Saturday, 31 December 2016

नोटबंदी के 50 दिन : क्या खोया क्या पाया?...(2)

15.4 लाख करोड़ रुपए मूल्य के 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों में करीब-करीब 14 लाख करोड़ रुपए वापस बैंकों में जमा किए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवम्बर को 500 और 1000 रुपए के नोटों को अवैध घोषित कर दिया था। तब सरकार को उम्मीद थी कि डिमोनेटाइजेशन के इस फैसले से उसे कई मोर्चों पर फायदा होगा। उम्मीद यह थी कि काले धन के रूप में रखे गए कम से तीन लाख करोड़ रुपए मूल्य के पुराने नोट वापस नहीं होंगे। ऐसा होने पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया सरकार को अच्छा-खासा लाभांश देती। लेकिन यह उम्मीद पूरी होती नहीं दिख रही है। बैंकों में जमा नोटों की मात्रा से ऐसा लगता है कि लोगों ने काले धन को सफेद करने का रास्ता निकालने में कामयाबी पा ली। अब सरकार इस बात पर खुश हो सकती है कि उसे 2.5 लाख रुपए की सीमा से ऊपर जमा हुए रुपयों पर भारी-भरकम टैक्स मिलेगा। सरकार को एक और फायदा इस लिहाज से भी नजर आ रहा है कि घरों में रखी गई छोटी-छोटी बचतों की रकम बैंकों में आ जाने से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। नोटबंदी के ऐलान को बुधवार को 50 दिन हो गए। इन 50 दिनों में 14 लाख करोड़ से ज्यादा नोट बैंकों में वापस जमा हो चुके हैं यानि 91 प्रतिशत से ज्यादा। जबकि इस दौरान सिर्फ छह लाख करोड़ रुपए के पुराने नोट सिस्टम में मौजूद होने का दावा था। यही वजह है कि आज भी देश कतारों में खड़ा है। मीडिया में एक सर्वे छपा है। इसमें 1300 से ज्यादा गांवों में सर्वे किया गया। नतीजा-अधिकांश लोग फैसले के तो समर्थन में दिखे, लेकिन साथ ही उनका कहना है कि 50 दिन बाद भी उनकी मुश्किलें जस की तस हैं। कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ने के सरकारी दावे भी कमजोर निकले। डिजिटल ट्रांजेक्शन पर नजर रखने वाली सरकारी संस्था एनपीसीआई के आंकड़ों की मानें तो नवम्बर में डिजिटल ट्रांजेक्शन 15 प्रतिशत घटा है। हालांकि एटीएम जैसी कंपनियां 300 प्रतिशत इजाफे की बात कर रही हैं। बात काले धन की करें तो इस दौरान आयकर विभाग ने 678 छापे मारे। इसमें 3600 करोड़ रुपए का ही काला धन पकड़ा। नोटबंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हमारा ग्रामीण अंचल है। पांच राज्यों के 1310 गांव के सर्वेक्षण में पता चला कि 61 प्रतिशत गांवों में एटीएम नहीं हैं। 86 प्रतिशत गांवों में स्वाइप मशीनें नहीं हैं। कैशलेस ट्रांजेक्शन इंटरनेट सुविधा पर आधारित है। भारत में कुल 26 प्रतिशत क्षेत्र में इंटरनेट सुविधा है। दिल्ली में हमें इंटरनेट का अनुभव है। यह कितना चलता है? किस स्पीड पर चलता है यह सबको पता है। इसलिए जब शहरों में यह सुविधा ठीक नहीं है तो गांवों में यह कितनी कारगर होगी आप खुद अनुमान लगा सकते हैं। अब बात करते हैं विदेशी निवेशकों की। फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स आठ नवम्बर के बाद से डेट और इक्विटी मार्केट में लगभग 10 अरब डॉलर यानि 68,000 करोड़ रुपए की बिकवाली कर चुके हैं। यह 2013 के बाद दो महीने के पीरियड में उनकी तरफ से हुई सबसे बड़ी बिकवाली में एक है। नोटबंदी के ऐलान के बाद बैंकिंग सिस्टम में नए नोट आते रहने के बावजूद एटीएमों के बाहर लोगों की लाइनें छोटी नहीं हो रही हैं क्योंकि कुछ भ्रष्ट बैंक मैनेजर और अधिकारी काले धन को सफेद करने में जुटे हैं। इन बैंकरों ने ब्लैक मनी वालों का साथ देने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए। सही कस्टमर की पहचान चुराना। कई ग्राहकों की ओर से जमा कराए गए पैन कार्ड और पहचान पत्र जैसे दस्तावेजों का इस्तेमाल चोरी-छिपे अवैध लेनदेन में किया गया। एटीएम के पैसे की हेराफेरी। बैंक अधिकारियों ने एटीएम सर्विस एजेंसियों के साथ मिलकर एटीएमों के लिए भेजे गए नोटों (नए) के जरिये काले धन को सफेद किया। जनधन खातों का गलत इस्तेमाल। हर बैंक में 10 से 15 प्रतिशत जनधन खातों का इस्तेमाल काले धन को सफेद करने में हुआ। ऐसा करने वाले बैंकर अब सीबीआई के निशाने पर हैं। डिमांड ड्राफ्ट का फर्जीवाड़ा। बैंक अधिकारियों ने काले धन को सफेद करने के लिए जिन तरीकों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया उनमें एक यह भी है। कमीशनखोर कैशियर। कैशियरों ने कमीशन लेकर पुराने नोटों को नए नोटों से बदल दिया। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में बैंक गए गरीब और निरक्षरों को ठगा गया। फर्जी खाते खोले। कुछ मामलों में जिन ईमानदार खाताधारकों के आईडी प्रूफ बैंकरों के हाथ लगे, उनके नाम पर खाते खोलकर उसके जरिये पैसे की हेराफेरी की। नोटबंदी के बाद काले धन की बैंकों ने काले धन के बदले नए नोट बदलने में शादी के हथियार तक का जमकर उपयोग किया। शादी का कार्ड डालते ही 2.50 लाख रुपए बदल गए। इसके लिए अलग-अलग आईडी का इस्तेमाल किया गया। यहां तक कि लोन के लिए जमा फार्म में लगाए आईडी का दुरुपयोग किया गया। कुछ बैंक अफसर-कर्मचारियों ने 25 से 30 प्रतिशत कमीशन के लालच में घर तक नए नोट पहुंचाने की व्यवस्था की थी। सर्वाधिक धांधली एक्सिस बैंक की 10 ब्रांचों में की गई। इस दौरान कई विवाद पैदा हुए। नोटबंदी पर प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण की मांग पर विपक्ष ने संसद का शीतकालीन सत्र नहीं चलने दिया और देश को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। अधूरी तैयारियों के आरोपों के साथ रिजर्व बैंक के बार-बार नया आदेश जारी करने से केंद्रीय बैंक की साख प्रभावित हुई। अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट एजेंसियों ने भारत की विकास दर गिरने की बात कही है। भाजपा विधायक एक वीडियो में यह कहते हुए कैद हुए कि केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के बारे में दो बड़े उद्योगपतियों को पहले से जानकारी थी। हालांकि बाद में वह इस बयान से मुकर गए। हमारे परिवार में दादा जी से लेकर मुझ तक यही परंपरा रही कि हमेशा जनता के हितों में आवाज उठाओ, वह भी बिना किसी लाग-लपेट के। मैंने ऐसा ही करने का प्रयास किया है। पाठक जानते हैं कि मैंने पहले दिन से जिन उद्देश्यों को लेकर नोटबंदी की गई उन पर संदेह व्यक्त किया था। आज भी अपने स्टैंड पर कायम हूं। मैं चाहता हूं कि देश में ब्लैक मनी बंद हो, काले धंधे बंद हों, भ्रष्टाचार समाप्त हो पर इन तरीकों से शायद ही इनमें सफलता मिले? अगर हमें इन उद्देश्यों को पाना है तो कई कदम उठाने होंगे और सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं। एसोचैम के मुताबिक 95 करोड़ भारतीयों के पास अब भी इंटरनेट की पहुंच नहीं है। इंटरनेट स्पीड के मामले में भी भारत 3.5 एमबीपीएस के साथ विश्व रैंकिंग में 113वें स्थान पर है। नए नोटों की छपाई के बावजूद पर्याप्त मात्रा में नकदी आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। आरबीआई अनुमानित आर्थिक विकास की दर 7.6 से 7.1 कर चुका है। एशिया विकास बैंक ने भी विकास दर में कमी की। एसोचैम ने 2017 तक मोबाइल फ्राड 65 प्रतिशत बढ़ने की आशंका जताई थी। साइबर धोखाधड़ी को रोकना सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती है। एक अनुमान के मुताबिक मार्च 2016 तक देश में सिर्फ 53 प्रतिशत लोगों के ही बैंक खाते हैं। पूरे देश को बैंक से जोड़ना होगा। अब आप खुद फैसला करें कि नोटबंदी के 50 दिन में देश ने क्या खोया क्या पाया। (समाप्त)

-अनिल नरेन्द्र

Friday, 30 December 2016

नोटबंदी के 50 दिन ः क्या खोया क्या पाया?...(1)

अधिकतर मुद्दों पर हमने सरकार का तब साथ दिया है जब हमें लगा कि इससे देश को फायदा होगा, जनता के हित में है पर जब हमें लगा कि इस मुद्दे से देश की जनता को नुकसान होगा तो हमने सरकार का विरोध किया है। हम जनता को जवाबदेह हैं न कि किसी राजनीतिक दल या उसकी सरकार को। एक पत्रकार का पहला फर्ज है कि वह जनता की आवाज उठाए। इसीलिए हमने इस कॉलम का नाम रखा है आज की आवाज। आठ नवम्बर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिमोनेटाइजेशन यानि नोटबंदी का ऐलान किया था तभी से मुझे लगा कि यह जिन उद्देश्यों के लिए उठाया गया है वह शायद ही इस कदम से पूरा हो। प्रधानमंत्री ने आठ नवम्बर को कहा था कि जनता मुझे 50 दिन दे, उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। नोटबंदी के 50 दिन आज पूरे हो गए हैं। इन 50 दिनों का लेखाजोखा देखना जरूरी है। पहले इन 50 दिनों की उपलब्धियों पर नजर डालते हैं। हजारों करोड़ रुपए की अघोषित आय का पता अब तक देश में लग चुका है। हवाला कारोबारियों और कर चोरों के लिए मुश्किलें बहुत ज्यादा बढ़ी हैं। पुराने नोटों के रद्दी होने से आतंकियों और नक्सलियों की फंडिंग पर लगाम लगी है। नोटबंदी के बाद अकेले छत्तीसगढ़ से नक्सलियों के 7000 करोड़ रुपए का पता चला है। केंद्र सरकार के मुताबिक नोटबंदी के बाद से 400 करोड़ रुपए के नकली नोटों का कारोबार बंद हुआ है। देश कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना शुरू हुआ है। दुकानों में पीआईओएस मशीनों की मांग बढ़ी है। 300 प्रतिशत नकदी बढ़ी बैंकों में। बैंकों के पास 2.5 लाख करोड़ जमाधन था जो अब सात लाख करोड़ से ज्यादा हो गया है। काला धन, आतंकवाद और भ्रष्टाचार वो तीन बिन्दु थे जिन पर आठ नवम्बर रात आठ बजे अपने भाषण के दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि नोटबंदी इन पर बड़ा प्रहार करेगी। 50 दिन बाद भी जनता को बैंकों और एटीएम से नकदी नहीं मिल रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि नोटबंदी से न काला धन खत्म हुआ और न ही भ्रष्टाचार। पीएम ने कहा था कि 30 दिसम्बर तक सब ठीक हो जाएगा पर 50 दिन बीतने के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हुई। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा कि पीएम ने 50 दिन मांगे थे। क्या अब वह इस्तीफा देंगे? इन 50 दिनों में देश 20 साल पीछे चला गया है। नोटबंदी के कई साइड इफैक्ट्स हुए हैं। राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक-एक कर नोटबंदी के 16 साइड इफैक्ट्स गिनाते हुए लिखाöनोटबंदी से जहां 22 करोड़ लोगों की नौकरी छिन गई वहीं देश में सैकड़ों मौतें हो गईं। वहीं देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है। व्यापार खत्म है, व्यापारी त्रस्त और किसान, मजदूर एवं गरीब परेशान हैं। उन्होंने कहा कि देश में गैर संगठित क्षेत्र में कार्यरत 94 लाख लोगों का रोजगार खतरे में है और उत्पादन, खपत और निवेश में भारी कमी आई है। आर्थिक व्यवस्था ठप है और फुटकर व्यापारी मरने की कगार पर। राजद अध्यक्ष ने तंज कसते हुए कहा कि नकदी के रूप में प्रयोग होने वाला हर नोट काला धन नहीं होता, ज्यादातर वह पैसा है, जिस पर टैक्स दिया जा चुका होता है। उन्होंने कहा कि नोट का रंग बदलने और आकार बदलने से न तो काला धन खत्म होगा और न ही भ्रष्टाचार। वर्तमान सरकार ने तीन करोड़ रुपए के नकली नोट खत्म करने के लिए 42000 करोड़ नए नोट छापने का देश पर खर्च लाद दिया। उन्होंने कहा कि भारत में केवल चार प्रतिशत काला धन नकदी में है और बाकी 96 प्रतिशत काले धन को छुपाने के लिए नोटबंदी का नाटक किया गया। जिस दिन से देश में नोटबंदी हुई है, उसी दिन से देश का हर वर्ग किसी न किसी तरह से प्रभावित हुआ है। किसानों की दुर्दशा तो बहुत चिन्ताजनक है। किसानों के आलू एक रुपए, टमाटर दो रुपए, आंवला तीन रुपए प्रति किलो के भाव  से मंडियों पर बेचने को किसान मजबूर हैं। इसके चलते किसान अपने आलू-प्याज को रोड पर फेंक रहे हैं क्योंकि उनकी लागत उनको नहीं मिल रही है। भारत की अर्थव्यवस्था 30 प्रतिशत धीमी हो गई है, व्यापार वर्ग खाली पड़ा हुआ है, किसान व मजदूर को रोटी के लाले पड़े हैं। पूरे देश में बेरोजगारी बढ़ी है। परिवार के साथ राजमिस्त्राr का काम करने आए बिहार के मोहम्मद नईम की नोटबंदी के बाद दिहाड़ी आधी रह गई है। वह कहते हैं कि नोटबंदी के बाद हालत यह हो गई है कि एक लीटर दूध की जगह आधा लीटर दूध ही ले रहा हूं। फुटकर पैसे बहुत कम बचते हैं। पहले महीने में 25 दिन काम मिलता था जो अब 10 दिन ही बचा है। वह भी लोग उधार पर काम करा रहे हैं। सभी यह कहकर दिहाड़ी टाल देते हैं कि पैसा नहीं निकल पा रहा है, कल लेना। नई दिल्ली इलाके में दिहाड़ी का काम करने वाला अरविन्द नोटबंदी का जिक्र आते ही कहते हैं कि हमारा तो इस नोटबंदी ने सब कुछ लूट लिया। यह समझिए कि भूखे मरने की नौबत आ गई है। हर दिन 800-1000 कमाता था। मजदूरी से बेटी की शादी की। बेटा इंजीनियरिंग कर रहा है। एक बेटी बीएड कर रही है। अब हालात यह है कि बेटी की 10 हजार फीस और मकान का 4000 रुपए किराया देना भी मुश्किल है। पूरे दिन में 200 का भी काम नहीं मिलता। शकरपुर में कंधे पर लेकर चाय बेचने वाले माणिक सरकार बताते हैं कि नोटबंदी ने शुरुआती दौर में मेरे धंधे को बहुत प्रभावित किया। हालात अभी भी ऐसे हैं कि काम घटकर 400 रुपए प्रतिदिन से 150 रुपए पर आ गया है। मकान का किराया देना भी भारी पड़ गया। किशनकुंज के पास खोमचा लगाने वाले राम प्रसाद पटेल कहते हैं कि नोटबंदी के बाद नकदी निकालने और खुले पैसों के लिए बहुत परेशान हूं। नकदी निकालने के लिए सुबह चार बजे से कतार में  लगें तो दोपहर बाद नम्बर आता है। किसी तरह उधार लेकर या बच्चों की गुल्लक से पैसे निकालकर काम चल रहा है। (क्रमश)

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 29 December 2016

विदेशी आर्थिक रेटिंग वालों की नजरों में नोटबंदी?

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मविश्वास से लबालब हैं। वे मानते हैं कि यह गिलास जो आधा खाली है तो उस खाली हिस्से की हवा को भी भारत की भोली जनता को बेच सकते हैं। पानी को भी बेच देंगे और हवा को भी। नोटबंदी से काला धन तो समाप्त होने से रहा। पर मोदी जी नोटबंदी को जनता में सफल प्रमाणित करके दिखाने का प्रयास जरूर कर रहे हैं। यही उनकी सियासी कला है कि काला धन खत्म नहीं होगा पर वे इसे खत्म होता दिखाए जा रहे हैं। लोगों को मोहने की उनकी मार्केटिंग कला इंदिरा गांधी, नेहरू से भी कई मायनों में लाजवाब है क्योंकि 56 इंची छाती के राष्ट्रवाद से लेकर संघ परिवार के तामझाम, मां की ममता, त्याग का प्रचार क्लब और सोशल मीडिया के ऐसे लाभ हैं जो पूर्व के किसी प्रधानमंत्री को नहीं थे। पूरे मामले का जादू यंत्र यह है कि यदि मार्केटिंग ठीक है तो सोना कोयला बना देंगे और कोयला सोना। गरीब की सफेद नकदी काली हो गई और अमीर के काले नोट सफेद होंगे तब भी मोदी-मोदी के नारे उनकी सभाओं में लगेंगे। खाली जेब बना दिया भारत की जनता को। पर मोदी जी की भाषण कला और अदम्य उत्साह का विदेशी फाइनेंशियल सर्विसेज पर कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा है। अमेरिकी रेटिंग एजेंसी मूडीज भारत की आर्थिक हैसियत बढ़ाने को तैयार नहीं है यानि काले धन के खिलाफ उनके द्वारा उठाए गए नोटबंदी और दूसरे कदमों पर अभी दुनिया की प्रतिष्ठित संस्थाएं कोई निर्णय नहीं देना चाहतीं बल्कि उन्हें उसके प्रभावों का इंतजार है। इसके उलट सरकार बेचैन है। उसकी वैश्विक आर्थिक स्थिति की मान्यता बढ़े और निवेश आए। मूडीज ने 16 नवम्बर को लिखे अपने पत्र में स्पष्ट कहा है कि भारत सरकार के प्रयासों से अभी वह हासिल नहीं हो सका है, जिसके आधार पर रेटिंग सुधारी जा सके। मूडीज देश पर लंबे कर्जे और बैंकों की बुरी स्थिति को कमजोर रेटिंग की वजह मानती है। उसने विश्लेषण दर्ज किया है कि बैंकों के 136 अरब डॉलर डूब रहे हैं और सरकार का कर्ज भले ही घटा हो, लेकिन उसका ब्याज काफी बढ़ गया है। फाइनेंशियल सर्विस देने वाली ग्लोबल फर्म मार्गन स्टैनली का मानना है कि नोटबंदी से इंडियन इकोनॉमी को कोई फायदा होने वाला नहीं है। अगर सरकार भ्रष्टाचार को रोकना चाहती है तो उसके लिए नोटबंदी नाकाफी है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार को दूसरे कदम भी उठाने होंगे। मार्गन स्टैनली के अनुसार संकट के समय में ही नोटबंदी का इस्तेमाल होता है और इसमें दो राय नहीं है कि नोटबंदी के जरिये राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश हो रही है।

-अनिल नरेन्द्र

मसला नोटबंदी के बाद बसपा खाते में करोड़ों रुपए का

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नोटबंदी के बाद बहुजन समाज पार्टी के खाते में 104 करोड़ रुपए और पार्टी सुप्रीमो मायावती के भाई आनंद कुमार के खाते में 1.43 करोड़ रुपए जमा होने के खुलासे से सियासी हलकों में हलचल मचना स्वाभाविक ही था। ये रकम यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के खातों में जमा कराई गई। करोल बाग स्थित बैंक ब्रांच के सर्वे के दौरान ईडी को इस बात की जानकारी मिली। ईडी के अनुसार नोटबंदी के बाद इन दोनों ही खातों में बड़े पैमाने पर पुराने नोट जमा कराए गए। जमा की गई रकम में 102 करोड़ 1000 रुपए के नोट और बाकी के पुराने 500 के नोट जमा कराए गए। अधिकारियों के मुताबिक इसके बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं और हर दिन 15 से 17 करोड़ रुपए इस खाते में जमा कराए जाते रहे। हर दूसरे दिन रकम जमा होने से अफसर भी हैरान हैं। जांच एजेंसी ने बसपा सुप्रीमो मायावती के भाई आनंद कुमार के उसी शाखा में एक और खाते का पता चला है। इसमें 1.43 करोड़ रुपए जमा हैं। इसमें 18.98 लाख रुपए नोटबंदी के बाद पुराने नोटों के रूप में जमा कराए गए। पूरे प्रकरण पर मायावती ने कहा कि यह सारी राशि कार्यकर्ताओं से मिले चन्दे की रकम थी। इसे पार्टी ने आयकर विभाग व टैक्स नियमों के तहत रुटीन प्रक्रिया में जमा कराया था। इसे घोटाले की तरह पेश किया जा रहा है। नोटबंदी का विरोध करने के कारण ही यह साजिश रची जा रही है। यह भाजपा की दलित विरोधी मानसिकता है। मायावती ने मंगलवार को लखनऊ में कहा कि चुनावी वादाखिलाफी और नोटबंदी के कारण हो रही हार से दुखी केंद्र सरकार के लोग प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर बसपा और उसके सर्वोच्च नेतृत्व की छवि खराब करने की कोशिश में लगे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ चैनलों और अखबारों के जरिये बसपा द्वारा बैंक में जमा कराई गई धनराशि के बारे में जो खबर आई है, वह बसपा ने अपने नियमों के मुताबिक ही जुटाई सदस्यता शुल्क को एक नियमित प्रक्रिया के तहत हमेशा की तरह बैंक में जमा कराया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि जिस अवधि में  बसपा और आनंद कुमार के खातों में धन जमा होने की बात कही जा रही है, उसी दौरान भाजपा सहित अन्य पार्टियों ने भी अपना धन बैंकों में जमा कराया है, लेकिन उनकी चर्चा नहीं होती और न ही उनकी मीडिया में खबर आती है। मायावती की सफाई पर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि दलित नेता होने का अर्थ यह नहीं है कि उसे भ्रष्टाचार का अधिकार मिल गया हो। वहीं भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तंज कसते हुए कहा कि मायावती नोटबंदी का विरोध क्यों कर रही थीं इसकी वजह अब समझ आती है।

Wednesday, 28 December 2016

Outgoing Obama shocks Israel

Despite the acute pressure from the newly elected US President Donald Trump and pro-Israel lobby, Obama administration helped the United Nations Security Council in passing the motion condemning the establishment of settlements  in disputed area by Israel. The US was under pressure to hold censure motion by using its veto. The United Nations have asked Israel to remove the illegal Jewish settlements from the Palestinian territory. Not buckling under the heavy pressure, US allowed the Security Council to pass the motion by abstaining and avoiding to use its veto. It is the rarest moment when the US neither exercise its veto nor participated in the voting. Besides Israel, the motion was being opposed by the newly elected US President Donald Trump. Reacting to it, Trump wrote on Twitter: situations will change for the UN after 20th January. The US ambassador to the UN Samantha Powel has said that construction of Jewish settlements is a constraint in the two-nation solution between Israel and Palestine. The UN has declared these settlements as illegal and illegal settlements here are increasing. Presently 430,000 Jewish are there in illegal Jewish settlements at Western shore and 200,000 Jewish are in East Jerusalem and Palestinians see the East Jerusalem as the future capital.

Meanwhile the office of the Israeli Prime Minister Benjamin Netanyahu has said that Israel condemns this anti-Israel shameful motion in the United Nations and will not comply with it. He said that the US Administration not only failed to protect Israel from this assemblage but it also conspired with it behind the screen. It said that Israel would like to remove the harmful effects of this senseless motion by working with the newly elected US President Trump and all our friends in Republican Party and Democratic Party in the Congress. 

Just before two days of voting and Israeli officer had alleged the US to leave Israel in a dilemma. In fact, had the US exercised the veto, the motion would have fell. But it didn’t happen. This US step is being treated as a diplomatic damnation of Israel, its nearest associate.

-              Anil Narendra

जाते-जाते ओबामा ने दिया इजरायल को झटका

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल समर्थक लॉबी के जबरदस्त दबाव के बावजूद ओबामा प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव को मंजूर होने दिया जिसमें इजरायल द्वारा विवादित क्षेत्र में बस्तियों के निर्माण की निन्दा की गई थी। अमेरिका पर इस निन्दा प्रस्ताव को वीटो द्वारा रोकने का दबाव था। संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल से मांग की है कि वह फलस्तीनी क्षेत्र से अवैध यहूदी बस्तियां हटाए। भारी दबाव की परवाह न करते हुए अमेरिका ने इजरायल से फलस्तीनी क्षेत्र में अवैध बस्तियां रोकने की मांग करने वाले प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने वीटो का इस्तेमाल करने से बचते हुए इसे पारित करने की परिषद को मंजूरी दे दी। यह दुर्लभतम क्षण है जब अमेरिका ने अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया और न ही मतदान में हिस्सा लिया। सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव का विरोध इजरायल के अलावा अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर रहे थे। ट्रंप ने इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्विटर पर लिखाöसंयुक्त राष्ट्र के लिए 20 जनवरी के बाद स्थितियां बदल जाएंगी। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत सामंथा पॉवर का कहना है कि यहूदी बस्तियां का निर्माण इजरायल और फलस्तीन के बीच दो-राष्ट्र समाधान में रोड़ा बना है। संयुक्त राष्ट्र ने इन यहूदी बस्तियों को अवैध करार दिया है और यहां अवैध यहूदी बस्तियों का निर्माण बढ़ा है। पश्चिमी किनारे की अवैध यहूदी बस्तियों में अभी 430,000 और पूर्वी यरुशलम में 200,000 यहूदी रह रहे हैं और फिलीस्तीन पूर्वी यरुशलम को भविष्य की राजधानी के रूप में देखते हैं। इस बीच इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यालय ने कहाöइजरायल संयुक्त राष्ट्र में इजरायल विरोधी इस शर्मनाक प्रस्ताव को खारिज करता है और इसका पालन नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि ओबामा प्रशासन संयुक्त राष्ट्र में इस  जमावड़े से इजरायल की रक्षा करने में न सिर्फ नाकाम रहा बल्कि उसने पर्दे के पीछे इसके साथ साठगांठ की। कार्यालय ने कहाöइजरायल (अमेरिका के) नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप और कांग्रेस रिपब्लिकन पार्टी एवं डेमोक्रेटिक पार्टी में हमारे सभी मित्रों के साथ काम करके इस बेतुके प्रस्ताव के नुकसानदायक प्रभावों को समाप्त करना चाहेगा। दो दिन वोटिंग से पहले ही एक इजरायली अधिकारी ने अमेरिका पर इजरायल को मझधार में छोड़ने का आरोप लगाया था। दरअसल अमेरिका यदि वोटों के अधिकार का उपयोग करता तो प्रस्ताव खारिज हो जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अमेरिका के इस कदम को उसके निकटतम सहयोगी इजरायल को कूटनीतिक फटकार वाला माना जा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

अटल जी का व्यक्तित्व पद से हमेशा ऊपर रहा है

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी देश की राजनीति के विरले लोगों में से हैं जिनके व्यक्तित्व का कद उनके पद से हमेशा ऊंचा रहा। अटल जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, एक मझे हुए राजनीतिज्ञ, कुशल प्रशासक, साहित्यकार, कवि एवं दृढ़ विचारों के जन-जन के नायक हैं जिनके लिए आज भी लोगों में आदर और प्रेम है। अटल जी को बचपन से ही साहित्यकार और पत्रकार बनने की तमन्ना थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया, उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजञ्य और वीर अर्जुन का संपादन किया। अपनी कुशल वाक् शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया था। अटल जी से मेरा अच्छा संबंध व सम्पर्क रहा। मुझे उनके साथ संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका, पेरिस, इंडोनेशिया जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अकसर मैं उनसे मिलता रहता था। अगर उन्हें मेरा कोई संपादकीय पसंद नहीं आता तो वह फोन करके अपनी असहमति जाहिर कर देते। जनता और उनके प्रेमी उनकी तबीयत और वर्तमान स्थिति के बारे में अकसर मुझसे पूछते हैं। 25 तारीख को उनके 92वें जन्मदिन पर काफी गहमागहमी रही। सुबह-सुबह प्रधानमंत्री और अमित शाह सहित भाजपा के कई बड़े नेता उन्हें बधाई देने पहुंचे। वीवीआईपी मूवमेंट के कारण पूरा इलाका छावनी में तब्दील था लेकिन वहीं इसे देखकर अटल जी हर आने-जाने वालों को टकटकी लगाकर देख तो रहे थे लेकिन चाहकर भी कुछ नहीं कह पा रहे थे। अफसोस जिस व्यक्ति की आवाज की सारी दुनिया कायल थी, उस आवाज ने ही उनका साथ छोड़ दिया। अटल जी कई साल से बीमार हैं और बिस्तर पर हैं, सिर्फ इशारों-इशारों में बात करते हैं। उनके चाहने वाले जरूर जानना चाहते हैं कि वह कैसे दिखते होंगे, क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, चल-फिर पाते हैं या नहीं, पहचान पाते हैं या नहीं इत्यादि इत्यादि। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के कुछ महीने बाद से ही अटल बिहारी वाजपेयी सियासी पटल से लगभग गायब हो गए हैं। बुढ़ापा और बीमारी के चलते वह डाक्टरों की निगरानी में अपने घर पर ही रहने को मजबूर हैं। अटल जी के साथ साये की तरह रहने वाले शिव कुमार उनकी पूरी देखभाल में लगे हैं। सुबह उठकर अटल जी हर रोज कसरत करते हैं। उन्हें चार डाक्टरों की टीम सुबह एक्सरसाइज करवाती है। उसके बाद डाक्टरों की सलाह पर उन्हें नाश्ते में दलिया, दूध, ब्रैड और जूस दिया जाता है। हालांकि यह भी सच है कि वह खुद से नहीं चल पाते हैं। उनके कदम लेने के लिए सहारे की आवश्यकता पड़ती है। उन्हें घर में एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए व्हीलचेयर की मदद ली जाती है। शिव कुमार के मुताबिक अटल जी अब बेहद कम बोलते हैं लेकिन उनका अंदाज आज भी वही है। वे अब भी ठहराव लेकर कोई बात कहते हैं। जुबान लड़खड़ाती है इसलिए वे ज्यादातर अपनी बातें इशारों में करते हैं। पूरी जिन्दगी राजनीति में खपा देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी उम्र के इस पड़ाव में भी देश-दुनिया से अपडेट रहने की भरसक कोशिश करते हैं। शिव कुमार ने बताया कि पिछले साल तक वह अखबार पढ़ लेते थे, लेकिन अब कमर और नजर दोनों ने उन्हें यह आदत छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। जटिल राजनीतिक जीवन में हमेशा सामंजस्य और सरल रास्ता ढूंढने वाले अटल जी ने देश-दुनिया से अपडेट रहने का भी रास्ता निकाल लिया है। वह अब टीवी क्रीन पर कोई अच्छी खबर देखते हैं तो उनके चेहरे पर एक सादगी भरी मुस्कान दस्तक दे जाती है। अटल जी का हालचाल पूछने वालों में लाल कृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह अकसर आते हैं। हफ्ते-दस दिनों में ये दोनों नेता यहां आते ही रहते हैं। आडवाणी जी यहां आकर घंटों बैठते हैं और अटल जी को निहारते रहते हैं। कई बार तो वह अटल जी की निगरानी वाले डाक्टरों से भी बातचीत करते हैं। सो यह है अटल जी की दिनचर्या। अटल जी की यह स्थिति देखकर दुख होता है।

Tuesday, 27 December 2016

फिलहाल नोटबंदी का नुकसान-फायदा किसको?

अगर हम यह कहें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी करके न केवल अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा दिया है बल्कि अपनी पार्टी का भी भविष्य अब नोटबंदी की सफलता पर काफी हद तक टिक गया है। गत दिनों मेरी एक वरिष्ठ भाजपा नेता से बात हो रही थी। पहले तो वह मोदी जी के पुल बांध रहे थे, फिर मान गए कि बात उतनी आसान नहीं है, जितनी बताई जा रही है। लंबी चर्चा करते हुए उन्होंने कुछ लंबी सांस ली। बोले कि ऐसा है कि यह समझ लो कि मोदी जी ने खुद को दांव पर लगाया है। साथ ही फिलहाल पार्टी भी दांव पर लग गई है। आखिरकार कहने लगे कि अच्छा खासा मामला जमा हुआ था। पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक का असर सालभर तक कहीं नहीं जाना था। उसका फायदा पार्टी को मिलता पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव तो निपट जाने देते? अब अपनी इमेज और पार्टी दोनों के लिए सवाल खड़े हो गए हैं। देश के अंदर जो हालात हैं वह सबके सामने हैं पर अब तो विदेशों में भी नोटबंदी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। नोटबंदी का विजेता फिलहाल कौन है? वे जमाखोर जिन्होंने अपने जमा किए हुए हर नोट को सफेद कर लिया। काले धन को सफेद करने वाले दलाल, भ्रष्ट बैंक कर्मियों को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है। वे बैंक अधिकारी, जिन्होंने पुराने नोटों के बदले नए नोटों के बंडल टैक्स चोरों व भ्रष्ट अफसरों को दिए। ये सारे तत्व कल्पनातीत रूप से कामयाब हुए और इन्होंने व्यावहारिक तौर पर यह पक्का कर दिया कि 15,44,000 करोड़ रुपए की राशि का हर एक रुपया बैंकिंग सिस्टम में लौट आएगा। पराजित कौन? औसत आदमी, जिसे अपने ही खाते का पैसा निकालने के लिए बार-बार बैंक जाने के लिए विवश किया जा रहा है। वह व्यक्ति जिसके पास कुछ पुराने नोट थे और किसी बैंक शाखा तक पहुंच नहीं थी (दूरी के कारण) और जिसे कम कीमत पर अपने नोट बदलने पड़े। वह गृहणी, जिसे थोड़े पैसों के लिए हाथ फैलाने पड़े ताकि वह दिन में कम से कम एक बार अपने परिवार के खाने का जुगाड़ कर सके। वह मरीज, जो पास में पैसा न होने से अपना इलाज नहीं करा सका। वह विद्यार्थी जिसके पास खाने के लिए नजदीक के गुरुद्वारे के लंगर का सहारा लेने के सिवाय कोई चारा न था। वह किसान जिसके पास बीज या खाद खरीदने या मजदूर को देने के लिए पैसा नहीं था और इस तरह जिसकी उत्पादकता मारी गई। काले धन पर अंकुश लगाने के लिए, लिए गए नोटबंदी के फैसले की चर्चा दूसरे देशों में हो रही है। कई देशों के बड़े अखबारों ने इस पर अपनी राय व्यक्त की है। न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है कि भारत में गलत नीतियों से बनता काला धन। जाहिर तौर पर भारत में डिमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण) भ्रष्टाचार, आतंकवाद के वित्त पोषण और महंगाई को काबू करने के लिए लागू किया गया था।  लेकिन यह बाजार के खराब नियमों के भुगतान और कम समय को ध्यान में रखकर बनाई गई नीति है। इसके विफल होने की आशंका है। इसका असर मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्गों के साथ-साथ गरीबों के लिए भी पीड़ादायक है। अमेरिका के पूर्व वित्तमंत्री लारेंस एच. समर्स ने भी इस फैसले पर संदेह जताया है। उन्होंने कहा कि यह उपाय भ्रष्टाचार रोकने में भी पूरी तरह सक्षम नहीं है। द गार्डियन ने लिखा है कि भारत में  लाइन लगाकर भुगतान के इस जुगाड़ का स्वागत किया जा रहा है, यह आश्चर्यजनक है। फ्री मलेशिया के अनुसार भारत आने वाले पर्यटकों को भी मोदी सरकार के इस कदम से काफी परेशानी हो रही है क्योंकि मनी चेंजर्स ने नोट बदलना बंद कर दिया है। सिंगापुर के स्थानीय अखबार द सट्रेटंस टाइम्स के अनुसार, वहां पर काफी लोग पुराने भारतीय नोटों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन न तो बैंक और न ही मनी चेंजर्स पुरानी भारतीय मुद्रा को स्वीकार कर रहे हैं। अखबार के अनुसार भारत सरकार के इस कदम का असर सिर्फ भारत में ही नहीं अन्य देशों पर भी पड़ेगा। अंत में नेपाल के अखबार काठमांडू पोस्ट के अनुसार केंद्रीय बैंक द नेपाल राष्ट्र बैंक ने भी भारत में बंद किए गए नोटों को नेपाल में बैन कर दिया है। इसका असर नेपाल में कारोबार में बड़े पैमाने पर पड़ रहा है, क्योंकि वहां भारतीय मुद्रा बहुत अधिक प्रचलन में है।

-अनिल नरेन्द्र

क्या नजीब के हटने से दिल्ली की जंग खत्म होगी?

एक नेक नीयत, अच्छे इंसान नजीब जंग ने दिल्ली के उपराज्यपाल के पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया। नजीब जंग ने अपने इस्तीफे के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया है। वह प्रधानमंत्री से मिले भी पर लगता है कि उनका छोड़ने का इरादा पक्का है। मोदी सरकार ने ढाई साल के कार्यकाल में यूपीए द्वारा नियुक्त अधिकांश राज्यपालों को बदल दिया, लेकिन दिल्ली में जंग बरकरार रहे और दिल्ली सरकार से उनकी जंग भी जारी रही। एलजी ऑफिस से जारी बयान के अनुसार जंग वापस अपने एकेडेमिक क्षेत्र में जाएंगे। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार चर्चा है कि केंद्र में टॉप लेवल से हटने के लिए कहा गया। कई बार आप सरकार के खिलाफ अतिसक्रियता, भाजपा व केंद्र की समस्या उनके लिए मुसीबत बन गई थी। कहा जाता है कि नजीब के भाजपा और आरएसएस में रिश्ते न के बराबर थे। भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी भी उन पर कांग्रेस के इशारे पर काम करने का आरोप लगा चुके हैं। अगले साल दिल्ली नगर निगम के चुनाव होने हैं। पिछला विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार चुकी भाजपा के कई नेता काफी वक्त से जंग को हटवाना चाहते थे। कारण कुछ भी रहे हों पर हकीकत यह है कि नजीब जंग का अचानक यूं इस्तीफा कई सवाल छोड़ गया है। बुनियादी सवाल है दिल्ली सरकार और केंद्र के अधिकारों का। श्री केजरीवाल के बहुत से फैसले इसलिए जंग साहब ने रोके क्योंकि संविधान उनके द्वारा जिस तरह से यह फैसले लिए गए उसकी इजाजत नहीं देता। दिल्ली के प्रशासन की कमान को लेकर केजरीवाल के साथ चले शह और मात के खेल में जंग को तब बड़ी सफलता मिली थी, जब दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और उपराज्यपाल ही इसके प्रशासनिक प्रमुख हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पिछली सुनवाई में यह कहा है कि दिल्ली की सरकार के पास कुछ अधिकार तो होने चाहिए जिससे वह काम कर सके, इस मामले में अब अगली सुनवाई जनवरी में है और उम्मीद है कि तब तक दिल्ली को कोई नया उपराज्यपाल मिल जाएगा। अभी न्यूनतम मजदूरी वृद्धि, स्लम पॉलिसी, बस लेन में जुर्माना, मोहल्ला क्लीनिक निर्माण समेत कई फाइलों पर सुझाव के बाद सुधार करके मंजूरी के लिए भेजना था। अब उन योजनाओं में देरी और बढ़ेगी। जंग ने विवादों के बीच एक बार विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि वे के. शुंगलू की अगुवाई वाली कमेटी ने जो फाइलें परखी हैं, उसमें कई तरह की अनियमितताएं और नियम-कानून का उल्लंघन मिला है। कुछ मामलों को सीबीआई को भेजे जाने की प्रक्रिया में हैं। ऐसे में शुंगलू कमेटी ने 27 नवम्बर को अपनी रिपोर्ट एलजी को सौंप दी। नए उपराज्यपाल को इसका फैसला करना होगा। साथ ही जो करीब 200 फाइलें राजनिवास में पड़ी हैं, उनका भविष्य क्या होगा? जाहिर है कि दिल्ली की अभी जैसी संविधानिक स्थिति है उसमें नए उपराज्यपाल का काम करना एक बहुत बड़ी चुनौती साबित होगी।

Sunday, 25 December 2016

आखिर क्यों है तैमूर नाम रखने पर इतना बवाल

सोशल मीडिया पर सैफ अली खान और करीना कपूर के पुत्र के नाम पर हंगामा हो रखा है। वैसे अपने बच्चे का नाम क्या रखना है यह तो माता-पिता व परिवार वालों का अधिकार है पर बच्चे का नाम आमतौर पर ऐसे आदमी के नाम पर नहीं रखा जाता जोकि सिर्फ अपने जुल्मों के लिए बदनाम हो। नाम और भी रखे जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सिकंदर, अली, सुल्तान इत्यादि पर तैमूर नाम अपनी समझ में तो नहीं आया। चूंकि फिल्मी सितारों की हर चीज पब्लिक होती है इसलिए सोशल मीडिया पर इसकी जमकर आलोचना हो रही है। तैमूर लंग आखिर कौन था? क्यों इसका नाम कोई अपने बच्चे का नहीं रखता, जैसे कोई रावण, विभीषण नहीं रखता? सैफ अली खान और करीना कपूर ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा तो सोशल मीडिया पर ये बड़ी बहस का विषय यूं ही नहीं बना। कई लोगों ने बेशक इसे दोनों का व्यक्तिगत मामला कहा तो कई लोगों ने इस बात पर एतराज जताया और कहा कि एक जालिम आक्रमणकारी के नाम पर बेटे का नाम रखना गलत है। आखिर तैमूर ने भारत में ऐसा क्या किया था? इतिहासकार मानते हैं कि जगताई मंगोलों के खान, तैमूर लंगड़े का एक ही सपना था। वह यह कि अपने पूर्वज चंगेज खान की तरह ही वह पूरे यूरोप और एशिया को अपने वश में कर ले। लेकिन चंगेज खान जहां पूरी दुनिया को एक ही साम्राज्य से बांधना चाहता था, तैमूर का इरादा सिर्फ लोगों पर धौंस जमाना था। साथ ही साथ उसके सैनिकों को यदि लूट का कुछ माल मिल जाए तो और भी अच्छा। चंगेज और तैमूर में एक बड़ा फर्क था। चंगेज के कानून में सिपाहियों को खुली लूटपाट की मनाही थी। लेकिन तैमूर के लिए लूट और कत्लेआम मामूली बातें थीं। साथ ही तैमूर हमारे लिए एक जीवनी छोड़ गया, जिससे पता चलता है कि उन तीन महीनों में क्या हुआ जब तैमूर भारत में था। विश्व विजय के चक्कर में तैमूर सन 1398 ई. में अपनी घुड़सवार सेना के साथ अफगानिस्तान पहुंचा। जब वापस जाने का समय आया तो उसने अपने सिपहसालारों से मशविरा किया। हिन्दुस्तान उन दिनों काफी अमीर देश माना जाता था। हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली के बारे में तैमूर ने काफी कुछ सुना था। यदि दिल्ली पर एक सफल हमला हो सके तो लूट में बहुत माल मिलने की उम्मीद थी। तब दिल्ली के शाह नसीरुद्दीन महमूद के पास हाथियों की एक बड़ी फौज थी। कहा जाता है कि उसके सामने कोई टिक नहीं पाता था। साथ ही साथ दिल्ली की फौज भी काफी बड़ी थी। तैमूर ने कहाöबस थोड़े ही दिनों की बात है अगर मुश्किल पड़ी तो वापस आ जाएंगे। मंगोलों की फौज सिंधु नदी पार करके हिन्दुस्तान में घुस आई। रास्ते में उन्होंने असपंदी नाम के गांव के पास पड़ाव डाला। यहां तैमूर ने लोगों पर दहशत फैलाने के लिए सभी को लूट लिया और सारे हिन्दुओं का कत्ल करवा दिया। पास ही तुगलकपुर में आग की पूजा करने वाले यजदियों की आबादी थी। आजकल हम उन्हें पारसी कहते हैं। तैमूर कहता था कि ये लोग एक गलत धर्म को मानते हैं इसलिए उनके सारे घर जला डाले गए और जो भी पकड़ में आया उसे मौत के घाट उतार दिया गया। फिर फौजें पानीपत की तरफ निकल पड़ीं। पंजाब के समाना कस्बे असपंदी गांव और हरियाणा के कैथल में हुए खूनखराबे की खबर सुन पानीपत के लोग शहर छोड़ दिल्ली की तरफ भाग गए और पानीपत पहुंचकर तैमूर ने शहर को तहस-नहस करने का आदेश दे दिया। यहां भारी मात्रा में अनाज मिला, जिसे वह अपने साथ दिल्ली की तरफ ले गया। रास्ते में लोनी के किले के राजपूतों ने तैमूर को रोकने की कोशिश की। अब तक तैमूर के पास कोई एक लाख हिन्दू बंदी थे। दिल्ली पर चढ़ाई करने से पहले तैमूर ने इन सभी को कत्ल करने का आदेश दिया। यह भी हुक्म हुआ कि यदि कोई सिपाही बेकसूरों को कत्ल करने से हिचके तो उसे भी मौत के घाट उतार दिया जाए। अगले दिन दिल्ली पर हमला कर नसीरुद्दीन महमूद को आसानी से हरा दिया गया। महमूद डर कर दिल्ली छोड़ जंगलों में चला गया और जा छिपा। दिल्ली में जश्न मनाते हुए मंगोलों ने कुछ औरतों को छेड़ा तो लोगों ने विरोध किया। इस पर तैमूर ने दिल्ली के सभी हिन्दुओं को ढूंढ-ढूंढ कर कत्ल करवा दिया। चार दिन तक दिल्ली शहर खून से रंग गया। अब तैमूर दिल्ली छोड़कर उज्बेकिस्तान की तरफ रवाना हुआ। रास्ते में मेरठ के किलेदार इलियास को हराकर तैमूर ने मेरठ में भी तकरीबन 30 हजार हिन्दुओं का कत्ल करवाया। यह सब करने में उसे महज तीन महीने लगे और इन तीन महीनों में उसने हजारों हिन्दुओं, मुसलमानों और पारसियों का कत्ल करवा दिया। दिल्ली में वह 15 दिन ही रहा पर इन 15 दिनों में उसने दिल्ली को उजाड़ दिया। सैकड़ों महिलाओं का बलात्कार कराया। अब बताएं कि कोई भी समझदार व्यक्ति तैमूर के नाम पर अपने बच्चे का नाम रख सकता है?

-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 24 December 2016

पेटीएम का इस्तेमाल कितना सुरक्षित?


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा करने के बाद सबसे ज्यादा फायदा जिन कंपनियों को होता दिखाई दिया उसमें मोबाइल भुगतान की सुविधा देने वाली अग्रणी कंपनी पेटीएम भी है पर क्या पेटीएम सौ फीसदी सेफ है, क्या पेटीएम पर इतना भरोसा करना सही है? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुषांगिक संगठन ने सवाल उठाए हैं। पेटीएम में चीन की कंपनी के निवेश को लेकर मंच का कहना है कि नियमानुसार यदि किसी भारतीय कंपनी में हिस्सेदारी उस कंपनी के शेयरों में 50 प्रतिशत से कम है तो वह भारतीय कंपनी नहीं है। इसलिए  हमने लोगों को पेटीएम को न इस्तेमाल करने को कहा है। स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्विनी महाजन ने बताया कि हमने पेटीएम में चीनी कंपनी अलीबाबा की हिस्सेदारी की कई रिपोर्टें पढ़ी है। हम नकद मुक्त व्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं तो ऐसे में हमें यह संयम रखना होगा कि कोई भी भारतीय कंपनी किसी विदेशी कंपनी के साथ अपना डाटा शेयर न करे। हम पेटीएम का बहिष्कार करेंगे। अब आते हैं पेटीएम की सुरक्षा के मुद्दे पर। पेटीएम का इस्तेमाल करने वाले सावधान हो जाएं। इनका सिस्टम फुलप्रूफ नहीं है। इसके इस्तेमाल से आप अपने एकाउंट का पूरा पैसा गंवा सकते हैं। उसके बाद अगर कंपनी वालों से संपर्क किया तो वहां से भी निराशा हाथ लगेगी। पूर्वी दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक बैग की दुकान चलाने वाले दुकानदार को पेटीएम से ऑनलाइन भुगतान करना महंगा पड़ गया। लोकेश जैन नाम के यह दुकानदार पेटीएम के जरिए अपना बिजली का बिल ऑनलाइन जमा करा रहे थे। पेमेंट के दौरान वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) मांगा गया। पासवर्ड देते ही उनके खाते में जमा 17580 रुपए की राशि उड़ गई। उन्होंने तुरंत इसकी शिकायत पेटीएम में की, वहां से टका सा जवाब दे दिया गया कि पहले ई-मेल करो, फिर देखते हैं। पीड़ित दुकानदार पेटीएम कंपनी के संचालकों के इस व्यवहार से दुखी होकर थाने की राह पकड़ ली। पीड़ित की शिकायत के आधार पर शाहदरा थाना पुलिस मामले की जांच कर रही है। मजेदार बात यह है कि पेटीएम कंपनी को भी चूना लगाने के मामले सामने आ रहे हैं।  डिजिटल कंपनी पेटीएम को 6.15 लाख रुपए का चूना लगाने वाले 15 ग्राहकों के खिलाफ सीबीआई ने केस दर्ज किया है। डिजिटल लेन-देन की सुविधा देने वाली वॉलेट कंपनी पेटीएम ने सीबीआई से शिकायत की है कि 48 ग्राहकों ने उसके साथ 6.15 लाख रुपए की धोखाधड़ी की है। आरोपी ग्राहक ऑर्डर के प्रोडक्ट रिसीव कर लेते थे। लेकिन उसके पैकेट में दूसरी चीजें डालकर रिटर्न की रिक्वेस्ट करते थे। पैकेट चूंकि बंद होता था इसलिए वापस चला जाता था और पैसे वापस मिल जाते थे।

öअनिल नरेन्द्र

राहुल गांधी का भूकम्प

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात के मेहसाणा में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर उद्योग घरानों से करोड़ों रुपए लेने का जो आरोप लगाया है वह सुनने में भले ही सनसनीखेज प्र्रतीत होता हो, पर इसमें कोई नई बात नहीं है। यही आरोप दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दिल्ली विधानसभा में भी लगा चुके हैं। इसी आरोप को साबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने प्रर्याप्त सबूत न होने के कारण इसे बेबुनियाद तक बता दिया है जबकि कोर्ट में केस करने वाले अधिवक्ता भी अब तक कोई नया तथ्य नहीं ला पाए। कुल मामला यह है कि दो उद्योग घरानों के यहां से एक इनकम टैक्स रेड में कई दस्तावेज बरामद हुए थे। बरामद दस्तावेजों में कई राजनेताओं को वर्ष 2013 में रिश्वत देने की बात दर्ज है। इस तरह के खुलासे कोई पहली बार नहीं हुए हैं। करीब दो दशक पहले जैन बन्धुओं की डायरी में भी ऐसे ही कई राजनेताओं को पैसे देने का खुलासा हुआ था। उस घटना ने भारतीय राजनीति को तात्कालिक तौर पर झिंझोड़ भले ही दिया था। लेकिन आखिरकार कुछ भी साबित नहीं हो पाया था। इससे भी पहले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स मामले में स्व. राजीव गांधी पर रिश्वत का आरोप लगाकर उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया था। वीपी सिंह ने बेशक ऐसा माहौल बना दिया था जिसका खामियाजा राजीव गांधी को उठाना पड़ा हालांकि वे न तो किसी रिश्वतखोरों का नाम बता सके और न कभी अपने आरोप साबित कर सके। इसलिए सिर्फ दस्तावेजों में नाम होने या आरोप लगाने से कोई आरोपी नहीं हो जाता। यहां थोड़ा फर्क जरूर है। यहां पर आरोप उन दस्तावेजों के आधार पर लगाया जा रहा है जो आयकर विभाग को छापों में मिले। यह कोई निजी डायरी में लिखा कोई पन्ना नहीं है। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगे आरोपों की जांच की मांग की है। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने बुधवार को कहा कि प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। ऐसे में उन्होंने पैसे लिए हैं या नहीं। अगर प्रधानमंत्री ने पैसे नहीं लिए हैं तो उन्हें जांच से  पीछे नहीं हटना चाहिए। सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा नेताओं को गालीगलौच पर उतरने की जरूरत नहीं है। राहुल गांधी ने सिर्फ इतना सवाल पूछा है कि प्रधानमंत्री ने पैसे लिए या नहीं, क्योंकि हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री पाक-साफ उभरकर आएं। हैरानी की बात यह है कि प्रधानमंत्री से मुलाकात करने के कुछ ही दिन बाद उन पर आरोप लगाने की हड़बड़ी में राहुल ने यह भी नहीं सोचा कि यह कोई नया आरोप नहीं है जिसे शीर्ष अदालत नाकाफी बता चुकी है। इसके बाद भी वह यह दावा कर रहे थे कि संसद में इस बारे में उनके बोलने पर भूकम्प आ सकता है। इसलिए उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है। राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को बेनकाब करना ही चाहिए, पर सबूतों के आधार पर। बेबुनियाद आरोपों से बचना चाहिए।

Friday, 23 December 2016

चाय वाला अरबपति और दर्जी करोड़पति ः वाह क्या बात है

नोटबंदी के बाद विभिन्न एजेंसियों की ओर से काले धन के कुबेरों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई से रोज-रोज नए-नए चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। ऐसे-ऐसे लोगों से इतनी मोटी धनराशि पकड़ी जा रही है जिसकी कल्पना भी करना मुश्किल है। उदाहरण के तौर पर गुजरात के सूरत शहर में ठेले पर चाय-पकौड़े बेचने से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले शख्स के पास से 400 करोड़ रुपए की सम्पत्ति मिलना। वहीं चंडीगढ़ में लोगों के कपड़े सिल कर गुजर-बसर करने वाले दर्जी के पास भी करीब एक करोड़ से अधिक की सम्पत्ति मिली। सूत्रों ने बताया कि किशोर भजियावाला के ठिकानों पर चार दिन पहले छापा मारा गया था। उसके ठिकानों और लॉकरों की तलाशी में अब तक 14 किलो सोना, एक किलो के हीरे-जवाहारात जड़े आभूषण, 180 किलो चांदी, 95 लाख रुपए के नए दो हजार रुपए के नोटों सहित 1.33 करोड़ रुपए से अधिक की नकदी बरामद हो चुकी है। इसके अलावा अचल सम्पत्ति के कागजात मिले हैं जिनकी अनुमानित कीमत करीब 400 करोड़ रुपए है। प्रवर्तन निदेशालय ने चंडीगढ़ में निजी बैंक एचडीएफसी बैंक के कलस्टर प्रमुख भूपेन्द्र सिंह गिल को गिरफ्तार किया है। ईडी ने बताया कि चंडीगढ़ के कपड़ा कारोबारी इन्द्रपाल महाजन के घर से 13 दिसम्बर को 2.19 करोड़ रुपए के नए-पुराने नोट मिले। आयकर विभाग ने लुधियाना के एक आभूषण दुकान पर छापेमारी कर नौ लाख रुपए के नए नोट जब्त किए। इस दौरान दुकान के मालिक ने 15.40 करोड़ रुपए की बेहिसाब सम्पत्ति भी अधिकारियों को सौंपी। बैंकों से काले धन को सफेद करने की कारगुजारी के रूट का जांच एजेंसियों ने पता लगा लिया है। सरकार को बैंकों में निक्रिय खातों और डोरमेंट खातों से अचानक लेनदेन की जानकारी मिली है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो बैंकों में फर्जी खातों और जनधन खातों के अलावा ऐसे खातों का पता चला है जिनमें पुराने नोट जमा कर नए नोट एकत्र किए जा रहे हैं। इसके अलावा बड़ी तादाद में डोरमेंट खाते भी हैं। याद रहे कि यह ऐसे खाते होते हैं, जिनमें करीब 24 माह तक कोई लेनदेन नहीं हुआ होता। बैंकों में बाकायदा इसकी सूची रखी जाती है और नोटबंदी के बाद इस सूची का उपयोग कुछ बैंककर्मियों और अधिकारियों ने पुराने नोटों को नए से बदलने में किया है। सूत्रों के मुताबिक हर बैंक शाखा में ऐसे खातों की तादाद चार से छह प्रतिशत होती है। सीबीडीटी के सूत्रों के मुताबिक बैंकों की चेस्ट से एटीएम में नई मुद्रा को भेजने की प्रक्रिया में भी बड़ी तादाद में गड़बड़ी पाई गई है। इस मामले में बैंकों के शीर्ष अधिकारियों को संबंधित बैंक कर्मचारियों से रोजाना रिपोर्ट लेकर एक रिपोर्ट एफआईयू को भेजने को कहा गया है। 65-70 प्रतिशत एटीएम आउटसोर्सिंग पर काम कर रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

वैश्विक आतंकवाद का बढ़ता दायरा

तुर्की की राजधानी अंकारा में रूस के राजदूत आंद्रे कारलोव की हत्या, जर्मनी की राजधानी बर्लिन में ट्रक से जानलेवा हमला, स्विट्जरलैंड के शहर ज्यूरिख में इस्लामिक सेंटर में फायरिंग ये घटनाएं आतंकवाद के बढ़ते दायरे को दर्शाती हैं। आज यूरोप व कई देशों में इस्लामिक आतंकियों ने कहर ढा रखा है। पहले बात करते हैं तुर्की में रूसी राजदूत आंद्रे कारलोव की हत्या की। तुर्की की राजधानी अंकारा में रूसी राजदूत की तब हत्या कर दी गई जब वह एक कला प्रदर्शनी देखने गए थे। वहां जब वह स्टेज पर भाषण कर रहे थे तो एक अज्ञात व्यक्ति ने कारलोव को निशाना बनाकर अंधाधुंध फायरिंग की। गोली चलाते हुए वह अल्लाह हो अकबर, अलैप्पो और बदला जैसे शब्द निकाल रहा था। सीरिया में रूस की भूमिका को लेकर तुर्की में विरोध प्रदर्शन के बाद यह घटना सामने आई। पिछले साल नवम्बर में तुर्की ने सीरियाई अभियान में शामिल रूस का एक लड़ाकू विमान मार गिराया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। रूसी राजदूत की हत्या को लेकर तुर्की के अधिकारियों ने मंगलवार को छह लोगों को हिरासत में लिया है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की है कि हमें जानना होगा कि हत्यारे को किसने निर्देश दिया था। राजदूत आंद्रे कारलोव को तुर्की के पुलिसकर्मी मेवलुत मत अलीतांस (22) ने चार गोलियां मारी थीं। उधर जर्मनी की राजधानी बर्लिन के भीड़भाड़ वाले क्रिसमस मार्केट में एक शख्स ने सोमवार रात कहर बरपा दिया। उसने सेलिब्रेशन की तैयारियों और शापिंग में जुटे सैकड़ों लोगों को लारी से रौंद डाला। बुरी तरह कुचले 12 लोगों की मौत हो गई और 50 अन्य जख्मी हुए। शुरू में हमलावर लारी ड्राइवर होने के शक में पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी नावेद बी (23) को घटनास्थल से दो किलोमीटर दूर पकड़ा गया। लेकिन बाद में सुरक्षा सूत्रों ने कहा कि असली आरोपी अब भी फरार है। लोग अंदाजा भी नहीं लगा पाए थे कि एकाएक ट्रक भीड़ को रौंदता चला गया। वहां मौजूद लकड़ी के स्टाल और दूसरी चीजें भी तहस-नहस हो गईं। हमलों ने इसी साल जुलाई में फ्रांसीसी शहर नीस में हुए ट्रक अटैक की यादें ताजा कर दीं जिसमें 86 लोगों ने जान गंवाई थी। यह घटना बर्लिन के मशहूर कैसर विलहम मैमोरियल चर्च के पास अंजाम दी गई, जो एरिया टूरिस्ट के बीच खासा लोकप्रिय है। ट्रक का रजिस्टर्ड ड्राइवर जो पोलैंड का रहने वाला बताया जाता है, पैसेंजर सीट पर मरा हुआ पाया गया। पुलिस के मुताबिक असली ड्राइवर ने गाड़ी नहीं चलाई। 25 दिसम्बर को दुनियाभर में क्रिसमस है। यूरोप में सेलिब्रेशन के माहौल के बीच एक बार फिर लोगों को टेरर का दर्द मिला है। एक अन्य घटना में तुर्की की राजधानी अंकारा में ही अमेरिकी दूतावास ने एक बयान में कहाöएक व्यक्ति अमेरिकी दूतावास अंकारा के मुख्य द्वार की ओर आया और उसने गोली चला दी। इससे कुछ ही घंटे पहले रूसी राजदूत की हत्या की गई थी। यूरोप पूरी तरह इस्लामिक आतंकवाद की चपेट में है।

Thursday, 22 December 2016

सरकार को राहत ः नोटबंदी में दखल से इंकार

मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए कहा कि वह इस पर दखल नहीं देगा। नोटबंदी के फैसले को राजकोषीय नीति करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इसमें दखल देने से इंकार कर दिया। नोटबंदी का मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक रूप से अहम तो है ही अब यह कानूनी रूप से भी महत्वपूर्ण हो गया है। आठ नवम्बर को पांच सौ और हजार रुपए के नोट चलन से बाहर करने के बाद जन साधारण के मन में वही सवाल थे जो शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी उठाए। आखिर किसी नागरिक को प्रॉपर्टी के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। ऐसा उचित कानूनी प्रक्रिया से किया जा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम संविधान और कानून की नजर में कितने टिकते हैं, इस पर आम लोगों के साथ-साथ कानून के जानकारों की निगाहें भी लगी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि नोटबंदी से संबंधित विभिन्न हाई कोर्टों और अन्य अदालतों में चल रहे मुकदमों को अब सिर्फ शीर्ष अदालत ही सुनेगी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजते हुए उसके समक्ष परीक्षण के लिए नौ प्रश्न रखे हैं। यह निर्णय पीठ ने इसलिए लिया है कि नोटबंदी को लेकर अलग-अलग विरोधाभासी आदेशों से दो-चार न होना पड़े। शीर्ष अदालत ने 24 हजार रुपए प्रति सप्ताह बैंक से निकालने की सीमा में भी कोई संशोधन नहीं किया। शीर्ष अदालत ने उम्मीद जताई है कि सरकार आम जनता को हो रही कठिनाई को ध्यान में रखते हुए जितना संभव हो सकेगा अपने इस वादे को पूरा करेगी। अटार्नी जनरल ने स्वीकार किया कि पुराने नोटों के बदलने में कुछ गड़बड़ियां सामने आई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के परीक्षण के लिए नौ प्रश्न रखे हैं। क्या आठ नवम्बर को जारी अधिसूचना आरबीआई एक्ट की धारा 26(2), 7, 17 आदि का उल्लंघन है? क्या अधिसूचना संविधान की धारा 300() का उल्लंघन है? अगर यह माना जाए कि यह आरबीआई एक्ट के तहत वैध है लेकिन क्या यह संविधान के अनुच्छेद-14 और 19 के विपरीत तो नहीं है? क्या आठ नवम्बर की अधिसूचना और उसके बाद जारी अधिसूचनाओं के क्रियान्वयन पर प्रक्रियात्मक खामियां हैं या वे अतार्किक तो नहीं हैं? बैंकों-एटीएम से रकम निकासी की सीमा तय करना अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं? कोर्ट आर्थिक नीतियों में दखल दे सकता है? क्या सहकारी बैंकों पर लगाई गई रोक मुनासिब है? क्या संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत राजनीतिक पार्टियां याचिकाएं दाखिल कर सकती हैं? और अंत में अगर धारा-26 के तहत नोटबंदी की इजाजत दी गई तो क्या विधायी शक्तियों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल तो नहीं? क्या इस वजह से यह संविधान के विपरीत तो नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति पर फालतू का विवाद

सेना प्रमुख के पद पर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस तरह एक बार फिर प्रमुख पदों पर तैनाती को लेकर विपक्ष ने प्रधानमंत्री की आलोचना की है। कांग्रेस और वामदलों ने दो वरिष्ठ जनरलों को नजरंदाज करके लेफ्टिनेंट जनरल रावत को सेना प्रमुख बनाए जाने को सेना में गलत परंपरा की शुरुआत और सेनाधिकारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला फैसला बताया है। इन दलों का मानना है कि दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को दरकिनार करके लेफ्टिनेंट जनरल रावत को तरजीह दी गई। लिहाजा उनकी नियुक्ति विवादास्पद है। हमारी राय में यह आलोचना भी सही नहीं और इससे बचना चाहिए। नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति व चयन सरकार का विशेषाधिकार है। बेशक इसमें वरिष्ठता का ध्यान रखा जाता है, लेकिन वह एकमात्र निर्णायक कारक होता तो फिर सरकार के फैसले की शायद कोई दरकार ही नहीं थी। वरिष्ठतम अधिकारी को अपने आप सेनाध्यक्ष मान लिया जाता। चूंकि ऐसा नहीं है इसलिए अपने समय में हर सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सबसे उपयुक्त व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त करे। विपक्ष को सरकार के कामकाज की आलोचना करने का लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार के हर कदम और खासकर सेना से संबंधित मसलों पर भी आलोचनात्मक रुख अपनाए। राजनीतिक दलों को यह मालूम होना चाहिए कि सेना के कामकाज की जवाबदेही सरकार की होती है। यदि सेना किसी युद्ध में असफल होती है तो अंतत यह सरकार की हार मानी जाती है। इसलिए यदि सरकार वरिष्ठ के मुकाबले किसी कनिष्ठ अधिकारी को ज्यादा प्रतिभाशाली और ज्यादा योग्य मानती है तो उसे चयन का अधिकार भी मिलना ही चाहिए। मौजूदा सरकार ने भी अपनी समझ से ऐसा किया है और इस पर आपत्ति का कोई कारण हमें तो नजर नहीं आता। दूसरी ओर सेना प्रमुख के पद पर नियुक्ति के सवाल को हल्के में लेना भी शायद ठीक नहीं है। यह पहला मौका है जब एक नहीं, दो-दो वरिष्ठ जनरलों को दरकिनार करते हुए तीसरे अफसर को यह पद दिया गया। इससे पहले सिर्फ एक बार जनरल एसके सिन्हा की वरिष्ठता की अनदेखी करते हुए जनरल अरुण वैद्य की नियुक्ति की गई थी। हालांकि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने कथित तौर पर जनरल सिन्हा के राजनीतिक विचारों के चलते यह फैसला किया था, फिर भी इसे अच्छे उदाहरण के रूप में याद नहीं किया जा सकता। दरअसल सभी सेनाधिकारी योग्य होते हैं लेकिन कई अवसरों पर विशेष योग्यता को ध्यान में रखकर ही फैसले होते हैं। मौजूदा समय में पाक और चीन से हमारे रिश्ते तनावपूर्ण हैं और जनरल रावत दोनों से ही निपटने में ज्यादा सक्षम लगते हैं।

Wednesday, 21 December 2016

कश्मीर में 2016 में जवानों पर हमलों का इजाफा

सर्जिकल स्ट्राइक के ढाई महीने बाद ही आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा ने दक्षिण कश्मीर को फिर से मजबूत किला बना लिया है। लश्कर के नेटवर्क विस्तार से सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी हुई हैं। एजेंसियों को झेलम नदी से आतंकियों की घुसपैठ की खबरें निरंतर मिल रही हैं। झेलम से सटे पंपोर में सेना के काफिले पर हुए हमले से घुसपैठ की सूचना की तस्दीक होती है। आतंकी पंपोर में इससे पहले भी सीआरपीएफ और सेना के काफिलों को निशाना बना चुके हैं। याद रहे कि पंपोर में ही उद्यमिता विकास संस्थान के भवन पर आतंकियों ने कब्जा कर लिया था जिसे खाली कराने में सुरक्षा बलों को 60 घंटे लग गए थे। नोटबंदी के कारण आतंकियों और उपद्रवियों को नकदी मिलनी बंद हो गई थी। इस कारण हिंसा, उपद्रव और आतंकी हमले की वारदातों में भी कुछ दिनों तक कमी आई। लश्कर ने अब कश्मीर में बैंक से नकदी लूटने की वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया है। हवाला नेटवर्क भी सक्रिय हुआ है। इसके माध्यम से भी उपद्रवियों को फंड मिलने लगे हैं। सुरक्षा एजेंसियों को इनपुट मिला है कि आतंकियों के फिदायीन हमले और बढ़ सकते हैं। इस साल अब तक सात फिदायीन हमले हो चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में साल 2016 सुरक्षा बलों के जवानों के लिए मुश्किल भरा रहा है। आतंकियों ने इस साल 87 जवानों की जान ले ली है। 2008 के बाद यह साल सबसे ज्यादा खूंखार रहा है। सैन्य शिविरों पर घात लगाकर हमले किए गए। सेना के मुख्यालय से लेकर हवाई अड्डे तक पर आतंकी हमले हुए हैं। 2015 के मुकाबले 2016 में सुरक्षा बलों के कर्मियों की मौत में 82 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह निष्कर्ष गृह मंत्रालय की छह दिसम्बर को लोकसभा में रखी गई चार साल की रिपोर्ट से निकला है। इसमें सरकार ने 27 नवम्बर तक के आंकड़े दिए हैं। सितम्बर में उड़ी में आर्मी कैंप पर आतंकी हमले में ही 19 जवान शहीद हुए थे। इस हमले के बाद भारतीय सेना ने आतंकियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की थी। सेना ने पीओके में घुसकर कई आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूद किया था, लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से सुरक्षा बलों पर आतंकी हमलों की वारदातों में इजाफा हुआ है। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में अभी शनिवार को ही सेना के काफिले पर बाइक सवार दो आतंकियों ने हमला किया था। दुख से यह निष्कर्ष निकलता है कि लश्कर--तैयबा ने सर्जिकल स्ट्राइक में तबाह हुए पीओके के कैंपों और लांचिंग पैडों को फिर से जिन्दा कर लिया है। लोकसभा में पेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान ने 2016 (26 नवम्बर तक) में कश्मीर में सेना नियंत्रित रेखा पर 216 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया है।

-अनिल नरेन्द्र

नोटबंदी से छिनता रोजगार

देश में आर्थिक मामलों के कई विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि नोटबंदी से आगामी समय में देश के आर्थिक हालात सुधरेंगे और अर्थव्यवस्था काले धन से मुक्त होने की वजह से मजबूत होगी। बेशक ऐसा हो भी सकता है पर फिलहाल तो हमें नोटबंदी की वजह से कई दिक्कतें नजर आ रही हैं। इसके दुष्परिणामों से बेरोजगारी बढ़ रही है। सरकार की नोटबंदी से आम लोगों व मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। देश के विभिन्न भागों से मजदूरों के बेरोजगार होने की खबरें आ रही हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया है कि नोटबंदी के फैसले ने दिल्ली में बेरोजगारी बढ़ा दी है। दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि नोटबंदी के कारण 48.63 लाख असंगठित कामगारों का रोजगार छिनने के कगार पर है। उन पर बेरोजगारी की तलवार लटक गई है। माकन ने कहा कि नोटबंदी के कारण खुदरा बिक्री में 88-90 प्रतिशत तक कमी आई है। उत्पादन में 80 प्रतिशत तक कमी आई है जिसके फलस्वरूप नौकरियों में कमी आने के कारण बेरोजगारी बढ़ी है। काले धन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद 1857 की मेरठ की क्रांति धरा पर सर्राफा कारोबार सोना-चांदी के जेवरात बनाने के कारोबार की हालत अत्यंत खराब हो गई है। वहीं पश्चिम बंगाल में और महाराष्ट्र से आकर आभूषण बनाकर परिवार का भरण-पोषण करने वाले 30 हजार से ज्यादा कारीगर अब रोजी-रोटी के संकट से गुजर रहे हैं। नोटबंदी के कारण पश्चिम बंगाल में दो बीड़ी कारखाने बंद हो गए हैं। एक कारखाने के मालिक राज्य के श्रम मंत्रालय के राज्यमंत्री जाकिर हुसैन खुद हैं। दोनों कारखाने मुर्शिदाबाद जिले में हैं। बताया जाता है कि नोटबंदी के कारण नकद में कर्मचारियों को भुगतान करने में असमर्थ रहने के बाद कारखाना मालिकों ने तालाबंदी का फैसला किया है। इसमें करीब पौने तीन लाख कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। सरकार की नोटबंदी से आम लोगों व मजदूरों की अलग समस्या खड़ी हो गई है। नोटबंदी के कारण लोग अपने घरों व दुकानों की मरम्मत भी नहीं करा पा रहे हैं जिससे दिहाड़ी मजदूरों के समक्ष काम न मिलने से रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में फेरी लगाकर दैनिक आवश्यकताओं का सामान बेचने वाले अलग परेशान हैं। बाजार पर मंदी की मार पड़ी हुई है। शादी-ब्याह का सीजन होने के बावजूद व्यापारी ग्राहक के अभाव में हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं। नोटबंदी की मार से अनाज मंडी भी अछूती नहीं है। कई दिनों से नए नोट के अभाव में मंडी का कारोबार ठप पड़ा है। नोटबंदी की वजह से बड़ी तादाद में रोजगार छिनने की सूचनाओं से सरकार भी परेशान है। स्थिति का आंकलन करने के लिए श्रम और रोजगार मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को पूरे देश में भेजा जा रहा है। सरकार की एक मुश्किल यह भी है कि उसके पास रोजगार संबंधी जो आंकड़े हैं वो सितम्बर तक के हैं। जिससे नोटबंदी के बाद रोजगार पर पड़े असर का अनुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है। रोजगार के आंकड़े तिमाही में ही मिल पाते हैं, जो अधिकृत तौर पर जनवरी में ही उपलब्ध हो सकेंगे। श्रम और रोजगार मंत्रालय को यह खबर पहुंच चुकी है कि नकदी की कमी के चलते बहुत बड़ी तादाद में छोटे और मझोले स्तर की औद्योगिक इकाइयों में बंदी का खतरा मंडरा रहा है। सरकार को भी लगातार यह जानकारी मिल रही है कि खेतिहर मजदूर से लेकर निर्माण उद्योग और सर्विस सेक्टर का बड़ा बुरा हाल है। वहां तो या बड़ी तादाद में रोजगार छिन गए हैं या फिर हाथ से निकलने की स्थिति में पहुंच गए हैं। भवन निर्माण, पर्यटन उद्योग और घरेलू व्यवसाय में काम काफी प्रभावित हुआ है। काम घटकर 30 प्रतिशत पर आ जाने से बड़े पैमाने पर छंटनी की आशंका है। लार्सन एंड टुब्रो जैसी बड़ी कंपनी ने अपने 14000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। सो कुल मिलाकर हमें तो नोटबंदी से आगामी कुछ समय के लिए बुरी तरह प्रभावित होता नजर आ रहा है। जब लाभ होगा तब होगा।

Tuesday, 20 December 2016

Meaning of Rahul’s meeting PM at this juncture?

The opposition is unable to understand the meeting of Congress Vice President with the Prime Minister on Friday after alleging serious personal corruption charges against Modi just two days ago. It has been told that Rahul Gandhi called upon the PM along with the Congress delegation over the issue of waiving off the farmers' loans. Rahul handed over a memorandum regarding the waiving off of loans raising the issue of miserable conditions of the farmers. Meanwhile leaving aside the political rivalry, Modiji also warmly asked Rahul to frequently call upon him for such discussions. Having wasted four weeks of the Parliament over the demonetization issue, many questions are being raised over this meeting of the Congress Vice President and the Prime Minister. The meeting has destroyed the nest of the opposition's unity. Some of the parties accompanying Congress on the demonetization were infuriated over the alone meeting of Rahul with the Prime Minister over the issue of the farmers. Due to this the opposition leaders even refused to join the President House march. As such the opposition unity built over the demonetization issue was also dashed with the end of the winter session. Infuriated with the meeting of Congress leaders with the PM, the Left, SP. BSP, DMK, NCP kept themselves aside from the delegation in the leadership of Sonia Gandhi to call upon the President Pranab Mukherjee. This scattering should have surely relieved the government facing trouble during the parliament session due to the opposition unity over the demonetization. Besides the meeting also shocked them Rahul Gandhi leading the politics of opposition unity. The parties denying joining the delegation of the opposition parties calling upon the President in the leadership of Sonia Gandhi have clearly admitted that at least Rahul should not have chosen the last day of the session to meet the PM. As this meeting scattered the one month long struggle of the opposition parties over the demonetization. They had to say that just two days ago Rahul takes the political temperature on a new surface by loudly claiming the personal issue of corruption on the Prime Minister and then himself ruins the same by meeting the PM. One the other hand the Chief Minister of Delhi Arvind Kejriwal said on Friday that Rahul Gandhi lacks enough courage to disclose details about the Prime Minister Narendra Modi's corruption charges since he is afraid of the action against his brother-in-law Robert Wadera. He said that Rahul has nothing to disclose about Modiji. The day he does so, Modiji will get Robert Wadera arrested. Kejriwal also said that Congress and BJP are involved in this friendly meet, but disclose nothing.

* Anil Narendra

 


काले धन पर राजनीतिक दलों को खुली छूट

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मोदी सरकार ने नोटबंदी के मामले में राजनीतिक पार्टियों को बड़ी छूट देने की घोषणा की है। राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने बताया कि 500 और 1000 के पुराने नोट अपने खाते में जमा करने वाले राजनीतिक दलों को आयकर में पहले से मिल रही छूट जारी रहेगी। लेकिन नकद रूप में यह रकम 20 हजार रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही दानकर्ता की रसीद और उसकी सही पहचान भी जरूरी होगी। मौजूदा कानून के तहत किसी भी राजनीतिक दल को एक व्यक्ति से मिलने वाली धनराशि 20 हजार से अधिक होने पर चेक या ड्राफ्ट से ही स्वीकारा जा सकता है। अन्यथा उस रकम पर भी आयकर देना होगा। दरअसल राजनीतिक दलों के बैंक खाते में जमा धनराशि को पहले से टैक्स से छूट प्राप्त है। भारत में लगभग 1886 पंजीकृत पार्टियां हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार और काले धन के एक सबसे बड़े स्रोत को काला धन सफेद करने की छूट दे दी है। आप किसी भी पार्टी को ले लीजिए। उसके लिए उदाहरण के तौर पर 20,000 रसीदें 20,000 रुपए की काटना मुश्किल नहीं है। इस तरह एक झटके में चार करोड़ रुपए आ जाते हैं। इसे वापस देने के लिए (कुछ प्रतिशत चन्दा काट के) दानकर्ता को किसी रैली का प्रबंध करने को कहा जाता है और उसे रैली के लिए करोड़ों का चेक (खर्च के एवज में) दे दिया जाता है। हो गया न उस व्यक्ति का काला धन सफेद। अगले कुछ माह में देश के कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल कमर कस चुके हैं और उन्होंने अपनी रैलियां और प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया है। दिल्ली में भी नगर निगम के चुनाव होने हैं। आने वाले चुनाव में काले धन का इस्तेमाल इस बार भी जमकर होगा। नोट बदलने की इस प्रक्रिया से आने वाले चुनाव में काले धन के प्रयोग पर कतई फर्प नहीं पड़ेगा। सभी राजनीतिक दल पहले से ही बेनामी खाते खुलवाकर उसमें इस प्रकार का पैसा जमा कर उससे सोना-हीरा और अचल सम्पत्ति में बदल चुके हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोकेटिक रिफार्म (एडीआर) में उत्तर प्रदेश के प्रमुख संयोजक डाक्टर लेनिन ने कहाöराजनीतिक दल अपनी राशि का इस्तेमाल कार्यकर्ताओं को 10-10, 20-20 हजार रुपए या उनकी आर्थिक हैसियत के अनुपात में बांटने का प्रयास करेंगे। इससे पहले भी ऐसा हुआ है कि राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं को पैसा बंटवाते हैं। लेनिन ने एडीआर संस्था की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि उत्तर प्रदेश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियोंöसमाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के पास धन के बड़ी तादाद में अज्ञात स्रोत हैं। बसपा की कुल आय 585 करोड़ रुपए है जिसमें से 307 करोड़ रुपए उसे स्वैच्छिक दानदाताओं से मिले हैं जिनका योगदान 20,000 रुपए से कम था। पार्टी को 20,000 रुपए से कम की राशि दान करने वाले का नाम बताने की जरूरत नहीं पड़ती। एडीआर की ही एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार यूपी में इस बार के विधानसभा चुनाव में 84 प्रतिशत इच्छुक उम्मीदवार ठेकेदार, बिल्डर, खनन माफिया, शिक्षा माफिया और चिट फंड कंपनी चलाने वाले लोग हैं। सभी जानते हैं कि भारत की राजनीतिक पार्टियों को काले धन की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। टिकटों की बोली से लेकर पार्टी को डोनेशन तक चाहिए होता है। देश में भ्रष्टाचार का एक तरह से सबसे बड़ा स्रोत पॉलिटिकल फंडिंग होता है और काले धन के मामले में सारी पार्टियां एक जैसी हैं। हकीकत तो यह है कि सरकार ने नोटबंदी से बचाने के लिए राजनीतिक दलों को बाहर निकलने का रास्ता थमा दिया है। कुछ मायने में तो नोटबंदी के मुख्य उद्देश्य का ही फ्लो पीट कर रख दिया है। न तो भ्रष्टाचार बंद होगा न काला धन।
हालांकि चुनाव आयोग ने राजनीति में काले धन और धन शोधन के इस्तेमाल पर रोक के प्रयास के तहत भारत सरकार से सिफारिश की है कि वह कानूनों में संशोधन करे जिससे कि कर में छूट उन्हीं पार्टियों को मिले जो सीटें जीतें और दो हजार रुपए एवं इससे ऊपर दिए जाने वाले गुप्त चन्दों पर रोक लगे। मतलब यह है कि आयोग ने प्रस्तावित किया है कि आयकर छूट ऐसी ही पार्टियों को दी जानी चाहिए जो चुनाव लड़ती हैं और लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में सीटें जीतती हैं। चुनाव आयोग ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि सरकारी खजाने की कीमत पर सभी राजनीतिक दलों को सुविधा प्रदान की जाती है तो ऐसे मामले हो सकते हैं कि जिसमें राजनीतिक पार्टियों का गठन केवल आयकर छूट के प्रावधानों का लाभ उठाने के लिए ही किया जाए।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल की पीएम से ऐसे समय मुलाकात के मायने?

दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के अत्यंत गंभीर आरोप लगाने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष का शुक्रवार को प्रधानमंत्री से मुलाकात करना विपक्ष को समझ नहीं आया है। कहा यह गया है कि राहुल गांधी कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल के साथ पीएम से किसानों के कर्ज माफी के मुद्दे पर मिले। राहुल ने किसानों की बदहाली का मुद्दा उठाते हुए उनके कर्ज माफी की मांग संबंधी ज्ञापन प्रधानमंत्री को सौंपा। इस दौरान मोदी ने भी सियासी दुश्मनी से इतर गर्मजोशी दिखाते हुए राहुल को ऐसी चर्चाओं के लिए मिलते रहने को कहा। नोटबंदी पर संसद के चार हफ्तों का समय बर्बाद करने के बाद पीएम और कांग्रेस उपाध्यक्ष की इस मुलाकात पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। नोटबंदी पर बनी विपक्षी एकता का इस मुलाकात ने घरौंदा तोड़ दिया। नोटबंदी पर कांग्रेस के साथ आए दलों में से कई दल किसानों के मुद्दे पर राहुल के अकेले प्रधानमंत्री से मिलने पर बेहद नाराज हुए। इसके चलते विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति भवन मार्च में शामिल होने से इंकार तक कर दिया। इस तरह शीत सत्र खत्म होने के साथ ही नोटबंदी के मुद्दे पर बनी विपक्षी एकता भी धराशायी हो गई। कांग्रेसी नेताओं की पीएम से मुलाकात से खफा वामदलों, सपा, बसपा, द्रमुक, एनसीपी ने सोनिया गांधी की अगुवाई में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने गए प्रतिनिधिमंडल से किनारा कर लिया। इस बिखराव ने नोटबंदी पर विपक्षी एकता की वजह से संसद सत्र के दौरान सांसत में रही सरकार को निश्चित रूप से राहत दी होगी। साथ ही विपक्षी गोलबंदी की सियासत को थाम रहे राहुल गांधी को इस मुलाकात से करारा झटका लगा। सोनिया की अगुवाई में राष्ट्रपति से मिलने गए विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने से इंकार करने वाले इन दलों का साफ मानना है कि राहुल को पीएम से मिलने के लिए कम से कम सत्र का आखिरी दिन नहीं चुनना चाहिए था। क्योंकि इस मुलाकात ने नोटबंदी पर विरोधी दलों के महीने-भर के एकजुट संघर्ष को ठंडा कर दिया। उनका कहना था कि दो दिन पहले राहुल प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के निजी मामले का जोरशोर से दावा कर राजनीतिक तापमान को नए धरातल पर ले जाते हैं और फिर पीएम से मिलकर खुद ही इस पर पानी फेर देते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दूसरी ओर शुक्रवार को कहा कि राहुल गांधी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में खुलासा करने की हिम्मत नहीं है क्योंकि कांग्रेस उपाध्यक्ष को अपने जीजा रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई का डर है। उन्होंने कहा कि राहुल में मोदी जी के खिलाफ कुछ भी खुलासा करने की हिम्मत नहीं है। जिस दिन वे ऐसा करेंगे, मोदी जी रॉबर्ट वाड्रा को गिरफ्तार कर लेंगे। केजरीवाल ने यह भी कहा कि कांग्रेस और भाजपा इस तरह की मित्रवत भेंट में संलिप्त हैं। लेकिन कोई खुलासा नहीं करते।

Sunday, 18 December 2016

हाइवे पर शराब ठेकों पर पाबंदी

राष्ट्रीय व प्रांतीय राजमार्गों के किनारे शराब की बिक्री प्रतिबंधित करने का माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्वागत योग्य है। सही बात तो यह है कि शराबबंदी की बात तो सभी करते हैं पर इसे लागू करने में कोई भी सरकार, राज्य सरकार दिलचस्पी नहीं रखती। कारण साफ है कि उन्हें ज्यादा फिक्र राजस्व की रहती है। पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा संदेश में स्पष्ट किया कि राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानें चलने देने के पीछे राजस्व कोई जायज कारण नहीं हो सकता। फैसले का संदेश साफ है, मानव जीवन और लोक स्वास्थ्य सर्वोपरि है। पाबंदी हाइवे के 500 मीटर दायरे में लागू होगी। हाइवे किनारे स्थित मौजूदा ठेकों के लाइसेंस भी 31 मार्च के बाद से रिन्यू नहीं होंगे। चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बैंच ने हाइवे के किनारे लगे शराब के विज्ञापन, साइन बोर्ड हटाने का भी आदेश दिया है। पिछले हफ्ते कोर्ट ने सड़क हादसों में करीब डेढ़ लाख लोगों की मौत पर चिन्ता जताई थी। सात दिसम्बर को इससे जुड़ी कई याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राहत की मांग करते हुए कहा था कि ठेके वहां खोलने की इजाजत दी जाए जहां एलिविटेड हाइवे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शराब लॉबी ताकतवर है इसलिए पंजाब सरकार ने बड़ी संख्या में लाइसेंस दे रखे हैं। आबकारी विभाग, मंत्री और सरकार खुश हैं क्योंकि वे पैसा बना रहे हैं। इसकी वजह से मरने वालों को एक से डेढ़ लाख रुपए दे दिए जाते हैं। सरकार को लोगों की भलाई के लिए भी सोचना चाहिए। कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में दुर्घटनाओं के जो आंकड़े बताए गए हैं, वो डराने वाले हैं। इनके मुताबिक देशभर में साल 2015 में पांच लाख हादसों में इतने ही लोग घायल हुए। डेढ़ लाख लोगों की मौत हो गई। इसका मतलब है कि हर दिन 1374 हादसों में 400 मौत और हर घंटे औसतन 57 हादसों में 17 लोगों की मौत। इस अनुभव को देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती थी कि सरकारें राजमार्गों पर शराब की बिक्री खुद बंद करेंगी पर ऐसा नहीं हुआ। बहरहाल शराब पी कर वाहन चलाने के अलावा सड़क दुर्घटनाओं के लिए कई और कारण भी जिम्मेदार हैं। मसलन बुनियादी ढांचे की खामी। खुद भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कह चुके हैं कि भारत में सड़क हादसों की एक प्रमुख वजह सड़कों का दोषपूर्ण डिजाइन भी है। इसके अलावा हमारे देश में यातायात भले ही तेजी से बढ़ता गया हो पर यातायात से संबंधित दायित्वबोध बहुत कम है। हम हर रोज सड़कों पर देखते हैं कि लोग किस तरह लापरवाही से वाहन चलाते हैं। नियम-कायदों की अनदेखी करते हैं। इन कुप्रवृत्तियों का निर्मूलन भी सुरक्षित यातायात का अहम तकाजा है।

-अनिल नरेन्द्र

साल में कई बार कहीं न कहीं 16 दिसम्बर दोहराया जा रहा है

16 दिसम्बर आते ही हमें वसंत विहार में घटी निर्भया कांड की याद ताजा हो जाती है। 16 दिसम्बर 2012 कांड आज भी सभी देशवासियों को दहला देता है। कटु सत्य तो यह है कि इतने वर्ष बीतने पर भी कुछ भी नहीं बदला। सामूहिक बलात्कार पीड़ित को किए गए वादे आज भी अधूरे हैं। निर्भया हम शर्मिंदा हैं तुम्हारे कातिल आज भी जिन्दा हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब शाम होने के बाद महिलाओं के साथ कोई न कोई घटना नहीं होती। भारत सरकार के आंकड़ों की मानें तो महिलाओं के प्रति अपराध में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक चार साल पहले की तुलना में 10 हजार से ज्यादा केवल बलात्कार के मामलों में इजाफा हुआ है। चौंकाने वाले तथ्य यह हैं कि सजा की दर मात्र 29 प्रतिशत पर अटकी हुई है। मतलब एक साल में सौ में से केवल 29 आरोपियों को ही सजा हो पा रही है। सवाल यह है कि क्या निर्भया कांड के बाद हुए तमाम हंगामे और वादे-घोषणाओं के बावजूद क्या इस तरह की घटनाओं को रोका जा सका? नहीं, बिल्कुल नहीं। देश की राजधानी होने के बावजूद महिला अपराधों में कमी नहीं आई है। 16 दिसम्बर के कांड के बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने कई फैसले किए थे जिसमें न्यायपालिका और कार्यपालिका को जोड़ा गया था। जघन्य अपराधों को रोकने के लिए उच्च अधिकार सेवानिवृत्त जजों की दो कमेटियां बनी थीं जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की कमेटी थी और दूसरी दिल्ली हाई कोर्ट की जज ऊषा मेहरा की कमेटी थी। दोनों ने कई सिफारिशें की थीं। उनमें से ज्यादातर बहस का मुद्दा बनकर कागजों में ही सिमट गईं। अगर महिला अपराधों में वृद्धि हो रही है तो इसके लिए न्यायपालिका, कार्यपालिका तो दोषी हैं हीं पर राजनीतिक स्तर पर दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव साफ नजर आता है। दुख से यह भी कहना पड़ता है कि हमारे समाज में भी कोई परिवर्तन नजर नहीं आया। पुलिस के अनुसार बलात्कार की ज्यादातर घटनाएं करीबी रिश्तेदार करते हैं। इसमें जज क्या करेंगे, पुलिस क्या करेगी? महिला सुरक्षा के इंतजाम कितने नाकाफी हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी थानों में महिला डेस्क कहीं हैं, तो कहीं नहीं। इतना तय है कि महिला सुरक्षा को लेकर अब तक किए गए प्रयास नाकाफी हैं। सिर्प पुलिस को हर टाइम कोसने से काम नहीं चलेगा। आखिर राजधानी के हर काले स्थानों पर पुलिस वाला नहीं हो सकता। जिम्मेदारी तो सभी को अपनी तय करनी होगी। कहीं भी कुछ गलत हो रहा है तो अपने-पराये का फर्प किए बगैर उसका विरोध करना होगा। अगर आप चुप रहते हैं तो कल को दूसरा भी चुप रहेगा। यही चुप्पी नापाक इरादों को बल देती है। इन्हीं वजहों से साल में कई बार कहीं न कहीं 16 दिसम्बर आ जाता है। आज भी वही सवाल खड़े हैं जो 16 दिसम्बर 2012 को खड़े थे।

Saturday, 17 December 2016

विधानसभा चुनाव से पहले सरकारी कर्मियों की वेतन वृद्धि

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा किसी भी दिन हो सकती है। यूपी की अखिलेश यादव सरकार ने विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले एक महत्वपूर्ण व बड़ा फैसला लेते हुए मंगलवार को करीब 27 लाख सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ मंजूर कर दिया है। यह फैसला अप्रत्याशित नहीं है। सूबे में जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा आदर्श आचार संहिता लागू किए जाने से पहले यह कदम काफी विचार करने के बाद उठाया गया लगता है। इस फैसले से अनुमान है कि 27 लाख सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारियों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ होगा। केंद्र सरकार ने इसी वर्ष जून में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंजूर की थीं और अमूमन यही है कि केंद्र की सिफारिशों को लागू करने के बाद राज्य सरकारें अपनी सुविधा से वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करती आई हैं। सातवां वेतनमान जनवरी 2017 के वेतन के साथ फरवरी में मिलेगा। इस फैसले से सरकार पर 17,958 करोड़ का अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा। कर्मचारियों के वेतन में औसतन 14.22 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। मूल वेतन के मुताबिक इसे देखें तो यह बढ़ोतरी 32 प्रतिशत बैठती है। साथ ही पेंशनरों और पारिवारिक पेंशनरों को बढ़ी हुई पेंशन दी जाएगी। सातवें वेतनमान का लाभ सभी राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों, शिक्षणेतर कर्मचारियों, नगरीय स्थानीय निकायों, जल संस्थान, जिला पंचायतों, विकास प्राधिकरणों, स्वशासी संस्थाओं, सार्वजनिक उपक्रमों निगमों को मिलेगा। चूंकि वेतन आयोग की सिफारिशों का सीधा संबंध लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारियों से होता है, इसलिए कोई भी राजनीतिक दल इसका विरोध नहीं कर सकता। यह फैसला समाजवादी पार्टी के भीतर चले घमासान की पृष्ठभूमि में उठाया गया है, जिससे यह भी पता चलता है कि पार्टी तमाम अंतर्विरोध के बावजूद विधानसभा चुनाव में अखिलेश के कामकाज व विकास और उनके चेहरे के साथ ही उतरना चाहती है। लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतों के बगैर भाजपा ने सहयोगी अपना दल के साथ 73 सीटें जीत ली थीं। अब विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के लिए सपा-बसपा में मुस्लिम मतों के लिए जंग छिड़ गई है। मंगलवार को कैबिनेट की बैठक के बाद सीएम अखिलेश ने दोहराया कि यदि कांग्रेस से गठबंधन होता है तो यह गठबंधन 300 सीटें जीतेगा। सरकारी कर्मचारियों को चुनाव से ठीक पहले बढ़े वेतन का तोहफा अखिलेश के समर्थन में हवा बनाने में काम आएगा। पर यूपी में सबसे ज्यादा जाति-पाति चलती है। बेशक अखिलेश ने विकास कराया है पर फिर भी जातीय आधार पर टिकट बंटेंगे और अंतिम फैसला जाति-पाति पर ही होगा। उधर भाजपा जीत का दावा कर रही है। सभी पार्टियां नए-नए समीकरण बैठाने में जुट गई हैं।

-अनिल नरेन्द्र

50 दिन नहीं, मई से पहले स्थिति सामान्य होने के आसार कम

जब से नोटबंदी लागू हुई है तभी से यह पूरे देश में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। आम आदमी का हाथ खाली है, क्योंकि घंटों लाइन में खड़े होने के बावजूद उन्हें दो हजार का नोट भी नहीं मिल पा रहा है। वहीं पहुंच वाले रसूखदार व्यक्ति मस्त हैं, बिना लाइन में लगे उन्हें लाखों-करोड़ों रुपए के नए नोट घर पहुंच रहे हैं। यानि दो तरह की स्थितियां नजर आ रही हैं और सवाल यह उठता है कि आखिर इन रसूख वालों के पास लाखों-करोड़ों के नए नोट पहुंच कहां से रहे हैं? वो कौन लोग हैं जो सिस्टम का लाभ उठाकर लाखों-करोड़ों के नए नोट हासिल कर रहे हैं? क्या यह मामला सिर्प बैंक मैनेजरों से साठगांठ-भर का ही है या इसके पीछे बड़ी मछलियां हैं? नोटबंदी के बाद आयकर विभाग के छापों में जिस तरह बरामदगी हो रही है, उससे तो बड़ी मछलियों पर ही संदेह गहरा रहा है, क्योंकि बिना उनकी पीठ पर हाथ धरे इस तरह का गोरख-धंधा किया ही नहीं जा सकता है। काले धन वालों के खिलाफ आयकर विभाग के छापों का सिलसिला तेजी से जारी है। नोटबंदी के बाद विभाग की तरफ से अब तक (बुधवार तक) 36 छापों में एक हजार करोड़ रुपए की अघोषित आय का पता लगाया गया है। इस राशि में से 20.22 करोड़ रुपए दो हजार रुपए के नए नोट में है। विभाग ने अपने बयान में कहा है कि नौ नवम्बर से डाले गए इन छापों में कर्नाटक और गोवा में बड़ी रकम मिली है। दोनों राज्यों में 29.86 करोड़ की नकदी 41.6 किलोग्राम सोना-चांदी और 14 किलोग्राम के जेवरात मिले हैं। आठ नवम्बर को जब पीएम मोदी ने आठ बजे नोटबंदी की घोषणा की थी तो पीएम ने कहा था कि उन्हें पूरे हालात सुधारने के लिए सिर्प 50 दिन चाहिए। अब इसमें से लगभग 38 दिन निकल चुके हैं, लेकिन हालात लगभग वही हैं जो नौ नवम्बर को थे। बैंकों और एटीएम बूथों के बाहर लोगों की भीड़ जस की तस बनी हुई है। नोट छापने वाली प्रेसों की क्षमता और नोट वितरण के बारे में वर्ष 2016 की रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी की ओर से मांगी गई मियाद में किसी भी कीमत पर स्थिति सामान्य नहीं होगी। बैंकों और एटीएम तक पर्याप्त मात्रा में नई करेंसी की पहुंच इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार वापस कितने की करेंसी लेन-देन में लाना चाहती है? नोटबंदी से पहले 14 लाख करोड़ से अधिक के बड़े नोट चलन में थे। यदि सरकार इसमें से दो-तिहाई यानि करीब नौ लाख करोड़ की करेंसी भी वापस चलन में लाना चाहती है तो इसे पूरा करने में अभी चार माह लगेंगे। दरअसल समस्या 500 रुपए के नोटों की ज्यादा है। देश में नोट छापने के लिए देवास, नासिक, सालबेनी और मैसूर में चार प्रिंटिंग प्रेस हैं। इन चारों की क्षमता साल में 2670 करोड़ नोट छापने की है। यानि हर रोज ये प्रेस करीब 7.4 करोड़ नोट छाप सकती हैं। सामान्य स्थिति में ये प्रेस दो पाली में चलती हैं और अगर इन्हें तीन शिफ्टों में भी चलाया जाए तो हर रोज ये करीब 11.1 करोड़ नोट छाप सकती हैं। लेकिन समस्या यह भी है कि इन प्रेसों में आधी से कम मशीनें ही उच्च सुरक्षा मानक वाले बड़े नोट छापती हैं। ऐसे में अगर चारों प्रेसों की मशीनें ही उच्च सुरक्षा मानक वाले बड़े नोट छापती हैं तो एक दिन में कुल 2778 करोड़ रुपए के 500 के नोट छाप पाएंगी। नोटबंदी की घोषणा से पहले सरकार ने 2000 रुपए के 200 करोड़ नोट यानि करीब चार लाख करोड़ रुपए के नोट की व्यवस्था कर रखी थी। ऐसे में अब 500 रुपए के नोट छापने पर जोर दिया जा रहा है। अभी कम से कम पांच लाख करोड़ रुपए के नोट की जरूरत है। ऐसे में इतने नोट छापने में करीब 180 दिन लगेंगे, जिसमें से 38 दिन गुजर चुके हैं। हां, सरकार विदेशों से भी नोट छपवा सकती है। पर इसमें जोखिम है।

Friday, 16 December 2016

अपनी हरकतों से बाज आए पाकिस्तान

भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान को चेताया है कि वह सीमा पार से कर रहे आतंकवाद को बढ़ावा देने से बाज आए। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ Eिसह ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ में शहीदों के सम्मान में हुए एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान याद रखे कि आतंकवाद के सहारे वह जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग नहीं कर सकता। पाकिस्तान है कि मानता ही नहीं। सन 1947 से वह आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है और लगभग 70 साल में तो वह कामयाब नहीं हुआ। पर पाकिस्तान को यह लो इटेंसिटी वॉर सूट करती है। उसको यह किराये के जेहादी मिल जाते हैं जो आए दिन भारतीय सेना पर हमला कर हमारे जवानों को शहीद करते हैं। इसमें उन्हें दो फायदे हैं। पहला कि उसके अपने सैनिक मरने से बचते हैं और दूसरी ओर भारतीय सैनिकों को शहीद करता है। इसलिए हमें नहीं लगता कि गृहमंत्री की चेतावनी का कोई खास असर होगा। समय-समय पर पाकिस्तान द्वारा भारत समेत अन्य देशों के इलाकों में आतंकवाद फैलाने का सबूत दुनिया के सामने आते रहते हैं। भारत अकेला नहीं जो पाक को आतंक फैलाने से बाज आने की चेतावनी देता रहा है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने भी ऐसी ही चेतावनी दी है। खुद पीओके आधारित अमन फोरम के नेता सरदार रईस इंकलाबी ने भी पाक को दुनिया में आतंक फैलाने से बाज आने की हिदायत दी है। इसके अलावा पाकिस्तान द्वारा पीओके में चलाए जा रहे आतंकी कैंपों को खत्म करने को भी कहा है। सरदार रईस ने कहा कि पाकिस्तान यहां पर भाड़े के हत्यारों को भेज रहा है। पाकिस्तान सरकार और सेना भारत में सीमा पार करने वाले आतंकियों को एक करोड़ रुपए देती है। इसके अलावा उन्हें दहशत फैलाने के लिए सभी तरह का असल्हा मुहैया भी करवाती है। गौरतलब है कि मुजफ्फराबाद समेत सीमा से सटे कई इलाकों में जैश--मोहम्मद व लश्कर--तैयबा समेत अन्य आतंकी संगठनों के आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हें ट्रेनिंग देने में पाक सेना व आईएसआई इनका पूरा साथ देता है। पाकिस्तान कश्मीर में लांचिंग पैड पर एक बार फिर करीब 250 आतंकी जमा हुए हैं। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक इन आतंकियों का मंसूबा घाटी में हमलों को तेज करना है। बुरहान वानी को शहीद कहकर नवाज शरीफ भी अपना रुख जता चुके हैं। विडंबना यह है कि फिर भी सीमा पार से होने वाली घुसपैठ और आतंकवाद के लिए जब पाकिस्तान की जवाबदेही तय करने की बात उठती है तो पाकिस्तान यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करता है कि ये गैर-राजकीय तत्व हैं, नॉन स्टेट एक्टर हैं और ये उसकी नुमाइंदगी नहीं करते। सवाल है कि फिर पाकिस्तान सेना और आईएसआई चोरी-छिपे उनकी मदद क्यों करते हैं?

-अनिल नरेन्द्र

मौजूदा टकराव में जीएसटी का क्या होगा?

केंद्र सरकार को गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को 16 सितम्बर 2017 तक लागू करना होगा। संसद में जो जीएसटी बिल पास हुआ था, उसकी वैधता 16 सितम्बर 2017 को खत्म हो जाएगी। अगर वक्त यूं ही बीत जाता है तो सरकार के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। मोदी सरकार अब अगले साल से इस जीएसटी को लागू करने के लिए विपक्षी दलों को लूप में लेने की कोशिश कर रही है। हाल ही में हुई जीएसटी परिषद की बैठक तो बिना नतीजे के समाप्त हो गई थी। सरकार जीएसटी बिल पर सभी राज्यों से सहमति मिलने के बाद दो दिनों का विशेष सत्र बुलाकर बिल को पास कराने की पहल कर सकती है। अभी तक तो तमाम राज्यों में जीएसटी को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। 11 और 12 दिसम्बर को जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में सरकार को सहमति का भरोसा था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 16 दिसम्बर को समाप्त हो रहे विंटर सेशन में इसके पास होने की संभावना समाप्त हो गई है। नोटबंदी के बाद संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर समय रहते जीएसटी को लागू नहीं किया गया तो सरकार इनडायरेक्ट टैक्स नहीं वसूल पाएगी क्योंकि तब तक मौजूदा टैक्स खत्म हो चुके होंगे और नया टैक्स लागू नहीं हुआ होगा। जीएसटी जल्द लागू किया जाना जरूरी है क्योंकि सितम्बर के मध्य के बाद कानूनी सपोर्ट के बिना टैक्स नहीं वसूला जा सकता। वस्तुत करदाता ईकाइयों पर किस तरह केंद्र एवं राज्य, दोनों में नियंत्रण हो या किसी एक ही पर नियंत्रण हो, इस पर कोई रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है। हाल में सम्पन्न हुई बैठक में तो इसकी चर्चा तक नहीं हो सकी। देखना अब यह है कि 22-23 दिसम्बर की अगली जीएसटी की बैठक में क्या होता है? लेकिन इस समय तो इसके घोषित एक अप्रैल 2017 से लागू होने की संभावना धूमिल पड़ रही है। हालांकि केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक में लगभग 195 धाराएं हैं जिनमें से 99 धाराओं पर चर्चा की गई। जेटली ने अप्रैल 2017 से लागू होने पर केवल इतना कहा कि केंद्र सरकार इस पर कायम है। केंद्र सरकार के कायम रहने और लागू होने में अंतर है। कारण, यह अकेले केंद्र का कानून नहीं है जिसे आपने पारित कर लागू कर दिया। इसके लिए परिषद की सहमति होनी चाहिए। साथ ही संसद में इसे फिर से पारित होना आवश्यक है। कई राज्यों और केंद्र के बीच कुछ धाराओं को लेकर मतभेद साफ हैं। इस मायने में अगली बैठक काफी महत्वपूर्ण हो गई है। केंद्र की पूरी कोशिश होगी कि किसी तरह सहमति बन जाए पर नोटबंदी के मुद्दे ने जीएसटी को पीछे धकेल दिया है। इस समय तो तमाम विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट नजर आ रहा है। ऐसे में जीएसटी का क्या होगा?

Thursday, 15 December 2016

The Bank officials engaged in abolishing corruption…

When on 8th November, the Prime Minister announced the demonetization; the prime cause behind it was stated to abolish the corruption. People of the nation also welcomed this announcement. But as the time passed the nation witnessed a new form of the corruption. This was the corruption of the banks. During conversion of old 500 and 1000 rupee notes into new notes some corrupt bank officials earned crores of rupees. It is often suspected that whether it may be the issue of rising NPA or the suspected transaction of huge amounts, it may not be possible without the involvement of some bank officials. Fresh cases of turning black money into white have in fact proved the existence of corrupt elements within the banking system.
After the demonetization taking stern action against financial irregularities the Enforcement Directorate (ED) raided on Wednesday more than 50 bank branches across the country. ED started this drive on 50 branches of 10 banks including both private and public sector banks. These raids were conducted at Delhi, Mumbai, Bangaluru, Hyderabad, Kolkata and Chennai along with other cities. Records of such bank branches are being investigated where the old notes have been deposited in large number or huge amount have been deposited in the accounts at one time or several times.  The Directorate has now made the third arrest in the money laundering investigation related to the said note conversion in conspiracy with the Axis Bank officials.
ED has arrested Chartered Accountant (CA) Rajeev Kushwaha under the provisions of Prevention of Money Laundering Act (PMLA). On Wednesday the CBI has arrested a senior manager of Central Bank of India and two proprietors of a company in Bangaluru for said contravention of RBI guidelines relating to the cancellation of 500 and 1000 rupee notes. After the demonetization a SBBJ Bank cashier in Dausa in Rajasthan came in limelight for exchanging rupees one crore without using any ID for it. In this case the role of two other bank officials is also suspected. CCTV footage has revealed various secrets in this case. It is revealed that the cashier had taken 22 per cent commission i.e. Rupees 22 lakh to convert rupees one crore for his two friends residents of Jaipur and Dausa. The amount has been credited to his account at one time. We are unable to understand how the consignments of new notes are being caught in the entire country?
On one hand the poor public is standing in queues outside the ATMs and banks to withdraw their own money, on the other hand new currency notes worth crores of rupees are being confiscated? On Thursday the Income-tax department have raided at eight places in Chennai and seized Rs. 90 crore in cash and 100 kgs of gold. This 90 crore includes the demonetized money and new currency notes. Since the decision of Central Government of demonetization, cash crisis has not been solved so far.
General public stranded for hours in the bank queues, yet the many influential people converted their currency by their sources. Almost one week ago a lineman of electricity department had visited an entrepreneur’s house at Sector 51 in Noida for some work. After finishing the job he asked for money, and the wife of that entrepreneur handed him over an old 500 rupee note. Since the lineman familiar to the entrepreneur, so he told her that these notes are out of circulation now. But if you’ve no new notes, you may pay later. Besides he told that aren’t you getting the new notes? I can get them. To testify his claim the lady gave him a packet of 500 rupee notes (Rs. 50,000) for exchange. Within three hours the lineman handed over the lady an amount of 50 thousand in 2000 and 100 rupee notes and said that if she wants to exchange more notes he can also do that.
Though the  conversion of such a huge amount easily amidst the problems of people being pushed for just Rs. 2000 outside the banks and ATM may be astonishing, yet the conversion of notes in banks for capitalists and big bureaucrats has been easier even in the cash crisis due to some corrupt bank officials. Whenever the banks are supplied with new notes, a low percentage of it is disbursed among the public. Rest of huge amount is kept either for some special persons or for conversion by taking huge commission. In a meeting held in the state office of the Delhi BJP Traders’ Cell, the representatives of major trade organizations in Delhi have to say that bank officials are large defaulters since while the common trader is facing problem in withdrawing money from savings and current accounts, the huge arrival of new notes in market indicate the alteration of banks and bank officials.
After the demonetization the traders shared their experiences with BJP’s National Vice President Shyam Jaju and the State BJP President Manoj Tiwari. It has been reported that a local BJP leader in Kolkata has been arrested with new notes worth Rs. 33 lakhs. The whole amount was in new notes of Rs 2000. The arrested leader Manish Sharma is a resident of Raniganj in Burdwan district. He has been arrested along with six coal mafias. Weapons have also been seized from them.
Lastly the Government is talking about the making total payment through PayTM. After demonetization the government is emphasizing on online payment transaction. Yet it’s a fact that a little carelessness on your part may be beneficial for the culprits. A bag shopkeeper in Shahdara area met with such an incident. E-wallet using Lokesh Jain was paying his electricity bill via Paytm. He was asked OTP (One Time Password). Just after giving the OTP an amount of Rs 17580 was siphoned off from his PayTM account.
After demonetization more and more people are making transaction just through PayTM. even the PayTM is not safe. Banks have derailed the object of abolishing the corruption. If the Government is in a dilemma today, these banks are also responsible to a large extent for it.

-          Anil Narendra