Thursday 17 December 2015

...जब शरद पवार के सपने को सोनिया ने चकनाचूर कर दिया

आमतौर पर माना जाता है कि मराठा लीडर शरद पवार एक बहुत माहिर सियासतदान हैं। वह कब कौन सी चाल चल दें, कब क्या कह दें कोई नहीं बता सकता पर ऐसे माहिर नेता को भी सोनिया गांधी ने मात दे दी। शरद पवार ने अपनी किताब `लाइफ ऑन माई टर्म्स-फाम ग्रास रूट एंड कारीडोर्स ऑफ पावर' में शरद बाबू ने चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया है। शरद पवार ने दावा किया है कि दस जनपथ के स्वयंभू, वफादारों ने सोनिया गांधी को इस बात के लिए सहमत किया था कि 1991 में शरद पवार के बजाय पीवी नरसिंह राव को पधानमंत्री बनाया जाए क्योंकि गांधी परिवार किसी ऐसे व्यक्ति को पधानमंत्री नहीं बनाना चाहता था जो स्वतंत्र विचार रखता हो। राकांपा अध्यक्ष ने कहा कि वफादारों में शामिल स्वगीय अर्जुन सिंह खुद भी पधानमंत्री पद के दावेदार थे और उन्होंने पवार के बजाय राव को चुनने का निर्णय लेने में सोनिया गांधी को राजी करने की चालाकीपूर्ण चाल चली। राव की कैबिनेट में पवार रक्षा मंत्री थे। पवार की पुस्तक को उनके 75 वें जन्मदिन समारोह में औपचारिक रूप से सोनिया गांधी, पधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति की मौजूदगी में रिलीज किया गया। उन्होंने कहा कि शीर्ष पद के लिए उनके नाम पर विचार न केवल महाराष्ट्र में बल्कि दूसरे राज्यों में भी पार्टी के अंदर चल रहा था। वह काफी सावधान थे क्योंकि वह जानते थे कि काफी कुछ दस जनपथ पर निर्भर करता है, जहां सोनिया गांधी रहती हैं। अपनी किताब में पवार ने लिखा कि पीवी नरसिंह राव भले ही वरिष्ठ नेता थे लेकिन चुनाव से पहले स्वास्थ्य कारणों से वह मुख्य धारा की राजनीति से अलग थे। उनके लंबे अनुभव को देखते हुए उन्हें वापस लाने के सुझाव दिए गए। पवार लिखा कि सोनिया गांधी के वफादारों ने सोनिया को विश्वास दिलाया कि नरसिंह राव का समर्थन करना सुरक्षित रहेगा क्योंकि वह बूढ़े हैं और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। अंतत पवार के बजाय राव को चुना गया, जिन्हें 35 से ज्यादा वोटों की बढ़त मिली थी। शरद पवार ने एक अन्य अध्याय में 1977 में मोरारजी देसाई के खिलाफ अविश्वास पस्ताव स्वीकार होने के बारे में भी विस्तार से लिखा है। किताब से साफ झलकता है कि शरद पवार के पधानमंत्री बनने के सपने को सोनिया गांधी ने काफी मात दी और उनका अरमान सच होते-होते रह गया। कहते हैं न कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं। दोस्त कब दुश्मन बन जाए कहा नहीं जा सकता। निजी स्वार्थ ही सर्वेपरि होता है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment