Thursday, 22 December 2016

सरकार को राहत ः नोटबंदी में दखल से इंकार

मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए कहा कि वह इस पर दखल नहीं देगा। नोटबंदी के फैसले को राजकोषीय नीति करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इसमें दखल देने से इंकार कर दिया। नोटबंदी का मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक रूप से अहम तो है ही अब यह कानूनी रूप से भी महत्वपूर्ण हो गया है। आठ नवम्बर को पांच सौ और हजार रुपए के नोट चलन से बाहर करने के बाद जन साधारण के मन में वही सवाल थे जो शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी उठाए। आखिर किसी नागरिक को प्रॉपर्टी के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। ऐसा उचित कानूनी प्रक्रिया से किया जा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम संविधान और कानून की नजर में कितने टिकते हैं, इस पर आम लोगों के साथ-साथ कानून के जानकारों की निगाहें भी लगी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि नोटबंदी से संबंधित विभिन्न हाई कोर्टों और अन्य अदालतों में चल रहे मुकदमों को अब सिर्फ शीर्ष अदालत ही सुनेगी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजते हुए उसके समक्ष परीक्षण के लिए नौ प्रश्न रखे हैं। यह निर्णय पीठ ने इसलिए लिया है कि नोटबंदी को लेकर अलग-अलग विरोधाभासी आदेशों से दो-चार न होना पड़े। शीर्ष अदालत ने 24 हजार रुपए प्रति सप्ताह बैंक से निकालने की सीमा में भी कोई संशोधन नहीं किया। शीर्ष अदालत ने उम्मीद जताई है कि सरकार आम जनता को हो रही कठिनाई को ध्यान में रखते हुए जितना संभव हो सकेगा अपने इस वादे को पूरा करेगी। अटार्नी जनरल ने स्वीकार किया कि पुराने नोटों के बदलने में कुछ गड़बड़ियां सामने आई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के परीक्षण के लिए नौ प्रश्न रखे हैं। क्या आठ नवम्बर को जारी अधिसूचना आरबीआई एक्ट की धारा 26(2), 7, 17 आदि का उल्लंघन है? क्या अधिसूचना संविधान की धारा 300() का उल्लंघन है? अगर यह माना जाए कि यह आरबीआई एक्ट के तहत वैध है लेकिन क्या यह संविधान के अनुच्छेद-14 और 19 के विपरीत तो नहीं है? क्या आठ नवम्बर की अधिसूचना और उसके बाद जारी अधिसूचनाओं के क्रियान्वयन पर प्रक्रियात्मक खामियां हैं या वे अतार्किक तो नहीं हैं? बैंकों-एटीएम से रकम निकासी की सीमा तय करना अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं? कोर्ट आर्थिक नीतियों में दखल दे सकता है? क्या सहकारी बैंकों पर लगाई गई रोक मुनासिब है? क्या संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत राजनीतिक पार्टियां याचिकाएं दाखिल कर सकती हैं? और अंत में अगर धारा-26 के तहत नोटबंदी की इजाजत दी गई तो क्या विधायी शक्तियों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल तो नहीं? क्या इस वजह से यह संविधान के विपरीत तो नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment