Friday 28 October 2016

असल झगड़ा टाटा समूह में साख का है

नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाली 100 अरब डॉलर की कंपनी टाटा ग्रुप ने अपने अध्यक्ष सायरस मिस्त्राr को बर्खास्त करने की खबर से सभी को चौंका दिया है। कंपनी के बोर्ड ने चार साल से अध्यक्ष का पद संभाल रहे 48 वर्षीय मिस्त्राr की छुट्टी कर इसकी अंतरिम कमान एक बार फिर से रतन टाटा को सौंप दी है। चार वर्ष पूर्व टाटा समूह की कमान संभालने वाले सायरस मिस्त्राr को हटाया जाना जितना अप्रत्याशित है, देश के डेढ़ सौ वर्ष पुराने औद्योगिक घराने में उत्तराधिकारी की लड़ाई का अदालत और कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में पहुंच जाना उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे लगता है कि टाटा सन्स के भीतर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा था और भीतर ही भीतर तल्खी इतनी बढ़ गई थी कि टाटा बोर्ड ने सायरस को बिना कोई नोटिस दिए एक झटके में पद से हटा दिया। टाटा समूह ने इस फैसले की वजह नहीं जाहिर की है, पर कयास लगाए जा रहे हैं कि कुछ समय से कंपनियों का कारोबार शिथिल पड़ रहा था, कर्जे बढ़ रहे थे और सायरस बीमार उपक्रमों को बेचना चाहते थे। बताया जा रहा है कि इस सब के चलते समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा और सायरस मिस्त्राr के बीच मतभेद उभर आए थे। 78 वर्षीय रतन टाटा ने अंतरिम तौर पर सायरस की जगह समूह की कमान दोबारा संभाल ली है और चार महीने के भीतर नए अध्यक्ष की तलाश की जानी है, ऐसे में यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि इस बार टाटा समूह या टाटा परिवार से किसी पर भरोसा जताया जाएगा या फिर सायरस की तरह किसी बाहरी पर। कुछ लोगों का कहना है कि सायरस मिस्त्राr जिन्हें 30 वर्ष के लिए कमान संभालने के लिए दी गई थी को सिर्प चार वर्ष में टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाकर वयोवृद्ध रतन टाटा को अंतरिम चेयरमैन का जिम्मा दिए जाने से संकेत साफ हैं कि देश के इस सबसे पुराने औद्योगिक घराने में अभी भी पुराने मूल्यों के लिए आस्था बनी हुई है। ये पुराने मूल्य न तो तेजी से फैसले लेने की इजाजत देते हैं, न बिजनेस को समेटने की और न ही ज्यादा मुकदमेबाजी की। मिस्त्राr के खाते में उपलब्धियां होने के बावजूद उनका तेजी से फैसले लेने और कोई बड़ी दृष्टि प्रदर्शित न कर पाने के कारण उन्हें 26 साल पहले ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से हाथ धोना पड़ा है। हालांकि मिस्त्राr ने ई-कॉमर्स बढ़ाते हुए क्लिक नाम से डिजिटल प्लेटफार्म तैयार किया, टीसीएस का मुनाफा दोगुना किया और टाटा मोटर्स सवारी गाड़ियों की बिक्री में नए-नए मॉडल उतार कर इजाफा किया, लेकिन उनसे कई काम ऐसे हुए जो कंपनी के दूसरे प्रबंधकों को रास नहीं आए। मिस्त्राr पर कंपनी के बढ़ते कर्ज को कम करने का दबाव था और इसी कारण उन्होंने कई तरह के बिजनेस समेटने का काम किया। उसे कंपनी हित में नहीं समझा गया। 103 अरब डॉलर के कंपनी समूह पर 24.5 अरब डॉलर का कर्ज काफी होता है और उसे कम करने के लिए सायरस ने ब्रिटेन के इस्पात व्यवसाय का जर्मन कंपनी थाइसेनकुप से सौदा करने के लिए वार्ताएं भी कर रहे थे। वे टाटा टेटली और टाटा जेगुआर में भी टाटा सन्स की हिस्सेदारी घटाना चाहते थे। जबकि उनके ठीक पहले चेयरमैन रहे रतन टाटा ने कोरस समूह के साथ इन तमाम कंपनियों का अधिग्रहण करते हुए टाटा के साम्राज्य को विस्तार दिया था। किसी भी कारोबार में उतार-चढ़ाव का दौर चलता रहता है। रतन टाटा 21 सालों तक समूह के चेयरमैन रहे और कंपनी के कारोबार में करीब सत्तावन गुणा बढ़ोतरी की। बेशक उनका कार्यकाल सबसे बेहतर कहा जा सकता है। नमक से लेकर लोहा और सॉफ्टवेयर से लेकर भारी वाहन बनाने वाले टाटा समूह का झगड़ा पारिवारिक हितों से भी जुड़ा है। असल में सायरस मिस्त्राr उस परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिसकी टाटा समूह में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लिहाजा वह इस लड़ाई को दूर तक ले जा सकते हैं। मगर आम भारतीयों के लिए इस विवाद का सिर्प इतना मतलब है कि टाटा की साख बनी रहनी चाहिए, क्योंकि उसका लोहा दुनिया मानती आई है।

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