देश में नोटबंदी का असर
विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है। करीब ढाई हफ्ते बाद भी स्थितियां सामान्य
नहीं हो पाई हैं। सबसे ज्यादा परेशान देश का किसान है। धन की कमी से जूझ रहे किसान
वस्तु विनिमय (सामानों
की अदला-बदली) का तरीका अपनाने पर मजबूर
हैं। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसान बाजार से खाद और बीज खरीदने के लिए धान दे
रहा है। कोई उधार अब नहीं दे रहा। ऐसे में आढ़तियों को धान बेचा तो बुआई का सामान मिला।
बाराबंकी के जरौली गांव में किराना व्यवसायी धान के बदले लोगों को तेल-मसाला, साबुन और जरूरत के अन्य सामान दे रहे हैं। साढ़े
तीन किलो धान के बदले में एक किलो चीनी मिल रही है। लोग करीब 10 रुपए किलो की दर से धान देकर जरूरत का सामान ले रहे हैं। किसानों को ऐसा करके
नुकसान उठाना पड़ रहा है पर नकद नहीं होने से मजबूर हैं। मोटे तौर पर कहा जा सकता है
कि नोटबंदी के फैसले को लगभग 24 दिन हो गए हैं। अब तो अंतर्राष्ट्रीय
आर्थिक एजेंसियों के भी सुर बदलने लगे हैं। वैसे केंद्र सरकार यह मानने को तैयार नहीं
है कि नोटबंदी से किसी तरह का नुकसान हो रहा है। बेशक लंबी अवधि में यह फैसला भारतीय
अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित हो पर तात्कालिक इसके दुष्परिणाम ही सामने आ रहे
हैं। आखिर हम भी किसी नेता से ज्यादा देश से प्यार करते हैं। सिर्प एक गाजियाबाद जिले
में मीडियम और स्माल उद्योग को 15 दिन में 700 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। मुंबई में रोज 325 करोड़
का नुकसान हो रहा है। एसोचैम की रिपोर्ट के हिसाब से पहले चार दिन में जो ह्यूमन रिसोर्स
लाइन में बर्बाद हुआ उसकी कीमत है एक लाख 16 हजार करोड़।
80 प्रतिशत भारत 15 दिन से ठप है। इसके नुकसान
का आंकलन करना बस की बात नहीं। लार्सन एंड ट्रुबो कंपनी ने 14000 वर्पर्स को नौकरी से निकाला है। यह कुल वर्प कोर्स का 11 प्रतिशत है। सीएमआईई की रिपोर्ट के हिसाब से नोटबंदी की कीमत एक लाख
25 हजार करोड़ है। राजस्थान इंडस्ट्री का एक लाख करोड़ का नुकसान। रुपया
डॉलर के सामने रिकार्ड निचाई पर आ चुका है और डॉलर की कीमत रुपए के मुकाबले
75 तक जाने की संभावना है। विदेशी निवेशक पैसे निकालकर भाग रहे हैं।
मिल मालिकों ने 40-60 प्रतिशत लेबर की छुट्टी कर दी है। मजदूर
बेरोजगार हो गए हैं। नोटबंदी छीन रही है नौ लाख नौकरियां। जीडीपी गिरेगा। डॉ.
मनमोहन सिंह ने कहाöजीडीपी दो प्रतिशत तक गिर सकती
है। अब तक 80 जिन्दगियां छीन चुकी है नोटबंदी। किसान की रबी की
फसल चौपट की नोटबंदी ने। ये तो सिर्प चन्द आंकड़े और आंकलन हैं जो पटल पर सामने आ पाए
हैं। वक्त के साथ बहुत कुछ सामने आएगा। याद रहे भारत में नकदी में काला धन सिर्प छह
प्रतिशत ही था। बाकी विदेश में, प्रॉपर्टी में, सोने इत्यादि में निवेशित है। वो छह प्रतिशत में से कितना सेटिंग से सफेद करवा
दिया गया नोटबंदी से? भारत का नया अर्थशास्त्रöचार लाख करोड़ पकड़ने के लिए 40 लाख करोड़ का नुकसान।
वो भी सिर्प अपनी गिरती साख बचाने और उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए। किसी ने खूब
कहा है...नीम हकीम...खतरा-ए-जान। हमारी समझ में यह नहीं आ रहा कि सरकार को क्या
ऐसे आर्थिक फैसले जनता पर थोपने चाहिए जो लाखों लोगों को चोट पहुंचाकर उन्हें कमजोर
कर रहे हैं? इनका तो भ्रष्टाचार से कोई लेना-देना नहीं है। वे अपनी पूरी जिन्दगी उसे जैसे-तैसे चलाने
के संघर्ष में लगा देते हैं। आज 500 रुपए का नोट मोरारजी देसाई
के समय के 50 रुपए के बराबर है। मोरारजी देसाई ने तो
1978 में हजार, पांच हजार और 10 हजार रुपए के नोट बंद कर कुल करेंसी का एक फीसदी को चलन से बाहर किया था। इस
बार के कदम ने तो 86 प्रतिशत करेंसी को बाहर कर दिया है। हर कोई
जानता है कि वित्तीय रूप से यह कितना कष्टदायक हो सकता है, क्योंकि
भारत में 90 प्रतिशत लेन-देन तो नकद में
होता है। लाखों भारतीयों को आज भी नकदी में लेन-देन सुरक्षित
लगता है। यह खासतौर पर ग्रामीण और अर्द्ध-शहरों में है,
जहां भारत की अब भी ज्यादातर आबादी रहती है। हो सकता है कि नोटबंदी लंबे
अरसे में लाभदायक साबित हो, नए युग की डिजिटल व्यवस्था अपनाकर
फायदे मिलें। लेकिन हमारा मानना है कि यह फैसला व्यक्तिगत चयन का मामला होना चाहिए।
लोगों को जैसे चाहे वैसे लेन-देन करने की सुविधा होनी चाहिए जब
तक वे कुछ गलत नहीं कर रहे हों। आप और मैं जो शहर में रहते हैं, हो सकता है बैंक, लॉकरों में बचत रखते हों, लेकिन करोड़ों लोग ऐसे हैं जो अपना पैसा नकदी और सोने में बचत करके रखते हैं,
क्योकि उन्हें इसी में भरोसा है। जब समृद्धि और प्रचुरता के वर्ष हों
तो गांव की तुलनात्मक रूप से सम्पन्न महिला कोहनी तक सोने की चूड़ियां पहने नजर आती
हैं। सूखे और हताशा, अजारी के दिनों में, बीमारी के दिनों में उसकी बांहें सूनी हो जाती हैं। घर का चूल्हा जलाए रखने
के लिए सोना गिरवी रख दिया जाता है अथवा लेन-देन में इस्तेमाल
किया जाता है। महिलाएं कठिन वक्त में अपनी छिपाई बचत से अपना परिवार बचाने में कामयाब
होती हैं। लेकिन नोटबंदी जैसे व्यापक कदम उठाने से तो इस विशाल देश में फैले लाखों
गरीबों और मध्यम वर्ग, मजदूर वर्ग, महिलाओं
को चोट पहुंच रही है। जहाज से विशाल जाल डालकर मछली पकड़ने के हम इसलिए खिलाफ हैं क्योंकि
यह कुछ मछलियां पकड़ने के लिए अनावश्यक रूप से और कूर तरीके से लाखों समुद्री जीव नष्ट
कर देता है। अच्छे इरादे हमेशा ही अच्छे फैसले नहीं देते। (समाप्त)
-अनिल नरेन्द्र
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