Thursday, 22 December 2016

नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति पर फालतू का विवाद

सेना प्रमुख के पद पर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस तरह एक बार फिर प्रमुख पदों पर तैनाती को लेकर विपक्ष ने प्रधानमंत्री की आलोचना की है। कांग्रेस और वामदलों ने दो वरिष्ठ जनरलों को नजरंदाज करके लेफ्टिनेंट जनरल रावत को सेना प्रमुख बनाए जाने को सेना में गलत परंपरा की शुरुआत और सेनाधिकारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला फैसला बताया है। इन दलों का मानना है कि दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को दरकिनार करके लेफ्टिनेंट जनरल रावत को तरजीह दी गई। लिहाजा उनकी नियुक्ति विवादास्पद है। हमारी राय में यह आलोचना भी सही नहीं और इससे बचना चाहिए। नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति व चयन सरकार का विशेषाधिकार है। बेशक इसमें वरिष्ठता का ध्यान रखा जाता है, लेकिन वह एकमात्र निर्णायक कारक होता तो फिर सरकार के फैसले की शायद कोई दरकार ही नहीं थी। वरिष्ठतम अधिकारी को अपने आप सेनाध्यक्ष मान लिया जाता। चूंकि ऐसा नहीं है इसलिए अपने समय में हर सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सबसे उपयुक्त व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त करे। विपक्ष को सरकार के कामकाज की आलोचना करने का लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार के हर कदम और खासकर सेना से संबंधित मसलों पर भी आलोचनात्मक रुख अपनाए। राजनीतिक दलों को यह मालूम होना चाहिए कि सेना के कामकाज की जवाबदेही सरकार की होती है। यदि सेना किसी युद्ध में असफल होती है तो अंतत यह सरकार की हार मानी जाती है। इसलिए यदि सरकार वरिष्ठ के मुकाबले किसी कनिष्ठ अधिकारी को ज्यादा प्रतिभाशाली और ज्यादा योग्य मानती है तो उसे चयन का अधिकार भी मिलना ही चाहिए। मौजूदा सरकार ने भी अपनी समझ से ऐसा किया है और इस पर आपत्ति का कोई कारण हमें तो नजर नहीं आता। दूसरी ओर सेना प्रमुख के पद पर नियुक्ति के सवाल को हल्के में लेना भी शायद ठीक नहीं है। यह पहला मौका है जब एक नहीं, दो-दो वरिष्ठ जनरलों को दरकिनार करते हुए तीसरे अफसर को यह पद दिया गया। इससे पहले सिर्फ एक बार जनरल एसके सिन्हा की वरिष्ठता की अनदेखी करते हुए जनरल अरुण वैद्य की नियुक्ति की गई थी। हालांकि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने कथित तौर पर जनरल सिन्हा के राजनीतिक विचारों के चलते यह फैसला किया था, फिर भी इसे अच्छे उदाहरण के रूप में याद नहीं किया जा सकता। दरअसल सभी सेनाधिकारी योग्य होते हैं लेकिन कई अवसरों पर विशेष योग्यता को ध्यान में रखकर ही फैसले होते हैं। मौजूदा समय में पाक और चीन से हमारे रिश्ते तनावपूर्ण हैं और जनरल रावत दोनों से ही निपटने में ज्यादा सक्षम लगते हैं।

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