Tuesday 15 December 2015

मुसलमानों का अमेरिका में प्रवेश पर रोक?

जब से इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने पेरिस और उसके बाद अमेरिका के कैलिफोर्निया में जो आतंकी नरसंहार किया उसके बाद से अमेरिका में एक ऐसा तूफान-सा आया हुआ है जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार बनने के प्रबल दावेदार डोनाल्ड ट्रंप। अमेरिकी जनता ओबामा के आईएस से मुकाबला करने की इच्छाशक्ति पर संदेह कर रहे हैं। राष्ट्रपति से जिस सख्ती की उम्मीद की जा रही है वह जनता को नहीं दिख रही। वहां के एक सशस्त्र सेवा अधिकारी ने कहा कि आईएस से निपटने के लिए कठोर रणनीति अपनाने की जरूरत है, जिस पर ओबामा ने कुछ नहीं कहा। दूसरी ओर डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी प्रचार मुहिम के दौरान विस्फोटक बयान देते हुए कैलिफोर्निया नरसंहार के बाद अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग कर डाली। ट्रंप ने कहाöजब तक हमारे देश के प्रतिनिधि यह पता नहीं लगा लेते कि क्या कुछ चल रहा है, तब तक अमेरिका में मुसलमानों का प्रवेश पूरी तरह से रोक दिया जाए। उनका यह भड़काऊ बयान ऐसे समय में आया जब महज एक दिन पहले ही ओबामा ने देश में प्रवेश के लिए धार्मिक जांचों को खारिज करने की बात कही थी और ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों के दावेदारों के साथ मिलकर कट्टरपंथी इस्लाम को मुख्य खतरे के रूप में चिन्हित नहीं करने पर ओबामा की जबरदस्त आलोचना की। 9/11 के बाद तालिबान के सफाए के लिए जिस तरह अमेरिका ने अफगानिस्तान और फिर इराक पर हमले किए उससे अलकायदा तो खत्म नहीं हुआ पर आतंकवाद बढ़ता चला गया और आज उसने सबसे खूंखार रूप आईएस के रूप में धारण कर लिया है। अमेरिका को आतंकवाद से तभी चिन्ता होती है जब अमेरिकी जमीन पर कोई आतंकी घटना घटती है। उन कारणों पर तो वह ध्यान देता नहीं जिसकी वजह से स्थिति इतनी बिगड़ी और बिगड़ती जा रही है, सारा गुस्सा मुसलमानों पर निकाल देता है। मुट्ठीभर आतंकियों की वजह से पूरे धर्म को कसूरवार नहीं माना जा सकता। दुर्भाग्य तो यह है कि डोनाल्ड ट्रंप की मांग अमेरिका में जोर पकड़ती जा रही है। पेरिस में भी अब मस्जिदों में पुलिस रेड आरंभ हो गई है। आवश्यकता तो इस बात की है कि मुस्लिम धर्मगुरु, उलेमा, मौलाना आतंकवाद के खिलाफ जोरशोर से आवाज उठाएं। उनके हमदर्दों पर कड़ी नजर रखें। उन पर सख्ती की जाए नाकि पूरे समुदाय को कसूरवार ठहराया जाए या इस्लाम को ही खतरा बताया जाए। अगर ऐसा माहौल बनता है तो निसंदेह आईएस के प्रभाव में आने वाले युवाओं को सही रास्ते पर लाने में भी काफी मदद मिलेगी। इस्लाम को बदनाम होने से बचाने का मुख्य काम इस्लामिक धर्मगुरुओं का है।

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