। पर शब्दों के अंदर सिंबलों में वह कोडिड संदेश लिखा होगा। इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि इन आतंकी संगठनों के पास ट्रेंड इंटरनेट एक्सपर्ट भी मौजूद हैं जो इस तकनीक को अपडेट करते रहते हैं। हालांकि दुनिया की अधिकतर खुफिया एजेंसियों ने ऐसे संदेशों को पकड़ने में सफलता तो पाई है पर तब भी पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। मार्डन आतंकवाद में इन स्लीपर सेल की बहुत बड़ी भूमिका हो गई है।

-अनिल नरेन्द्र

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