Sunday 23 October 2016

एक के बाद एक विवाद में फंसता जेएनयू

देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) एक बार फिर अपनी कुख्यात हरकतों के कारण सुर्खियों में है। जेएनयू के आक्रोशित छात्रों द्वारा कुलपति सहित अन्य अधिकारियों को बंधक बनाने की घटना न केवल निन्दनीय ही है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि यहां के मुट्ठीभर छात्रों के लिए न तो देश के कानून, मर्यादाओं की चिन्ता है और न ही अपने बड़ों के लिए इज्जत। यह धारणा आम होती जा रही है कि इस समय यह प्रतिष्ठित शिक्षण केंद्र आंदोलन और राजनीति का अड्डा बन गया है। यह चिन्ता का विषय इसलिए भी है यहां आम अभिभावकों और बेहतर शिक्षा की अभीप्सा लिए छात्र अब जेएनयू की आंदोलनकारी छवि से डरने लगे हैं। किसी को भी इस तरह पूरे तंत्र को पंगु करने की छूट नहीं दी जा सकती। वह भी जब कुलपति लगातार इस मामले को लेकर पुलिस-प्रशासन से सम्पर्प में हैं और छात्रों को भी इसकी जानकारी दे रहे हैं। जिस तरह से लापता छात्र नजीब अहमद मामले को लेकर करीब 21 घंटे तक बंधक बनाए कुलपति सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को रखा उससे साफ है कि यहां के विद्यार्थियों में न तो कुलपति के प्रति सम्मान है और न ही सब्र। उन्हें यह समझना होगा कि कुलपति व अन्य अधिकारियों को कमरे में बंद करने से नजीब अहमद मिलने वाला नहीं। पिछले साल भी देशद्रोह के मसले पर जेएनयू के छात्र चर्चा में आए थे। देशभर में इसको लेकर वैचारिक तौर पर अलगाव की भावना भी तेजी से फैली। हाल ही में यहां के कुछ छात्रों ने जहां विजयदशमी पर देशभर में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ व हाफिज सईद के चेहरों को रावण के पुतलों पर लगाकर जलाया, वहीं जेएनयू में एनएसयूआई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, योग गुरु बाबा रामदेव, नत्थूराम गोडसे, योगी आदित्यनाथ, जेएनयू वीसी, साध्वी प्रज्ञा और आसाराम बापू के चेहरे पुतले पर लगाकर जलाए थे। इन छात्रों का कहना था कि इन्हें बुराइयों के प्रतीक के रूप में मानकर ऐसा किया गया। नजीब अहमद मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें भी जारी हैं। ठीक है कि छात्रों के बीच किसी मसले को लेकर मनमुटाव और वैचारिक मतभेद होते रहते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि हद से गुजर जाने वाली कोई करतूत की जाए। महत्वपूर्ण यह है कि जेएनयू अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुन हासिल करे। विश्वविद्यालय के शिक्षकों को राजनीति न करते हुए पढ़ाई के अलावा छात्रों में उस भावना को जागृत करना होगा, जिसके लिए यह संस्थान पूरे विश्व में मशहूर रहा है। यह सब कुछ तभी हो पाएगा जब खुद यहां के छात्र बेहतर माहौल के लिए प्रयासरत हों। जो विद्यार्थी देश-विदेश तक अपनी बुद्धिमता की नजीर पेश करते हैं, पता नहीं ऐसे स्कॉलर ऐसे बेफिजूल विवादों में क्यों फंस जाते हैं? फिलहाल तो नजीब अहमद की सकुशल बरामदगी पर सभी को ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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