Wednesday 16 December 2015

सऊदी अरब में महिला क्रांति

सऊदी अरब में वाकई महिला क्रांति का आगाज हो गया है। देश के इतिहास में पहली बार महिलाओं को किसी चुनाव में भाग लेने की अनुमति मिली है। स्थानीय चुनावों में पहली बार महिला मतदाताओं ने वोट डाले और बतौर प्रत्याशी चुनाव में खड़ी भी हुईं। अपनी आजादी की शुरुआत ही सर्वाधिक मताधिकार के साथ करने वाले भारत जैसे देशों में सऊदी महिलाओं की इस उपलब्धि का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। दुनिया के अमीर देशों की पांत में खड़े होने वाले सऊदी अरब में महिलाओं को अकेले गाड़ी चलाने की सुविधा आज भी नहीं है। वोट डालने के लिए उन्हें अपने घर के किसी पुरुष सदस्य के साथ आना पड़ा और अपने लिए अलग से बनी कतारों में खड़े होकर वोट डालना पड़ा। सबसे अजीब बात यह है कि बतौर वोटर 10 प्रतिशत से भी कम महिलाओं का पंजीकरण हो सका। दो करोड़ 10 लाख की आबादी वाली अरब राजशाही में केवल 11 लाख 90 हजार महिला वोटर मौजूद हैं। पहला परिणाम मुसलमानों के सबसे पवित्र स्थान मक्का से आया। मक्का के मेयर ओसामा अल बार ने बताया कि पास के गांव भदरवाह में सलमा बिन हिजब अल-ओतीबी ने जीत हासिल की है। इसी के साथ वे देश की पहली निर्वाचित जनप्रतिनिधि बन गई हैं। लोकल मीडिया के मुताबिक 17 महिलाएं चुनी गई हैं। सऊदी अरब के दूसरे सबसे बड़े शहर जेद्दा की एक सीट पर महिला उम्मीदवार लामा अल-सुलेमान ने जीती। देशभर में 2100 सीटों के लिए हुए चुनाव में 7000 उम्मीदवार थे। इनमें 979 महिलाएं थीं। सऊदी अरब में राजशाही है। यहां सिर्प निकाय चुनाव ही होते हैं। 2005 में पहली बार चुनाव हुए थे। 13.5 लाख पुरुष वोटरों के मुकाबले 1.31 लाख महिलाओं ने वोटिंग के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। चुनाव परिणामों के बाद सऊदी अरब सिनेमा कमेटी ने घोषणा की है कि देश में जल्द सिनेमा थिएटर खुलेंगे। राजधानी रियाद में इसे बनाने के लिए एमओयू पर साइन किया गया है। देश में लंबे समय से कई संगठनों ने सिनेमा लाने के लिए आंदोलन छेड़ रखा था। सऊदी राजशाही में संसद जैसी कोई चीज आज भी नहीं है। हां, 284 सदस्यों की सलाहकार सभा में एक-तिहाई सदस्यों का नामांकन स्थानीय निकाय मंत्रालय द्वारा किया जाता है। लिहाजा कुछ महिला प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहीं तो शायद उनमें से कुछेक को सलाहकार सभा में शामिल होने का मौका भी मिल जाए। अभी तो हालत यह है कि सऊदी राजसत्ता के प्रतिनिधि जब विदेशी दौरों पर जाते हैं तो साथ में अपनी पत्नियों तक को नहीं ले जाते। इसका मतलब यह कतई नहीं कि सऊदी महिलाओं को कोई अधिकार चेतना नहीं है। इसी साल वहां एक महिला कार्यकर्ता ने शरीय कानून का उल्लंघन करके सड़क पर अकेले गाड़ी चलाने की कोशिश की तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे तंग नजरिये वाले शासकों का महिलाओं को थोड़ी आजादी देना महिला क्रांति ही कहा जाएगा।

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