Wednesday 12 October 2016

रेडियोएक्टिव लीक की खबर से आईजीआई में हड़कंप

दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर रविवार सुबह उस समय हड़कंप मच गया जब एक कार्गो विमान से रेडियोएक्टिव पदार्थ लीक होने की खबर फैली। पूरे दिन चले घटनाक्रम के कारण एयरपोर्ट पर तैनात विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां भी हलकान रहीं। इस दौरान दमकल, पुलिस, एनडीआरएफ की टीम लगातार किसी भी आपत्तिजनक स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहीं। इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के पुलिस आयुक्त संजय भाटिया ने बताया कि उन्हें रविवार सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि टर्मिनल-तीन कार्गो टर्मिनल पर छह पैकेट सोडियम मोलिबडेट नाम का पदार्थ पेरिस से एयर फ्रांस की फ्लाइट संख्या 226 से पहुंचा है। यह रेडियोएक्टिव पदार्थ था, उसे ओखला औद्योगिक क्षेत्र में जैड-229 फिती बायोटेक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड पहुंचना था। जैसे ही यह सूचना फैली कि कोई रेडियोएक्टिव पदार्थ का रिसाव हुआ है, उसके बाद एनडीआरएफ (नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स) की टीम को इस बारे में सूचना दी गई। टीम ने मौके पर पहुंचकर कार्गो टर्मिनल खाली करवा लिया। हालांकि बाद में जब अधिकारियों ने इसकी जांच की तो पता चला कि कोई रिसाव नहीं हुआ। नई दिल्ली जिले के डीएम अभिषेक सिंह ने घटना की जांच के बाद स्थिति को स्पष्ट करते हुए बताया कि कार्गो टर्मिनल में दवा के रूप में लाए गए इस रेडियोएक्टिव पदार्थ न्यूक्लियर मेडिसिन की श्रेणी में रखे जाने वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ सोडियम मोलिबडेट 99 का पार्सल पूसा रोड स्थित बीएल कपूर अस्पताल के नाम आया था। जांच में खुलासा हुआ कि यह रेडियोएक्टिव पदार्थ की मौजूदगी से विकिरण की मात्रा एक मिल रोगन (विकिरण की मानक इकाई) से कम पाई गई, जो रिसाव के लिए जरूरी मानक से काफी कम है। इस दवा का इस्तेमाल थायरॉयड कैंसर के इलाज में किया जाता है। इसकी थोड़ी-सी अधिक मात्रा एक किलोमीटर के दायरे तक लोगों को प्रभावित कर सकती है। कैंसरयुक्त ट्यूमर सेल्स को खत्म करने वाला यह पदार्थ सांस के जरिये शरीर में पहुंचकर सफेद रक्त कणिकाओं को खत्म कर मरीज को एक से दो महीने में बेहद बीमार कर सकता है। विकिरण को इलाज के तौर पर प्रयोग करने के लिए इसे प्रभावित सेल्स तक ही पहुंचाया जाता है, जिससे अन्य सेल्स पर असर न पड़े। छह साल पहले मायापुरी की कबाड़ मार्केट में भी ऐसा ही किस्सा हुआ था। पर छह साल बीतने के बाद भी आज तक कोई स्कैनर यहां नहीं लग पाया है। बता दें कि 2010 में मायापुरी में कोबाल्ट रेडिएशन वाले गामा सेल को काटने के दौरान रेडिएशन फैला था। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और 10 लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। बेशक साइंस दिनोंदिन तरक्की कर रही है पर हमें संदेह है कि भारत इस प्रकार के रेडियोएक्टिव रिसाव का मुकाबला करने में सक्षम है?

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