Sunday, 2 October 2016

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात

बिहार के बाहुबली नेता और आरजेडी के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन फिर जेल पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उसकी जमानत रद्द कर दी। उसने सीवान कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। हत्या के मामले में 11 साल तक जेल में रहने के बाद 20 दिन पहले ही शहाबुद्दीन को पटना हाई कोर्ट ने जमानत दी थी। न्यायालय ने जिस तरह से बिहार सरकार को फटकार लगाई और उसकी आलोचना की वह तमाम विपक्ष और बाहुबलियों के समर्थकों के लिए करारा संदेश है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ पूछा कि जब शहाबुद्दीन को जमानत मिल रही थी तो क्या सरकार सो रही थी? जस्टिस पीसी घोष और अमिताभ राय की पीठ ने पांच पन्नों के आदेश में कहाöहमने मामले के सभी पहलुओं पर विचार किया है। जमानत कानूनों को देखते हुए हमें लगता है कि हाई कोर्ट का आदेश इन सब पहलुओं और तथ्यों को नजरंदाज करते हुए दिया गया है। इसलिए हम जमानत रद्द करते हैं। कोर्ट ने राजीव शोरान हत्याकांड के ट्रायल को जल्द पूरा करने का भी आदेश दिया। वास्तव में 35 मामलों में शहाबुद्दीन को जमानत मिलना बिहार में गठबंधन सरकार के कानून विभाग की निष्पक्षता पर बहुत बड़ा प्रश्न है। अगर जमानत का मामला सुप्रीम कोर्ट में नहीं जाता तो क्या होता? शहाबुद्दीन के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को हिस्ट्रीशीटर कहा जाता है, जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर जवाब दिया कि दो मामलों में तो इसी अदालत ने उसे हिस्ट्रीशीटर माना है। क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि यह न्यायालय गलत है? हम इस बारे में आश्वस्त हैं कि हिस्ट्रीशीटर को जमानत नहीं दी जा सकती। समझने की बात है कि यह फैसला बिहार सरकार के खिलाफ निन्दात्मक टिप्पणी है। यह किसी से छिपा नहीं कि आरजेडी के दबाव में नीतीश कुमार ने जानबूझ कर केस ऐसे पेश किया कि जज को जमानत देनी पड़ी। उम्मीद की जाती है कि शहाबुद्दीन के खिलाफ तमाम पेन्डिंग केसों में अब मुकदमों में तेजी आएगी। बिहार सरकार के ताजा रवैये से यह भी उचित ही होगा कि शहाबुद्दीन के तमाम केसों को बिहार से दूसरे राज्य में शिफ्ट किया जाए। बिहार में वर्तमान सरकार के रहते इंसाफ की उम्मीद कम ही है।

-अनिल नरेन्द्र

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