Sunday 23 October 2016

क्या साइकिल पर अकेले चलने पर मजबूर होंगे अखिलेश?

तमाम कोशिशों, दावों और बयानों के बावजूद उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के यादव परिवार का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पांच नवम्बर को पार्टी के गठन की रजत जयंती मनाने जा रही सपा के जनेश्वर मिश्र पार्प में आयोजित कार्यक्रम के 48 घंटे पहले ही अखिलेश यादव समाजवादी विकास यात्रा पर निकलने जा रहे हैं। इस बात का ऐलान उन्होंने मुलायम सिंह यादव को लिखे पत्र में किया है। अपने युवा समर्थकों पर कार्रवाई और प्रदेश संगठन में बदलाव से खिन्न अब लगता है कि शायद मुख्यमंत्री ने एकला चलो का रुख अख्तियार कर लिया है। सपा प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल यादव को एक तरह से चुनौती देने के अंदाज में तीन नवम्बर से विकास से विजय की ओर समाजवादी विकास यात्रा का ऐलान कर यह जाहिर कर दिया है कि यादव परिवार में जंग जारी है। कुछ लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अगर स्थिति थमी नहीं और उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वह नई पार्टी भी बना सकते हैं। मगर फिलहाल वे कुर्सी छोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। यही वजह है कि खुलकर बगावत भी नहीं कर पा रहे हैं। वह अपने समर्थकों के जरिये नेता जी और उनके भाई को उलझाए रखना चाहते हैं। दरअसल अखिलेश को इस बात का डर है कि अगर नई पार्टी की घोषणा कर दी तो मुलायम सिंह उनको मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहने देंगे। वे चुनाव आचार संहिता लगने का शायद इंतजार करें। अखिलेश के पास विधायक तभी तक हैं जब तक वह मुख्यमंत्री हैं। जैसे ही नेता जी खुद को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखवाएंगे। ज्यादातर विधायक अखिलेश का साथ छोड़कर नेता जी के पाले में खड़े नजर आएंगे। क्योंकि नई पार्टी से रिस्क लेने वालों की संख्या काफी कम होगी। इधर अगर मुलायम सिंह कुर्सी पर बैठ जाते हैं तो उन सबको ठीक करने में लग जाएंगे जो इस वक्त उनके और शिवपाल के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। उस स्थिति में कितने लोग अखिलेश का साथ देते हैं इस पर भी सन्देह है। सपा में जंग तब शुरू हुई जब राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को उस कुर्सी पर बिठाया। समाजवादी पार्टी में चल रही आपसी खींचतान किस मुकाम पर पहुंचेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि इस पूरी कवायद की बड़ी कीमत अखिलेश यादव के उस विकास के एजेंडे को चुकानी पड़ेगी, जिसे लेकर उन्होंने बीते साढ़े चार सालों तक उत्तर प्रदेश में काम किया और जिसे आधार बनाकर वे विधानसभा चुनाव मैदान में जाने का सब्जबाग पाले बैठे हैं। देखें, आने वाले वक्त में ऊंट किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

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