Wednesday, 7 December 2016

क्या किसी ने एनआरआई का भी सोचा?



बेशक सरकार और रिजर्व बैंक दिन-रात नई करेंसी की आपूर्ति करने के लिए जोर लगा रही है पर 28 दिन होने के बाद भी एटीएम और बैंकों के बाहर लाइनें बंद नहीं हो रही हैं। कल हमारे एक कर्मचारी ने 24000 रुपए अपने खाते से निकलवाए। उसे 22000 तो 2000 के नोट में मिले, बाकी 2000 उसे 10-10 की थैलियों में मिले। बैंक भी परेशान है। वह अकसर अपने बाहर लिखकर लगा रहे हैं कि बैंक में पैसा नहीं है, बेकार लाइन में खड़े न हों। एक और समस्या देखने को मिल रही है। लोगों को जो पैसे मिल रहे हैं वह उन्हें खर्चने पर परहेज कर रहे हैं। नोटबंदी से लोगों की मनोदशा बदल गई है। सैलरी मिली होगी लेकिन जेब में नोट नहीं होंगे। भले धनपति हो, एकाउंट में पैसा हो मगर दिमाग चिन्ता में है कि नकदी मिले तो उसे बचाकर घर में सुरक्षित रखें। एक नवम्बर बनाम एक दिसम्बर का फर्प यह है कि भारत के नागरिक से आज अघोषित तौर पर यह कानूनी, संवैधानिक अधिकार छीना हुआ है कि वह बैंक को उसका पैसा देने को मजबूर नहीं कर सकता। अपने ही पैसे पर उसका आज अधिकार नहीं है। वह कैंसर से मर रहा हो, डायबिटीज का मरीज हो, हार्ट का मरीज हो, दमे से प्रभावित हो बैंक उसे इलाज के लिए नकदी पैसा नहीं देगा। इसलिए वह कंजूसी से, सावधानी से आए पैसे को खर्च कर रहा है। जिन काले धन वाले अफसरों, नेताओं, व्यापारियों, दलालों का पैसा सफेद होकर बैंकों में जमा करवा दिया है और जिनका पैसा सफेद हो गया है वे यह जल्दी नहीं करेंगे कि पैसा निकट भविष्य में बाहर निकले। या तो वह उसे बैंक में रखेंगे या फिर इसके बदले जितनी 2000 रुपए की नई गड्डियां ली हैं उन्हें वे तहखाने में फिर सुरक्षित जमा करवा देंगे। दूसरे शब्दों में बैंकों में जमा हुआ काला धन हो या पुराने के बदले नए नोट लेकर सुरक्षित बना लिया पैसा हो, सब छह-आठ महीने खरीददारी के लिए बाहर नहीं निकलेगा। दिल्ली के एक सरकारी बैंक के उच्च अधिकारी ने बताया कि उनकी ब्रांच में किसी भी दिन पांच लोग भी 10, 20, 50 और 100 रुपए के पुराने नोट या 500 और 1000 के नए नोट जमा कराने नहीं पहुंच रहे हैं। दूसरी ओर 500 और 1000 के पुराने नोट जमा करने वालों की भरमार है। प्रचलित नोट वापस बैंकों के पास न आने के कारण ग्राहकों को नकदी उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। नोटबंदी से देश के अंदर तो आम जनता प्रभावित हुई ही है पर विदेशों में भी इसका गहरा असर पड़ा है। शायद ही सरकार ने एनआरआई की ओर ध्यान दिया होगा। एनआरआई कहीं के हों, अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, दुबई वह भारत आते-जाते रहते हैं और हर परिवार कुछ इंडियन करेंसी जरूर रखता है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई या कोलकाता कहीं भी एयरपोर्ट पर उतरते ही नोट न बदलाने पड़े, यह सोचते हुए कइयों के पास 500-1000 के पुराने नोटों में लाख-दो लाख, पांच लाख की करेंसी है। ये सब नोट डॉलर देकर खरीदी गई इंडियन करेंसी है। पर विदेशों में कहीं भी इंडियन बैंकों में रद्द हुए नोट जमा नहीं हो रहे हैं। अब ये लोग कटाक्ष कर रहे हैं कि देश के लिए हमने क्या कुछ नहीं किया और हमें उसका यह सिला मिल रहा है? दुखद पहलू यह भी है कि अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड में लाख-लाख, दो-दो लाख रुपए की भारतीय करेंसी लिए लोग काले धन वाले कतई नहीं हैं। बहरहाल अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा के एनआरआई की समस्या को एक मिनट के लिए भूल जाएं पर पास के देशों को लेकर भी विचार नहीं हुआ। आठ नवम्बर को प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की जो घोषणा की उसमें नेपाल, भूटान में भारत की करेंसी के 500 और 1000 के नोटों का क्या होगा? ध्यान रहे कि दोनों देशों में भारत की करेंसी का बराबरी से वैधानिक प्रचलन है। फिर विदेशी पर्यटकों का क्या होगा? मेरे एक जानकार हाल ही में (नोटबंदी से पहले) दिल्ली आए थे। उन्होंने भारत यात्रा के दौरान 40,000 रुपए के नोट डॉलर देकर बदले थे। इस दौरान नोटबंदी की घोषणा हो गई। जब वह वापस गए तो एयरपोर्ट पर उनके कुल 5000 रुपए के नोट डॉलरों में बदले गए। मजबूरन उन्हें अपने बाकी रुपए यहीं छोड़ने पड़े। इसका पर्यटन पर क्या प्रभाव हुआ है यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।

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