Friday 4 December 2015

भाजपा नेता का नहीं एक स्टेट्समैन का भाषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में बोलने की कला है यह अब सारी दुनिया जानने लगी है पर जो भाषण मोदी ने संसद में मंगलवार को राज्यसभा में दिया वह वाकई ही काबिले तारीफ है। राज्यसभा में उन्होंने किसी सियासी दल के नेता के रूप में नहीं दिया बल्कि एक स्टेट्समैन की तरह दिया। संविधान निर्माण की गाथा बताने के बहाने प्रधानमंत्री ने विपक्ष को सकारात्मक राजनीति का संदेश दिया। कांग्रेस समेत तमाम नेताओं का राष्ट्र निर्माण में योगदान बताते हुए उन्होंने दो टूक कहा कि देश तू-तू, मैं-मैं से नहीं बल्कि सबके सकारात्मक योगदान से चलता है। विपक्ष के प्रति नरम रुख अपनाते हुए देश में असहिष्णु माहौल होने के आरोपों को खारिज करते हुए पीएम ने स्पष्ट तौर पर कहा कि किसी के खिलाफ अत्याचार की कोई भी घटना राष्ट्र और समाज पर कलंक है। लिहाजा देश को प्रगति के रास्ते पर ले जाने का सरकार में समता के साथ ममता का भाव अहम है। एकता और सौहार्द से ही देश आगे बढ़ता है। प्रधानमंत्री ने एकता का मंत्र देते हुए कहा कि भारत जैसे विविधता वाले देश में बिखरने के कई बहाने हो सकते हैं, लेकिन जुड़ने के अवसर कम होते हैं। हमारा दायित्व है कि हमें जुड़ने के अवसर खोजने चाहिए। असहिष्णुता के मुद्दे पर पीएम ने असहमति रखने वाले लोगों को `पाकिस्तान भेजने' जैसी टिप्पणियों पर अपनी नाराजगी जताते हुए उन्होंने साफ किया कि देश की 125 करोड़ जनता की देशभक्ति पर सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। न ही देशवासियों को बार-बार अपनी देशभक्ति का सबूत देने की जरूरत है। गौरतलब है कि बीते सप्ताह लोकसभा में भी संविधान पर चर्चा के जवाब में पीएम ने विपक्ष से सहयोग की अपील की थी। राज्यसभा की सकारात्मक भूमिका पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि संसद का कामकाज दोनों सदनों के सहयोग पर निर्भर करता है। प्रधानमंत्री का यह बयान भाजपा के संख्या बल की कमी की वजह से राज्यसभा में अटके वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) और भूमि अधिग्रहण बिल के सन्दर्भ में अहम माना जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर `एक भारत श्रेष्ठ भारत' का नारा देते हुए कहा कि सांसदों में आपस में जुड़ने के अवसर खोजने चाहिए यह उनका दायित्व भी है। प्रधानमंत्री का यह भाषण मुझे उनके द्वारा दिए गए भाषणों में सबसे अच्छे भाषणों में इसलिए लगा कि उन्होंने विपक्ष, समाज और देश को जोड़ने की बात कही। पिछले कई दिनों से जो देश में अस्थिरता का वातावरण बना हुआ है उसमें थोड़ा सुधार होने की उम्मीद है। नरेंद्र मोदी ने भाजपा के नेता के रूप में नहीं सही मायनों में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में संदेश देने का प्रयास किया जिसका स्वागत होना चाहिए।

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