Sunday, 30 October 2016

डीएनडी टोल फ्री

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लाखों मुसाफिरों को दीपावली की सौगात देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (डीएनडी) फ्लाई-वे को टोल मुक्त करने का फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने 9.2 किलोमीटर लंबी और आठ लेन वाली इस फ्लाई-वे पर टोल टैक्स की वसूली पर रोक लगा दी है। कोर्ट का आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। कोर्ट ने कहा कि डीएनडी बनने में 408 करोड़ रुपए का खर्च आया था। निर्माण करने वाली कंपनी खुद मान रही है कि 31 मार्च 2014 तक 810.18 करोड़ रुपए की कमाई हो चुकी है। लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि 300 करोड़ की वसूली अभी शेष है। पैसा वसूलते रहने के बावजूद लागत कैसे बढ़ती जा रही है? कंपनी का यह गणित समझ से परे है? न्यायमूर्ति अरुण टंडन एवं न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि टोल ब्रिज कंपनी ने लागत वसूल कर ली है, लेकिन करार की शर्तों के अनुसार 100 साल में भी उसकी भरपायी नहीं होगी। गलत करार का खामियाजा जनता नहीं भुगत सकती। बता दें कि फैडरेशन ऑफ नोएडा रेजीडेंट एसोसिएशन ने 2012 में याचिका दायर की थी। चार साल तक चली लंबी सुनवाई के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि नोएडा प्राधिकरण ने ऐसा करार किया है जिसकी वजह से कंपनी अवैध वसूली कर रही है। चार साल में 70 सुनवाई के दौरान अदालत ने महसूस किया कि टोल की लागत से कहीं ज्यादा पैसा वसूला जा चुका है, इसलिए अब जनता से और टैक्स लेने का कोई औचित्य नहीं है। यह एक तरह की अवैध वसूली है। चूंकि देश में हर जगह टोल प्लाजा है और उनके खिलाफ जनता का गुस्सा भी हर जगह है। कभी ज्यादा टैक्स वसूलने को लेकर हिंसक प्रदर्शन, कभी बदइंतजामी को लेकर घंटों जाम, तो कभी सड़कों के घटिया रखरखाव पर आए दिन होते रहते हैं। लेकिन डीएनडी टोल का विवाद इस मायने में अनूठा है कि जिस टोल के बनने में 408 करोड़ खर्च आया, अब कंपनी की दलील है कि वह लागत बढ़कर 31 मार्च तक 2168 करोड़ तक पहुंच चुकी है और गड़बड़झाले इसी बिन्दु पर हैं कि पैसा वसूलते रहने के बावजूद लागत कैसे बढ़ती जा रही है? पूरे विवाद की असली जड़ टोल टैक्स नीति की खामी है। सवाल यह भी है कि जब सरकार सड़क, हाइवे जैसे बुनियादी ढांचे के लिए टैक्स वसूलती है तो कुछ सड़कों के लिए अलग टैक्स क्यों? अब मामला सुप्रीम कोर्ट के पाले में आ गया है। उच्चतम न्यायालय नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है जिसमें डीएनडी पर वाहनों से टोल लेने पर पाबंदी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लगाई है। सुप्रीम कोर्ट पर अब सबकी नजरें टिकी हुई हैं और यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से निकला फैसला देश के बाकी टोल प्लाजा के लिए नजीर बनेगा।

-अनिल नरेन्द्र

देश की सुरक्षा करते जवानों के लिए एक दीपक जरूर जलाएं

दीपावली के इस खास उत्सव को मनाने के लिए  लोग बेहद उत्सुकतापूर्वक इंतजार करते हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है, खासतौर पर घर के बच्चों के लिए। भारत एक ऐसा देश है जिसको त्यौहारों की भूमि कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भगवान राम के 14 साल का वनवास काटकर अपने घर लौटने की खुशी में मनाया जाने वाला यह त्यौहार देश-विदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जिसकी रोशनी का उत्सव या लड़ियों की रोशनी के रूप में भी जाना जाता है जो कि घर में लक्ष्मी के आने का संकेत होने के साथ-साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। असुरों के राजा रावण को मारकर प्रभु श्रीराम ने धरती को बुराइयों से मुक्त कराया था। पर क्या सही मायनों में रावण मारा गया? नहीं रावण तो आज भी जिन्दा है। आजकल के रावण ऐसे-ऐसे कुकृत्य कर रहे हैं जिनका वर्णन करना भी मुश्किल है। खैर, हम बात कर रहे थे दीपावली की। बाजारों को दुल्हन की तरह शानदार तरीके से सजाया जाता है। इन दिनों बाजारों में खासी भीड़ रहती है। खासतौर पर मिठाइयों, ड्राई फ्रूड्स इत्यादि की दुकानों पर। बच्चों के लिए यह दिन मानो नए कपड़े, खिलौने, पटाखे और उपहारों की सौगात लेकर आता है। दीपावली आने के कुछ दिन पहले ही लोग अपने घरों की साफ-सफाई के साथ दीयों से, लड़ियों से घर को रोशन करते हैं। देवी लक्ष्मी की पूजा के बाद शुरू होता है आतिशबाजी का दौर। वर्तमान स्थिति ऐसी बन गई है कि इस बार लोग भारतीय सामान को प्राथमिकता दे रहे हैं। लोग चीनी निर्मित लड़ियों, पटाखों इत्यादि का बायकाट कर हिन्दुस्तानी सामान को पसंद कर रहे हैं। हमने भी अपने घर के लिए हिन्दुस्तान निर्मित लड़ियां मंगवाई हैं। यह अच्छी क्वालिटी की एलएडी बल्बों से बनाई गई हैं और ज्यादा महंगी भी नहीं हैं। वैसे कहा तो यह जाता है कि इसी दिन लोग बुरी आदतों को छोड़कर अच्छी आदतों को अपनाते हैं पर वास्तविक स्थिति भिन्न है। जुए की प्रथा बरसों से चली आ रही है और दीपावली के दिनों में यह जोरों पर चलती है। बुराई को भगाने के लिए हर तरफ चिरागों की रोशनी इसलिए की जाती है ताकि देवी-देवताओं का स्वागत हो। दीपावली के  दो हफ्ते पहले से ही बच्चों द्वारा स्कूलों में कई सारे क्रियाकलाप शुरू हो जाते हैं। दीपावली पांच दिनों का एक लंबा उत्सव है। पहले दिन को धनतेरस, दूसरे को छोटी दीपावली, तीसरे को दीपावली या लक्ष्मी पूजा, चौथे को गोवर्द्धन पूजा तथा पांचवें को भैयादूज कहते हैं। हम आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं और सेफ दीपावली मनाने का अनुरोध करते हैं। हमारी सीमाओं पर, देश के अंदर हमारी रक्षा करते जवानों को दीपावली पर जरूर याद करें। उनके लिए एक दीपक जरूर जलाएं।

Saturday, 29 October 2016

पाकिस्तान के लिए अगले 10 दिन महत्वपूर्ण होंगे

पाकिस्तान में सेना और नवाज शरीफ सरकार मिलकर काम कर रहे हैं या दोनों में टकराव है इसका फैसला आने वाले चन्द दिनों में हो जाएगा। मसला है पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ के वर्तमान कार्यकाल को बढ़ाने का। वर्तमान सेना प्रमुख राहील शरीफ नवम्बर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं और वह एक्सटेंशन जरूर चाहेंगे। हालांकि पब्लिक में वह कह रहे हैं कि मैं दूसरे कार्यकाल के पक्ष में नहीं हूं। उन्होंने कहा कि वे अपने पूर्ववर्ती जनरल अशफाक कयानी की तरह दूसरा कार्यकाल नहीं लेंगे। पाकिस्तान सरकार के एक मंत्री ने कहा है कि हफ्ता, 10 दिन में पाक सरकार नए सेना प्रमुख का ऐलान कर देगी। लेकिन राहील का स्थान कौन लेगा अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है। पाक समाचार एजेंसी एसोसिएटिड प्रेस ऑफ पाकिस्तान (एपीपी) ने वरिष्ठ मंत्री तारिक फजल चौधरी के हवाले से कहा है कि सरकार ने अब तक इस बारे में फैसला नहीं किया है कि कौन नया सेना प्रमुख होगा, लेकिन जल्द ही उनके नाम की घोषणा कर दी जाएगी। आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चुनौतियों के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार पर जनरल राहील शरीफ के उत्तराधिकारी के नाम को लेकर अनिश्चितता खत्म करने का दबाव है। कानून के तहत प्रधानमंत्री को नए सेना प्रमुख की नियुक्ति का विशेषाधिकार है। इस संबंध में उनकी शक्ति असीमित है। लेकिन पद से मुक्त हो रहे सेना प्रमुख उन्हें परामर्श दे सकते हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री किसी भी वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल को सेना प्रमुख के तौर पर चुन सकते हैं और वह अधिकारियों की वरिष्ठता मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। पाक मंत्री द्वारा नए सेना प्रमुख के नाम का हफ्ता, 10 दिन में खुलासा करने का बयान इस्लामाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले के ठीक बाद में आया है जिसमें जनरल राहील शरीफ को फील्ड मार्शल का दर्जा देने की मांग संबंधी याचिका खारिज कर दी गई थी। प्रमुख समाचार पत्र एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति आमेर शेख ने कहा कि अदालत के पास इस बारे में विधायिका को निर्देश देने का अधिकार नहीं है। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि याचिका अयोग्य थी इसलिए इसे खारिज कर दिया गया। याचिका 16 अक्तूबर को लगाई गई थी। इधर इमरान खान ने चेतावनी दी है कि अगर तीसरी ताकत ने तख्ता पलट किया तो इसके लिए नवाज शरीफ सरकार जिम्मेदार होगी। दरअसल इमरान की पार्टी राजधानी इस्लामाबाद में घेराव कर बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में है। पनामा पेपर्स में भ्रष्टाचार के आरोपों के खुलासे के बाद इमरान खान प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। आने वाले दिन पाकिस्तान के लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे। देखें, क्या होता है?

-अनिल नरेन्द्र

येदियुरप्पा के बरी होने का दूरगामी सियासी असर होगा

भाजपा के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को राहत देते हुए सीबीआई की विशेष अदालत ने बुधवार उन्हें, उनके दो पुत्रों व दामाद को अवैध खनन से जुड़े 40 करोड़ रुपए के दलाली मामले में बरी कर दिया। इस मामले के कारण ही येदियुरप्पा पर वर्ष 2011 में तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष होगड़े ने अभियोग चलाया था और उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। अदालत ने जांच-पड़ताल के बाद येदियुरप्पा और उनके परिवार को भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र का दोषी पाया था। सिर्प यही नहीं कि येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था, बल्कि उन्हें कुछ दिन जेल में भी बिताने पड़े थे। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर यह मामला सीबीआई ने अपने हाथ में लिया था। चर्चित बेल्लारी खदान रिश्वत कांड में बरी होने का न सिर्प उन्हें लाभ होगा बल्कि इसका दक्षिण भारत की राजनीति पर गहरा असर पड़ेगा। सीबीआई अदालत के फैसले से दक्षिण भारत में भाजपा की पहली सरकार बनवाने वाले येदियुरप्पा फिर ताकत के साथ उभर सकते हैं। संभव है कि येदियुरप्पा दक्षिण में फिर कांग्रेस की अकेली सरकार को 2018 के चुनाव में पराजित कर दक्षिण भारत को कांग्रेसमुक्त बना डालें। कांग्रेस क्या दूसरी विपक्षी पार्टियां इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा फैसले को प्रभावित करने के जो आरोप लगा रही हैं, उसमें कुछ नया नहीं है। इसके बावजूद तत्कालीन लोकायुक्त संतोष हेगड़े के निष्कर्ष पर तो सवाल उठेंगे ही कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में येदियुरप्पा और उनके परिवार को दोषी कैसे ठहराया? फिर तब ऐसे कौन-कौन से अकाट्य तथ्य और सबूत थे जिस आधार पर मुख्यमंत्री को पद से इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ा था? इस फैसले ने येदियुरप्पा को न सिर्प नया राजनीतिक जीवन ही दिया है, बल्कि वह फिर से कर्नाटक में भाजपा के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभर सकते हैं। चूंकि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से बाहर हुए येदियुरप्पा ने भाजपा का काफी नुकसान किया था और कांग्रेस विजयी रही थी। ऐसे में उनके बरी होने से भाजपा स्वाभाविक ही काफी उत्साहित होगी। दरअसल उस लिंगयात समुदाय में येदियुरप्पा का खासा जनाधार बताया जाता है, जो राज्य की आबादी का करीब 17 प्रतिशत है। इसी साल स्थानीय विरोधों के बावजूद येदियुरप्पा को कर्नाटक भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। जाहिर है, इस फैसले से उत्साहित भाजपा अब येदियुरप्पा के नेतृत्व में फिर से कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में जीत का ताना-बाना बुन रही होगी। येदियुरप्पा ने फैसले के बाद ट्वीट कियाöसत्यमेव जयते। न्याय हुआ। मेरी बात सही साबित हुई। बाद में उन्होंने संवाददाताओं से कहाöमैं इस बात से खुश हूं कि झूठे और राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोप खारिज कर दिए गए।

Friday, 28 October 2016

वेंटिलेटर पर तमिलनाडु ः इशारों में बात करतीं जयललिता

34 दिन हो गए हैं और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती हैं। डाक्टर सिर्प यही कह रहे हैं कि वे ठीक हैं। 22 सितम्बर की रात 9.45 बजे अचानक मुख्यमंत्री आवास पोएस गार्डन में पता चला कि जयललिता बेहोश हो गई हैं। सीएम हाउस से अपोलो हॉस्पिटल के मालिक और बेटी और सीईओ प्रीथा रेड्डी के पास फोन आया। फौरन अपोलो की एंबुलेंस रवाना हुई। यह नहीं बताया गया कि मरीज कौन है? अचानक एंबुलेंस के ड्राइवर को कहा गया कि सीएम हाउस पहुंचो। 30 मिनट बाद जया बेहोशी की हालत में ग्रीम्स रोड के अपोलो हॉस्पिटल के आईसीयू में पहुंच चुकी थीं। जयललिता पहली बार अपोलो लाई गईं। इससे पहले तबीयत बिगड़ने या चैकअप कराने हर तीन-चार महीने में चेन्नई के ही श्रीराम चन्द्र हॉस्पिटल जाती रही हैं। ये बातें किसी को बताई नहीं जाती थीं। दिन में उन्हें अपोलो नहीं  लाया जाता। पर स्थिति नाजुक थी। अगले दिन 23 तारीख को प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के तीन एम्स के डाक्टरों को चेन्नई भेजा। इनमें कार्डियोलॉजिस्ट नीतीश नायक, पल्मोनोरोलॉजिस्ट जीसी खिलनानी और एनेस्थे शिस्ट अनजन त्रिखा थे। इसी बीच जयललिता को माइनर हार्ट अटैक आया। उनकी शुगर काफी बढ़ी हुई थी और ब्लड प्रैशर बेकाबू था। उन्हें पेस मेकर लगाया गया। यह 24 से 27 के बीच की बात है। 28 से उनकी हालत और खराब होने लगी। मल्टी आर्गेन प्रॉब्लम्स शुरू हो गईं। किडनी, लीवर और फेफड़ों में इन्फैक्शन हो चुका था। 28 को ही वेंटिलेटर पर रखा दिया गया। इस बीच लंदन से डॉ. रिचर्ड जॉन बेले को बुलाया गया। सिंगापुर से भी डाक्टरों की टीम आ चुकी थी। अपोलो ने पहली बार बाहर से एक्सपर्ट बुलवाए हैं। जयललिता की देखरेख में अभी अपोलो के 18 डाक्टरों की टीम तैनात है। डाक्टरों की टीम में से कई डाक्टर आईसीयू के आसपास बने वीवीआईपी वार्ड में ही रह रहे हैं। नौ नर्सें हैं जिनकी शिफ्ट में ड्यूटी लगती है। इनके फोन तक ले लिए गए हैं। किसी से बात करने की मनाही है। दो दिन पहले मेडिकल बुलेटिन में बताया गयाöरी इज इंटरेक्टिंग। गले में ट्राइको नली लगाई गई है, इसी से वो फ्लूड और ऑक्सीजन ले रही हैं। नली के कारण बोलना संभव नहीं है। वे इशारों में जवाब दे रही हैं। लिखकर भी जवाब दे सकती हैं पर हाथ-पैर हिला-डुला नहीं सकतीं। लंदन के डाक्टर ने उन्हें मुस्कुराने को कहा तो वे मुस्कुराईं। अभी वो वेंटिलेटर पर हैं। वजन भी काफी घट गया है। हालत अब भी गंभीर बनी हुई है। केरल के एक डाक्टर के जरिये जब अपोलो के डाक्टर से बात करने की कोशिश की तो जवाब मिलाöमेरी जान और नौकरी दोनों खतरे में हैं। कोई बात नहीं कर पाऊंगा। उम्मीद की जाती है कि जयललिता जल्द स्वस्थ होकर फिर से अपने काम संभाल लेंगी।

-अनिल नरेन्द्र

असल झगड़ा टाटा समूह में साख का है

नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाली 100 अरब डॉलर की कंपनी टाटा ग्रुप ने अपने अध्यक्ष सायरस मिस्त्राr को बर्खास्त करने की खबर से सभी को चौंका दिया है। कंपनी के बोर्ड ने चार साल से अध्यक्ष का पद संभाल रहे 48 वर्षीय मिस्त्राr की छुट्टी कर इसकी अंतरिम कमान एक बार फिर से रतन टाटा को सौंप दी है। चार वर्ष पूर्व टाटा समूह की कमान संभालने वाले सायरस मिस्त्राr को हटाया जाना जितना अप्रत्याशित है, देश के डेढ़ सौ वर्ष पुराने औद्योगिक घराने में उत्तराधिकारी की लड़ाई का अदालत और कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में पहुंच जाना उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे लगता है कि टाटा सन्स के भीतर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा था और भीतर ही भीतर तल्खी इतनी बढ़ गई थी कि टाटा बोर्ड ने सायरस को बिना कोई नोटिस दिए एक झटके में पद से हटा दिया। टाटा समूह ने इस फैसले की वजह नहीं जाहिर की है, पर कयास लगाए जा रहे हैं कि कुछ समय से कंपनियों का कारोबार शिथिल पड़ रहा था, कर्जे बढ़ रहे थे और सायरस बीमार उपक्रमों को बेचना चाहते थे। बताया जा रहा है कि इस सब के चलते समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा और सायरस मिस्त्राr के बीच मतभेद उभर आए थे। 78 वर्षीय रतन टाटा ने अंतरिम तौर पर सायरस की जगह समूह की कमान दोबारा संभाल ली है और चार महीने के भीतर नए अध्यक्ष की तलाश की जानी है, ऐसे में यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि इस बार टाटा समूह या टाटा परिवार से किसी पर भरोसा जताया जाएगा या फिर सायरस की तरह किसी बाहरी पर। कुछ लोगों का कहना है कि सायरस मिस्त्राr जिन्हें 30 वर्ष के लिए कमान संभालने के लिए दी गई थी को सिर्प चार वर्ष में टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाकर वयोवृद्ध रतन टाटा को अंतरिम चेयरमैन का जिम्मा दिए जाने से संकेत साफ हैं कि देश के इस सबसे पुराने औद्योगिक घराने में अभी भी पुराने मूल्यों के लिए आस्था बनी हुई है। ये पुराने मूल्य न तो तेजी से फैसले लेने की इजाजत देते हैं, न बिजनेस को समेटने की और न ही ज्यादा मुकदमेबाजी की। मिस्त्राr के खाते में उपलब्धियां होने के बावजूद उनका तेजी से फैसले लेने और कोई बड़ी दृष्टि प्रदर्शित न कर पाने के कारण उन्हें 26 साल पहले ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से हाथ धोना पड़ा है। हालांकि मिस्त्राr ने ई-कॉमर्स बढ़ाते हुए क्लिक नाम से डिजिटल प्लेटफार्म तैयार किया, टीसीएस का मुनाफा दोगुना किया और टाटा मोटर्स सवारी गाड़ियों की बिक्री में नए-नए मॉडल उतार कर इजाफा किया, लेकिन उनसे कई काम ऐसे हुए जो कंपनी के दूसरे प्रबंधकों को रास नहीं आए। मिस्त्राr पर कंपनी के बढ़ते कर्ज को कम करने का दबाव था और इसी कारण उन्होंने कई तरह के बिजनेस समेटने का काम किया। उसे कंपनी हित में नहीं समझा गया। 103 अरब डॉलर के कंपनी समूह पर 24.5 अरब डॉलर का कर्ज काफी होता है और उसे कम करने के लिए सायरस ने ब्रिटेन के इस्पात व्यवसाय का जर्मन कंपनी थाइसेनकुप से सौदा करने के लिए वार्ताएं भी कर रहे थे। वे टाटा टेटली और टाटा जेगुआर में भी टाटा सन्स की हिस्सेदारी घटाना चाहते थे। जबकि उनके ठीक पहले चेयरमैन रहे रतन टाटा ने कोरस समूह के साथ इन तमाम कंपनियों का अधिग्रहण करते हुए टाटा के साम्राज्य को विस्तार दिया था। किसी भी कारोबार में उतार-चढ़ाव का दौर चलता रहता है। रतन टाटा 21 सालों तक समूह के चेयरमैन रहे और कंपनी के कारोबार में करीब सत्तावन गुणा बढ़ोतरी की। बेशक उनका कार्यकाल सबसे बेहतर कहा जा सकता है। नमक से लेकर लोहा और सॉफ्टवेयर से लेकर भारी वाहन बनाने वाले टाटा समूह का झगड़ा पारिवारिक हितों से भी जुड़ा है। असल में सायरस मिस्त्राr उस परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिसकी टाटा समूह में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लिहाजा वह इस लड़ाई को दूर तक ले जा सकते हैं। मगर आम भारतीयों के लिए इस विवाद का सिर्प इतना मतलब है कि टाटा की साख बनी रहनी चाहिए, क्योंकि उसका लोहा दुनिया मानती आई है।

Thursday, 27 October 2016

क्या एक देश, एक चुनाव का प्रस्ताव भ्रामक है?

2017 में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से बिसात बिछने लगी है। सब अपने-अपने पत्ते खोलने लगे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने यह नहीं बताया कि बिगुल कब बजेगा? क्या पांच राज्यों के चुनाव एक साथ होंगे या अलग-अलग? सूत्रों के अनुसार चुनाव आयोग इस बार भी परंपरा के अनुसार पांच राज्यों का चुनाव एक साथ ही कराने के पक्ष में है। लेकिन आयोग का कहना है कि कोई भी तारीख तय करने से पहले सभी राजनीतिक दलों से बात करेगा। साथ ही 15 अक्तूबर से 15 नवम्बर के बीच आयोग की हाई लेवल टीम उन सभी पांच राज्यों का दौरा करेगी, जहां चुनाव होने वाले हैं। बता दें कि 2012 में उत्तराखंड में एक चरण में 30 जनवरी को चुनाव हुए थे। मणिपुर में भी एक चरण में 28 जनवरी को चुनाव हुए थे। उत्तर प्रदेश में पिछली बार (2012) में सात चारणों में चार फरवरी से 28 फरवरी के बीच चुनाव कराए गए थे। गोवा में एक चरण में तीन मार्च को और पंजाब में एक चरण में 30 जनवरी 2012 को चुनाव हुए थे। पिछले दिनों एक नया विचार आया कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिए या नहीं होने चाहिए? यह विषय पुराना है जिस पर अनेक वर्षों से बहस हो रही है, लेकिन हाल के दिनों में यह  राष्ट्रीय चिन्ता का विषय बन गया है। इस पर न केवल टीवी चैनलों में चर्चाएं हो रही हैं बल्कि केंद्र सरकार भी देश के नागरिकों से वेबसाइट के जरिये संबंधित प्रश्नों पर राय मांग रही है। केंद्र सरकार का मानना है कि ऐसा करने से काफी पैसा बचेगा और सरकार बिना अवरोधों के विकास कार्यों को आगे बढ़ा सकेगी। लेकिन असल सवाल इच्छा का नहीं है बल्कि व्यवहार्यता का है। हमारे संविधान में जो भारतीय लोकतंत्र के लिए संघीय ढांचे की गारंटी दी गई है उसे ध्यान में रखते हुए क्या लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव लागू किया जा सकता है? इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारत में चुनाव आयोजन करने में बहुत ज्यादा पैसा खर्च होता है, प्रत्याशियों का, सियासी दलों का और चुनाव आयोग का। बहरहाल तथ्य यह है कि साथ चुनाव कराने के सन्दर्भ में जो पैसा बचाने की दलील दी जा रही है, वह राजनीतिक पार्टियों व प्रत्याशियों का पैसा बचाने की नहीं है बल्कि चुनाव आयोग का पैसा बचाने के सन्दर्भ में है। दूसरी ओर चुनाव लोकतंत्र की जीवन रेखा है। अगर लोकसभा व विधानसभा चुनाव एक साथ एक समय पर आते हैं तो यह प्राकृतिक प्रक्रिया है। लेकिन अगर चुनावों की संख्या घटाने व खर्च को कम करने के लिए इन्हें साथ थोपा जाता है तो निश्चित रूप से कुछ को पूर्णत अस्वीकार्य होगा क्योंकि इसका अर्थ होगा कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आर्थिक चिन्ताओं को वरीयता प्रदान करना। आपका क्या ख्याल है?
-अनिल नरेन्द्र


उत्तर प्रदेश का द ग्रेट मुलायम यादव का पारिवारिक ड्रामा

पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में द ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल फैमिली ड्रामा चल रहा है। इस ड्रामे में इमोशन है, एक्शन है और रिएक्शन भी है। सोशल मीडिया में इस ड्रामे को अमेरिकी टीवी सीरीज में गेम ऑफ थ्रोन का नाम भी दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश बोलेöबचपन में पिता के खिलाफ बोलने वाले को ईंट मार दी थी। मैं जिन्दगी भर पिता की सेवा करता रहूंगा। यह था इमोशन। एक्शन...रामगोपाल ने नाम लिए बिना शिवपाल को भ्रष्टाचारी और व्यभिचारी तक कह दिया। रामगोपाल ने अपनी चिट्ठी में लिखाöउन लोगों ने हजारों करोड़ रुपए जमा किए हैं। व्यभिचारी हैं। अखिलेश को हटाना चाहते हैं। पर जहां अखिलेश, वहां विजय है। इसका रिएक्शन हुआ। रामगोपाल को पार्टी से निकालते वक्त शिवपाल बोलेöउनके बेटे-बहू यादव सिंह केस में फंसे हैं। इसलिए तिकड़म कर रहे हैं। पार्टी में उन्होंने गिरोह बना लिया। इस नाटक के दो विलेन हैं। एक मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी और अखिलेश यादव की सौतेली मां साधना यादव और अंकल अमर सिंह। साधना यादव सार्वजनिक रूप से इसलिए चर्चा में हैं कि एमएलसी उदयवीर ने उन पर अखिलेश के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगा दिया है और शिवपाल को उनका राजनीतिक चेहरा बता दिया है। इसमें कोई शक नहीं है कि परिवार में बहुत दिनों से इस बात को लेकर कलह चल रही है कि सब कुछ अखिलेश यादव को मिलता जा रहा है। प्रतीक यादव (अखिलेश के सौतेले भाई) को क्या मिला? अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाकर नेताजी ने एक तरह से उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अखिलेश की पत्नी को सांसद बना दिया गया, लेकिन प्रतीक की पत्नी को कुछ नहीं मिला। कहा जाता है कि एक मां के रूप में साधना अपनी इस चिन्ता से कई बार मुलायम को वाकिफ भी करा चुकी हैं। इसी के मद्देनजर इस  बार प्रतीक की पत्नी को विधानसभा का टिकट दिया गया है और प्रतीक के लिए भी कोई विकल्प तलाशने का वादा भी किया गया है। परिवार को करीब से जानने वाले कहते हैं कि साधना यादव और भाई प्रतीक से अखिलेश के रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे। इधर शिवपाल यादव अपनी भाभी का पहले से कहीं ज्यादा भरोसा जीतने में कामयाब हुए हैं। इसी वजह से ये अटकलें लग रही हैं कि शिवपाल यादव को नेताजी की तरफ से ज्यादा तवज्जो मिल रही है। अब बात करते हैं अमर अंकल की। जिन अमर सिंह को कभी अखिलेश यादव अंकल कहकर पुकारा करते थे आज उनका नाम लेना तक उन्हें गवारा नहीं। समाजवादी पार्टी और पूर्ण बहुमत से बनी उनकी सरकार में बीते दो महीनों में जो अनहोनी हुई है अखिलेश उसका असल सूत्रधार दरअसल अमर सिंह को ही मानते हैं। गत रविवार को अपने सरकारी आवास पर हुई बैठक में अखिलेश यादव ने पहली बार पार्टी के नेताओं के सामने अमर सिंह के लिए दलाल शब्द का इस्तेमाल किया। प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी जाने के बाद अमर सिंह के लिए अंकल के स्थान पर दलाल शब्द इस्तेमाल करने वाले राजनीति के इस बेहद शालीन नौजवान नेता ने अपने नेताओं से कहा कि मैं अब न तो दलाल को बर्दाश्त करूंगा और न ही उनके समर्थकों को। अखिलेश को लगता है कि उन्हें प्रदेशाध्यक्ष पद से हटवाने में अमर सिंह का हाथ है। अमर सिंह उनके खिलाफ शिवपाल यादव को ताकत दे रहे हैं। अमर सिंह को मुलायम सबसे भरोसे और काम का आदमी मानते हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा कि मैं अमर सिंह को नहीं छोड़ सकता। अमर सिंह ने मुझे जेल जाने से बचाया है। अमर सिंह जब पार्टी में नहीं थे, तब भी मुलायम सिंह अमर सिंह की तारीफ किया करते थे और पार्टी में उनका कोई विकल्प न होने पर अफसोस भी जाहिर करते थे। अखिलेश इसलिए भी अमर सिंह को पसंद नहीं करते क्योंकि अमर अखिलेश को कतई महत्व नहीं देते हैं। अमर की वापसी का अखिलेश इसीलिए विरोध कर रहे थे कि उन्हें इस बात का डर था कि वह उनके खिलाफ माहौल बनाएंगे। चूंकि वह नेताजी के विश्वास पात्र हैं, इसलिए उनसे निपट पाना भी आसान नहीं होगा। अमर सिंह की वापसी के बाद वही हुआ, जिसका डर अखिलेश को था। अमर के जरिये पार्टी में अखिलेश विरोधी धड़े को ताकत मिली है। सपा महासचिव आजम खान ने रविवार को कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए एक बाहरी व्यक्ति दोषी है। यह सब एक बाहरी व्यक्ति के कारण हो रहा है जो सत्तारूढ़ पार्टी के परिवार में प्रवेश कर गया है और मैं अपने सहयोगियों को उस व्यक्ति की पार्टी में नुकसानदेह मौजूदगी के बारे में बताता रहा हूं। अगर गंभीर कार्रवाई की गई होती तो नुकसान से बचा जा सकता था। छह साल पहले अमर सिंह को सपा से निकाल दिया गया था। अखिलेश के विरोध के बावजूद पांच महीने पहले उन्हें पार्टी में लाया गया। राज्यसभा भी भेज दिया गया। यहां तक कि पार्टी महासचिव भी बना दिया। इससे अखिलेश खफा हैं। शिवपाल उन्हें शुरू से पार्टी विरोधी मानते हैं। आजम खान ने कहाöहमारे जैसे लोगों के लिए वह बेहद बदनसीब दिन था, जब उनका नाम (अमर सिंह का) फाइनल किया गया। दुनिया कहती है कि अमर सिंह को भाजपा ने प्लांट कराया। लेकिन खून के रिश्तों को तो सबसे ऊपर होना चाहिए। आजम खान ने यह भी कहा कि जब बाप-बेटे एक हो जाएंगो तो कहीं के नहीं रहेंगे यह गुटबाज। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल नाम नाइक पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं और केंद्र सरकार को बराबर अवगत करते आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश का यह सियासी ड्रामा धीरे-धीरे क्लाइमेक्स पर पहुंच रहा है, वैसे कुछ का मानना है कि अंदरखाते सब ठीक है, यह नूराकुश्ती है सपा को चर्चा में रखने के लिए और सत्ता की दौड़ में बनाए रखने की।

Wednesday, 26 October 2016

रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग (रॉ) को मजबूत करने की जरूरत

उड़ी हमले और सीमा पार से बढ़ती आतंकी गतिविधियों के चलते भारत को अपनी सुरक्षा का प्रबंध और चौकस करना होगा। हमले तो रोकना आसान नहीं पर अगर हमले की पूर्व जानकारी मिल जाए तो उससे होने वाली क्षति कम हो सकती है और कभी-कभी हमले भी टल सकते हैं। पर ऐसा तभी संभव है जब हमारी गुप्तचर सेवाएं व गुप्तचर एजेंसियां इतनी सक्रिय हों? गुप्तचर जानकारियों को पाने के लिए हमें अपनी गुप्तचर सेवाएं और विशेषकर रॉ (रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग) को दोबारा मजबूत करने की सख्त जरूरत है। खबर है कि रॉ में पाकिस्तान, चीन, रूस और यूरोपीय समुदायों की डेस्क को पुनर्गठित किया जा रहा है। आर्थिक  सूचना तकनीक, ऊर्जा सुरक्षा और अत्याधुनिक वैज्ञानिक जानकारियों से रॉ को लैस करने के लिए इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में भी काम चल रहा है। बता दें कि इस समय दुनिया में सबसे बढ़िया गुप्तचर एजेंसी इजरायल की मोसाद है और उनसे बेहतर गुप्त सूचना एकत्र करने में न तो सीआईए ठहरती है, न कोई और यूरोपीय एजेंसी। उड़ी हमले के बाद सुरक्षा मामलों की एक उच्च स्तरीय बैठक में रॉ का हाल सामने आने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने आनन-फानन में कई फैसलों को मंजूरी दे दी। सुब्रह्मण्यम कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाकर फिलहाल पाकिस्तान के डेस्क को बांट कर चार नए डेस्क बनाने का काम शुरू ही हो चुका है। अब बलूचिस्तान, पंजाब, पेशावर और पश्चिमी सीमांत डेस्क बनाए जा रहे हैं। हर डेस्क की जिम्मेदारी संयुक्त सचिव स्तर के एक अधिकारी के पास होगी। फील्ड स्टाफ की भर्ती की कवायद शुरू हो गई है। पीएमओ ने कुछ दिन पहले ही रॉ के जरिये तकनीकी विशेषज्ञों और नए कैडर भर्ती करने की मंजूरी दी है। राजीव गांधी के जमाने के बाद कुछ भर्तियां की गई थीं। इसके बाद 2004-05 और 2009-10 में भी भर्तियां की गईं, लेकिन वे कामचलाऊ रहीं। दरअसल अरसे से सुस्त पड़ी रॉ में जान पूंकने की थोड़ी-बहुत कोशिश जनवरी 2015 में शुरू की गई, जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने रजिन्दर खन्ना को रॉ का प्रमुख चुना। उनको घुसपैठ विरोधी अभियानों और पूर्वोत्तर में सीमा पार लक्षित हमले कराने का माहिर माना जाता है। उड़ी हमले के बाद लक्षित हमलों के लिए जुटाई गई रॉ की सूचनाओं से सेना का काम काफी आसान हो जाता है। पाकिस्तान के रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) आलम खटक ने रक्षा पर सीनेट की स्थायी समिति को कहा कि रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग (रॉ) ने महत्वाकांक्षी चीन-पाक आर्थिक गलियारों को नुकसान पहुंचाने के लिए विशेष सेल बनाया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत खुले तौर पर पाकिस्तान को अस्थिर कर रहा है। पाकिस्तान तो मनगढ़ंत आरोप लगाता ही रहता है हमें अपना काम करते रहना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

हिन्दुस्तान से करोड़ों की कमाई करते ये पाक कलाकार

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानी फिल्म कलाकार और क्रिकेट खिलाड़ी जो बॉलीवुड, स्टेज शो और क्रिकेट के माध्यम से हिन्दुस्तान से लगभग 500 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की कमाई कर ले जाते हैं और हम उन्हें खुद पैसा और सम्मान देते हैं। मजेदार बात यह है कि इनके अपने घर (पाक) में इनको कोई पूछता तक नहीं है पर हम इनके दीवाने हैं। अब जब करण जौहर की फिल्म `ऐ दिल है मुश्किल' पर इतना विवाद हुआ तब जाकर बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं ने शनिवार को भविष्य में पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम नहीं करने का ऐलान किया है। इसके साथ ही करण जौहर की फिल्म ऐ दिल है मुश्किल की रिलीज का रास्ता साफ हो गया। महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फड़नवीस की मध्यस्थता से मनसे प्रमुख राज ठाकरे और प्रोड्यूसर गिल्ड के अध्यक्ष मुकेश भट्ट की बैठक हुई। इसमें करण जौहर भी मौजूद थे। प्रोड्यूसर गिल्ड की तीन मांगों को माने जाने के बाद मनसे ने विरोध का फैसला वापस ले लिया। भट्ट ने बताया कि ऐ दिल है मुश्किल फिल्म के शुरू होने से पहले उड़ी और पठानकोट हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी। साथ ही निर्माता सेना राहत कोष में 5-5 करोड़ रुपए भी देंगे। हालांकि सेना ने इस राशि को लेने से इंकार कर दिया है। करण की फिल्म में पाक अभिनेता फवाद खान भी हैं। मनसे पाक कलाकारों वाली फिल्म को दिखाने का विरोध कर रही थी। पाकिस्तानी समाज में सिनेमा, गाने-बजाने आदि को बेहद हिकारत की नजर से देखा जाता है। पिछले कुछ सालों से इस तरह के पाकिस्तानी कलाकारों की कमाई का मुख्य जरिया भी बॉलीवुड बन गया है। बॉलीवुड की फिल्में पाकिस्तान में जितना बिजनेस 15 दिन में करती हैं हिन्दुस्तान में वो सिर्प दो दिन में कर लेती हैं। इन पाकिस्तानी कलाकारों ने कभी भी कल्पना नहीं की होगी कि उन्हें हिन्दुस्तान में इतनी मोटी कमाई होगी। पाकिस्तान में हर साल बॉलीवुड की करीब 50 फिल्में रिलीज होती हैं और औसतन हर फिल्म डेढ़ से दो करोड़ रुपए की कमाई करती है। इस तरह हर साल पाकिस्तान को लगभग 50 करोड़ का नुकसान होगा। यही नहीं, बॉलीवुड की फिल्में पाकिस्तान में रिलीज होती हैं तो वहां की फिल्मों की तुलना में बहुत ज्यादा बिजनेस करती हैं। पाकिस्तान में बॉलीवुड की फिल्में नहीं दिखाई जाने से पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री का बिजनेस 70 प्रतिशत कम हो जाएगा क्योंकि पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री में 70 प्रतिशत बिजनेस बॉलीवुड और हॉलीवुड से आता है। कोक स्टूडियो पाकिस्तान के सिंगर आतिफ असलम हिन्दुस्तान में गाकर ज्यादा लोकप्रिय हुआ है। कुछ समय पहले आतिफ असलम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मैंने बेशुमार पैसा तो हिन्दुस्तान में प्रोग्राम देकर कमाया है। आतिफ असलम एक गाने के लिए 15-20 लाख रुपए लेता है। पाकिस्तान में इसी प्रकार के शो के लिए यही आतिफ असलम एक लाख रुपए लेता है। गाने के अलावा आतिफ असलम हिन्दुस्तान में स्टेज शो के करीब 75 लाख रुपए चार्ज करता है। कई बार वह यहां पर अपने आयोजकों से पैसे को लेकर लड़ाई भी कर चुका है। अली जफर भी पाकिस्तान के कोक स्टूडियो की देन है। यह पाकिस्तानी अदाकार गायक जैसे ही पाकिस्तान में थोड़ा-सा मशहूर हुआ इसने पैसे कमाने के मकसद से हिन्दुस्तान की राह पकड़ ली। अली जफर ने बॉलीवुड की फिल्म तेरे बिन लादेन की थी जिसमें उनकी अदाकारी की चर्चा भी हुई थी। अली जफर एक फिल्म के लिए हिन्दुस्तान में 6 करोड़ रुपए तक लेता है और अब तक उन्होंने हॉलीवुड की 10 फिल्मों में काम किया है। पाकिस्तानी कलाकार का नाम लेने पर सबसे पहला नाम फवाद खान का आता है। बॉलीवुड से पहले फवाद ने पाकिस्तानी फिल्मों में काम करने के लिए बहुत हाथ-पांव मारे और वहां की फिल्मों में मुफ्त में भी काम किया। हिन्दुस्तान में काम मिलते ही इस पाकिस्तानी एक्टर के रंग-ढंग बदल गए। फवाद ने बॉलीवुड की फिल्म खूबसूरत से अपना सफर शुरू किया। जहां फवाद ने पाकिस्तानी फिल्मों में मुफ्त काम किया वहीं हिन्दुस्तान में फवाद खान एक फिल्म के लिए 100 करोड़ रुपए लेने लग गया। फवाद के अनुसार मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे हिन्दुस्तान में इतना पैसा मिलेगा। अब बात करते हैं नुसरत फतेह अली खान के परिवार के गायक राहत फतेह अली खान की। राहत फतेह अली खान भारत में एक फिल्म में गाने के लिए करीबन 25 लाख रुपए चार्ज करता रहा है। सालाना एक अनुमान के मुताबिक वह हिन्दुस्तान से 60 करोड़ रुपए की कमाई फिल्मों और स्टेज शो के माध्यम से करता है। कुछ समय पहले इसको दिल्ली एयरपोर्ट पर भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा ले जाते हुए कस्टम विभाग ने पकड़ा था। अकेले फिल्मों में ही नहीं ये पाक कलाकार मोटी कमाई कर रहे हैं, क्रिकेट में भी इन पाक कमेंट्री कर मोटी रकम कमाते हैं। दुनिया के सबसे तेज गेंदबाज रह चुके रावलपिंडी एक्सप्रेस उर्प शोएब अख्तर अपना ज्यादातर समय भारत में ही गुजारते हैं। शोएब पिछले 2-3 साल से भारत में रहकर क्रिकेट कमेंट्री करते रहे हैं और भारी-भरकम फीस भी वसूलते हैं। इसके अलावा कई टीवी चैनलों में गेस्ट बनकर भी कमाई करते हैं। आईपीएल के सीजन 2017 में इसके प्रसारक चैनल ने इस पाकिस्तानी एक्सपर्ट से दूरी बनाने का मन बना लिया है। शोएब सालाना 25 करोड़ रुपए की कमाई करते हैं। कमेंट्री पैनल से बाहर होने वालों में वकार यूनुस व वसीम अकरम जैसे पूर्व क्रिकेटर शामिल हैं। मैंने इन कलाकारों के बारे में इसलिए बताया है कि ये खाते तो हिन्दुस्तान का हैं और गुणगान पाकिस्तान का करते हैं। भारत को चाहिए कि चाहे वह कलाकार हों या कमेंटेटर, अम्पायर हों, खिलाड़ी सब पर प्रतिबंध लगना चाहिए।

Tuesday, 25 October 2016

आखिर रीता बहुगुणा कांग्रेस छोड़ने पर क्यों मजबूर हुईं

यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में सबसे लाचार कांग्रेस पार्टी ही नजर आ रही है। उसकी यह हालत उसके दिग्गज नेताओं द्वारा पार्टी छोड़कर भाग खड़े होने के कारण पता चलती है। वहीं कई नेता पार्टी के लगातार गिरते ग्राफ से परेशान होकर अब किनारा कर रहे हैं। ताजा उदाहरण कांग्रेस विधायक व दिग्गज नेता रीता बहुगुणा जोशी का है। पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में शामिल होने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि रीता के जाने से कांग्रेस धारणा की लड़ाई हार गई है। इससे कांग्रेस के ब्राह्मण कार्ड की हवा निकल गई है। पार्टी ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आगे करके ब्राह्मण कार्ड खेला, पर प्रदेश कांग्रेस की कद्दावर नेताओं में गिनी जाने वाली रीता के पार्टी छोड़ने से ब्राह्मणों के सहारे यूपी की सत्ता की चाबी हासिल करने के कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। रीता के पार्टी छोड़ने से यह संकेत गया है कि पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए नेता पार्टी छोड़कर भाग रहे हैं। यूपी में कांग्रेस केवल प्रशांत किशोर के इशारे पर चल रही है। जबकि हकीकत यह है कि सूबे में कांग्रेस का संगठन तक ढंग का नहीं बन सका। वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष तो तीन महीने में भी अपनी टीम नहीं बना पाए। पार्टी के नेताओं की आपसी गुटबाजी इतनी हावी है कि जिस पुरानी टीम के भरोसे राज बब्बर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, वह उनके बजाय उस नेता के प्रति वफादार है जिसने उन्हें पद दिया है। कांग्रेस का कोई भी नेता यह नहीं चाहता है कि सफलता का श्रेय किसी दूसरे को मिले। सूबे में पिछले 27 साल से सत्ता से दूर रहने वाली कांग्रेस ने इस बार चुनाव प्रबंधन के लिए प्रशांत किशोर को चुना है। पीके सूबे में राहुल गांधी के कई कार्यक्रम कराकर पार्टी को चर्चा में तो लाए, लेकिन वे पार्टी के विधायकों की नब्ज ही नहीं टटोल पाए। अब तो यह भी सवाल उठने लगे हैं कि जो अपने दिग्गज नेताओं, विधायकों की नब्ज नहीं टटोल पाए वे जनता के मन को कैसे जान पाएंगे? बहरहाल इतना तो तय है कि प्रशांत किशोर के साथ ही कांग्रेस आलाकमान भी अपने विधायकों का पार्टी से पलायन रोक नहीं पा रहे हैं। कई नेता तो प्रशांत किशोर के रुख से ही नाराज होकर पार्टी छोड़ गए हैं। खुद रीता बहुगुणा ने भी भाजपा ज्वाइन करते समय प्रशांत किशोर व राहुल गांधी पर जमकर प्रहार किए। काफी दिनों से रीता बहुगुणा के कांग्रेस छोड़ने की अटकलों को तब विराम लगा जब वो दिल्ली में जेपी भवन में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बगल में भगवा चोला पहने खड़ी नजर आईं। रीता बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ने का मन यूं ही नहीं बनाया। जिस तरह कांग्रेस यूपी में अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी थी, ठीक उसी तरह वो पार्टी में अपने आपको तलाशने में जुटी थीं। 67 वर्षीय रीता बहुगुणा की संभावनाएं उस समय धूमिल पड़ गईं जब उन्हें यूपी की कांग्रेस टीम में कोई जगह न दी गई। बची-खुची कसर तब पूरी हो गई जब एक बाहरी उम्मीदवार (दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित) को लाकर सिर पर बिठा दिया गया। पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी को यह रास नहीं आया। अपने आपको जमीनी कार्यकर्ता मानने वाली रीता के पास अब कांग्रेस छोड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। रीता सबसे ज्यादा आहत इसलिए थीं कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने पप्पू वाले बयानों से बाज नहीं आ रहे थे। पांच साल तक इलाहाबाद की मेयर और वर्तमान में लखनऊ कैंट से विधायक रीता ने जमकर राहुल गांधी के खिलाफ भड़ास निकाली। रीता मूलत उत्तराखंड की हैं और उनका कार्यक्षेत्र इलाहाबाद रहा। उनके भाई विजय बहुगुणा जोकि इस समय भाजपा में हैं वह उत्तराखंड के सीएम रह चुके हैं। रीता के भाजपा में शामिल होने से भाजपा को इन दोनों राज्यों में उनके बूते सियासी समीकरणों में फर्प जरूर पड़ेगा। दोनों ही राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं। रीता को बसपा सुप्रीमो मायावती का धुर विरोधी माना जाता है। मायावती के खिलाफ विवादित बयान देने की वजह से रीता जेल तक जा चुकी हैं। भले ही कांग्रेस के नेता और विशेष रूप से राहुल गांधी रीता बहुगुणा के आरोपों से सहमत न हों, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि देश के इस सबसे पुराने दल की रीति-नीति में कहीं कोई बड़ी कमजोरी है। यदि यह कमजोरी दूर नहीं हुई तो कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं का सिलसिला बरकरार रह सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

32 लाख कार्डधारियों में साइबर सेंधमारी

देश के बैंकों में साइबर सेंधमारी का मामला गंभीर होता जा रहा है। खबर है कि भारत के 19 बैंकों के 32 लाख कार्ड में गड़बड़ी हुई है। डेबिट या एटीएम कार्ड धारकों से ठगी के मामले नए नहीं हैं। मगर संगठित रूप में तकरीबन 19 बैंकों के 32 लाख कार्डों में गड़बड़ी अत्यंत गंभीर मसला इसलिए भी है क्योंकि ये बैंकिंग नेटवर्प की एक बड़ी खामी और कुछ केसों में निश्चित बैंक कर्मियों की मिलीभगत को उजागर करता है। यों तो देश में मौजूद कुल डेबिट कार्ड धारकों की संख्या में सिर्प 0.5 प्रतिशत के डाटा चुराने की बात हो रही है लेकिन आंकड़ों में देखें तो उनकी संख्या 32 लाख है। इस गड़बड़ी से पता चलता है कि न्यायालय इतना गंभीर है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने छह लाख ग्राहकों के डेबिट कार्ड रद्द कर दिए हैं और उनकी जगह नए कार्ड जारी करेंगे। संभव है कि दूसरे बैंक भी उसका अनुसरण करें, क्योंकि यह पूरी तरह उजागर नहीं हुआ है कि कितने ग्राहकों के डेबिट कार्ड से संबंधित डाटा चुराए गए हैं। देश के इतिहास के सबसे बड़े एटीएम-डेबिट कार्ड फ्रॉड के तार चीन से जुड़ रहे हैं। कई बैंकों का दावा है कि उनके ग्राहकों ने अपने कार्डों से चीन में ट्रांजेक्शन की शिकायत की है। जबकि उनके पास चीन के पासपोर्ट तक भी नहीं हैं। 641 लोगों के करीब 1.3 करोड़ रुपए की गलत निकासी के दावे भी किए जा रहे हैं। इलैक्ट्रॉनिक लेन-देन की निगरानी करने वाली संस्था नेशनल पेमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया के एक अधिकारी ने बताया कि चीन से गड़बड़ी की सूचना मिल रही है। हम रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के साथ मिलकर जांच कर रहे हैं। इस बीच सभी बैंकों को अतिरिक्त सुरक्षा कदम उठाने की सलाह दी गई है। हालांकि वित्तीय सेवाओं के विभाग में अतिरिक्त सचिव जीसी मुरमु ने बताया कि इससे बहुत घबराने की जरूरत नहीं है। सिर्प 0.5 प्रतिशत डेबिट कार्ड्स का पिन व अन्य डाटा चोरी हुआ है। बाकी 99.5 प्रतिशत कार्ड पूरी तरह सुरक्षित हैं। सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि जो बैंकिंग साइबर धोखाधड़ी का मामला सामने आया है उसे भी देश की सीमा के बाहर से ही अंजाम दिया गया हो। यह धोखाधड़ी कितनी खतरनाक हो सकती है, उसे बांग्लादेश में इसी वर्ष हुई एक घटना से समझा जा सकता है, जहां साइबर चोरों ने वहां के केंद्रीय बैंक से हैकिंग कर 10 करोड़ डॉलर उड़ा लिए थे, जिसकी वजह से वहां के केंद्रीय बैंक के गवर्नर को इस्तीफा देना पड़ा था। कुछ लोगों का कहना है जिस देश से और जिस माध्यम से भारतीय बैंकों को निशाना बनाया गया है उसकी पहचान होने के बावजूद साइबर हमला करने वाले इन गिरोहों तक पहुंचना आसान नहीं होगा। भारतीय बैंकों को मुख्य चिन्ता है कि सुनियोजित तरीके से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है वह ज्यादा गंभीर मसला है। उम्मीद की जाती है कि ग्राहकों को हुए नुकसान की भरपायी बैंक करेंगे और भविष्य के लिए और पुख्ता इंतजाम करेंगे।

Sunday, 23 October 2016

क्या साइकिल पर अकेले चलने पर मजबूर होंगे अखिलेश?

तमाम कोशिशों, दावों और बयानों के बावजूद उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के यादव परिवार का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पांच नवम्बर को पार्टी के गठन की रजत जयंती मनाने जा रही सपा के जनेश्वर मिश्र पार्प में आयोजित कार्यक्रम के 48 घंटे पहले ही अखिलेश यादव समाजवादी विकास यात्रा पर निकलने जा रहे हैं। इस बात का ऐलान उन्होंने मुलायम सिंह यादव को लिखे पत्र में किया है। अपने युवा समर्थकों पर कार्रवाई और प्रदेश संगठन में बदलाव से खिन्न अब लगता है कि शायद मुख्यमंत्री ने एकला चलो का रुख अख्तियार कर लिया है। सपा प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल यादव को एक तरह से चुनौती देने के अंदाज में तीन नवम्बर से विकास से विजय की ओर समाजवादी विकास यात्रा का ऐलान कर यह जाहिर कर दिया है कि यादव परिवार में जंग जारी है। कुछ लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अगर स्थिति थमी नहीं और उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वह नई पार्टी भी बना सकते हैं। मगर फिलहाल वे कुर्सी छोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। यही वजह है कि खुलकर बगावत भी नहीं कर पा रहे हैं। वह अपने समर्थकों के जरिये नेता जी और उनके भाई को उलझाए रखना चाहते हैं। दरअसल अखिलेश को इस बात का डर है कि अगर नई पार्टी की घोषणा कर दी तो मुलायम सिंह उनको मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहने देंगे। वे चुनाव आचार संहिता लगने का शायद इंतजार करें। अखिलेश के पास विधायक तभी तक हैं जब तक वह मुख्यमंत्री हैं। जैसे ही नेता जी खुद को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखवाएंगे। ज्यादातर विधायक अखिलेश का साथ छोड़कर नेता जी के पाले में खड़े नजर आएंगे। क्योंकि नई पार्टी से रिस्क लेने वालों की संख्या काफी कम होगी। इधर अगर मुलायम सिंह कुर्सी पर बैठ जाते हैं तो उन सबको ठीक करने में लग जाएंगे जो इस वक्त उनके और शिवपाल के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। उस स्थिति में कितने लोग अखिलेश का साथ देते हैं इस पर भी सन्देह है। सपा में जंग तब शुरू हुई जब राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को उस कुर्सी पर बिठाया। समाजवादी पार्टी में चल रही आपसी खींचतान किस मुकाम पर पहुंचेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि इस पूरी कवायद की बड़ी कीमत अखिलेश यादव के उस विकास के एजेंडे को चुकानी पड़ेगी, जिसे लेकर उन्होंने बीते साढ़े चार सालों तक उत्तर प्रदेश में काम किया और जिसे आधार बनाकर वे विधानसभा चुनाव मैदान में जाने का सब्जबाग पाले बैठे हैं। देखें, आने वाले वक्त में ऊंट किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

एक के बाद एक विवाद में फंसता जेएनयू

देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) एक बार फिर अपनी कुख्यात हरकतों के कारण सुर्खियों में है। जेएनयू के आक्रोशित छात्रों द्वारा कुलपति सहित अन्य अधिकारियों को बंधक बनाने की घटना न केवल निन्दनीय ही है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि यहां के मुट्ठीभर छात्रों के लिए न तो देश के कानून, मर्यादाओं की चिन्ता है और न ही अपने बड़ों के लिए इज्जत। यह धारणा आम होती जा रही है कि इस समय यह प्रतिष्ठित शिक्षण केंद्र आंदोलन और राजनीति का अड्डा बन गया है। यह चिन्ता का विषय इसलिए भी है यहां आम अभिभावकों और बेहतर शिक्षा की अभीप्सा लिए छात्र अब जेएनयू की आंदोलनकारी छवि से डरने लगे हैं। किसी को भी इस तरह पूरे तंत्र को पंगु करने की छूट नहीं दी जा सकती। वह भी जब कुलपति लगातार इस मामले को लेकर पुलिस-प्रशासन से सम्पर्प में हैं और छात्रों को भी इसकी जानकारी दे रहे हैं। जिस तरह से लापता छात्र नजीब अहमद मामले को लेकर करीब 21 घंटे तक बंधक बनाए कुलपति सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को रखा उससे साफ है कि यहां के विद्यार्थियों में न तो कुलपति के प्रति सम्मान है और न ही सब्र। उन्हें यह समझना होगा कि कुलपति व अन्य अधिकारियों को कमरे में बंद करने से नजीब अहमद मिलने वाला नहीं। पिछले साल भी देशद्रोह के मसले पर जेएनयू के छात्र चर्चा में आए थे। देशभर में इसको लेकर वैचारिक तौर पर अलगाव की भावना भी तेजी से फैली। हाल ही में यहां के कुछ छात्रों ने जहां विजयदशमी पर देशभर में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ व हाफिज सईद के चेहरों को रावण के पुतलों पर लगाकर जलाया, वहीं जेएनयू में एनएसयूआई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, योग गुरु बाबा रामदेव, नत्थूराम गोडसे, योगी आदित्यनाथ, जेएनयू वीसी, साध्वी प्रज्ञा और आसाराम बापू के चेहरे पुतले पर लगाकर जलाए थे। इन छात्रों का कहना था कि इन्हें बुराइयों के प्रतीक के रूप में मानकर ऐसा किया गया। नजीब अहमद मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें भी जारी हैं। ठीक है कि छात्रों के बीच किसी मसले को लेकर मनमुटाव और वैचारिक मतभेद होते रहते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि हद से गुजर जाने वाली कोई करतूत की जाए। महत्वपूर्ण यह है कि जेएनयू अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुन हासिल करे। विश्वविद्यालय के शिक्षकों को राजनीति न करते हुए पढ़ाई के अलावा छात्रों में उस भावना को जागृत करना होगा, जिसके लिए यह संस्थान पूरे विश्व में मशहूर रहा है। यह सब कुछ तभी हो पाएगा जब खुद यहां के छात्र बेहतर माहौल के लिए प्रयासरत हों। जो विद्यार्थी देश-विदेश तक अपनी बुद्धिमता की नजीर पेश करते हैं, पता नहीं ऐसे स्कॉलर ऐसे बेफिजूल विवादों में क्यों फंस जाते हैं? फिलहाल तो नजीब अहमद की सकुशल बरामदगी पर सभी को ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

Saturday, 22 October 2016

चीनी उत्पादों की बिक्री में रिकार्ड 60… तक गिरावट

चीन के बने उत्पादों के विरोध में सोशल मीडिया का अभियान रंग लाने लगा है। हालत यह है कि मार्केट में चीनी उत्पादों की बिक्री में 50-60 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। इस स्थिति को देखते हुए होलसेलरों के पास करोड़ों रुपए का माल फंस गया है। ऐसे में चीन में दिए गए पुराने आर्डरों को स्थगित करने के साथ ही नए आर्डर बंद किए जा रहे हैं। इस बारे में भागीरथ पैलेस (दिल्ली) के एक थोक व्यापारी के मुताबिक उसने दीपावली को ध्यान में रखते हुए इस सीजन पर चीन से करीब पांच करोड़ रुपए का माल मंगाया था, जिसमें बिजली की लड़ियों के साथ ही अन्य इलैक्ट्रॉनिक आइटम थे। कारोबारी के मुताबिक पिछले वर्ष भी पहली खेप में करीब इतने का ही माल मंगाया था, जो दीपावली के पहले बिक गया था, लेकिन इस बार करीब 60 प्रतिशत माल अटका पड़ा है। भागीरथ पैलेस को इलैक्ट्रॉनिक सामानों के मामले में एशिया के बड़े बाजारों में गिना जाता है। इस दीपावली के लिए इस बाजार में आठ से 10 हजार करोड़ रुपए की बिजली की लड़ियों के साथ ही अन्य सजावटी सामान चीन से आया हुआ है, लेकिन चीन के सामानों के विरोध के अभियान ने यहां के दुकानदारों की हवा निकाल दी है। एक दुकानदार के मुताबिक लोग यह जानकर उत्पाद नहीं ले रहे कि यह चीन का बना हुआ है, बल्कि स्वदेशी उत्पादों को तरजीह दे रहे हैं। भागीरथ पैलेस इलैक्ट्रॉनिक टेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के मुताबिक बाजार की हालत काफी खराब है। लोगों का काफी पैसा चीन के उत्पादों में लगा है, लेकिन बाजार में चीन विरोधी माहौल है। वैसे यह भी कहना पड़ता है कि तमाम विरोध के बावजूद दिल्ली के बाजारों में अभी भी चीनी प्रॉडक्ट छाए हुए हैं। लड़ियों, चाइनीज बल्ब, डेकोरेटिव आइटम्स आदि चीजें चांदनी चौक, भागीरथ पैलेस व अन्य मार्केटों में बिक रही हैं। हालांकि दुकानदारों ने माना है कि चाइना के प्रॉडक्ट्स को बैन करने की मांग के बाद बाजार पर भी असर पड़ रहा है। दुकानदारों को रोज 20 से 25 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है। पर वहीं दुकानदारों का यह भी कहना है कि पहले सरकार को ऐसे ठोस इंतजाम करने चाहिए थे कि चाइना के माल की जगह भारतीय प्रॉडक्ट्स खरीदे जाएं। थोक व्यापारियों ने महीनों पहले अपने आर्डर दे दिए थे। बैन तो उस समय लगना चाहिए था। असल समस्या का समाधान तो यह है कि हम चाइना की बनी लड़ियों व अन्य सामानों की कीमत पर स्वदेशी माल को बेचें। भारतीय प्रॉडक्ट्स की तुलना में चाइना की डिजाइनर लाइटें, लड़ियां और कई चीजें 40 से 50 प्रतिशत सस्ती मिलती हैं। एक व्यापारी का कहना था कि चाइनीज प्रॉडक्ट्स को बैन करना या लोगों को खरीदने से रोकना आसान नहीं है। दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश में चाइना से कई रा-मैटेरियल और प्रॉडक्ट्स भारत में लाए जाते हैं और उन्हें भारत में असेम्बल किया जाता है। पेन हो, एलईडी लाइटें, डिजाइनर आइटम, इलैक्ट्रिकल प्रॉडक्ट्स हर चीज की सप्लाई चीन से होती है। डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से कई प्रॉडक्ट्स चाइना पर निर्भर करते हैं। दिल्ली की शापिंग के लिए दो से ढाई महीने पहले ही चाइनीज आइटम दिल्ली में आ जाते हैं। अब अगर उन्हें दुकानदार नहीं बेचेंगे तो पूरे बाजार का हर रोज 10 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो सकता है। भारत में चाइनीज उत्पादों के खिलाफ सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान से चीन भड़क गया है। विरोध में चीनी मीडिया (सरकारी) अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखाöभारत सिर्प भौंक सकता है। वहीं चीनी उत्पादों को लेकर चल रही बातें भड़काऊ हैं। भारतीय उत्पाद चाइनीज प्रॉडक्ट्स के मुकाबले टिक नहीं सकते। दोनों देशों के बढ़ते व्यापार घाटे पर भी भारत कुछ नहीं कर सकता। अखबार ने लिखा कि पाकिस्तानी आतंकवादियों को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने के भारत के प्रयासों के चीन के लगातार विरोध से ज्यादातर भारतीय नाराज हैं। इसके चलते उसने सोशल मीडिया सहित कई प्लेटफार्म पर चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चला रखा है। अखबार ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट को भी अव्यावहारिक करार दिया।
-अनिल नरेन्द्र


अब जरूरत है देश के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक की

पाकिस्तान और चीन को अलग-थलग करने के बाद अब सरकार को देश के भीतर आतंकियों को ठिकाने लगाने के लिए देश के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक करनी होगी। देश के भीतर व्याप्त कटुता, विसंगतियों और दुश्मन की मदद करने वाले स्लीपर सेल्स से ज्यादा बड़ा खतरा है। भारत के पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार शिवशंकर मेनन का यह कहना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। देश के अंदर कुछ लोग हैं जो देश विरोधी बातें करते हैं, ऐसे मुद्दे अकसर उठाते रहते हैं जिससे देश के दुश्मनों को मदद मिलती है। कुछ तो आज भी सीमा पार अपने आकाओं से दिशानिर्देश लेते हैं। हमने चैनलों में देखा है कि ऐसी बहस कराई जाती है जिससे देश कमजोर होता है। वैसे भी इन जेहादी संगठनों से देश को खतरा है। सूत्रों के मुताबिक केरल के साथ ही जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब और पश्चिम बंगाल में भी सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकी संगठनों के सम्पर्प में रहने वाले कुछ लोगों को हिरासत में लिया है। सबसे अहम गिरफ्तारी केरल में हुई है। जहां राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जिन छह आतंकियों को गिरफ्तार किया है उनका मॉड्यूल बहुत ही खतरनाक इरादे रखता है। उसकी तुलना हाल में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में किए गए हमले से की जा रही है। वे दीपावली के आसपास दक्षिण भारत में खौफ फैलाने की योजना बना रहे थे। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत में आतंकी हमले की आशंका बढ़ी है। इसके पीछे वजह यह भी है कि पाकिस्तान की एजेंसियां भारत में जल्द से जल्द हमला करने की ताक में हैं। जम्मू-कश्मीर के बारामूला में राष्ट्रीय राइफल्स मुख्यालय पर हमले को भी एक स्लीपर सेल की कारस्तानी मानी जा रही है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बात की थी और उन्हें अपनी सुरक्षा व्यवस्था को चौकस करने का सुझाव दिया था। गृह मंत्रालय के अधिकारी अब भी कई राज्यों के अधिकारियों के सम्पर्प में हैं और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर लगातार सूचनाएं आदान-प्रदान कर रहे हैं। नक्सलवाद, सांप्रदायिक तनाव आतंकवादियों की मदद करता है, माहौल व जमीनी हमलों की तैयारी करता है। अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने वाला कृत्य जाली नोटों की तस्करी भी आंतरिक खतरे की भयावहता को बढ़ाती है। लाजिमी है कि सरकार को ऐसे किसी टूट और विलगाव के जहर को पहले बेअसर करना होगा। जब तक देश सुरक्षित नहीं, संगठित नहीं रहेगा, तब तक बाहरी दुश्मनों से लड़ाई और उनके खिलाफ निर्णायक लड़ाई नहीं जीती जा सकती है। निस्संदेह आंतरिक खतरे की भयावहता का जिक्र शिवशंकर मेनन की कपोल-कल्पित बातें नहीं हैं बल्कि उन्होंने चार साल तक रक्षा सलाहकार के पद पर रहते हुए इसे काफी पास से देखा है। जरूरत अब है अंदरूनी सर्जिकल स्ट्राइक की।

Friday, 21 October 2016

आईएस के सफाए के लिए निर्णायक जंग

दुनिया में कभी अपने शैक्षिक संस्थानों के लिए प्रसिद्ध 3000 साल पुराना इराकी शहर मोसुल अब सबसे बड़ी जंग का मैदान बन गया है। आईएस (इस्लामिक स्टेट) का पूरी तरह से खात्मा कर वापस मोसुल पर कब्जा जमाने के लिए इराकी सेना ने शहर पर हमला बोल दिया है। शहर में मौजूद चार से आठ हजार आईएस आतंकियों को खदेड़ने के लिए इराक और कुर्द बलों के 30 हजार जवानों ने मोर्चा संभाल लिया है। रविवार रात से शहर पर हवाई हमले और बम बरसने शुरू हो गए हैं। इराकी सैनिक, कुर्दिश लड़ाके और पांच हजार अमेरिकी जवान भारी संख्या में हथियार और टैंक लेकर शहर में दाखिल होना शुरू हो चुके हैं। इराक ने शुरुआती सफलता हासिल करते हुए नौ गावों को आईएस के चुंगल से आजाद भी करा लिया है। बता दें कि दिसम्बर 2011 में यहां से अमेरिकी सेना ने घर लौटना शुरू किया था। फरवरी 2012 में इराक में शिया-सुन्नी विवाद बढ़ा। मार्च 2013 में सीरिया के पास वाले इराकी क्षेत्र में आईएस ने अपनी पैठ बनाना शुरू कर दी। जून 2014 में सरकार की निक्रियता की वजह से आईएस ने मोसुल पर अपना कब्जा कर लिया। कभी 25 लाख वाला यह शहर अब खंडर में तब्दील हो चुका है। अब भी 10 लाख लोग यहां फंसे हुए हैं। स्थानीय नागरिकों को आईएस के ठिकाने वाले क्षेत्र `अल-दायग' से दूर रहने की सलाह दी गई है। यूएन मौजूदा हालात पर चिन्ता जताते हुए कहा चुका है कि इस लड़ाई में शरणार्थी संकट और गहराएगा। सुरक्षित स्थान तक पहुंचने के लिए बच्चों को भूखे-प्यासे 36 घंटे तक पैदल चलना पड़ रहा है। आईएस आतंकियों ने मोसुल में कई बंकर बना रखे हैं। इसलिए इसे खत्म करने में समय लग सकता है। मोसुल को मुक्त कराने के बाद यहां सुरक्षा को लेकर फिर दिक्कतें पैदा न हों, इसलिए अमेरिका अभी से 15 हजार कुर्दिश लड़ाकों को ट्रEिनग दे रहा है। सेना के अभियान को कमजोर करने के इरादे से आईएस ने तेल के पुंओं में आग लगा दी है ताकि आसमान में काले धुएं की वजह से उन्हें परेशानी हो। इस शहर पर इराक का दोबारा नियंत्रण हो जाने से आईएस के खलीफा राज के दावे की हवा निकल जाएगी। संयुक्त राष्ट्र ने यह आशंका जताई है कि आईएस इराक में अपने अंतिम गढ़ को बचाने के लिए शहर के बचे 15 लाख नागरिकों को ढाल बना सकता है। आईएस ने मोसुल पर ही पहले कब्जा किया था। इसके बाद वह इराक और सीरिया के बड़े क्षेत्र तक फैल गया। इराकी बलों के मोसुल शहर से आईएस को खदेड़ने के अपने अभियान में आगे बढ़ने के साथ ही अमेरिका ने कहा कि आतंकी समूह की स्वघोषित राजधानी से उसे बाहर करना एक महत्वपूर्ण रणनीतिक घटनाक्रम है।

-अनिल नरेन्द्र

मुश्किल में ऐ दिल

खुद को अनचाही मुश्किल में घिरते देख फिल्म निर्देशक करण जौहर व बॉलीवुड की कुछ मुखर आवाजों के सुर मंगलवार को बदले-बदले से नजर आए। इसे जनभावना का दबाव कहें या भूल सुधार कहें? इन हस्तियों को संभवत यह अहसास हो गया कि देश की बात करना और सेना का साथ देना कतई मुश्किल नहीं है। पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान की वजह से फिल्म ऐ दिल है मुश्किल की रिलीज को लेकर विरोध झेल रहे फिल्म निर्देशक करण जौहर ने मंगलवार को कहा कि वे भविष्य में पाक कलाकारों को नहीं लेंगे। उन्होंने भावपूर्ण अपील करते हुए कहा कि मेरी फिल्म में अवरोध नहीं डाला जाए। बता दें कि राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और कुछ अन्य राजनीतिक संगठनों ने जम्मू-कश्मीर में उरी हमले के बाद पाक कलाकारों वाली फिल्मों की रिलीज का जमकर विरोध किया है जिसके बाद करण की फिल्म के भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया जो दीपावली से पहले 28 अक्तूबर को रिलीज होनी है। सिनेमाघर संचालकों के संगठन ने भी महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और गोवा में पाकिस्तानी कलाकारों के अभिनय वाली फिल्मों को प्रदर्शित नहीं करने का फैसला किया है। फिल्म में रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन व अनुष्का शर्मा मुख्य किरदार हैं। पाकिस्तान के फवाद खान की फिल्म में छोटी-सी भूमिका बताई जा रही है। करण ने कहा कि वे चुप रहे क्योंकि उनकी देशभक्ति के बारे में सवाल उठाए जाने से वह आहत थे। उन्होंने कहा कि देश उनके लिए पहले है और उन्होंने हमेशा  देश को सब चीजों से ऊपर रखा। फिल्म के विरोध पर कटाक्ष करते हुए फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान जाने पर उनके माफी मांगने तक का ऊट-पटांग बयान दे डाला। अब उन्हें जब अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने फेसबुक पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने मोदी से कभी माफी मांगने की बात नहीं कही थी। उन्होंने अपनी सफाई में लिखा हैöमैंने बस इतना ही कहा था कि फिल्म उद्योग को आसान निशाना बनाया जा रहा है। मैं अपनी बात इसलिए रख रहा हूं कि मुझे बाद में मीडिया में बयान नहीं जारी करना पड़ा। मैंने कभी किसी स्थिति पर सवाल नहीं उठाया। पीएम भविष्य की स्थिति से अनजान पाकिस्तान की यात्रा पर गए थे, उधर राज ठाकरे की पार्टी मनसे के विरोध के बावजूद करण जौहर की फिल्म ऐ दिल है मुश्किल का मुंबई में प्रदर्शन पुलिस की सुरक्षा के बीच होगा। हालांकि मनसे ने कहा है कि पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान की वजह से वह फिल्म की रिलीज के विरोध पर कायम है। बता दें कि मनसे की चेतावनी के बाद फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर्स गिल्ड के मुकेश भट्ट, फॉक्स स्टार इंडिया, अनुपमा चोपड़ा और फिल्म निर्माता सिद्धार्थ राय कपूर ने पुलिस कमिश्नर से सुरक्षा की गुहार की थी। फिल्म की पब्लिसिटी तो बहुत हो गई है।

Thursday, 20 October 2016

तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह पर बहस

मुस्लिम समुदाय से जुड़े तीन संवेदनशील मुद्दोंöतीन तलाक, हलाला और बहुविवाह पर उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार के प्रस्तुत शपथ पत्र और विधि आयोग पर मांगे गए सुझावों को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व अन्य मुस्लिम संगठनों ने जैसा तीखा विरोध दिखाया है, उसमें आने वाले समय की कुछ तस्वीरें बहरहाल जरूर झलक रही हैं। बहस को राजनीतिक चश्मे या धर्म के आधार पर देखने की बजाय समुदाय में मुस्लिम महिलाओं के हक और सम्मान से जोड़कर देखा जाए तो सभी की भलाई है। ये तीनों मुद्दे वैसे न तो नए हैं और न ही पहली बार इन पर बहस हो रही है, ताजा सन्दर्भ में एक तलाकशुदा महिला शायरा बानो की सर्वोच्च अदालत में दी गई अर्जी से जुड़ा है और अब जिसे लेकर केंद्र सरकार और मुस्लिम संगठन आमने-सामने हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व अन्य मुस्लिम संगठनों ने जैसा तीखा विरोध दिखाया है, उससे साफ है कि ये संगठन तीन तलाक को गैर कानूनी मानने और निकाह आदि मामलों पर एक कानून बनाए जाने के किसी प्रयास को आसानी से स्वीकार नहीं करने वाले। हालांकि केंद्र सरकार ने अभी समान नागरिक कानून बनाने की कोई बात नहीं की है। विधि आयोग ने केवल कुछ प्रश्न जारी कर उनका उत्तर मांगा है और वे प्रश्न सिर्प मुसलमानों से संबंधित नहीं हैं। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने साफ कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड सरकारी फैसला नहीं है। कोर्ट के आदेश पर ही सरकार आगे बढ़ रही है। जेटली ने कहा कि संविधान हर व्यक्ति को समानता का अधिकार और गरिमा के साथ जीवन बिताने का अधिकार देता है। जहां तक पर्सनल लॉ का संबंध है, मेरा मानना है कि पर्सनल लॉ के तहत मिले अधिकारों पर संवैधानिक नियंत्रण होना चाहिए। पर्सनल लॉ भेदभाव को बढ़ावा नहीं दे सकता और न ही मानवीय गरिमा के साथ समझौता कर सकता है। फिर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह पहल केंद्र सरकार की तरफ से नहीं हुई है, यह तो पहल सुप्रीम कोर्ट की ओर से हुई है जिसके सामने मुसलमानों का तीन तलाक और ईसाइयों के तलाक संबंधित मामले सुनवाई के लिए आए हुए हैं। वास्तव में तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह ये तीनों ऐसी प्रथाएं हैं, जिनका नुकसान समुदाय की महिलाओं को उठाना पड़ता है और मुस्लिम समुदाय के भीतर भी इन पर एक राय नहीं है। मसलन एक व्याख्या यह है कि तीन तलाक के लिए तीन महीने का अंतर हो ताकि सुलह के रास्ते खुले हों। पर अनेक मामलों में इस्लामिक संस्थाओं ने नशे में और फोन पर दिए गए तलाक तक को जायज माना है। बहस तो इस पर भी है कि आखिर पुरुष को एकतरफा तलाक देने का हक क्यों हो? तर्प यही दिया जाता है कि पुरुष में सही फैसला लेने की क्षमता होती है। यह ठीक है कि धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं किया जाना चाहिए और आस्था का सम्मान होना चाहिए लेकिन ऐसे समय में जब महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से पीछे नहीं हैं, यह बात गले नहीं उतरती कि वे फैसले लेने में पुरुषों से कमतर होती हैं। शिया धर्मगुरु ने भी तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने और इससे संबंधित कानून बनाए जाने का समर्थन किया है। मुस्लिम समाज का इस मामले में दो भागों में बंटना ही यह साबित करता है कि यह कोई कुरान या हदीस का मामला नहीं है। अगर ऐसा होता तो स्वयं को इस्लामिक मानने वाले दुनिया के 22 देशों ने इस अन्यायपूर्ण प्रथा का अंत नहीं किया होता। भारत वैसे भी एक सेक्यूलर देश होने के कारण संविधान के तहत चलता है। यहां किसी के धर्म, रीति-रिवाज, उपासना पद्धतियों में सरकारें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं पर जब संविधान में लैंगिक समानता और मानवीय गरिमा का अधिकार दिया है तो उसका पालन कराना भी सरकारों का दायित्व है। उम्मीद की जाती है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठन जो विरोध कर रहे हैं वह असलियत को समझेंगे और इसे धार्मिक हस्तक्षेप का मामला न मानते हुए मानवीय जरूरत समझेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

अभूतपूर्व ः जस्टिस काटजू हाजिर हों

अपने बड़बोलेपन के लिए मशहूर जस्टिस मार्कंडेय काटजू आखिरकार अब फंस गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपने ही एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश (जस्टिस काटजू) को नोटिस जारी कर पूछा है कि सौम्या दुष्कर्म और हत्या मामले में अदालत के फैसले में क्या खामी है? सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार अपने किसी पूर्व जज को बहस के लिए बुलाया है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस काटजू के उस ब्लॉग का संज्ञान लिया जिसमें उन्होंने इस केस के फैसले की आलोचना की है। कोर्ट ने उनसे कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में आएं और बहस करें कि कानून में वे सही हैं या अदालत? यह पहला मामला है जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही किसी पूर्व जज को फैसले की आलोचना के लिए कोर्ट में तलब किया है। उल्लेखनीय है कि सौम्या कोच्चि के एक शापिंग मॉल में काम करती थी। एक फरवरी 2011 को वह ट्रेन में सफर कर रही थी। उस दौरान अभियुक्त गोविंदाचार्या ने उस पर हमला किया। वल्लातोर नगर के पास उसे ट्रेन से धकेल दिया और खुद भी चलती ट्रेन से कूद गया। बाद में सौम्या को पास के जंगल में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। चोटों की वजह से छह फरवरी को सौम्या की एक अस्पताल में मौत हो गई। जस्टिस काटजू ने अपने ब्लॉग में यह लिखा थाöसुप्रीम कोर्ट ने गोविंदाचार्या को हत्या का दोषी नहीं ठहराकर भारी भूल की है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह साबित नहीं हुआ कि अभियुक्त की मंशा हत्या करने की थी। इसलिए उसे हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन कोर्ट ने आरपीसी की धारा 300 पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें हत्या को चार भागों में परिभाषित किया गया है। सिर्प पहले भाग में हत्या की मंशा की जरूरत होती है। इसके अलावा अगर किसी भी बाकी तीन भागों में केस साबित हो जाए तो उसे हत्या माना जाएगा। चाहे उसमें हत्या की मंशा नहीं रही हो। अफसोस है कि कोर्ट ने धारा 300 को सावधानी से नहीं पढ़ा। इस फैसले की खुली अदालत में फिर से समीक्षा होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस काटजू की पोस्ट पर संज्ञान लेते हुए उनसे 11 नवम्बर को सुनवाई में भाग लेने के आग्रह के साथ कहा कि वे स्वयं आकर बताएं कि फैसले में ऐसी क्या खामी है कि कोर्ट उस पर पुनर्विचार करे? न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, पीसी पंत और यूयू ललित की पीठ ने पोस्ट के उपरोक्त अंश को आदेश में उद्धृत करते हुए पुनर्विचार याचिका में बदल दिया। कोर्ट ने कहा कि यह इस कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश का नजरिया है। इस पर पूरे सम्मान और गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 15 दिसम्बर को सौम्या हत्याकांड में गोविंदाचार्या को सबूतों के अभाव में हत्या का दोषी नहीं माना था। पीठ ने निचली अदालत तथा उसके बाद हाई कोर्ट से मिली मौत की सजा को रद्द कर दिया था।

Wednesday, 19 October 2016

एटीएस की कार्रवाई से एनसीआर में बड़ा हमला टला

देश को सीमा पार से हमलों का तो खतरा है ही पर देश के अंदर भी कई संगठन हैं जो देश की स्वतंत्रता व कानून व्यवस्था के लिए खतरा हैं। ताजा उदाहरण नोएडा में नक्सलियों के बड़े गैंग का भंडाफोड़ होना। यूपी के नोएडा में नक्सलियों के एक बड़े गैंग का भंडाफोड़ करके पुलिस ने दिल्ली-एनसीआर में एक बड़े नक्सली हमले की साजिश नाकाम कर दी। नोएडा के सेक्टर-49 के हिंडन विहार, सदरपुर और चंदौली से पकड़े गए नक्सली दिल्ली-एनसीआर में बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए एके-47 खरीदने की फिराक में थे। शनिवार रात और रविवार सुबह हिंडन विहार और सदरपुर इलाकों से नक्सली गिरोह से जुड़े व खतरनाक अपराधियों के इनपुट से एटीएस की टीम ने रविवार को चंदौली जिले से गिरोह के सरगना सुनील रविदास को गिरफ्तार किया। उसके पास से सेना की राइफल, 550 कारतूसों के अलावा तीन एसएलआर मैगजीन भी बरामद हुई है। इनमें प्रतिबंधित नक्सली संगठन पीपुल्स वॉर ग्रुप का पांच लाख का ईनामी कमांडर रंजीत पासवान भी है। सेक्टर-49 हिंडन विहार के रहने वाले एक शख्स ने एसएसपी को संदिग्धों के बारे में सूचना दी थी। भले ही यह कहकर आईजी एटीएस ने नोएडा पुलिस की किरकिरी होने से बचा ली, लेकिन हकीकत यह है कि करीब एक महीना पहले यूपी एटीएस की बनारस टीम ने इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के माध्यम से नोएडा में कुछ संदिग्ध गतिविधियों को ट्रेस किया था। इसके बाद से एटीएस लगातार यहां रह रहे नक्सलियों की हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थी। एटीएस के एक अधिकारी ने बताया कि इलैक्ट्रॉनिक सर्विलांस और मैन्युअली भी उनकी मूवमेंट को ट्रेस किया जा रहा था। एटीएस के आईजी असीम अरुण के मुताबिक गिरफ्तार आरोपियों में से दो बम बनाने के एक्सपर्ट हैं। आईजी के मुताबिक यह लोग सेक्टर-49 हिंडन विहार में रह रहे थे। सदरपुर में ऑफिस खोलकर प्रॉपर्टी डीलिंग की आड़ में लोकल बदमाशों को जोड़ रहे थे। ये बैंक, एटीएम, लूट, फिरौती, अपहरण और सुपारी लेकर हत्याएं करने की फिराक में थे। आईजी ने बताया कि इनके पास से जिलेटिन की 45 छड़ें, 125 डेटोनेटर, चार पिस्टल, चार तमंचे, गोलियां, चार कारें, 13 मोबाइल, बाइक, लैपटॉप आदि मिले हैं। चंदौली से गिरफ्तार सरगना के पास जो सामान बरामद हुए वे सब किसी सुरक्षा बल से लूटे हुए लग रहे हैं। नोएडा के एसएसपी धर्मेन्द्र यादव ने बताया कि नोएडा के एक नागरिक की सूचना पर एटीएस ने इतनी बड़ी कार्रवाई करके एक बड़ी साजिश व हमले का पर्दाफाश किया। नागरिक की पहचान छिपाते हुए उन्होंने कहा कि इस नागरिक को सम्मानित किया जाएगा। पुलिस की कार्रवाई से एक बड़ा हादसा होते-होते बचा है।

-अनिल नरेन्द्र

आतंकवाद पर पाक तो अलग-थलग था, मोदी ने चीन को भी बेनकाब कर दिया

उड़ी आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग करने की भारत की मुहिम ब्रिक्स सम्मेलन में भी रंग लाई। चीन को छोड़कर बाकी सभी देशों ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई। यह महाशक्तियां आतंकियों और उनके समर्थकों पर लगाम लगाने के पक्ष में दिखीं। सभी ने नरेंद्र मोदी की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टालरेंस नीति का समर्थन किया और आतंकवाद को पूरी दुनिया के लिए खतरा बताया। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ संयुक्त मीडिया कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ रूस का रुख स्पष्ट है। वह इसे खत्म करना चाहता है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए भारत और रूस का स्टैंड एक जैसा है। हम सरहद पार आतंकवाद से निपटने के मुद्दे पर रूस की समझ और समर्थन की प्रशंसा करते हैं। रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में दोनों देश एक-दूसरे का पूरा सहयोग कर रहे हैं। पुतिन ने कहा कि भारत के साथ विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक साझेदारी के प्रति प्रतिबद्ध हैं। शनिवार को गोवा में ब्रिक्स सम्मेलन के इतर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आतंकवाद के मुद्दे पर तो समन्वय बढ़ाने की बात की पर पठानकोट हमले के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र से अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाने की भारत की मुहिम पर समर्थन करने को टाल गए। भारत चीन के इस कदम से काफी आहत था, जब उसने अजहर को राष्ट्र संघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवाने के भारत के कदम में तकनीकी पेच फंसा दिया था। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि दोनों देशों को रक्षा बातचीत और साझेदारी को मजबूत करना चाहिए। बेशक मसूद अजहर पर भारत को चीन का समर्थन फिलहाल न मिला हो पर रूस को साध कर भारत ने ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे चीन पर कूटनीतिक बढ़त हासिल कर ली है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने अगर सीमा पार आतंकवाद पर ब्रिक्स के अन्य सदस्य देशों दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील को भी साध लिया तो चीन पर कूटनीतिक दबाव और बढ़ जाएगा। वैसे भी चीन पर दबाव बढ़ाने के लिए भारत ने ब्रिक्स की विस्तारित बैठक में बिम्सटेक के सदस्य देशों की सीमा पार आतंकवाद पर मुखर रुख अपनाने के लिए पहले ही राजी कर लिया है। आतंकवाद पर भारत को रूस का साथ मिला है। दोनों देशों को एक-दूसरे की सख्त जरूरत थी। अमेरिका की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के कारण रूस को बड़े रक्षा सौदे की जरूरत थी। दूसरी ओर भारत भी अपने सबसे विश्वस्त मित्र से समर्थन चाहता था। दोनों की मुराद पूरी हुई और निश्चित रूप से यह चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए कूटनीतिक झटका है। रूस और भारत के बीच रक्षा समझौतों से जहां भारत के सबसे विश्वस्त दोस्त रूस ने दोस्ती की मिसाल पेश की वहीं चीन इस बढ़ती दोस्ती से तिलमिलाएगा जरूर। सीमा पार आतंकवाद पर भारत का साथ देने के अलावा रूस ने पांच एस-400 ट्रायंफ वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली का उपहार देकर हवाई खतरे से निपटने का हथियार भी दे दिया है। इसकी अहमियत इससे समझी जा सकती है कि यह वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली दुनिया की न सिर्प आधुनिक प्रणाली है, बल्कि इसके बाद भारत की रक्षा प्रणाली किसी भी देश (पाकिस्तान और चीन) का सामना करने में पूरी तरह से सक्षम होगी। ऐसा कर रूस ने भारत को पाकिस्तान ही नहीं चीन से भी बचने का सुरक्षा कवच उपलब्ध करा दिया है। पाकिस्तान तो पहले ही दुनिया में अलग-थलग पड़ा हुआ था ब्रिक्स सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने चीन का भी पर्दाफाश कर दिया।

Tuesday, 18 October 2016

इस दीपावली चीनी सामान का बहिष्कार करो

सोशल मीडिया पर ड्रैगन (चीन) के बहिष्कार के अभियान से व्यापारियों को दीपावली के सीजन में बड़ा झटका लग सकता है। भारत-पाकिस्तान के जारी तनाव में चीन के भारत विरोधी रवैये के बाद सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप आदि पर चीन से आयातित सामान को न खरीदने के लिए अपील का असर अब दिखना शुरू हो गया है। खुदरा व्यापारियों का कहना है कि चीनी प्रॉडक्ट्स की डिमांड में 20 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन चीन के सरकारी मीडिया का दावा है कि हमारे प्रॉडक्ट्स अब भी पूरे भारत में लोकप्रिय हैं और बॉयकॉट अपील को सफलता नहीं मिल सकती। कन्फैडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने कहा है कि दीपावली में चीन के लाइटिंग और डेकोरेटिव प्रॉडक्ट्स का काफी इस्तेमाल किया जाता रहा है और ये त्यौहार से तीन महीने पहले ही बाजार में आ जाते हैं। ये प्रॉडक्ट्स इस बार भी होलसेलरों के पास हैं, लेकिन खुदरा कारोबारियों की ओर से डिमांड 20 प्रतिशत तक कम है, क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग इन्हें नहीं खरीदेंगे। दीपावली से पहले राजस्व खुफिया निदेशालय ने नौ करोड़ के मूल्य के चीन निर्मित पटाखे जब्त किए हैं। तुगलकाबाद में इनलैंड कंटेनर डिपो में छह बड़े कंटेनरों से अवैध रूप से आयातित इन पटाखों को जब्त किया गया। नोएडा के व्यापारियों ने 150 करोड़ के चाइनीज सामान का आयात रद्द कर दिया है क्योंकि इस बार लोगों के बीच चाइनीज उत्पाद का इस्तेमाल नहीं करने का संदेश फैलाया जा रहा है। हालांकि कुछ व्यापारियों ने करीब 100 करोड़ रुपए का चीनी सामान खरीद लिया है। ऐसे में इन व्यापारियों को घाटा होने का डर लग रहा है। शहर की व्यापारी एसोसिएशंस का कहना है कि हर वर्ष अकेले नोएडा के दीपावली सीजन में चीनी पटाखों, लाइटों व अन्य सजावट के सामान का करीब 250 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़े रहने के अपने रुख का खामियाजा चीन को भारतीय बाजार से मिल रही मायूसी के रूप में भुगतना पड़ रहा है। इस दीपावली पर लोग स्वदेशी सामान अपनाने पर जोर दे रहे हैं। मिट्टी के दीयों की लोकप्रियता फिर से बढ़ रही है। दीये की कीमत पांच रुपए से शुरू हो रही है। दीपावली पर पहले लोग 20-25 दीये खरीदते थे वहीं इस बार 50-100 तक दीये खरीद रहे हैं। चाइनीज दीयों की बजाय प्राकृतिक रंगों से बने मिट्टी के दीयों में लक्ष्मी, गणेश जी की मूर्तियों वाले दीयों को भी लोग तरजीह दे रहे हैं। इनकी शुरुआती कीमत 50 रुपए है। चाइनीज लड़ियों की बिक्री में भी गिरावट आई है। चाइना के बाजार में इंडियन मार्केट से काफी रैवेन्यू मिलता है। फिर भी वह इंडिया की जगह पाकिस्तान को सपोर्ट कर रहा है। पर यह भी सत्य है कि चीन का सामान न केवल सस्ता होता है बल्कि उसकी गुणवत्ता भी बेहतर होती है। ऐसे में हमें अपने प्रॉडक्ट्स को बेहतर और सस्ता बनाना होगा तभी जाकर यह अभियान पूरी तरह सफल होगा।

-अनिल नरेन्द्र

भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते कदम

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भले ही क्षेत्रीय नेताओं को सामने रखकर भाजपा चुनाव में उतरने की मंशा रखती हो, लेकिन अभी भी हकीकत यह है कि जीत के लिए पार्टी को एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर ही अधिक निर्भर रहना होगा। खासकर यूपी जैसे बड़े राज्य के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए। यह लगता है कि सही भी हो क्योंकि ताजा सर्वेक्षण में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आती नजर आ रही है। इंडिया टुडे-एक्सिस द्वारा कराए गए ओपिनियन पोल के अनुसार अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नजर आ रही है। यूपी चुनाव को लेकर कराए गए सर्वे में भाजपा को 170 से 180 सीटें मिलने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। बीएसपी के दूसरे नम्बर की पार्टी बनने के आसार नजर आ रहे हैं। सर्वे के अनुसार बीएसपी को 115 से 124 सीटें मिल सकती हैं। सर्वे के अनुसार मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। सर्वे के अनुसार सपा तीसरे नम्बर पर खिसक जाएगी और पार्टी को 94 से 103 सीटों का अनुमान है। समाजवादी पार्टी की अंतर्पलह भी पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा रही है। सपा परिवार के अंदरखाने चल रहे भीतरी संग्राम को एक महीने से ज्यादा वक्त हो गया है। रार अभी भी थमने का नाम नहीं ले रही है। खुद मुलायम सिंह ने इस आग में घी का काम किया है। उन्होंने कहा कि यूपी का अगला सीएम तय नहीं, इसका फैसला चुनाव के बाद होगा। वहीं मुख्यमंत्री अखिलेश ने जवाब दिया कि यूपी का अगला सीएम यूपी की जनता तय करेगी। उधर शिवपाल यादव ने अब अपने तरीके से संगठन व टिकटों में बदलाव करना शुरू कर दिया है। इससे अखिलेश समर्थक बेचैन हैं। उनकी टीम के अहम सदस्य संगठन में किनारे किए जा चुके हैं। उन पर खिंच रही लकीर का असर कार्यकर्ताओं व संगठन के पदाधिकारियों, विधायकों में दिख रहा है। बहन जी ने इस सर्वे को प्रायोजित करार दिया है। उन्होंने कहा कि अधिकतर मीडिया हाउस के मालिक धन्ना सेठ व पूंजीपति हैं, जो चुनाव के दौरान भाजपा व कांग्रेस जैसे दलों की हवा बनाने का काम करते हैं। यह सर्वे भी इसी की एक कड़ी है। इन दलों के इशारों पर हमारा मनोबल गिराने के लिए और यूपी की जनता को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है। उधर भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश सरकार में शामिल होने का फैसला किया है। इस तरह अरुणाचल प्रदेश 15वां राज्य बन जाएगा, जहां भाजपा की सत्ता है। भारत में कुल 30 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं। जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, मध्यप्रदेश, सिक्किम और नागालैंड वे राज्य हैं जहां भाजपा या तो सीधे तौर पर शासन में है या सहयोगी की भूमिका में है। बेशक इन राज्यों में आज भाजपा सत्ता में है पर कटु सत्य यही है कि नरेंद्र मोदी ही पार्टी के तुरूप के इक्का हैं।

Sunday, 16 October 2016

इमारतों पर कब्जा करना आतंकियों की नई रणनीति

कश्मीर घाटी में कर्फ्यू, प्रतिबंधों और अलगाववादियों की हड़ताल के कारण पिछले 97 दिनों से जनजीवन प्रभावित रहा। इस दौरान सीमा पार से एक बार फिर आतंकी संगठनों की हलचल तेज हो गई है। देखने में आ रहा है कि आतंकियों के जम्मू-कश्मीर में हमले तेज हो गए हैं। ताजा उदाहरण श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर पंपोर का है। पंपोर की एक सरकारी इमारत में आतंकियों को सुरक्षा बलों ने बुधवार को 56 घंटे की मशक्कत के बाद ढेर कर दिया। सोमवार तड़के यहां घुसे लश्कर--तैयबा के इन दोनों आतंकियों के सफाये में करीब 56 घंटे का समय लगा। एक अफसर के मुताबिक बिल्डिंग में 60 से ज्यादा कमरों की तलाशी में वक्त लगा। आतंकी बिल्डिंग में सुरक्षित जगहों पर थे जिससे सुरक्षाकर्मी अंदर नहीं घुस पा रहे थे। आंत्रप्रेन्चोरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (ईडीआई) की इस छह मंजिला इमारत पर इसी साल फरवरी में भी हमला हुआ था। तब 48 घंटे एनकाउंटर चला था। खुफिया एजेंसियों की मानें तो इस तरह के हमले आतंकियों की नई रणनीति का हिस्सा हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पहले आतंकी सुरक्षा बलों से मुठभेड़ करने की बजाय आत्मघाती विस्फोट किया करते थे, लेकिन अब वे उन्हें ज्यादा से ज्यादा उलझाना चाहते हैं। पठानकोट एयरबेस में भी आतंकियों का सफाया करने में 80 घंटे से ज्यादा का समय लगा था। मुठभेड़ जितनी ज्यादा देर चलेगी, देश-दुनिया में मीडिया कवरेज उतनी ही ज्यादा मिलेगी। इस साल बांग्लादेश के ढाका और 26/11 के मुंबई हमले में हमें ऐसा ही देखने को मिला। आतंकियों को इमारत में बंकर जैसी सुरक्षा मिल जाती है। उनकी लोकेशन का भी सटीक पता नहीं चलता। सुरक्षा बलों के पास सीमित विकल्प ही होते हैं। दूसरी ओर सुरक्षा बल नुकसान कम करने की रणनीति पर काम करते हैं। इसलिए तुरन्त इमारत उड़ाने का फैसला नहीं कर सकते। आतंकियों का साजोसामान और खाने-पीने का सामान खत्म होने के इंतजार में सुरक्षा बल मजबूरी में लंबा आपरेशन करते हैं। लंबे संघर्ष से आतंकी दुनिया का ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं। ईडीआई को निशाना बनाकर यह संदेश देना चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर सामान्य रास्ते पर नहीं जा सकता। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आतंकी संगठनों में खलबली मची हुई है। उनका अब प्रयास है कि अधिक से अधिक संख्या में आतंकियों को भारतीय क्षेत्र में दाखिल करवाकर बड़े हमलों को अंजाम दिया जाए और सर्जिकल स्ट्राइक का बदला लिया जाए। स्वचालित हथियारों से लैस आतंकियों के एक दल ने बुधवार सुबह उत्तरी कश्मीर के तंगधार (कुपवाड़ा) सेक्टर में घुसपैठ का प्रयास किया। गौरतलब है कि बीते एक सप्ताह के दौरान उत्तरी कश्मीर में यह सरहद पार से घुसपैठ का यह चौथा प्रयास है। जाहिर है कि इन हमलों में तेजी और आतंकी संगठनों और पाक सेना की नई रणनीति का हिस्सा है।

-अनिल नरेन्द्र

क्या हम तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं?

सीरिया संकट पर रूस और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है और अगर इस पर अंकुश नहीं लगता तो कुछ भी हो सकता है। यहां तक कि तीसरा विश्व युद्ध छिड़ सकता है। रूस की सेना की ओर से की जा रही तैयारी कुछ खास संकेत भी दे रही है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन काफी आक्रामक फैसले लेते दिख रहे हैं। सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि पुतिन ने रूस के उच्चाधिकारियों, राजनेताओं और उनके परिवार को घर (होमलैंड) लौटने को कहा है। इसी क्रम में रूस ने हाल में अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइलों का भी परीक्षण किया है। पुतिन ने रूसी एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ, रीजनल एडमिनिस्ट्रेशन, लॉ मेकर्स और पब्लिक कारपोरेशंस के कर्मचारियों को यह आदेश जारी किया है कि वे विदेशी स्कूलों में पढ़ रहे अपने बच्चों और वहां रह रहे अपने करीबी लोगों को तुरन्त देश वापस बुला लें। अगर कुछ मीडिया रिपोर्ट को मानें तो रूस की सेना ने जापान के उत्तर में तैनात अपनी सबमरीन से न्यूक्लियर वॉरहेड ढोने की क्षमता वाले रॉकेट का भी परीक्षण किया है। रूस की मीडिया एजेंसियों के मुताबिक रूस के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक घरेलू साइट से भी मिसाइल छोड़ी गई है। रूस का आक्रामक कदम यहीं नहीं थमा है। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने पोलैंड और लिथोवेनिया के साथ लगी सीमा पर भी न्यूक्लियर क्षमता वाली मिसाइलें तैनात कर दी हैं। 2011 से सीरिया में गृहयद्ध के हालात हैं और विश्व की दो महाशक्तियों अमेरिका और रूस में इसी को लेकर तनाव है। सीरिया की बशर अल असद सरकार और विद्रोहियों के बीच युद्ध चल रहा है। अमेरिका जहां असद विरोधियों के साथ है और असद को हटाने पर अड़ा हुआ है वहीं रूस असद सरकार की न केवल खुलकर मदद कर रहा है पर साथ-साथ असद को बरकरार रखना चाहता है। रूस एलेप्पो शहर में असद सरकार की मदद के लिए बमबारी भी कर रहा है। हालांकि पिछले महीने यहां युद्धविराम तो हुआ पर बमबारी लगातार जारी है। रूसी राष्ट्रपति को लग रहा है कि दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है। रूस ने जितने भी फैसले लिए हैं उनका सीधा संदेश है कि वो सीरिया को लेकर किसी समझौते को तैयार नहीं है। अमेरिका का साथ देने वाले देश रूस की सीरिया में भूमिका की आलोचना कर रहे हैं। फ्रांस ने हाल ही में रूस पर सीरिया में युद्ध अपराधों में शामिल होने का आरोप लगाया था, यही कारण रहा कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अपना फ्रांस का दौरा रद्द किया। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार अपनी चरम सीमा पर है। पुतिन डोनाल्ड ट्रंप का खुला समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने यहां तक कहा है कि अगर हिलेरी क्लिंटन अमेरिका की अगली राष्ट्रपति बनती हैं तो तीसरा विश्व युद्ध छिड़ सकता है। उम्मीद की जाती है कि रूस और अमेरिका में तनाव कम होता है और विश्व युद्ध की नौबत नहीं आती।