प्रधानमंत्री
मोदी ने काला धन और भ्रष्टाचार दूर करने के लिए नोटबंदी की है। इस कार्य में उन्हें
देश का समर्थन भी मिला। जितने भी सर्वे किए गए उनमें अधिकतर जनता ने उनका समर्थन किया।
आमतौर पर जनता खुश थी। पर यह खुशी क्यों थी?
इसका सबसे बड़ा कारण था हमारा मानव स्वभाव। सोशल मीडिया में एक पोस्ट
बिल्कुल सटीक बैठती है। आम आदमी परेशान है फिर भी खुश है क्योंकि विमुद्रीकरण से गरीब
सोचता है कि धन्ना सेठों की वाट लग गई, नौकर सोचता है कि मालिक
की वाट लग गई, मरीज सोचता है कि डाक्टर की वाट लग गई,
क्लर्प सोचता है कि साहब की वाट लग गई, जनसेवक
सोचता है कि प्रशासक की वाट लग गई, प्रशासक सोचता है कि नेताओं
की वाट लग गई और नेता सोचता है कि विपक्ष की वाट लग गई। सभी दुखी हैं फिर भी खुश हैं...
दूसरों को दुखी देखकर खुश होना मानव स्वभाव जो है। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश
डिक्शनरी भ्रष्टाचार को कुछ ऐसे परिभाषित करती है, सत्ता में
बैठे लोगों द्वारा बेइमानी या छलपूर्ण व्यवहार, खासतौर पर जिसमें
रिश्वत का संबंध हो। दुनिया के ज्यादातर लोग इसका समर्थन करेंगे। किन्तु हमने परिभाषा
का दायरा बढ़ाकर इसकी धार खत्म कर दी। असली महत्व के शब्द तो सत्ता में बैठे और रिश्वत
हैं। भारत में आम आदमी का सत्ता में होने से दूर-दूर का कोई वास्ता
नहीं है। हम में से 40 प्रतिशत से ज्यादा गरीब हैं, हमारे बीच मुश्किल से दो प्रतिशत लोगों के पास टैक्स चुकाने लायक संसाधन है।
आज अधिकतर भारत की जनता बैंकों के बाहर अपने ही कमाए पैसों को लेने के लिए लाइनों में
खड़ी है। उस भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए जो नोटबंदी की गई थी उसमें भ्रष्टाचार हो
रहा है। दलालों की एक नई जमात आठ नवम्बर से पैदा हो गई है। इसमें बैंक अधिकारी,
पुलिस कर्मी, इनकम टैक्स अधिकारी और काला धन को
सफेद नोट में कनवर्ट करने की नई विशेषज्ञता वाली पेशेवर दलालों की टीमें हर शहर में
अस्तित्व में आ गई हैं। 100 रुपए देकर 70 लेना आम बात बन गई है। भ्रष्टाचार का रूप बदल गया है। भ्रष्टाचार और काला धन
वैसा ही है जैसा आठ नवम्बर से पहले था। रही बात मजदूर, किसान,
आम आदमी की तो उसका बुरा हाल हो गया है। जहां पहले काम मिला हुआ था वहां
तक जाने के लिए आज मजदूर के पास रुपए नहीं हैं और अपने इलाके में उसे काम नहीं मिल
रहा है। घर में राशन नहीं है, क्योंकि रोजाना कमाकर राशन लाते
थे। दुकानदार भी राशन उधार में नहीं दे रहा है। भूखे पेट ही दिन बिताने पड़ रहे हैं।
अधिकांश लोग खाने का सामान पड़ोसियों, रिश्तेदारों से मांगकर
अपने परिवार का पेट भर रहे हैं। ऐसी बातें आज करीब-करीब सभी दिहाड़ी
मजदूर करने पर मजबूर हैं। रोजाना 150-250 रुपए कमाने वाला राम
लाल नोटबंदी के बाद खाने के लिए लंगर पर निर्भर है। उसका कहना है कि दो टाइम के खाने
पर 60-80 रुपए खर्च हो जाते थे। हालात इतने बुरे हो गए हैं कि
अब गुरुद्वारे के सहारे ही रहना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वह 14 नवम्बर से रोज गुरुद्वारे बंगला साहब आकर अपना पेट भर रहे हैं। दिल्ली सिख
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से मिली जानकारी के मुताबिक नौ नवम्बर के बाद से दिल्ली के
सभी बड़े गुरुद्वारों (बंगला साहब, शीशगंज
साहब, रकाब गंज, नानक प्याऊ, मजनूं टीला) में लंगर करने वालों की संख्या में भारी
इजाफा हुआ है। लगातार कैश की किल्लत झेल रही जनता में नोटबंदी के दुष्परिणाम अब सामने
आने लगे हैं। गाजियाबाद के न्यू आर्य नगर में दवा के लिए पैसे न होने के कारण एक बुजुर्ग
की मौत हो गई। परिजनों का कहना है कि नोटबंदी के चलते घर में कैश नहीं था। शुक्रवार
को चेक से रुपए निकालने की कोशिश की गई, लेकिन घंटों बैंक के
बाहर खड़े रहने पर भी बैरंग लौटना पड़ा। वहीं सोमवार को भी यही हाल रहा। ऐसे में बुजुर्ग
का इलाज नहीं हो सका और मंगलवार सुबह उनकी मौत हो गई। इसके अलावा घर में अंतिम संस्कार
के लिए भी पैसे नहीं होने पर बुजुर्ग की पोती बैंक पहुंची तो बैंक कर्मियों ने कैश
देने में असमर्थता जताई और कहा कि कैश खत्म हो गया है। ऐसे में लोगों ने 17
हजार रुपए जुटाए और पीड़ित परिवार को दिए तब कहीं जाकर अंतिम संस्कार
हो सका। नोएडा में 70 साल का बुजुर्ग शख्स पत्नी की लाश घर में
रखकर दो दिन तक कैश के लिए बैंक के चक्कर काटता रहा। दूसरे दिन भी जब बैंक से पैसे
नहीं मिले तो वह अपनी बुजुर्ग पत्नी की लाश लेकर विरोध स्वरूप सड़क पर बैठ गया। इतना
होने के बाद सरकारी अमला हरकत में आया। हालांकि बैंक से रुपए मिलने में शाम हो गई और
दूसरे दिन भी मृतक महिला के शव का अंतिम संस्कार नहीं हो सका। देश में नोटबंदी का असर
विभिन्न क्षेत्रों में दिखने लगा है। करीब ढाई हफ्ते से ज्यादा समय हो गया और स्थितियां
सामान्य नहीं हो रही हैं। सबसे ज्यादा परेशान किसान है। धन की कमी से जूझ रहे किसान
वस्तु विनिमय (सामानों की अदला-बदली)
का तरीका अपनाने को मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार,
छत्तीसगढ़ में किसान खेती से जुड़ी अपनी मुश्किलों का सामना कर रहा है
यह मैं कल बताऊंगा। आज की तारीख में धन्ना सेठ तो खुश हैं, न
वह लाइनों में लग रहे हैं और न ही उन पर नोटबंदी का कोई प्रभाव हुआ है। अधिकतर धन्ना
सेठों ने अपनी ब्लैक मनी नई करेंसी में बदल ली है। उस भ्रष्टाचार जिसको लेकर यह नोटबंदी
हुई उसी में भ्रष्टाचार का बोलबाला नजर आ रहा है। (क्रमश)
-अनिल नरेन्द्र
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